मनरेगा श्रमिकों की परेशानी केवल आर्थिक तंगी तक सीमित नहीं है बल्कि स्वास्थ्य संबंधित समस्या भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। घंटों दिहाड़ी मजदूरी करने के बाद वे घर पर आते हैं लेकिन अपने साथ वे कार्यस्थल के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को भी लेकर आते हैं।
शोध बताते हैं कि पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) यानी की हवा में मौजूद महीन कण फेफड़ों की समस्या को बढ़ा सकते हैं, जिससे क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) बीमारी एवं फेफड़ों का कैंसर होने का खतरा हो सकता है और परिणामस्वरूप मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है। हालांकि यह हवा में मौजूद कणों के आकार पर भी निर्भर करता है क्योंकि बड़े कण ऊपरी वायुमार्ग में जमा होते हैं और छोटे कण गहराई में प्रवेश कर जाते हैं।
अनेक बीमारियों की है जड़
सीओपीडी में फेफड़ों में सूजन की समस्या होती है, जो मुख्य रूप से हानिकारक गैसों और पीएम 4-7 कण के आकार के कारण होती है। हालांकि इसके अन्य जोखिमों के स्रोत में खाना पकाने के लिए ईंधन का जलना, घरों का प्रदूषित रहना और बाहरी वातावरण में काम करना भी शामिल है।
बाहरी वातावरण में काम करने से धूल, कण, मिट्टी आदि के संपर्क में लगातार रहना पड़ता है, जिस कारण सांस संबंधित परेशानी होना लाजिमी है। मनरेगा में बतौर काम करने वाली पूजा बताती हैं कि लगातार धूल, मिट्टी, सीमेंट आदि के संपर्क में रहने से खांसी, फेफड़ों में तकलीफ होने की परेशानी होती है। जैसे- कफ की समस्या होने पर तुरंत ना ठीक होना, हल्के धुएं के संपर्क में आने पर भी सांस फुलने लगना, आदि।
सुविधाओं की पहुंच है दूर
वहीं मनरेगा में बतौर संघ नेता कार्य कर रहे संजय साहनी बताते हैं, “मनरेगा में कई खामियां हैं, तो ऐसे में हम मजदूर किसी तरह के सुविधा के बारे में कैसे सोच सकते हैं? कई बार काम करने के दौरान किसी मजदूर को चोट लग जाती है या वो गंभीर रुप से घायल भी हो जाते हैं, तो तत्कालीन तौर पर कोई सुविधा नहीं मिलती है। चाहे कड़ाके की ठंड हो या तपती धूप हो, हम हर परिस्थिति में काम करते हैं लेकिन अफसोस इस बात का है कि हमें अपने मेहनत के अनुरुप सुविधाएं नहीं दी जाती हैं।”
वे आगे बताते हैं कि देखा जाए, तो मनरेगा मजदूरों को कई सुविधाओं की दरकार है। जैसे-
- वित्तीय सुरक्षा: दुर्घटनाओं, बीमारी या मृत्यु के मामले में बीमा का अधिकार ताकि श्रमिक के परिवार को वित्तीय सहायता मिल सके।
- चिकित्सा पहुंच: बीमा कवरेज, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा और उपचार तक पहुंच की सुविधा प्रदान करना ताकि श्रमिकों और उनके परिवार का समग्र विकास हो सके।
हालांकि मनरेगा श्रमिकों के लिए कुछ योजनाएं सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं, जिसका लाभ वे ले सकते हैं मगर परेशानी केवल इस बात की है कि अधिकांश मजदूरों को इन योजनाओं की जानकारी ही नहीं है।
सरकार द्वारा जारी योजनाएं
सरकार अपनी तरफ से मनरेगा श्रमिकों एवं अन्य लोगों के लिए बीमा योजनाएं चला रही है, जिसकी मदद से लोग ना केवल अपना स्वास्थ्य बल्कि परिवार की खुशी भी सुनिश्चित कर सकते हैं। इसमें से कुछ मुख्य योजनाएं निम्नलिखित है-
