तथ्य जाँचः क्या नाभि में तेल डालने से सभी बीमारियां ठीक हो जाएंगी?

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सारांश 

एक वीडियो में दावा किया जा रहा है कि नाभि में तेल डालने से सभी प्रकार की बीमारियों से छुटकारा हो जाएगा। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा बिल्कुल गलत है। 

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दावा 

फेसबुक पर जारी एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि नाभी में तेल डालने से सभी प्रकार के बीमारी से छुटकारा हो जाएगा। किसी भी तरह की दवाई खाने की जरुरत नहीं है। इस वीडियो में 70 तरह की बीमारियों से मुक्ति की बात की जा रही है। 

Naval oil claim

तथ्य जाँच 

नाभि सूत्र चिकित्सा पद्धति क्या है? 

नाभि सूत्र एक पारंपरिक भारतीय चिकित्सीय पद्धति है, जिसमें विभिन्न स्वास्थ्य लाभों के लिए नाभि पर विशिष्ट तेल या हर्बल पेस्ट लगाना या नाभि में विशिष्ठ जड़ी-बुटियों से बना तेल डालना शामिल है।

शोध बताते हैं कि आयुर्वेद में नाभि की अवधारणा अनेक रुप में मौजूद है लेकिन इस ओर अभी और अन्वेषण एवं गहन अध्ययन की आवश्यकता है। आयुर्वेदिक चिकित्सका पद्धति में इसे Koshthanga, Marma, Sira और Dhamani Prabhava Sthana के तौर पर जाना जाता है। नाभि महत्वपूर्ण संरचनात्मक स्थलों में से एक है, जिसका उपयोग चिकित्सकों द्वारा सदियों से निदान और उपचार दोनों का मार्गदर्शन करने के लिए किया जाता है। 

साथ ही आयुर्वेद के अनुसार नाभि अग्नि का स्थान है। यह पाचन, पेशाब और गठन प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है इसलिए नाभि से जुड़ी चिकित्सीय पद्धति इन शारीरिक कार्यों को विनियमित करने में मदद कर सकती है। हालांकि नाभि द्वारा किसी बीमारी का इलाज करने को लेकर अभी और शोध की आवश्यकता है, जो गंभीर एवं लाइलाज बीमारी को ठीक करे या नियंत्रित करे। 

Dr P Rammanohar

डॉ. पी. राममनोहर, शोध निदेशक, अमृता स्कूल ऑफ आयुर्वेद, बताते हैं कि नाभि में तेल डालने या किसी विशेष प्रकार के तेल का नाभि के आसपास मालिश करने से बीमारियोंके ठीक होने में कोई सम्बन्ध नहीं है और न ही शास्त्रीय आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका कोई उल्लेख मिलता है। साथ ही नाभि में तेल के इस्तेमाल एवं मधुमेह के इलाज या उसके नियंत्रण को लेकर कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। 

क्या इस बात का वैज्ञानिक प्रमाण है कि नाभि में तेल डालने से हृदय, मधुमेह या यकृत रोग से बचाव होता है?

नहीं। देखा जाए, तो साल 2014 में प्राचीन साहित्य की समीक्षा में नाभि मालिश चिकित्सा या नाभि सूत्र चिकित्सा पद्धति के नैदानिक प्रभावों का पता लगाया गया था, जिसमें रगड़ना, थपथपाना, ज़ोर लगाना और फुलाना जैसे तरीकों की जांच की गई थी। अध्ययन में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और स्त्री रोग संबंधी स्थितियों के इलाज में इसकी प्रभावशीलता का समर्थन करने वाले सबूत मिले थे। हालांकि इस धारणा का समर्थन करने वाला कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि नाभि में तेल डालने से हृदय रोग, मधुमेह या यकृत रोग से बचाव होता है। 

लेकिन जब हमने मालिश के बारे में शोध किया तो हमें पता चला कि मालिश करने की चिकित्सीय पद्धति से चिंता, अवसाद और पुराने दर्द जैसे लक्षणों को कम करके उच्च रक्तचाप के रोगियों को लाभ मिलता है। अध्ययनों से रक्तचाप और कोर्टिसोल के स्तर में कमी का संकेत भी मिलता है। हालांकि शोध की गुणवत्ता भिन्न होती है क्योंकि विभिन्न तरीकों से मालिश करने से मिश्रित परिणाम मिलते हैं। 

मालिश के साथ अरोमा (aroma) जैसी चिकित्सा पद्धति जोड़ने से प्रभावशीलता बढ़ सकती है लेकिन व्यायाम जैसी प्रभावशीलता नहीं आ सकती। इसके अतिरिक्त, अनुसंधान में अभी और गहन शोध की आवश्यकता प्रतीत होती है, जो नाभि में तेल डालने और बीमारियों के प्रति ज्यादा सटीक जानकारी प्रदान कर सके। 

साल 2001 में जारी एक अध्ययन के मुताबिक मधुमेह से ग्रसित बच्चों के पूरे शरीर की मालिश करने से ग्लूकोज के स्तर में कमी दर्ज हुई, जिससे माता-पिता और बच्चों दोनों में चिंता और अवसाद में कमी देखी गई। हालांकि परिणामों को मापने के तरीकों का उल्लेख नहीं किया गया था। 

वहीं एक अन्य अध्ययन में क्लिनिकल स्टाफ ने मधुमेह के रोगियों को सांस लेने के निर्देश और हल्के स्पर्श दिए, जिसके परिणामस्वरूप रक्त शर्करा, चिंता, सिर दर्द, अवसाद, काम का तनाव और गुस्सा कम हुआ। साथ ही बेहतर नींद आई और पारिवारिक रिश्तों में सुधार हुआ। यहां भी किसी सांख्यिकीय महत्व का मूल्यांकन नहीं किया गया था और परिणाम माप के तरीके निर्दिष्ट नहीं किए गए थे।

एक अप्रकाशित परीक्षण में टाइप 2 मधुमेह वाले मरीज़, जिन्होंने 12 सप्ताह तक सप्ताह में तीन बार पूरे शरीर की मालिश की, उन्हें HbA1C के स्तर में विभिन्न बदलावों का अनुभव हुआ। वहीं कुछ रोगियों में कमी देखी गई, जबकि अन्य में वृद्धि देखी गई। साथ ही रोगी की विशेषताओं में अंतर भी देखा गया। प्रतीक्षा सूची के मरीजों में भी HbA1c के स्तर में गिरावट देखी गई। 

इन दोनों अध्ययनों में विभिन्न शारीरिक त्रुटियों के कारण परिणाम सटीक नहीं थे और प्रतिभागियों के बीच परिणाम भी अलग-अलग थे। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभावशीलता प्राप्त मालिश के प्रकार और उपयोग किए गए तेल के प्रकार पर भी निर्भर करती है। दोनों अध्ययनों ने अपने शोध में नाभि मालिश का उल्लेख नहीं किया है। 

क्या सभी तरह के रोग ठीक हो सकते हैं?

नहीं। देखा जाए, तो वर्तमान समय में ऐसे कई रोग हैं, जो ठीक नहीं किए जा सकते। जैसे- कैंसर, मधुमेह, एचआईवी एड्स,  इत्यादि। कैंसर स्पष्ट रूप से सबसे घातक बीमारी है क्योंकि तीन में से एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल के दौरान कैंसर होता है। शोध के अनुसार Oesophageal cancer सबसे घातक कैंसरों में से एक है और इसका इलाज करना मुश्किल है। साथ ही इस कैंसर का जल्दी पता लगाना बहुत मुश्किल है क्योंकि इस कैंसर के शुरुआती चरण में छोटे ट्यूमर अक्सर कम या कोई लक्षण उत्पन्न ही नहीं करते हैं, लेकिन अगर पता न चले तो Oesophageal cancer पेट, फेफड़े, लीवर और लिम्फ नोड्स सहित शरीर के विभिन्न हिस्सों में फैल सकता है। अंतिम मेटास्टेसिस चरण में ट्यूमर लाइलाज होता है और अंतिम चरण के अधिकांश उपचार केवल जीवन को बढ़ाने और लक्षणों से राहत देने पर केंद्रित होते हैं। Oesophageal को आम बोलचाल की भाषा में भोजन नली भी कहा जाता है, जो मुंह से शुरू होकर पेट तक जाती है।

क्या नाभि में तेल डालने की विधि कारगर है?

