Last Updated on जनवरी 9, 2024 by Neelam Singh
हाल के दिनों में सिर दर्द, थकान, दुर्बलता, चक्कर, सीने में दर्द, बेहोशी, सांस लेने में तकलीफ, जीभ में सूजन एक आम समस्या हो गई है मगर यह किस वजह से है, इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है? वहीं उत्तराखण्ड राज्य में इस प्रकार की समस्या से जुझते लोग हर दिन अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं।
देखा जाए, तो राज्य गठन के 23 वर्ष बाद भी स्वास्थ्य सेवाएं दुरूस्त नहीं हैं। हालांकि इस ओर कई प्रयास किए गए लेकिन स्वास्थ्य सुविधाएं पटरी पर नहीं आ सकी। डाॅक्टरों के लिए मैदानी क्षेत्रों से पहाड़ों पर जाना किसी चुनौती से कम नहीं है और शायद यही कारण है कि आम जनता इलाज के अभाव में बीमारियों की गिरफ्त में जा रही है। हालांकि कुछ हद तक चिकित्सकों की कमी को दूर किया जा रहा है लेकिन अभी भी विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी बनी हुई है। साथ ही आपातकालीन स्थिति में एंबुलेन्स सेवा की कमी भी एक व्यापक चुनौती है। ऐसी स्थिति में खून की कमी (एनीमिया) के अधिकांश मामले देखने को मिल रहे हैं, जिसमें पुरुषों की तुलना में महिलाएं एवं बच्चों की स्थिति ज्यादा गंभीर है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) की पांचवी रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार 5 वर्ष के 18 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से कम है। वहीं 56 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी देखी गई है। साथ ही 15 से 47 वर्ष आयु वर्ग की 42 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी से जूझ रही हैं।
नहीं मिल रहा योजना का लाभ
बीते चार वर्ष में उत्तराखंड राज्य में राष्ट्रीय पोषण मिशन, पीएम मातृ वंदना योजना, सीएम बाल पोषण योजना, सीएम आंचल अमृत योजना जैसी कई योजनाओं के संचालन के बावजूद भी एनीमिया गंभीर समस्या बनती जा रही है। ग्राम जोशीधुरा की कलावती देवी (दाई मां) का कहना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में महिलाएं एनीमिया से ज्यादा ग्रसित हो रही हैं, जिसमें मासिक धर्म के दौरान शरीर से निकलने वाले खून एवं गर्भावस्था की जटिलताएं प्रमुख कारण है।
आज भी आधुनिक सुविधाओं की कमी के कारण पौराणिक परम्पराएं अधिक हावी हैं। जैसे, मासिक धर्म के समय अलग बाहर/गोठ में सोने की प्रथा है। यही कारण है कि कहीं ना कहीं गर्भवती महिलाओं को उचित संतुलित भोजन और दवाएं नहीं मिल पाती है। दैनिक कार्यों के बोझ के कारण महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत नहीं हो पाती हैं।
नवम्बर, 2023 माह की घटना को यदि देखें तो पता चलता है कि कैसे अस्पतालों में आधुनिक उपकारणों व डाॅक्टरों के अभाव के कारण ग्राम सेलालेख की जानकी देवी ने रास्ते में ही अपने बच्चे को जन्म देने के लिए विवश होने पड़ा। यहाँ उल्लेखनीय है कि उस समय वे 60 किमी दूर हल्द्वानी अस्पताल जाने के लिए पैदल ही घर से सफर कर रही थीं। कई दूरदराज इलाकों में बच्चों के जन्म का दायित्व दाई के हाथों में होता है। महिलाएं जो समाज की रीढ़ हैं, वे न तो स्वयं अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दे पाती हैं और ना ही उनके परिवार वाले उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होते हैं।
हालांकि कुछ पर्वतीय क्षेत्रों में आरोही मोबाइल वैन नामक सुविधा प्रदान की जा रही है, जिसमें लोग घर बैठे मोबाइल फोन के जरिए नंबर लगा सकते हैं। इस गाड़ी में अल्ट्रा साउंड, सामान्य रुटीन चेकअप काफी किफायती दर पर किया जाता है, जिसका लाभ पर्वतीय क्षेत्रों के लोग उठाते हैं। इसमें चिकित्सक मौजूद रहते हैं, जो मरीजों की जांच करते हैं। ये सुविधा गर्भवती महिलाओं के लिए वरदान की तरह है, जिसे सामुदायिक तौर पर चलाया जा रहा है।
एनीमिया के हैं अनेक कारण
आरोही आरोग्य केन्द्र सतोली, नैनीताल से डाॅक्टर मन्जू बताती हैं, “वर्तमान समय में लिए जाने वाले आहार में आयरन की कमी एवं पर्याप्त पौष्टिक भोजन के ना मिलने से लोग एनीमिया रोग से ग्रसित हो रहे हैं, जिसमें महिलाओं की संख्या ज्यादा है क्योंकि उन्हें हर माह मासिक धर्म से गुजरना पड़ता है। वही आनुवंशिकता एवं अन्य रोग भी इसके जनक हो सकते हैं। महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान लाल रक्त कोशिकाओं में कमी आना स्वाभाविक है। वहीं गर्भवती महिलाओं में फोलिक एसिड व आयरन के साथ-साथ मल्टीविटामिन आदि का सेवन न करने से भी एनीमिया का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही जिन लोगों में आंतों से सम्बन्धित बीमारी होती है, उनमें भी ऐसी समस्या देखी जाती है। इसके बचाव में आयरन युक्त खाध पदार्थ जैसे- मीट, बीन्स, राजमा, मूंगफली, हरी पत्तेदार सब्जियां व साबुत अनाज का सेवन करना चाहिए, जिससे प्राथमिक स्तर पर इसके प्रकोप को रोका जा सके। इसे मामूली रोग समझ कर नज़र अंदाज़ नहीं करना चाहिए क्योंकि लक्षण गंभीर होने पर ब्लड ट्रांसफ्यूजन या बोन मैरो प्रत्यारोपण तक की नौबत आ जाती है। आज हर चौथे घर में एक एनीमिया का मरीज मिल रहा है। वही अस्पताल में आने वाले विभिन्न केस में इनकी संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है।”
पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य केन्द्र बिना चिकित्सकों के जैसे-तैसे चल रहे हैं। साथ ही आधुनिक मशीनों एवं दवाओं का भी अभाव है। अतः समुदाय को इस परिस्थिति को समझ कर स्वयं जागरूक होने की आवश्यकता है कि किस प्रकार अपने और अपने परिवार को विभिन्न बीमारियों से बचाया जा सकता है।
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