- जनश्री बीमा योजना (JBY): यह योजना जीवन बीमा कवर प्रदान करती है, जिसमें आकस्मिक मृत्यु या स्थायी विकलांगता के लिए 75,000 रुपये दिए जाते हैं। वहीं आंशिक विकलांगता के लिए 30,000 रुपयों की मदद की जाती है। इसमें वे सभी मनरेगा श्रमिक शामिल हैं, जिन्होंने वर्ष में कम से कम 15 दिन काम किया है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY): यह योजना स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान करती है। इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को प्रति वर्ष 50,000 रुपये दिए जाने का प्रावधान है, जिसमें मनरेगा श्रमिक भी शामिल हैं, जिन्होंने पिछले वित्तीय वर्ष में कम से कम 15 दिन काम किया हो।
- प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY): यह योजना आकस्मिक मृत्यु और विकलांगता कवर प्रदान करती है। इसमें 12 रुपये प्रति वर्ष का प्रीमियम भरने पर क्रमशः 1 से 2 लाख रुपये प्रदान किए जाते हैं।
डॉ. साकेत शर्मा (एमडी, डीएम सीनियर कंसलटेंट पलमोनरी मेडिसिन, जयप्रभा मेदांता हॉस्पिटल, पटना) बताते हैं, “प्रदूषित हवा में सांस लेना गंभीर परिणाम देने वाला हो सकता है क्योंकि प्रदूषित हवा, धूल, कण, सीमेंट, मिट्टी आदि में लगातार संपर्क में रहने के कारण फेफड़ों से जुड़ी समस्या हो सकती है। इसमें फेफड़े का कैंसर प्रमुख है। हालांकि धूम्रपान करना फेफड़ों के कैंसर होने का एक प्रमुख कारण है। साथ ही जो लोग asbestos आदि के संपर्क में रहते हैं, उन्हें भी फेफड़ों का कैंसर होने की संभावना होती है। इस तरह के कैंसर या बीमारी को occupational hazards कहा जाता है। इससे बचने के लिए जरुरी है कि श्रमिकों को उचित एवं जरुरत अनुसार सुरक्षात्मक किट प्रदान किए जाएं।”
डॉ. शर्मा आगे बताते हैं, “हालांकि इसके लक्षणों को बिना नजरअंदाज किए और सतर्क रहकर इसके खतरे को कम किया जा सकता है, जैसे- लंबे समय तक खांसी होना, छाती में दर्द होना, खांसी के साथ खून आना, आदि। फेफड़ों के कैंसर की जांच के लिए बायोप्सी की जाती है और बाकी अलग-अलग तरह के उपचार और बायोप्सी हैं, जिससे कैंसर की पहचान की जाती है। इसके अलावा वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से सीओपीडी का खतरा भी बढ़ जाता है क्योंकि घर में या कार्यस्थल पर वायु प्रदूषण के संपर्क में आना, पारिवारिक इतिहास और निमोनिया जैसे सांस संक्रमण भी इसके जोखिम को बढ़ा सकते हैं।”
संजय साहनी बताते हैं कि अधिकांश श्रमिकों को इन योजनाओं की जानकारी नहीं होती है। इसके अलावा अगर हम अपनी तरफ से श्रमिकों को इन योजनाओं की जानकारी देते हैं या उन्हें बीमा आदि को लेकर जागरुक करते हैं, तो भी वे कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं देते हैं क्योंकि इन कामों में लंबा वक्त लगता है और श्रमिक सोचते हैं कि एक भी दिन काम ना रुके। ऐसे में अगर कैम्प लगाकर श्रमिकों को इन योजनाओं में शामिल किया जाए, तो बेहतर होगा। जैसे- मनरेगा श्रमिकों के कस्बों या गांवों में सप्ताह में जरुरत अनुसार कैम्प लगाया जाए। इसके अलावा सरकार द्वारा मेडिकल कैम्प के जरिए भी मनरेगा श्रमिकों की जांच सुनिश्चित की जा सकती है।
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