पेचोटी विधि (Pechoti method) में स्वास्थ्य कारणों से नाभि पर तेल या पदार्थ डालना शामिल है लेकिन इसका कोई पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। कुछ लोगों को अपनी मान्यताओं और अनुभवों के आधार पर यह मददगार लग सकता है, लेकिन वैज्ञानिक तौर पर इसे व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है इसलिए इसके प्रभावों के बारे में जानने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। 

इसके अलावा हमारे शोध के दौरान हमें ऐसा कोई शोध पत्र नहीं मिला, जिसमें विशेष रूप से ‘पेचोटी विधि’ शब्द का उल्लेख हो। जबकि अभ्यास करने वाले कुछ लोग लाभ का सुझाव देते हैं, लेकिन खोजे जाने पर उनके पास वैज्ञानिक मान्यता का अभाव होता है। ऐसे में इन स्वास्थ्य स्थितियों के प्रबंधन के लिए स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों द्वारा अनुशंसित साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण पर भरोसा करना महत्वपूर्ण है। 

हमने पहले भी उन दावों की तथ्य जांच की है, जिनमें कहा गया है कि नाभी में तेल डालने से मधुमेह को कम किया जा सकता है। 

क्या फेसुबक पर जारी वीडियो और वेबसाइट भ्रामक है?

हां, क्योंकि जिस प्रकार सभी तरह के बीमारियों को ठीक करने का दावा किया जा रहा है, यह बिल्कुल मिथ्या है। जैसा कि हमने उल्लेख किया है कि नाभि सूत्र चिकित्सीय पद्धति सभी तरह की बीमारियों का इलाज नहीं कर सकती। इसके अलावा इस वीडियो के अंत में जो वेबसाइट (herbal.oil) लिंक संलग्न की गई, उसमें AYURVEDIC SHRI RAMBAN MULTI-BENEFIT NABHI OIL के नाम से तेल को बेचा जा रहा है और एक पर एक मुफ्त का ऑफर चलाया जा रहा है। इस तेल का नाम श्री राम कृपा नाभि तेलम बताया जा रहा है, लेकिन इसमें कही भी तेल में मौजूद सामग्री की जानकारी नहीं दी गई। साथ ही इस वेबसाइट पर कुछ स्क्रिनशॉट संलग्न है, जिससे इस तेल की उपयोगिता सिद्ध नहीं होती है। 

अतः उपरोक्त शोध पत्रों एवं चिकित्सक के बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा बिल्कुल गलत है कि नाभि में तेल डालने से सभी तरह की बीमारियां ठीक हो जाएंगी और दवा खाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। बेहतर है कि इस तरह के दावों पर भरोसा करने से पहले आप अपने चिकित्सक से संपर्क करें क्योंकि वो ही लक्षणों को समझते हुए सही उपचार बता सकते हैं। 

क्रोध कैसे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है?

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क्रोध एक ऐसी स्वाभाविक भावना है, जो व्यक्ति के भावनात्मक संतुलन को बिगाड़ देती है। साथ ही यह मनुष्य के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। जैसा कि हाल ही में एनिमल फिल्म में देखा गया है, क्रोध आपके स्वस्थ और खुशहाल जीवन को पूरी तरह खराब कर देता है। क्रोध के विकारों और व्यक्ति के समग्र कल्याण के बीच जटिल संबंधों को पहचानना एक स्वस्थ और संतुलित जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।

क्रोध के मनोवैज्ञानिक विकार

मानसिक रूप से, अत्यधिक क्रोध भावनात्मक विकास को बाधित करता है, जो तनाव, चिंता और अवसाद से भी संबंधित है। अनियंत्रित क्रोध व्यक्ति के भावनात्मक लचीलेपन और आत्मसम्मान को प्रभावित करता है। इसके अलावा, अत्यधिक क्रोध कई सारे मनोवैज्ञानिक विकारों का कारण बनता है, जो भावनात्मक सुधार के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

इसके अलावा, अत्यधिक क्रोध के अनियंत्रित पहलू धीरे-धीरे किसी व्यक्ति के मूल्य की भावना को कम कर देता है। गुस्से से संबंधित व्यवहार, व्यक्ति में खराब आत्म-छवि और अयोग्यता या अपर्याप्तता की भावना को जन्म देता है। इसके भावनात्मक प्रभाव के साथ-साथ व्यक्ति के आत्म-मूल्य में आई इस गिरावट के कारण किसी भी व्यक्ति के लिए एक स्थिर और स्वस्थ मानसिक स्थिति को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।

शारीरिक समस्याओं का मूल कारण

शारीरिक रूप से, अत्यधिक क्रोध ऐसी विभिन्न शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देता है, जो बाद में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का रूप ले लेती हैं। इससे उच्च रक्तचाप समेत हृदय संबंधी समस्याओं, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली इत्यादि संबंधित है। क्रोध को एक क्षणिक भावना से अधिक के रूप में पहचानना महत्वपूर्ण है; यह विभिन्न शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारक के रूप में कार्य करता है, जो इन पर तुरंत ध्यान देने का संकेत भी देता है।

अंत में, जब क्रोध को लाइलाज छोड़ दिया जाता है, तब यह किसी भी व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। एनिमल फिल्म क्रोध के इस पहलू को अच्छी तरह से दर्शाती है। व्यक्ति के लिए, क्रोध के बहुआयामी प्रभाव को स्वीकार करना और एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना स्वस्थ जीवन के प्रति प्रतिबद्धता है। गुस्सा के प्रबंधन की दिशा में सक्रिय कदम उठाना मुख्यत: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखना है।

तथ्य जाँचः क्या इंसुलिन थेरेपी रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है?

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सारांश 

एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि इंसुलिन द्वारा रक्त शर्करा का स्तर बढ़ सकता है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा गलत है। 

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दावा 

फेसबुक पर जारी एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि इंसुलिन को बढ़ाने से रक्त शर्करा का स्तर कम होने के बजाय बढ़ सकता है। दावाकर्ता का कहना है कि रात में खाना खाने के बाद रक्त शर्करा का स्तर कम होने लगता है और फिर अचानक बढ़ता है लेकिन यह बढ़ाव यकृत यानी कि liver के कारण होता है मगर लोगों को लगता है कि रक्त शर्करा का स्तर बढ़ गया है और वो इंसुलिन की मात्रा बढ़ा देते हैं। यह बिल्कुल ऐसा है, मानो किसी बॉल को नीचे फेंका तो वो और तेजी से ऊपर आएगा। 

Insulin claim

तथ्य जाँच

क्या वीडियो में दिखाए गए व्यक्ति पर भरोसा किया जा सकता है?

नहीं। आपको बता दें कि वीडियो में जो शख्स मौजूद है, उसके खिलाफ कोरोना काल के दौरान एक याचिका दायर की गई थी, जिसे change.org पर जारी किया गया था। बिस्वरूप रॉय चौधरी एक स्व-घोषित डॉक्टर है, जो अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से महामारी की शुरुआत के बाद से लगातार जनता को COVID ​​-19 के बारे में यह कहते हुए गुमराह कर रहा था कि यह मौसमी फ्लू के अलावा कुछ नहीं है। साथ ही उन्होंने भारत सरकार द्वारा सामाजिक दूरी बनाए रखने की अपील को भी एक अनावश्यक कदम बताया था। 

हालांकि कोरोना काल के दौरान कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने वैक्सीन संबंधी गलत सूचनाओं को दूर करने के लिए अनेक कदम उठाए परन्तु फिर भी डॉ. चौधरी द्वारा फैलाई जा रही गलत सूचनाओं का दायरा बढ़ता जा रहा है। हाल ही में उन्होंने इंसुलिन द्वारा शरीर के रक्त शर्करा स्तर बढ़ने का दावा अपने फेसबुक अकाउंट Dr. BRC Shorts से साझा किया है।

इंसुलिन क्या है?

इंसुलिन अग्न्याशय (pancreas) द्वारा निर्मित एक महत्वपूर्ण हार्मोन है। इंसुलिन द्वारा ही पाचन क्रिया और रक्त शर्करा को नियंत्रित किया जाता है ताकि मेटाबोलिज्म की प्रक्रिया सही ढ़ंग से हो सके। 

रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने के अतिरिक्त इंसुलिन शरीर के अंदर वसा को सहेजने का काम भी करता है ताकि जरूरत पड़ने पर शरीर इस वसा का उपयोग कर सके।

क्या इंसुलिन थेरेपी रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है?

नहीं, इंसुलिन का उपयोग रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। जैसा कि हमने बताया है कि इंसुलिन एक हार्मोन है, जो रक्त से ग्लूकोज (चीनी) को लेकर उसे मांसपेशियों की कोशिकाओं में अवशोषित करने में मदद करता है, जहां इसका उपयोग ऊर्जा के लिए किया जाता है। 

मधुमेह से पीड़ित लोगों में शरीर या तो पर्याप्त इंसुलिन नहीं बनाता है या कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति उतनी अच्छी तरह प्रतिक्रिया नहीं करती हैं, जितनी उन्हें करनी चाहिए। इससे रक्त शर्करा का स्तर उच्च हो सकता है। इंसुलिन थेरेपी रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करती है।

क्या यकृत और इंसुलिन में संबंध है?

