Last Updated on अप्रैल 16, 2024 by Neelam Singh
सारांश
एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि भीगे बादाम खाने से कैंसर होने की संभावना होती है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा ज्यादातर गलत है।
दावा
इंस्टाग्राम पर जारी एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि बादाम खाने से कैंसर होने की संभावना होती है।
तथ्य जाँच
क्या बादाम में कोई आत्मरक्षा प्रणाली होती है?
हां, बादाम के पेड़ों में कई आत्मरक्षा तंत्र होते हैं, जो उन्हें संभावित खतरों से बचाने में मदद करते हैं। इस पेड़ की प्राथमिक रक्षा रणनीतियों में से एक ऐसे यौगिकों का उत्पादन शामिल है, जो शाकाहारी जीवों के लिए विषाक्त या अरुचिकर हो सकते हैं। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि बादाम के छिलके में टैनिन और फेनोलिक यौगिक जैसे पदार्थ होते हैं, जो उनके थोड़े कड़वे स्वाद में योगदान करते हैं। ये यौगिक निवारक के रूप में कार्य कर सकते हैं, जिससे जानवरों द्वारा बाहरी सुरक्षात्मक परत को खाने की संभावना कम हो जाती है।
क्या भीगे बादाम में कैंसर कारक तत्व छिलके के नीचे आ जाते हैं?
नहीं, बादाम को पानी में रखने के बाद कैंसर कारक पदार्थ आमतौर पर सतह पर नहीं आते हैं। बादाम के अंकुरण की प्रक्रिया में एंजाइमों की सक्रियता और उसकी संरचना में परिवर्तन शामिल होता है क्योंकि यह एक नए पौधे के रूप में विकसित होना शुरू होता है। पौधों के प्राकृतिक विकास चक्र के हिस्से के रूप में इस प्रक्रिया का कैंसर कारक पदार्थों से कोई संबंध नहीं है।
1982 का अध्ययन क्या कहता है?
1982 के एक अध्ययन से पता चला है कि 67 वर्षीय महिला (जिनका वजन 60 किलोग्राम था) को अस्पताल में भर्ती होने से एक साल पहले बड़ी आंत के कैंसर (कार्सिनोमा) का पता चला था। उनका ट्यूमर ऑपरेशन योग्य नहीं था इसलिए मरीज ने सर्जिकल हस्तक्षेप और कीमोथेरेपी पर विचार करने से इनकार कर दिया। अस्पताल में भर्ती होने से पहले आठ महीनों तक मरीज ने स्वतंत्र रूप से मेक्सिको से लाए जाने वाले इंजेक्शन लेट्राइल का उपयोग किया। बाद में उन्होंने आर्थिक तंगी के कारण लेट्राइल टैबलेट लेना शुरू कर दिया।
इस तरह का उपचार करने से लगभग दो सप्ताह पहले उन्हें एक दोस्त ने प्रोटीन सेवन बढ़ाने का दावा करते हुए कड़वे बादाम दिए थे। बादाम खाने के बाद उन्हें चक्कर आना, मितली, उल्टी और पेट दर्द के लक्षण महसूस हुए। हालांकि कभी-कभी उन्हें आराम महसूस होता है लेकिन उन्होंने कड़वे बादाम का सेवन करने की इस प्रक्रिया को जारी रखा, जिसके परिणामस्वरूप पेट में गंभीर दर्द हुआ और वे बेहोश हो गईं। पैरामेडिक्स ने अस्पताल के रास्ते में नालोक्सोन हाइड्रोक्लोराइड और डेक्सट्रोज़ घोल दिया, जो अप्रभावी साबित हुआ। आपातकालीन कक्ष में पहुंचने पर मरीज़ शिथिल हो गया।
अस्पताल में मरीज को लगातार उपचार दिए गए, जिसके परिणास्वरुप उनकी स्थिति में सुधार हुआ और अंततः उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। हालांकि रक्त के नमूनों की जब जाँच की गई, तो उससे साइनाइड के स्तर और मेथेमोग्लोबिन प्रतिशत का पता चला, जिसे उपचार शुरू करने के संबंध में समय के साथ प्लॉट किया गया था। यह मामला कड़वे बादाम की घातक खुराक के सेवन से उत्पन्न साइनाइड का एक गंभीर उदाहरण है।
क्या बादाम की त्वचा में कैंसर कारक गुण होते हैं?
