हर साल जनवरी महीने को सर्वाइकल कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। सर्वाइकल कैंसर भारत में दूसरा सबसे अधिक होने वाला कैंसर है, जो 15 से 44 आयुवर्ग की महिलाओं को अपने चपेट में ले रहा है।
भारत में 15 वर्ष और इससे अधिक आयु वर्ग की महिलाओं की संख्या 511.4 मिलियन है, जिन्हें सर्वाइकल कैंसर होने का खतरा है। वर्तमान अनुमान बताते हैं कि हर साल 123907 महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का पता चलता है, जिनमें से 77348 महिलाओं की मृत्यु इस बीमारी से हो जाती है।
सर्वाइकल कैंसर का सबसे आम कारण मानव पेपिलोमावायरस- Human papillomavirus (HPV) संक्रमण है। HPV एक यौन संचारित वायरस है, जो त्वचा से त्वचा के संपर्क के माध्यम से फैलता है। HPV के 100 से अधिक प्रकार हैं, जिनमें से लगभग 14 प्रकार सर्वाइकल कैंसर का कारण बन सकते हैं। इन प्रकारों को ‘उच्च जोखिम वाले HPV’ के रूप में जाना जाता है।
HPV गर्भाशय ग्रीवा की कोशिकाओं में प्रवेश करता है और उनमें अपनी संख्या बढ़ाना शुरू कर देता है। यदि HPV संक्रमण लंबे समय तक रहता है, तो यह गर्भाशय ग्रीवा की कोशिकाओं में परिवर्तनों का कारण बन सकता है। इन परिवर्तनों को डिसप्लेसिया कहा जाता है। डिसप्लेसिया कैंसर से पहले की एक स्थिति है। यदि डिसप्लेसिया का इलाज नहीं किया जाता है, तो यह कैंसर में विकसित हो सकता है।
सर्वाइकल कैंसर के संभावित कारण
- एकाधिक यौन साथी होना (Multiple sexual partners)
- कम उम्र में यौन संबंध शुरू करना
- धूम्रपान
- रोग प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना
यदि सर्वाइकल कैंसर का प्रारंभिक अवस्था में ही निदान और उपचार किया जाए तो सर्वाइकल कैंसर को ठीक किया जा सकता है। लक्षणों को पहचानना और चिकित्सीय सलाह लेना एक महत्वपूर्ण कदम है।
- यौन संबंध बनाने के बाद, मासिक धर्म चक्रों के बीच में या रजोनिवृत्ति के बाद योनि से रक्तस्राव होना
- योनि से असामान्य स्राव, जैसे कि खून, मवाद या बदबूदार स्राव
- पेल्विक दर्द या ऐंठन
- कमर या पैरों में दर्द
- बार-बार मूत्र त्यागने की इच्छा होना या मूत्र में जलन होना
- थकान या वजन का कम होना
निदान व परीक्षण
सर्वाइकल कैंसर का निदान करने के लिए कई परीक्षण किए जा सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- Pap परीक्षण: यह एक सरल परीक्षण है जो गर्भाशय ग्रीवा से कोशिकाओं को एकत्र करता है। इन कोशिकाओं की जांच कैंसर या कैंसर से पहले के परिवर्तनों के लिए की जाती है।
- कोल्पोस्कोपी: यह एक परीक्षण है जिसमें गर्भाशय ग्रीवा की जांच एक विशेष लेंस के साथ की जाती है। यह परीक्षण Pap परीक्षण के परिणामों की पुष्टि करने में मदद कर सकता है।
- बायोप्सी: इस परीक्षण में गर्भाशय ग्रीवा से कोशिकाओं या ऊतकों का एक छोटा सा नमूना निकाला जाता है। इस नमूने की जांच कैंसर के लिए की जाती है।
सर्वाइकल कैंसर का इलाज कैंसर के चरण और अन्य कारकों पर निर्भर करता है। उपचार में शामिल हो सकते हैं:
सर्जरी: कैंसरग्रस्त ऊतकों को हटाने के लिए सर्जरी का उपयोग किया जा सकता है।
विकिरण: कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए विकिरण का उपयोग किया जा सकता है।
कीमोथेरेपी: कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
डॉ. एकता सिंह, स्त्री रोग विशेषज्ञ, Cloudnine Hospital, Noida, बताती हैं कि “सर्वाइकल कैंसर बढ़ने के कई कारण हैं, जिसमें से early sex केवल एक कारण हैं। इसके अलावा रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना भी एक प्रमुख कारण है। सर्वाइकल कैंसर होने का एक प्रमुख कारण HPV वायरस है जो यौन संबंध के माध्यम से स्त्रियों के शरीर में आ सकता है लेकिन अगर हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है, तो हम सर्वाइकल कैंसर से बच सकते हैं।”