यकृत रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साथ ही शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। यकृत में मौजूद हेपेटिक इंसुलिन क्लीयरेंस और मेटाबॉलिज्म का समायोजन का उद्देश्य रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करना है। 

हालांकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मधुमेह से ग्रसित व्यक्तियों में इंसुलिन को प्रतिस्थापित करने के लिए यकृत पर्याप्त नहीं हैं। इंसुलिन कोशिकाओं द्वारा ग्लूकोज ग्रहण को सुविधाजनक बनाने और पूरे शरीर में ग्लूकोज के मेटाबॉलिज्म को विनियमित करने के लिए आवश्यक है, जबकि लीवर ग्लूकोज होमियोस्टैसिस यानी कि शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में योगदान देता है। 

यह मधुमेह रोगियों में इंसुलिन की अनुपस्थिति या अपर्याप्तता की पूरी तरह से क्षतिपूर्ति नहीं कर सकता है। रक्त शर्करा के स्तर को पर्याप्त रूप से नियंत्रित करने और जटिलताओं को रोकने के लिए इंसुलिन रिप्लेसमेंट थेरेपी मधुमेह प्रबंधन की आधारशिला बनी हुई है। यही कारण है कि यकृत के प्रतिपूरक तंत्र ग्लूकोज विनियमन के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन उसमें मधुमेह से ग्रसित व्यक्तियों में इंसुलिन की भूमिका को प्रतिस्थापित करने की क्षमता नहीं है।

क्या हर केस में इंसुलिन पर निर्भरता हटाई जा सकती है?

देखा जाए, तो इंसुलिन निर्भरता को पूरी तरह से हटाना आपके मधुमेह के प्रकार पर निर्भर करता है। 

टाइप 1 मधुमेह: यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर इंसुलिन का उत्पादन करने वाली कोशिकाओं पर हमला करता है। वर्तमान में टाइप 1 मधुमेह का कोई इलाज नहीं है, और इस स्थिति वाले लोगों को जीवन भर इंसुलिन की आवश्यकता होती है।

टाइप 2 मधुमेह: यह मधुमेह का सबसे आम प्रकार है। यह तब होता है, जब शरीर इंसुलिन के प्रति प्रतिरोधी हो जाता है या पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता है। कुछ मामलों में टाइप 2 मधुमेह से मुक्ति पाना संभव है, जिसका अर्थ है कि आप इंसुलिन लिए बिना अपने रक्त शर्करा के स्तर को प्रबंधित कर सकते हैं। 

यहां कुछ बिंदू दिए गए हैं, जो इंसुलिन पर आपकी निर्भरता को कम करने में आपकी मदद कर सकती हैं।  खासकर टाइप 2 मधुमेह के लिए- 

  • आहार: प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, चीनी और अस्वास्थ्यकर वसा वाले स्वस्थ आहार का सेवन आपके शरीर की इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।
  • वजन नियंत्रित रखना: यदि आपका वजन अधिक है या आप मोटापे से ग्रस्त हैं, तो वजन कम करने से आपके रक्त शर्करा नियंत्रण में काफी सुधार हो सकता है।

अतः उपरोक्त शोध पत्रों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा गलत है। हमने पहले भी इस तरह के दावों की जाँच की है, जैसे- गुड़ खाने से शुगर जैसी बीमारी नहीं होती और करेले के जूस में पैर भिगोना मधुमेह के लिए फायदेमंद है.

तथ्य जाँचः क्या करेला और जामुन का पाउडर प्राकृतिक रुप से मधुमेह को नियंत्रित कर सकता है?

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सारांश 

एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि करेला और जामुन पाउडर का सेवन करने से मधुमेह को प्राकृतिक रुप से नियंत्रित किया जा सकता है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा आधा सत्य है।

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दावा 

फेसबुक पर जारी एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि करेला और जामुन पाउडर का सेवन करने से मधुमेह को प्राकृतिक रुप से नियंत्रित किया जा सकता है। 

Karela Jamun claim

यहाँ यह बताना आवश्यक है कि हम दावे की जांच कर रहे हैं न कि उत्पाद की।

तथ्य जाँच 

क्या करेला में मधुमेह को नियंत्रित करने के गुण होते हैं?

शोध बताते हैं कि बायोएक्टिव यौगिकों की उपस्थिति के कारण करेला मधुमेह पर प्रभाव डालता है। ऐसा करेले में मौजूद चारैन्टिन, विसीन और पॉलीपेप्टाइड-पी के संभावित एंटीडायबिटिक प्रभावों के कारण होता है। ये यौगिक इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार और आंतों में ग्लूकोज अवशोषण को कम करके रक्त शर्करा के स्तर को विनियमित करने में मदद कर सकते हैं। हालांकि मधुमेह के प्रबंधन में इन यौगिकों के प्रभावशीलता को पूरी तरह से समझने के लिए और शोध की आवश्यकता है। यहाँ यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि करेला को मधुमेह के चिकित्सीय उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।

क्या जामुन मधुमेह को नियंत्रित करता है?

शोध बताते हैं कि जामुन के बीज में पाए जाने वाला यौगिक जैम्बोलिन (Jamboline) आंतों में कार्बोहाइड्रेट के टूटने की गति को धीमा करने में मदद कर सकता है, जो रक्त शर्करा को बढ़ने से रोकने में मदद कर सकता है। यह इंसुलिन के प्रति शरीर की संवेदनशीलता को बेहतर बनाने में भी मदद कर सकता है। इंसुलिन एक हार्मोन है, जो रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। 

कई अध्ययनों से पता चलता है कि जामुन में हाइपोग्लाइसेमिक प्रभाव होता है, जिससे रक्त शर्करा के स्तर में कमी आती है। जामुन फल के बीज विशेष रूप से एल्कलॉइड से भरपूर होते हैं, जो इन प्रभावों के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। हालांकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जामुन को मधुमेह के चिकित्सीय उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।

क्या करेला और जामुन मधुमेह को नियंत्रित कर सकते हैं?

कुछ हद तक, लेकिन करेला और जामुन मधुमेह के हर प्रकार या हर स्थिति के लिए लाभप्रद नहीं हो सकते क्योंकि टाइप 1 मधुमेह (Type 1 Diabetes) में शरीर में इंसुलिन का उत्पादन नहीं होता है इसलिए रक्त शर्करा के स्तर को प्रबंधित करने के लिए बाहरी तौर पर इंसुलिन लेने की आवश्यकता होती है। इसमें आमतौर पर कई दैनिक इंजेक्शन या इंसुलिन पंप पहनना शामिल होता है। वर्तमान में टाइप 1 मधुमेह को रोकने का कोई उपाय नहीं है।

वहीं टाइप 2 मधुमेह (Type 2 Diabetes) में चिकित्सक रक्त शर्करा स्तर के अनुसार दवाई लेने की सलाह देते हैं। इसके अलावा खान-पान, एक्सरसाइज, वजन नियंत्रित रखने आदि की सलाह भी दे सकते हैं। ये सभी निदान मरीज की स्थिति और शर्करा की गंभीरता को समझते हुए किए जाते हैं, जो हर मरीज के लिए भिन्न हो सकते हैं। 

ऐसे में केवल करेला और जामुन पर निर्भर रहना स्थिति को गंभीर बना सकता है। भले ही मधुमेह को नियंत्रित करने में ये उपयोगी हो लेकिन मरीज की आनुवांशिक स्थिति, दिनचर्या, अन्य दवाईयों का सेवन, धुम्रपान, शराब आदि का सेवन भी मधुमेह पर प्रभाव डाल सकता है। इसके अलावा मधुमेह को नियंत्रित रखने के लिए नियमित जाँच की भी आवश्कता होती है। 

Diabetologist

पटना स्थित डायबिटीज एंड ओबिसिटी केयर सेंटर के संस्थापक एवं डायबेटोलोजिस्ट डॉ. सुभाष कुमार बताते हैं, “मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन इसे संपूर्ण तौर पर समाप्त नहीं किया जा सकता। मधुमेह को नियंत्रित रखने के लिए जरुरी है कि मीठे चीजों से परहेज किया जाए और नियमित तौर पर अपने रक्त शर्करा की जाँच की जाए। हालांकि करेला, जामुन या जामुन के बीज मधुमेह रोगियों के लिए हानिकारक नहीं है लेकिन केवल इन पर निर्भर रहना कहीं से भी सही नहीं है। मधुमेह नियंत्रण के लिए कोई एक मानक नहीं है बल्कि अनेक मानक हैं। जैसे- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन ना करना, मीठा से परहेज करना, नियमित शारीरिक गतिविधि करना, वजन को नियंत्रित करना, नियमित तौर पर अपने चिकित्सक से परामर्श लेना, इत्यादि।” 

अतः उपरोक्त शोध पत्रों एवं चिकित्सक के बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि करेला और जामुन के बीज भले ही मधुमेह को नियंत्रित करने में अपनी भूमिका निभाते हो लेकिन इसे प्राकृतिक तौर पर नियंत्रित नहीं कर सकते इसलिए यह दावा आधा सत्य है। हमने पहले भी इस तरह के दावों की जाँच की है। जैसे- चाय के साथ रस्क का सेवन मधुमेह बढ़ा सकता है और करेले के जूस में पैर भिगोना मधुमेह के लिए फायदेमंद है। 


तथ्य जाँचः क्या भारत में साड़ी कैंसर के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं?

