Last Updated on अप्रैल 15, 2024 by Neelam Singh
मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से तकरीबन 15-16 किलोमीटर की दूरी पर कांटी शहर स्थित है, जिसके पास से गंडक नदी भी गुजरती है, जिससे यहां का इलाका काफी हरा-भरा रहता है। नदी के गुजरने के कारण आसपास अनेक तलाब बन गए हैं। यहां के लोग जीवनयापन करने के लिए खेती, मछली पालन, पशुपालन और यही स्थित कांटी थर्मल पॉवर प्लांट में कोयला आदि ढोने का काम करके अपनी जिंदगी की गाड़ी चला रहे हैं।
कांटी में साल 1985 में एक कोल बेस्ड थर्मल पावर स्टेशन लगाया गया था, जिसे आम बोलचाल की भाषा में कांटी थर्मल प्लांट भी कहा जाता है। NTPC के इस पावर प्लांट में कोयला जलाकर बिजली बनाने का काम शुरु हुआ था। लोगों को उम्मीद थी कि काम शुरु होने से उन्हें भी रोजगार का अवसर मिलेगा क्योंकि यहां से गुजरने वाली ट्रेने भी कोयला ढोने का काम करती हैं, ताकि बिना रुके सुचारु ढंग से बिजली उत्पादन का काम चलता रहे।
सस्ता लेकिन जहरीला
भले ही कोयला से बिजली उत्पादन करना एक सस्ता तरीका है लेकिन यह तरीका काफी नुकसानदायक है। यही कारण है कि जिस भी इलाके में थर्मल पॉवर प्लांट लगाया जाता है, वहां इस बात का ख्याल रखा जाता है कि आसपास घनी आबादी ना हो। मगर मुजफ्फरपुर के कांटी प्रखंड के अंतर्गत कोठियां गांव की आबादी करीब 5000 लोगों की है। हालांकि, प्लांट लगने के बाद कुछ लोगों को रोजगार तो मिला लेकिन इससे काफी सारे लोगों को त्वचा संबंधी दिक्कत, दमा, हार्ट अटैक इत्यादि स्वास्थ संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
कोयला जलने से कार्बन डाई ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स और मिथेन जैसी जहरीली गैसों के साथ-साथ राख भी निकलती है। इस प्लांट से दो तरह की राख निकलती है। पहली, महीन कणें जो उड़कर हवा में मिल जाती है, इसे फ्लाई ऐश कहा जाता है। यह राख थर्मल पावर प्लांट के आसपास के इलाकों में उड़ती रहती है, जिससे पावर प्लांट के नजदीक रहने वाले लोगों में सांस के जरिये राख के टुकड़े फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। इससे लोगों को सांस संबंधी बीमारियां होती हैं।
वहीं दूसरी प्रकार की राख तरल पदार्थ के रुप में निकलती है। आम बोलचाल की भाषा में इसे ‘छाई’ या बॉटम ऐश भी कहा जाता है। यह आसपास के तालाब, नदी और नहर के पानी में मिल जाती है फिर इसी पानी से फसलों की सिंचाई होती है, मवेशियों को नहलाने का काम होता है और वहां रहने वाले लोग भी इसी पानी का इस्तेमाल करते हैं।
स्थानीय निवासी सत्यनारायण साहनी ने बढ़ते और अनियंत्रित प्रदूषण के खतरे के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में शिकायत दर्ज की। पावर प्लांट अधिकारियों से नाराज NGT ने बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (BSPCB)) को कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
सत्यनारायण साहनी बताते हैं, “मैं 1988 से इस लड़ाई में हूं कि कांटी थर्मल पॉवर प्लांट के प्रदूषण से स्थानीय लोगों को बचाया जा सके लेकिन अफसोस, अब तक कोई सुखद परिणाम हासिल नहीं हुआ। मैं किसी को दोष नहीं देना चाहता पर इतना जरुर कहना चाहता हूं कि स्थानीय गांव के लोगों को इस प्रदूषण के कारण कैंसर, टीबी, त्वचा संबंधित, सांस संबंधित बीमारियां घेर रही हैं।”
सब कुछ है प्रदूषित