नहीं, ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, जो बताता हो कि बादाम के छिलके में कैंसरकारी गुण होते हैं। बादाम अपने पोषक तत्व और स्वास्थ्य लाभों के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है। वे स्वस्थ वसा, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों का एक समृद्ध स्रोत हैं।
रंगाडोर मेमोरियल अस्पताल, बेंगलुरु में सलाहकार सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. कविता जैन ने कहा, “बादाम को भिगोना हानिरहित है और कैंसर पैदा करने वाला नहीं है। यह वास्तव में इसकी पाचनशक्ति को बढ़ाता है।”
वे आगे बताती हैं कि बादाम के छिलकों में एंटीऑक्सिडेंट और आहार फाइबर जैसे विभिन्न यौगिक होते हैं, जो उनके संभावित स्वास्थ्य-प्रचार प्रभावों में योगदान करते हैं। खाद्य पदार्थों में कार्सिनोजेनिक गुण आमतौर पर कुछ रसायनों या पदार्थों की उपस्थिति से जुड़े होते हैं, जो कैंसर के खतरे को बढ़ाने वाले साबित हुए हैं। आमतौर पर बादाम और उसके छिलके में कैंसर कारक यौगिक होने की जानकारी नहीं है।
पोषण विशेषज्ञ डॉ. स्वाति दवे बताती हैं, “बादाम के छिलके में टैनिन और फाइटिक एसिड जैसे एंटी-पोषक तत्व होते हैं। बादाम को पानी में भिगोने के साथ-साथ सिरका या नींबू के रस जैसे अम्लीय माध्यम का स्पर्श करने से फाइटिक एसिड की उपस्थिति कम हो जाती है। यह भिगोने की प्रक्रिया फाइटिक एसिड को कम से कम 7 घंटे में प्रभावी ढंग से बेअसर कर सकती है। हालांकि, बादाम के जरिए उपचार करने की प्रक्रिया के संबंध में सतर्क रहना महत्वपूर्ण है। उपचार के दौरान कठोर और खराब गुणवत्ता वाले रसायनों के इस्तेमाल से अधिक मात्रा में सेवन करने पर ‘एक्रिलामाइड’ नामक कैंसर कारक के संपर्क में आने की संभावना हो सकती है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, भीगे हुए बादाम चुनने की सलाह दी जाती है। कच्चे या भूने हुए बादाम की बजाय भीगे हुए बादाम का चयन करना एक स्वास्थ्यवर्धक विकल्प है। भीगे हुए बादाम ना केवल चबाने में आसान होते हैं, बल्कि वे आसानी से पचने में मदद करके पाचन तंत्र में भी सहायता करते हैं।
वनस्पति शास्त्री निधि सिंह बताती हैं, “कच्चे और भुने हुए बादाम दोनों ही आहार के रुप में एक आदर्श विकल्प हैं। वे विटामिन ई, मैंगनीज, ओमेगा-3 और 6 फैटी एसिड जैसे लाभकारी पोषक तत्वों का एक अच्छा स्रोत हैं, लेकिन इनका सेवन भी कम मात्रा में किया जाना चाहिए। बादाम, ब्राजील नट्स और पिस्ता जैसे मेवों में एक्रिलामाइड और मायकोटॉक्सिन एफ्लाटॉक्सिन की थोड़ी मात्रा भी होती है, जो लंबे समय तक उच्च जोखिम (यदि बड़ी मात्रा में सेवन किया जाता है) के साथ उपभोक्ताओं के शरीर में जमा हो सकता है। पशु और महामारी विज्ञान दोनों अध्ययन एफ्लाटॉक्सिन और यकृत कैंसर (liver cancer) के बीच मजबूत संबंध दिखाते हैं। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि नट्स और अनाज को भिगोने, अंकुरित करने, भूनने या किण्वित करने से एफ्लाटॉक्सिन की उपस्थिति काफी कम हो जाती है।
स्वास्थ्य और पोषण विशेषज्ञ वूमिका मुखर्जी बताती हैं, इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि बादाम के छिलके को भिगोने से कोई कैंसरकारी घटक होता है। बादाम के छिलके एंटीऑक्सीडेंट, आहार फाइबर और अन्य लाभकारी यौगिकों से भरपूर होते हैं। वास्तव में इन्हें अक्सर संभावित स्वास्थ्य लाभ माना जाता है, जिसमें इसके ओमेगा -3 गुणों के कारण हृदय रोग और मधुमेह जैसी पुरानी बीमारियों के जोखिम को कम करना भी शामिल है।
वे आगे बताती हैं कि इसके अलावा, ऐसे कुछ अध्ययन हैं, जो कैंसर की रोकथाम से संबंधित हैं। विशेष रूप से प्रोस्टेट, स्तन और पेट के कैंसर के बीच संबंध जोड़ा जा सकता है। इसी तरह बादाम में भी सैलिसिलेट होता है। चूंकि सैलिसिन प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला सैलिसिलेट है इसलिए ऐसा माना जाता है कि बादाम सिरदर्द या यहां तक कि माइग्रेन को पूरी तरह से ठीक कर सकता है।
अंतः विशेषज्ञों के साथ गहन शोध और परामर्श के बाद हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बादाम दुनिया भर में खाया जाने वाला एक अत्यधिक लोकप्रिय सूखा मेवा है। इसके अलावा इस बात का सुझाव देने वाले ठोस वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी है कि बादाम के छिलकों में कैंसर कारक यौगित होते हैं।
हमने पहले भी इस तरह के तथ्य जाँच किए है, जैसे- बादाम और काली मिर्च का सेवन आंखों की रौशनी ठीक कर सकता है और अखरोट का सेवन शुक्राणु की गुणवत्ता में सुधार करता है.
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