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सारांश 

एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि साड़ी पहनने से महिलाओं में कैंसर होने की संभावना होती है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा आधा सत्य है। 

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दावा 

फेसबुक पर जारी एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि साड़ी पहनने से महिलाओं में कैंसर होने की संभावना होती है।

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तथ्य जाँच 

क्या साड़ी कैंसर होता है? 

हां। शोध बताते हैं कि त्वचा कैंसर एक असामान्य घातक बीमारी है, जो भारत में होने वाले सभी कैंसरों में से 1% से भी कम है। ड्रॉस्ट्रिंग डर्मेटाइटिस (Drawstring dermatitis) एक प्रकार का घर्षणात्मक डर्मेटाइटिस है, जो ‘साड़ी’ और ‘सलवार-कमीज़’ जैसे पारंपरिक कसकर पहने जाने वाले कपड़ों से हो सकता है। 

कमर पर लगातार बना रहने वाला घर्षण lichenified grooves, सूजन, त्वचा की रंगत में फीकापन या सफेद दाग यानी कि विटिलिगो या lichen planus जैसी पहले से मौजूद त्वचा रोगों को बढ़ा सकता है। पुरानी घर्षण, पसीने और उष्णकटिबंधीय वातावरण की नमी के साथ मिलकर कैंडिडा, डर्माटोफाइट्स और बैक्टीरिया के संक्रमण का कारण बनता है। हालांकि दुर्लभ मामलों में स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (Squamous Cell Carcinoma) की सूचना मिली है। इस स्थिति की रोकथाम वजन कम करने और कमरबंद की डोरी को ढीला बांधने से हो सकती है। 

साड़ी का कैंसर त्वचा कैंसर का एक दुर्लभ प्रकार है, जिसे स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (SCC) के नाम से जाना जाता है। साड़ी और धोती क्रमशः भारतीय उपमहाद्वीप की महिलाओं और पुरुषों के पारंपरिक वस्त्र हैं। इन वस्त्रों को लगातार कमर के चारों ओर कसकर पहनने से त्वचा में रंग बदलाव, त्वचा का सख्त होना (acanthosis), घाव के निशान और घाव (ulceration) बन जाते हैं फिर धीरे-धीरे ये घातक (malignant) परिवर्तन में बदल सकते हैं। माना जाता है कि लम्बे समय तक बार-बार लगने वाली चोट और उसके कारण घाव भरने की प्रक्रिया में बाधा ही इस घातक परिवर्तन का कारण बनती है।

क्या हाल ही में साड़ी कैंसर के मरीजों में बढ़ोतरी हुई है?

नहीं। जैसा ऊपर बताया जा चुका है कि साड़ी कैंसर भारत में होने वाले सभी कैंसरों में से 1% से भी कम है। साथ ही, साड़ी कैंसर और अपघर्षक कपड़ों से होने वाली त्वचा की अन्य विकृतियों को आसानी से रोका जा सकता है। यहाँ उल्लेखनीय है कि यह स्वास्थ्य दशा किसी विशेष परिधान जैसे साड़ी के लिए विशिष्ट नहीं है। यह अन्य तंग कपड़ों जैसे जीन्स, अंडरगारमेंट्स के लिए भी लागू होता है।

क्या सभी महिलाओं को साड़ी पहनने से कैंसर का खतरा हो सकता है?

नहींअध्ययन बताते हैं कि साड़ी कैंसर का मामला एक 68 वर्षीय महिला में मिला था, जिन्हें कमर के बायीं ओर एक गांठ (ulceroproliferative growth) थी। बायोप्सी (biopsy) में यह गांठ स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (SCC) के रूप में पाई गई। इसका इलाज सर्जरी द्वारा किया गया, जिसमें गांठ को व्यापक रूप से काटकर निकाल दिया गया (wide excision) और फिर घाव को बंद कर दिया गया (primary closure)। 

एक अन्य मामले में 40 वर्षीय महिला पिछले छह महीनों से दाहिने कूल्हे के क्षेत्र में घाव की समस्या से जूझ रही थीं। उन्होंने बताया था कि दाहिने कूल्हे के क्षेत्र में वे साड़ी बांधती थी, वहां पर पहले भी घाव हो चुका था और अब दोबारा हो गया है। पिछले एक महीने में घाव का आकार बढ़ गया है और साथ ही दर्द भी रहता है। अध्ययन में वर्णित है कि इन महिला को भी साड़ी कैंसर यानी कि SCC हुआ था। 

Radiation Oncologist

डॉ. सार्थक मोहर्रिर (Radiation oncologist, Apollo Hospital, Bilaspur) बताते हैं कि, “भारतीय महिलाओं में साड़ी कैंसर अभी एक दुर्लभ कैंसर है। देखा जाए तो महिलाएं जो साड़ी या पेटीकोट पहनती हैं, वो लंबे समय तक कमर में कसा होता है। यही कारण है कि वहां की त्वचा में घर्षण होने लगता है। गर्मी के दिनों में ये समस्या बढ़ जाती है। इसके अलावा साड़ी कैंसर के अन्य कारक में निजी साफ सफाई भी है क्योंकि कई बार लंबे वक्त तक पसीना आने के कारण आसपास के धूल कण भी साड़ी में रह जाते हैं, जिससे सूजन होने की संभावना बढ़ जाती है। यही सूजन बाद में कैंसर का रूप ले लेता है।

साड़ी कैंसर से बचने का एकमात्र उपाय है कि कमर में एक ही जगह बार बार साड़ी या पेटीकोट को कस कर न बांधा जाये और साफ सफाई पर ध्यान दें। किसी भी प्रकार के लक्षण आने पर चिकित्सक से तुरंत संपर्क किया जाना चाहिए। अगर सही समय पर त्वचा कैंसर की पहचान हो जाए तो उसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है।”

स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (SCC) क्या है?

शोध बताते हैं कि स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा त्वचा कैंसर का दूसरा सबसे आम प्रकार है। यह तब होता है, जब त्वचा लंबे समय तक पराबैंगनी (UV) किरणों के संपर्क में रहती है। इस स्थिति में एक्टिनिक केराटोसिस नामक पूर्व-कैंसर घाव बन सकते हैं, जो बाद में ट्यूमर का रूप ले सकते हैं और शरीर में अन्य अंगों तक फैलने की क्षमता रखते हैं। चिकित्सक मरीज की स्थिति और गंभीरता के अनुसार ही Radiation Therapy, Immunosuppression या अन्य चिकित्सीय पद्धति का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें सर्जकी भी एक प्रमुख विकल्प है। 

साड़ी कैंसर से बचने के क्या उपाय हो सकते हैं?

साड़ी कैंसर से बचने के लिए जागरुकता ही एकमात्र उपाय है। ऐसे में साड़ी या पेटीकोट की डोरी को कमर के हिस्से में कसकर बांधने से परहेज करना चाहिए। इसके अलावा जो महिलाएं दिन-भर साड़ी पहनती हैं, उन्हें साड़ी पहनते समय निम्नलिखित सलाह दी जानी चाहिए- 

  • जिनकी त्वचा संवेदनशील होती है, उन्हें साड़ी को कसकर नहीं बांधना चाहिए। 
  • अपनी त्वचा के अनुसार ही फैब्रिक का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि कई बार लोगों को किसी खास किस्म के कपड़ों से संक्रमण आदि की समस्या होती है, जो आगे चलकर गंभीर परिणाम दे सकती है। 
  • पेटीकोट में नाड़े की जगह चौड़ी बेल्ट का उपयोग किया जा सकता है ताकि दबाव कम पड़े। ध्यान रखें कि बेल्ट भी ज्यादा कसी हुई नहीं होनी चाहिए। 
  • हर बार एक ही स्थान पर साड़ी ना बांधे। आप चाहे तो उसके जगह को थोड़ा ऊपर-नीचे किया जा सकता है ताकि लगातार दबाब की समस्या ना हो।  

अतः उपरोक्त शोध पत्रों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा आधा सत्य है। भारत में साड़ी कैंसर के केस अभी काफी कम हैं। ऐसे में जागरुकता और बचाव के जरिए साड़ी कैंसर से बचा जा सकता है। हमने पहले भी कई दावों की जाँच की है, जैसे- जायफल चेहरे के काले धब्बों को ठीक कर सकता है. किसी भी तरह के भ्रामक दावों से दूर रहे। 

तथ्य जाँचः क्या माचिस की तीली बिच्छू के डंक का सही उपचार है?