साहनी आगे बताते हैं, “स्थानीय तौर पर हम लोगों ने पौधारोपण का काम किया, जिससे थोड़ी राहत मिली लेकिन पुरवा या पछवा हवा के तेज गति में चलते ही दिक्कत होती है। यहां गेट नंबर तीन पर बनाए गए बांध के कारण तालाब में प्रदूषित पानी आता है, जिसमें फ्लाई ऐश यानी की हवा में मिली राख निकलती है, जिसमें जले हुए कोयले का अवशेष होता है। इससे यहां के पौधे, फसल, मवेशी, मछली सब कुछ प्रभावित हो गए हैं।”
वे बताते हैं कि BSPCB द्वारा किए गए निरीक्षण में कांटी थर्मल पॉवर प्लांट में फ्लाई ऐश तालाबों का कोई रखरखाव नहीं किया गया है। तालाबों के पास फ्लाई ऐश घोल फ़ेंक दिया जाता है और औद्योगिक कचरे के लिए कोई अलग नाली भी नहीं है।
निवासी हैं परेशान
कोठियां गांव निवासी फूलो देवी बताती हैं, “घर में छाई (राख) घुस जाती है और हमारे खाने में भी पड़ जाती है। पेड़-पौधे भी हरे-भरे नहीं रहते हैं और मवेशियों को भी काफी नुकसान पहुंचा है। राख के टुकड़े आंखों में भी चले जाते हैं, जिससे गांव वालों की आंख भी कमजोर हो रही हैं। आंधी चलने पर राख घर में घुस जाती है और इसके साथ पूरे गांव का सांस लेना मुश्किल हो जाता है। इससे स्त्रियां, बच्चे व बुजुर्ग सबसे अधिक प्रभावित हैं क्योंकि उन्हें ज्यादा समय तक कमरे में बंद करके रखना मुश्किल है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं की परेशानी दुगुनी हो जाती है इसलिए प्रसव के पहले और प्रसव के बाद कोई भी इस गांव में रहने की हिम्मत नहीं करता है।”
कोठियां गांव निवासी राम विलास राख ढोने का काम करते थे लेकिन वहां उनकी सुरक्षा का ख्याल नहीं रखा जाता था। उनके पैरों में घाव हो गया है, जिसका कारण चिकित्सकों ने कांटी थर्मल पॉवर प्लांट से निकलता प्रदूषण बताया। इसके परिणामस्वरूप, पिछले साल 60 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। उनके पुत्र अर्जुन बताते हैं कि उनके पिता के पैरों में एक जख्म हुआ था, जिसके इलाज को लेकर उन्होंने काफी प्रयास किया मगर वे बच नहीं सके। वर्तमान में, अर्जुन भी राख ढोने का काम कर रहे हैं क्योंकि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।
किसकी है जिम्मेदारी?
कांटी थर्मल प्लांट के एक अधिकारी ने अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कहा, “पिछले दो दशकों में फ्लाई ऐश की धारणा ‘खतरनाक अपशिष्ट’ से ‘संसाधनपूर्ण सामग्री’ के रूप में पूरी तरह से बदल गई है। यह मुख्यतः औद्योगिक परिप्रेक्ष्य के कारण है। सामाजिक रूप से थर्मल प्लांट की स्थापना के बाद से फ्लाई ऐश द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने और साथ ही प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने की शिकायतें मिली हैं। कुल मिलाकर, फ्लाई ऐश के प्रबंधन की जिम्मेदारी थर्मल प्लांट प्रबंधन की है।
यदि देखा जाए तो दिन-रात कांटी थर्मल इलाके और कोठियां गांव के लोगों के फेफड़ों में रोजाना ज़हर घुल रहा है। उनकी आजीविका के साधन रहे तालाब नष्ट होते जा रहे हैं, किसानों की पैदावार कम हो गई है, लीची के पेड़ भी सूखने लगे हैं। हर वो बीमारी जो प्रदूषण के कारण होती है, वे सारी बीमारियां लोगों को घेर रही हैं लेकिन इसके बावजूद भी कोई सुनने वाला नहीं है।
सत्यनारायण साहनी ने अंत में कहा, “मैं ये लड़ाई लड़ते-लड़ते थक गया हूं लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। हम विकासशील से विकसित होते-होते अपनी ही जान के साथ खेल रहे हैं। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं, जिसकी कीमत इन बेगुनाह लोगों को चुकानी पड़ रही है।”
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