डॉ. सिंह बताती हैं सर्वाइकल कैंसर से बचने के लिए निम्नलिखित तीन टीकाकरण किए जाते हैं-
- Bivalent – ये वैक्सीन बाजार से लगभग गायब हो गई है। इसे Cervavax कहा जाता था।
- Quadrivalent – ये वैक्सीन 43 की उम्र तक दी जाती है, जिसे 9 साल से शुरु किया जाता है और उसके बाद 6-12 महीनों के अंदर 15 साल पूरे होने से पहले खुराक दी जाती है। वहीं जब उम्र 15 साल से बड़ी हो, तो तीन खुराक दी जाती है। पहली खुराक, उसके बाद एक से दो महीने के बाद दूसरी खुराक और लगभग छह महीने के बाद तीसरी खुराक। जब हम एक महीने के बाद दूसरी खुराक देते हैं, तो हम मस्सों को देखते हैं। खासकर जो महिला टीका ले रही है, अगर उसे मस्सों की शिकायत है, तो हम एक महीने के बाद दूसरी खुराक दे सकते हैं और यदि कोई मस्सा नहीं है, तो हम दूसरी खुराक दो महीने के बाद दे सकते हैं।
- Nanovalent – ये वैक्सीन 26 साल पूरे होने से पहले दी जाती है।
सर्वाइकल कैंसर को अपना पूर्ण रुप लेने में 5-10 साल लग जाते हैं इसलिए इसे अन्य कैंसर की तुलना में ठीक करना थोड़ा आसान होता है। पैप स्मीयर टेस्ट की मदद से इसका पता लगाता जा सकता है, जो HPV वायरस की पहचान करता है। साथ ही सर्वाइकल कैंसर से बचने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता का मजबूत होना बेहद जरुरी है। वहीं यौन संबंध बनाते वक्त कंडोम या अन्य सुरक्षात्मक प्रणालियों का इस्तेमाल किया जाए, तो इसे कैंसर को बढ़ने से रोका जा सकता है।
वहीं डॉ. शायंतनी प्रमाणिक का कहना है, “स्त्री रोग विशेषज्ञ के यहां जाना एक महिला के लिए हिचकिचाहट से भरा होता है और अगर वो महिला शादी-शुदा ना हो तब पूछे जाने वाले सवालों को सोचकर ही अधिकांश महिलाएं स्त्री रोग विशेषज्ञ के यहां जाना टाल देती हैं। उनसे कई तरह के निजी सवाल पूछे जाते हैं, जैसे – आपके कितने साथी हैं, आप सेक्सुअली एक्टिव हैं या नहीं, आप शादी-शुदा हैं या नही। अनेक महिलाओं के लिए यह काफी चुनौतीपूर्ण होता है और यही कारण है कि वे डॉक्टर के पास जाने से बचती हैं और बीमारी बढ़ते चली जाती है। इसके अलावा कामकाजी महिलाएं अपनी व्यस्तता के कारण खुद को प्राथमिकता नहीं दे पाती और अपने स्वास्थ्य की जरूरतों को अनदेखा करती हैं ।”
पुरुषों की जांच भी जरुरी
शायंतनी प्रमाणिक आगे बताती हैं, “हर एक महिला जो 25-69 वर्ष की आयु की हैं, उन्हें पैप स्मीयर परीक्षण कराना चाहिए लेकिन कई बार मल्टीपल सेक्शुअल पार्टनर के होने से महिलाएं टेस्ट के लिए नहीं जाती। यही कारण है कि आजकल कई महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का जोखिम बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा ना केवल महिला बल्कि पुरुषों को भी इस वायरस की जांच करानी चाहिए क्योंकि कई बार हो सकता है कि महिला का एक ही पार्टनर हो मगर पुरुष के मल्टीपल पार्टनर हो। ऐसे में महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।”
डॉ. शायंतनी प्रमाणिक और उनकी टीम द्वारा cervicheck नामक एक डिवाइस का सृजन किया गया है, जो घर बैठे सर्वाइकल कैंसर की जांच करने की सुविधा प्रदान करता है। अनुमान है कि ये डिवाइस इस साल तक बाज़ार में उपलब्ध हो जाएगी।
सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए टीकाकरण एक सुरक्षित कदम हो सकता है लेकिन सरकार ने पुष्टि की है कि वर्तमान समय में ऐसा कोई टीकाकरण अभियान नहीं चलाया जा रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अभी तक देश में एचपीवी टीकाकरण शुरू करने पर निर्णय नहीं लिया है। फिलहाल देश में सर्वाइकल कैंसर के मामलों की बारीकी से निगरानी हो रही है और इस संबंध में राज्यों और विभिन्न स्वास्थ्य विभागों के साथ नियमित संपर्क किया जा रहा है। ऐसे में बेहतर यही है कि स्वयं ही जागरुकता और एहतियात बरतें एवं सर्वाइकल कैंसर के लक्षणों को लेकर जागरुकता फैलाई जाए।
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