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सारांश

एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि माचिस की तीलियों को पीसकर पानी के साथ मिलाकर बिच्छू के काटने वाले स्थान पर लगाने से जहर उतर जाता है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा बिल्कुल गलत है। 

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दावा 

फेसबुक पर जारी एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि माचिस की पांच-सात तीलियों को पीसकर पानी के साथ मिलाकर बिच्छू के काटने वाले स्थान पर लगाने से सिर्फ दो मिनट में जहर उतर जाता है। 

scorpion bite claim

तथ्य जाँच 

क्या बिच्छू का डंक जानलेवा हो सकता है?  

बिच्छू का डंक दर्दनाक होता है लेकिन ज्यादातर मामलों में यह हानिरहित होता है। हालांकि अधिकांश बिच्छू के डंक जीवन के लिए खतरनाक एन्वेनोमिंग के बिना केवल स्थानीय दर्द का कारण बनते हैं, लगभग एक तिहाई डंक प्रणालीगत एन्वेनोमिंग का कारण बनते हैं जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु हो सकती है। बिच्छू का दंश बच्चों के लिए जानलेवा हो सकता है उनके शरीर के छोटे आकार के कारण। डंक लगने पर जलन या चुभन के साथ ही लालिमा और सूजन आ सकती है।

बिच्छू के डंक मारने पर क्या उपचार किया जाना चाहिए?

बिच्छू के डंक की गंभीरता जहर में न्यूरोटॉक्सिन की उपस्थिति से संबंधित है जिससे सूजन प्रतिक्रिया भी होती है। यदि समय रहते एंटीवेनम से उपचार किया जाये तो यह कई जटिलताओं को रोकता है और परिणाम में सुधार करता है। नए एंटीवेनम की प्रभावकारिता और सुरक्षा उत्कृष्ट होती है। नतीजतन, एंटीवेनम के प्रति प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं अब बहुत दुर्लभ और आमतौर पर हल्की होती हैं, जिससे उनके नियमित उपयोग के बारे में किसी भी अनिच्छा को सीमित करना चाहिए। इम्यूनोथेरेपी का समर्थन करने के लिए लक्षणात्मक उपचार अभी भी आवश्यक है, विशेष रूप से अस्पताल में देरी से आने के मामलों में। किसी भी स्तिथि में पीड़ित को शीघ्र नजदीकी चिकित्सा केंद्र में लेकर जाना चाहिए ।

बिच्छू के डंक मारने के लक्षण क्या हैं?

बिच्छू के डंक मारने के बाद निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं। जैसे- 

  • पूरे शरीर का सुन्न पर जाना
  • सांस लेने में कठिनाई  
  • भोजन निगलने में परेशानी 
  • बोलने में दिक्कत होना
  • बेचैनी
  • मांसपेशियों में खिंचाव 
  • हृदय की गति का बढ़ जाना 

क्या माचिस की तीली से बिच्छू के डंक का उपचार संभव है?  

माचिस की तीली में सबसे ऊपर हिस्से पर फास्फोरस लगाया जाता है, जो एक अत्यंत ज्वलनशील रासायनिक तत्व है। इसके अलावा पोटैशियम क्लोरेट, लाल फॉस्फोरस, ग्लू (गोंद), पिसा हुआ कांच, सल्फर और स्टार्च की मिलावट की जाती है। इन सबको सीधी अपनी त्वचा पर लगाना हानिकारक हो सकता है क्योंकि माचिस में अनेक तरह के रासायनिक तत्व मौजूद होते हैं। 

General Physician Dr Kahsyap Dakshini

जनरल फिजिशियन डॉ. कश्यप दक्षिणी ने इस वायरल दावे के बारे में बताया, “बिच्छू के काटने पर माचिस की तीली को लगाने को लेकर कोई शोध उपलब्ध नहीं है, जो इस बात का दावा करता हो कि माचिस की तीली से बिच्छू के डंक का उपचार संभव है। वहीं बिच्छू के काटने पर सबसे पहले उस स्थान को साबुन और पानी से धोना चाहिए। प्राथमिक चिकित्सा के तहत उस स्थान पर बर्फ या ठंडा पानी लगाना चाहिए।”

उन्होंने आगे बताया कि इसके बाद दर्द को कम करने के लिए anti-histamine ड्रग के साथ paracetamol या acetaminophen दवा ली जा सकती है। इसके अलावा Corticosteroid भी दी जा सकती है। बिच्छू काटने पर अगर प्राथमिक उपचार से राहत ना मिले, तो जल्द अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र या चिकित्सकों से संपर्क करना चाहिए। 

Dermatologist Dr. Kannagath

वहीं त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. ज्योति कन्नगनाथ ने बताया, “माचिस की तीली को सीधे तौर पर त्वचा के संपर्क में लाना हानिकारक हो सकता है क्योंकि इससे त्वचा में संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा इसमें कई तरह के रसायन होते हैं, जो ना केवल त्वचा को क्षति पहुंचा सकते है बल्कि संवेदनशील त्वचा के लिए गंभीर परिणाम भी दे सकते हैं। इसके अलावा संभावना है कि गलती से माचिस की तीली अगर आंख, मुंह या नाक में चली जाए, तो स्थिति बिगड़ सकती है। ऐसे में किसी तरह के प्रयोग करने से पहले चिकित्सक से जरुर संपर्क करें।” 

अतः उपरोक्त शोध पत्र एवं चिकित्सक के बयान के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह दावा बिल्कुल गलत है। बिच्छू के काटने पर माचिस की तीली पानी में मिलाकर लगाने से जहर को नहीं उतारा जा सकता है। हमने पहले भी इस तरह के दावों की पड़ताल की है, जैसे- जोड़ों के दर्द को हमेशा के लिए ठीक करना एवं पुरुषों के लिंग के आकार को हर्बल औषधि के प्रयोग से बढ़ाना।  इस तरह के भ्रामक दावों से दूर रहे एवं किसी तरह की समस्या होने पर अपने नजदीकी चिकित्सक से परामर्श करें। 

तथ्य जाँचः क्या जोड़ों के दर्द को हमेशा के लिए ठीक किया जा सकता है?

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सारांश 

फेसबुक पर जारी एक वीडियो के जरिए दावा किया जा रहा है कि जोड़ों के दर्द को किसी भी उम्र में हमेशा के लिए ठीक किया जा सकता है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा बिल्कुल गलत है। 

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दावा 

फेसबुक पर जारी एक वीडियो के जरिए दावा किया जा रहा है कि जोड़ों के दर्द को किसी भी उम्र में हमेशा के लिए ठीक किया जा सकता है। पोस्ट का स्क्रीनशॉट नीचे संलग्न है:

joint pain claim

तथ्य जाँच 

जोड़ों में दर्द क्यों होता है?

जोड़ों में दर्द निम्नलिखित कारण से हो सकते हैं- 

ऑस्टियोआर्थराइटिस: यह जोड़ों में दर्द का आम कारण है। यह एक घिसाव और टूट-फूट की स्थिति है, जहां जोड़ों को सुरक्षित रखने वाला उपास्थि (cartilage) समय के साथ खराब हो जाती है। इससे हड्डियां आपस में रगड़ती हैं, जिससे दर्द, सूजन और जकड़न पैदा होती है। ऑस्टियोआर्थराइटिस प्रत्येक व्यक्ति को अलग तरह से प्रभावित करता है। कुछ लोगों में ऑस्टियोआर्थराइटिस दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को प्रभावित नहीं करता है। वहीं कुछ लोगों में यह दर्द और दिव्यांगता का कारण बन सकता है। जोड़ों की क्षति आमतौर पर धीरे-धीरे विकसित होती है। हालांकि कुछ लोगों में यह जल्दी खराब हो सकती है।

रुमेटीइड गठिया: यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली जोड़ों की परत सहित स्वस्थ ऊतकों पर हमला करती है। इसके परिणामस्वरूप शरीर के जोड़ों में दर्द, सूजन, कठोरता और थकान होती है।

गठिया या आर्थराइटिस: यह जोड़ों के दर्द और सूजन के लिए एक आज एक आम प्रचलन का शब्द बन गया है लेकिन इसके कई प्रकार होते हैं, जिनमें रुमेटीइड गठिया, ल्यूपस और सोरियाटिक गठिया शामिल है। 

संक्रमण: बैक्टीरिया या वायरस से जोड़ों के संक्रमण से दर्द, सूजन, बुखार और ठंड लग सकती है।

वजन: अधिक वजन या मोटापे के कारण घुटनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे जोड़ों का दर्द हो सकता है।

इसके अलावा जोड़ों के दर्द के अन्य कारण भी हैं, जिसमें मधुमेह, मोटापा और हाइपोथायरायडिज्म जैसी कुछ बीमारियां भी शामिल हैं।

क्या जोड़ों के दर्द को हमेशा के लिए ठीक किया जा सकता है?

जोड़ों के दर्द को हमेशा के लिए ठीक किया जा सकता है या नहीं, यह दर्द के कारण पर निर्भर करता है। कुछ मामलों में, जैसे कि ऑस्टियोआर्थराइटिस, दर्द को पूरी तरह से ठीक करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन इसे प्रबंधित करना और लक्षणों को कम करना संभव है।

गठिया का कोई इलाज नहीं है लेकिन दर्द और सूजन को कम करके जोड़ों को आराम दिया जा सकता है लेकिन इसके लिए चिकित्सक की सलाह आवश्यक है क्योंकि वो ही दर्द के कारण की जाँच कर सकते है और उसके अनुरुप उपचार बता सकते हैं। इसके अलावा जीवनशैली में बदलाव करके, वजन को नियंत्रित करके, शारीरिक गतिविधि को दिनचर्या में शामिल करके भी जोड़ों के दर्द में थोड़ा आराम हासिल किया जा सकता है लेकिन ये दर्द को ताउम्र नहीं होने देंगे या दर्द को जड़ से खत्म कर देंगे, ऐसा कोई दावा या वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। 

Orthopedic

डॉ. सुशांत श्रीवास्तव, एमबीबीएस, एमएस (ऑर्थोपेडिक्स) एक अनुभवी ऑर्थोपेडिक सर्जन हैं। वे बाल चिकित्सा ऑर्थोपेडिक्स में विशेषज्ञ हैं। साथ ही वर्तमान में वे बिहार के किशनगंज में माता गुजरी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज और लायंस सेवा केंद्र अस्पताल में ऑर्थोपेडिक्स विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने इस वीडियो में किए गए दावे के बारे में बताया, “जोड़ों के दर्द का इलाज करना तब ही कारगर साबित होता है, जब उसके कारण के बारे में सटीक जानकारी हो। बिना दर्द का कारण जानें इलाज करना जटिल है क्योंकि ऑस्टियोआर्थराइटिस, चोट, सूजन, संक्रमण इत्यादि भी जोड़ों के दर्द का कारण बन सकता है। जोड़ों में होने वाला दर्द केवल घुटनों, पीठ या कमर से संबंधित नहीं होता बल्कि शरीर में कई जोड़ काम करते हैं। बिना सही से जाँच किए यह कहना असंभव है कि जोड़ों के दर्द को ठीक किया जा सकता है।” 

उन्होंने आगे बताया “Cartilage एक कठोर लेकिन लचीली ऊतक होती है, जो 65-80 प्रतिशत पानी से बनी होती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ cartilage अपनी शक्ति खोने लगती है, जिसके बाद ‘मैट्रिक्स’ इस कार्य को गति देने का काम करता है इसलिए जोड़ों के स्वास्थ्य और कामकाज को बनाए रखने के लिए अच्छी तरह से हाइड्रेटेड (पानी की कमी ना होने देना) रहना भी महत्वपूर्ण है। इसके अलावा नियमित चिकित्सीय जांच से जोड़ों की समस्याओं का जल्द पता लगाने में मदद मिल सकती है और सही उपचार तुरंत शुरू किया जा सकता है। याद रखें, ये केवल सामान्य दिशानिर्देश हैं और अलग-अलग ज़रूरतें व्यक्ति-दर-व्यक्ति भिन्न हो सकती हैं। व्यक्तिगत सलाह के लिए हमेशा प्रमाणित स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से परामर्श लें।”

क्या फेसबुक पर जारी वीडियो भ्रामक है? 

बिल्कुल क्योंकि इस वीडियो को बनाने के लिए AI की मदद ली गई है। इस वीडियो में पतंजलि के रामदेव बाबा को दिखाया गया है जबकि वो उनकी आवाज नहीं है। इसके अलावा जब हमने वीडियो के key frames को सर्च किया तो केवल रामदेव बाबा की तस्वीर मिली। इसके अलावा वीडियो में दिए गए लिंक को क्लिक करने पर कोई कंटेंट नहीं पाया गया है। इसका मतलब यही है कि यह लिंक भी CLICK BAIT है। इस वीडियो को केवल लोगों में भ्रम उत्पन्न करने के लिए बनाया गया है। साथ ही वीडियो में किस औषधि या दवा की बात हो रही है, यह स्पष्ट नहीं है। 

पतंजलि की मीडिया टीम से पल मिश्रा विवेकानंद ने हमें बताया कि रामदेव बाबा ने इस तरह के किसी उत्पाद का प्रचार नहीं किया है। यह वीडियो AI से निर्मित है इसलिए लोगों से अनुरोध है कि इस तरह के दावों पर ध्यान ना दें।

अतः उपरोक्त शोध पत्रों एवं चिकित्सक के बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा बिल्कुल गलत है। हमने पहले भी जोड़ों के दर्द से सम्बंधित दावों का तथ्य जाँच किया है, जैसे- घरेलू तौर पर बनाए गए तेल से मालिश करने से घुटनों का दर्द कम होगा और घरेलू तेल से मालिश करने पर 100 साल तक जोड़ों के दर्द से छुट्टी मिल जाएगी

किसी भी तरह के दर्द को नजरअंदाज ना करें क्योंकि दर्द शरीर में हो रहे बदलाव का संकेत होते हैं। अपने चिकित्सक से संपर्क करे और इस तरह के भ्रामक दावों से दूर रहे। 

तथ्य जाँचः क्या घरेलू उपायों से ल्यूकोरिया को ठीक किया जा सकता है?

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सारांश 

फेसबुक पर जारी वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि अगर किसी महिला को ल्यूकोरिया की समस्या है, तो उसे घरेलू उपचार के जरिए ठीक किया जा सकता है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा गलत है। 

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दावा 

फेसबुक पर जारी वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि अगर किसी महिला को ल्यूकोरिया की समस्या है, तो उसे घरेलू उपचार के जरिए ठीक किया जा सकता है। काला चना, सौंफ, शतावरी और मिश्री का एक साथ चूर्ण बनाकर उसका दूध के साथ सेवन करना है। इससे ल्यूकोरिया की समस्या, उसमें भी सफेद, पीला और लाल रंग का स्त्राव होना बंद हो जाएगा। 

lucoria claim

तथ्य जाँच 

ल्यूकोरिया क्या होता है?

ल्यूकोरिया को श्वेत प्रदर या सफेद पानी की समस्या भी कहा जाता है। यह महिलाओं में होने वाली एक आम समस्या है। इसमें योनि से सफेद, पीले, हल्के नीले या लाल रंग का चिपचिपा और बदबूदार पदार्थ का स्राव होता है। ज्यादातर मामलों में यह स्राव सफेद रंग का होता है। हर महिला में इस स्राव की मात्रा और समयावधि अलग-अलग हो सकती है।

ल्यूकोरिया क्यों होता है?

आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान श्वेत प्रदर की समस्या होती है लेकिन तब इसे सामान्य माना जाता है, जब यह स्राव पतला, सफेद और बिना किसी गंध वाला हो। किशोर लड़कियों में मासिक धर्म शुरू होने के कुछ महीनों से लेकर एक साल के भीतर फिजियोलॉजिकल ल्यूकोरिया एक सामान्य स्थिति होती है। कभी-कभी यह नवजात लड़कियों में भी मौजूद होती है, जो आमतौर पर एक से दो महीने तक रहती है। हालांकि कई मामलों में ल्यूकोरिया संक्रमण का संकेत होता है। खासकर तब जब स्राव पीला या हरा हो, उसमें तेज गंध हो, जलन और खुजली हो या सूजन हो। 

असामान्य श्वेत प्रदर बैक्टीरिया, फंगस या अन्य सूक्ष्मजीवों के संक्रमण के कारण हो सकता है। उदाहरण के लिए, कई यौन संचारित रोग (जिनमें वायरस या बैक्टीरिया का संक्रमण शामिल होता है और जिनमें गोनोरिया और क्लैमिडिया जैसी बीमारियां शामिल हैं) ल्यूकोरिया के प्रमुख कारण होते हैं। ये रोग गर्भाशय ग्रीवा (सरविक्स) के संक्रमण का कारण बनते हैं, जो वास्तव में सबसे आम स्त्री रोगों में से एक है। 

श्वेत प्रदर योनि में सूजन का भी संकेत है, जो अक्सर कैंडिडा अल्बिकैंस (Candida albicans) नामक फंगस के संक्रमण या ट्राइकोमोनास योनिनालिस (Trichomonas vaginalis) नामक प्रोटोजोआ परजीवी के संक्रमण के कारण होता है। इन जीवों से संक्रमित होने से एक परेशान करने वाला स्राव हो सकता है, जो अक्सर उपचार के लिए काफी प्रतिरोधी होता है। इसके अलावा योनि (vagina) में बहुत देर तक रखा हुआ टैम्पोन,  डायाफ्राम या कोई अन्य बाहरी वस्तु भी श्वेत प्रदर का कारण बन सकती है। 

क्या ल्यूकोरिया को काला चना, सौंफ, शतावरी और मिश्री के चूर्ण से ठीक किया जा सकता है?

नहीं, इस बात का समर्थन करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि काला चना ल्यूकोरिया का इलाज कर सकता है।

वहीं इस बात की पुष्टि करने के लिए सीमित वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि सौंफ निश्चित रूप से ल्यूकोरिया का इलाज कर सकता है या नहीं। हालांकि कुछ शोध हैं, जो सौंफ के तेल और महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी विकारों जैसे- PCOS, प्री-मेंस्ट्रुअल सिंड्रोम आदि पर प्रकाश डालते हैं लेकिन इसमें कहीं भी ल्यूकोरिया को लेकर जिक्र नहीं है। 

आयुर्वेद शतावरी ((Asparagus racemosus) को ल्यूकोरिया के लिए एक संभावित जड़ी बूटी मानता है। चरक द्वारा लिखित चरक संहिता और वाग्भट्ट द्वारा लिखित अष्टांग हृदयम, आयुर्वेदिक दवाओं पर दो मुख्य ग्रंथ हैं, जो महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले विकारों के इलाज के सूत्रों के हिस्से के रूप में शतावरी को सूचीबद्ध करते हैं। हालांकि निश्चित रूप से यह कहने के लिए सीमित वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि यह ल्यूकोरिया का इलाज कर सकता है। 

इसके अलावा अंत में मिश्री की बात आती है। इस पर केंद्रित तो कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है लेकिन डेलबर्गिया सिस्सू (फैबेसी) की कोमल पत्तियों को पेस्ट के रूप में मिश्री और दूध के साथ लेने की बात इस शोध पत्र में मोजूद है। हालांकि मिश्री को यहां केवल स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया गया है या फिर किसी औषधीय कारण से, इस बात की पुष्टि नहीं की गई है। 

अतः उपरोक्त शोध पत्रों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा गलत है क्योंकि वीडियो में दिखाई गई सामाग्रियों पर अभी और शोध की आवश्यकता है। आप हमारे अन्य तथ्य जाँच को यहां पढ़ सकते हैं। 

तथ्य जाँचः क्या दाढ़ी के बालों को तीन दिनों में काला किया जा सकता है?

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सारांश 

फेसबुक पर जारी एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि दाढ़ी के बालों को केवल तीन दिन में ही स्थायी रूप से काला किया जा सकता है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा बिल्कुल गलत है।

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दावा 

फेसबुक पर जारी एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि Organic Grey Reverse Shampoo Bar के जरिए दाढ़ी के बालों को केवल तीन दिन में ही काला किया जा सकता है और यह एक स्थायी उपाय है। 

reverse greying of hair

तथ्य जाँच 

बाल क्यों सफेद होते हैं?

The Company of Biologist द्वारा The melanocyte lineage in development and disease शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार बालों का सफेद होना कई मानकों पर निर्भर करता है। जैसे- विटामिन बी-6, बी-12, बॉयोटिन, विटामिन-डी या विटामिन-ई की कमी होने के कारण बाल सफेद पड़ने लगते हैं। वहीं एक अन्य शोध बताता है कि 25 वर्ष की कम आयु में बालों के सफेद होने का कारण serum ferritin की कमी होना भी है, जो शरीर में आयरन को सुरक्षित रखती है। इसके अलावा good cholesterol HDL-C की कमी भी बालों के सफेदीकरण का कारण बनती है। 

साल 2013 में Indian Journal of Dermatology, Venereology and Leprology द्वारा जारी आलेख के अनुसार आनुवांशिक कारण पर भी बालों का सफेद होना निर्भर करता है। इसके अलावा तनाव, कुछ चिकित्सीय स्थितियां जैसे- थॉयराइड, alopecia areata आदि भी बालों को जल्द सफेद बनाते हैं। वहीं एक अन्य शोध की माने तो धूम्रपान करने से भी बाल असमय सफेद हो जाते हैं। साथ ही केमिकलयुक्त हेयर कलर के कारण भी बाल सफेद होने लगते हैं। 

साथ ही ऐसी कई अन्य चिकित्सीय स्थितियां हैं, जो बालों के जल्दी सफेद होने का कारण बन सकती हैं, जिसे आमतौर पर समय से पहले सफेद होना कहा जा सकता है। इन कारणों में विटामिन की कमी, थायराइड रोग, विटिलिगो और Alopecia areata  शामिल हैं। 

वहीं कई लोगों का मानना है कि तनाव भी बालों के सफेद होने का कारण बनता है। हालांकि इस बात को सिद्ध करने के लिए वैज्ञानिक प्रमाणों का अभाव है। साल 2020 में चूहों पर किया गया एक अध्ययन बताता है कि तनाव के कारण भी बाल सफेद हो सकते हैं लेकिन यही घटना मानव शरीर पर काम करती है या नहीं, यह अज्ञात है। 

क्या दाढ़ी के बालों को सफेद से दोबारा काला और घना किया जा सकता है?

बालों के सफेद होने की प्रक्रिया को canities या achromotrichia, भी कहा जाता है। शोध बताता है कि बाल चाहे सिर के हो या दाढ़ी के, बालों का सफेद होना एक आनुवंशिक प्रक्रिया है इसलिए इस प्रक्रिया के विपरीत जाना संभव नहीं है। हालांकि सही खानपान और चिकित्सीय प्रक्रियाओं की मदद से दाढ़ी की रंगत को सफेद होने से बचाया जा सकता है लेकिन केवल उन्हीं स्थितियों में जब कारण आनुवांशिक या चिकित्सीय ना हो। 

Swati Watwani

ट्राइकोलॉजिस्ट डॉ. स्वाति वाटवानी कहती हैं, “बालों का सफ़ेद होना तब शुरू होता है, जब आप उम्र में 40 के दशक के अंत और 50 के दशक की शुरुआत में होते हैं। बालों (सिर, भौंह या दाढ़ी) का समय से पहले सफेद होना 20 की उम्र से ही शुरू हो सकता है, इसलिए कारण का पता लगाकर उसके अनुसार उपचार करके समय से पहले बालों को सफेद होने से रोका जा सकता है लेकिन इसे पूरी तरह से बदला नहीं जा सकता है। इसके अलावा महज तीन दिन में ही स्थायी रुप से बालों को काला करना संभव नहीं है। साथ ही किसी भी उत्पाद पर तुंरत भरोसा कर लेने से और बिना चिकित्सक की सलाह के इस्तेमाल करने से संक्रमण की समस्या भी हो सकती है, जैसे- बालों का झड़ने लगना, त्वचा संबंधी समस्याएं आदि।” 

क्या Organic Grey Reverse Shampoo Bar के जरिए दाढ़ी के बालों को काला किया जा सकता है?

नहीं। जब हमने इस वीडियो की जाँच करने के लिए इसके प्रोफाइल Ayureway को सर्च करना शुरु किया, तो वहां हमें एक नंबर मिला, जिसे truecaller पर जाँचने के बाद हमें ये नाम मिला Mangvayi Thi Plaker Wala Online. जब हमने इस नंबर पर कॉल करने का प्रयास किया तो हमें कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद हमने Ayureway नाम से गुगल सर्च किया, जहां हमें एक अन्य वेबसाइट मिली, जो Ayurway के नाम से थी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक नाम से मिलते-जुलते ब्रांड के नाम पर किस प्रकार धोखाधड़ी की जा सकती है। 

इसके अलावा जब हमने organic grey reverse shampoo bar नाम से गुगल पर सर्च किया तो हमें इस नाम से कई ब्रांड्स के उत्पाद मिले, जो अपने तौर पर अलग-अलग दावों से ओत-प्रोत थे। साथ ही फेसबुक वीडियो में इस साबुन में मौजूद किसी भी सामाग्री की जानकारी नहीं दी गई है। साथ ही वीडियो में किसी लिंक को क्लिक करने की बात की गई है लेकिन उस वीडियो के साथ हमें कोई लिंक नहीं मिली। 

अतः उपरोक्त शोध एवं चिकित्सक के बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि वीडियो में किया गया दावा बिल्कुल गलत है। हमने पहले भी बालों से जुड़े अन्य दावों की जाँच की है, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं। लोग कई घरेलू उपचारों में विश्वास करते हैं जैसे कि नाक के माध्यम से तेल डालने से बाल काले हो सकते हैं, प्याज का रस बालों के सफेद होने को उलट सकता है, इत्यादि। यदि आप सफेद बालों को संबोधित करने में रुचि रखते हैं, तो त्वचा विशेषज्ञ या चिकित्सा पेशेवर से परामर्श करना सबसे अच्छा है। वे आपकी विशिष्ट स्थिति के आधार पर व्यक्तिगत सलाह और सिफारिशें दे सकते हैं। ध्यान रखें कि कई कारक बालों के स्वास्थ्य और उपस्थिति में योगदान करते हैं, जिनमें आनुवंशिकी, समग्र स्वास्थ्य और जीवन शैली के विकल्प शामिल हैं।

तथ्य जाँचः क्या पुरुषों के लिंग के आकार को हर्बल औषधि के प्रयोग से बढ़ाया जा सकता है?

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सारांश 

एक फेसबुक वीडियो के जरिए दावा किया जा रहा है कि किसी खास हर्बल औषधि की मदद से पेनिस यानी कि पुरुषों के लिंग के साइज को महज तीन दिन में बढ़ाया जा सकता है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा गलत है। 

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दावा

एक फेसबुक वीडियो के जरिए दावा किया जा रहा है कि किसी खास हर्बल औषधि की मदद से पुरुषों के लिंग के साइज को महज तीन दिन में बढ़ाया जा सकता हैऔर नामर्दगी का गारंटीड इलाज किया जाता है। यह वीडियो Shahji Health Care नामक फेसबुक पेज पर साझा किया गया है।

Penis size claim

तथ्य जाँच 

लिंग का आकार, क्या सामान्य है और क्या नहीं? 

सामान्य तौर पर लिंग की लंबाई का अंदाजा तब लगाया जाता है, जब वह erect हो यानी उसमें तनाव हो। यदि किसी पुरुष का लिंग erect होने पर लगभग 5 इंच (13 सेमी) या उससे अधिक लंबा है, तो इसे सामान्य आकार की श्रेणी में रखा जाता है।

एक लिंग को तभी छोटा माना जाता है, जब वह खड़ा होने पर 3 इंच (लगभग 7.5 सेंटीमीटर) से कम का हो। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसे माइक्रोपेनिस कहा जाता है। 

क्या कोई पुरुष अपने लिंग का आकार बढ़ा सकता है?

शोध बताते हैं कि पुरुषों के लिंग की लंबाई को पेनाइल सस्पेंसरी लिगामेंट के विभाजन द्वारा बढ़ाया जा सकता है, जो लिंग को प्यूबिक आर्च से बांधता है। यह एक सरल समाधान की तरह लगता है, लेकिन याद रखें कि लिगामेंट की मौजूदगी भी किसी कारण से होती है, जिसे इस चिकित्सीय तकनीक में हटा दिया जाता है। 

लिंगामेंट को हटा देने से लिंग और प्यूबिस की दूरी बढ़ जाती है, जिससे कुछ लंबाई (कुछ सेंटीमीटर) का फायदा हो सकता है लेकिन इससे लिंग का सामान्य इरेक्शन बिगड़ जाता है।

इसके अलावा एक अन्य सर्जरी “enhancement” तकनीक में शरीर के अन्य हिस्से से adipose tissue को निकालकर लिंग में लगा दिया जाता है लेकिन इससे कोई खास बदलाव नहीं होता बल्कि लिंग का आकार बिगड़ जाता है। 

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि किसी भी घरेलू तेल, औषधि से या DIY तकनीक के जरिए लिंग के साइज को नहीं बढ़ाया जा सकता। 

क्या पुरुषों को लंबे लिंग के प्रति आकर्षण होता है?

लिंग-वृद्धि उत्पादों और प्रक्रियाओं के विज्ञापन हर जगह हैं। बड़ी संख्या में पंप, गोलियां, व्यायाम और सर्जरी पुरुषों के लिंग की लंबाई और चौड़ाई बढ़ाने का दावा करते हैं। हालांकि लिंग को किसी औषधि, दवा या घरेलू नुस्खों से बड़ा करने को लेकर वैज्ञानिक समर्थन का अभाव है। इसके अलावा कोई भी विश्वसनीय चिकित्सा संगठन विशुद्ध रूप से कॉस्मेटिक कारणों से लिंग की सर्जरी का समर्थन नहीं करता है। साथ ही सोशल मीडिया पर जो विज्ञापन दिखाए जाते हैं, उनमें से अधिकांश काम नहीं करते हैं बल्कि वे लिंग को नुकसान पहुंचा सकते हैं। 

कई बार पुरुष केवल इसलिए इन उत्पादों की ओर आकर्षित होते हैं क्योंकि इससे उन्हें मर्द होने का एहसास होता है, जैसा कि इस फेसबुक पोस्ट में दावाकर्ता का कहना है कि इससे पुरुष, किन्नर या हिजड़ा कोई भी हो, वो मर्द बन जाएगा। ये बातें बिल्कुल निराधार हैं क्योंकि हर किसी की अपनी अलग पहचान होती है और पुरुष होना केवल लिंग के साइज पर निर्भर नहीं करता। 

Sexologist

डॉ. योगेश टंडन (सेक्सोलॉजिस्ट, Tandon’s Clinic, Pitampura, Delhi) बताते हैं, “पुरुषों का लिंग अधिकतर 19 साल तक ही बढ़ सकता है, वो भी तब जब थोड़ा मसाज किया जाए लेकिन 19 साल के बाद लंबाई नहीं बढ़ती। कोई भी दवा पुरुषों के लिंग के साइज को नहीं बढ़ा सकती। कुछ आयुर्वेदिक या एलोपैथिक दवाएं तत्काल बदलाव कर सकती है, जिससे थोड़ा फर्क दिख सकता है लेकिन वो हमेशा नहीं करता। लाइफ स्टाइल अगर बिगड़ी हुई हो, तो उसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है।”

क्या वीडियो में किया गया दावा फर्जी है?

हां। हमने इस वीडियो पर दिए गए नंबर पर बात करने की कोशिश की ताकि दावाकर्ता जिस औषधि की बात कर रहा है, उसकी सामाग्री की जानकारी मिल जाए लेकिन फोन के तुरंत रिसीव होने के बाद सिस्टम जेनरेटेट रिकॉर्ड चालू हो गया। हमने वहां पांच मिनट तक इंतजार किया तब हमारी कॉल औषधि का प्रचार करने वालों में से एक सदस्य ने उठाई।

जब हमने औषधि की सामाग्री के बारे में पूछा, तब उन्होंने बताया, “हम सामाग्री की जानकारी नहीं दे सकते क्योंकि ये हमारा गुप्त फॉर्मूला है लेकिन हम दावा करते हैं कि हमारा मलहम लगाने से और हमारी दवा का सेवन करने से पुरुषों का लिंग लंबा हो जाएगा और वो मर्द बन जाएगा। हम केवल इतना बता सकते हैं कि हमारी दवा हर्बल जड़ी-बुटियों से बनाई गई है, जिसका कम से कम एक माह का सेवन अनिवार्य है।” जब हमने उनसे किसी तरह के दुष्प्रभाव के बारे में पूछने की कोशिश कि, तो उन्होंने कोई जानकारी नहीं दी। एक ओर वीडियो में केवल तीन दिन में लिंग लंबा करने का दावा किया गया है। वहीं कॉल करने पर एक महीने तक सेवन करने की बात कही जा रही है। इससे पता चलता है कि दोनों एक-दूसरे से विपरीत हैं। इसके अलावा इस वीडियो में दी गई वेबसाइट भी फर्जी है, और एक CLICK BAIT है, जिसे केवल लोगों को गुमराह करने के लिए बनाया गया है। 

अतः उपरोक्त दावों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा बिल्कुल गलत है। आप हमारे अन्य तथ्य जाँच को यहां पढ़ सकते हैं।