तथ्य जाँचः क्या पूरे भारत की सरकारी दुकानों में टीबी की दवाई खत्म हो गई है?

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सारांश 

एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए यह दावा किया जा रहा है कि सरकारी दुकानों में टी बी दवाइयां खत्म हो गई हैं। जब हमने इस पोस्ट की तथ्य जाँच की तब पाया कि यह दावा अधिकतर गलत है। 

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दावा 

एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि सरकारी आउटलेट से क्षय रोग (TB) की टेबलेट खत्म हो गई है। पूरे भारत में मरीज बेहद नाराज़ हैं। कृपया चुनाव तिथि से पहले पूरे भारत में उपलब्ध कराएं। 

तथ्य जाँच 

क्या सरकारी दुकानों में टीबी की दवाई खत्म हो गई है?

नहीं। सरकारी दुकानों में टी.बी दवाइयां खत्म वाली मीडिया रिपोर्ट अधिकतर झूठी और भ्रामक हैं। देश में सभी टीबी रोधी दवाएं छह महीने और उससे अधिक की समयावधि के लिए पर्याप्त स्टॉक के साथ उपलब्ध हैं। पीआईबी (PIB) के अनुसार ऐसी रिपोर्ट जानबूझकर लोगों को धोखा देने और गुमराह करने के इरादे से फैलाई जा रही हैं।

PIB पर जारी जानकारी के अनुसार जो टीबी दवा के प्रति संवेदनशील होती है, उसके उपचार में दो महीने के लिए 4FDC (Isoniazid, Rifampicin, Ethambutol और Pyrazinamide) के रूप में उपलब्ध चार दवाएं शामिल हैं। इसके बाद दो महीने के लिए 3 FDC (Isoniazid, Rifampicin, Ethambutol) के रूप में उपलब्ध तीन दवाएं शामिल हैं। ये सभी दवाएं छह महीने और उससे अधिक की समयावधि के लिए पर्याप्त स्टॉक के साथ उपलब्ध हैं। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए इन दवाओं की खरीद प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।

क्या राज्यों में टीबी दवाओं की आपूर्ति हो रही है?

राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम [National TB Elimination Programme (NTEP)] के तहत केंद्रीय स्तर पर टीबी रोधी दवाओं और अन्य सामग्रियों की खरीद, भंडारण, स्टॉक का रखरखाव और समय पर वितरण किया जा रहा है। दुर्लभ स्थितियों में, राज्यों से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन [National Health Mission (NHM)] के तहत बजट का उपयोग करके सीमित अवधि के लिए स्थानीय स्तर पर कुछ दवाएं खरीदने का अनुरोध किया जाता है ताकि व्यक्तिगत रोगी देखभाल प्रभावित न हो।

NTEP (राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम) के तहत Moxifloxacin 400mg और Pyridoxine का 15 महीने से अधिक का स्टॉक उपलब्ध है। इसके अलावा, अगस्त 2023 में Delamanid 50 mg और Clofazimine 100 mg खरीदे गए हैं और सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में आपूर्ति की गई है। इसके साथ ही करीब 8 लाख अतिरिक्त Delamanid 50 mg टैबलेट की आपूर्ति के लिए 23.09.2023 को पी.ओ. जारी किया गया है।

उल्लिखित स्टॉक के अलावा अगस्त 2023 में 3 FDC (P), Linezolid-600mg और Cap Cycloserine-250 mg की आपूर्ति के लिए खरीद आदेश जारी किए गए थे। 3 FDC(P) के लिए पूर्व प्रेषण निरीक्षण (PDI), Linezolid-600mg और Cap Cycloserine-250 mg और3 FDC(P) और Cycloserine की गुणवत्ता परीक्षण रिपोर्ट भी आ गई है। इन दवाओं को राज्यों में भेजा जा रहा है। 25.09.2023 से रिलीज़ ऑर्डर जारी किए जा रहे हैं।

National Tuberculosis Elimination Programme के अनुसार वर्ष 2024 तक उन्मूलन का लक्ष्य रखा गया है। टीबी रोगियों की अलग-अलग देखभाल के लिए एक व्यापक पैकेज के लिए तकनीकी मार्गदर्शन 2021 में शुरू किया गया था। कई बार यह देखा गया है कि सप्लाई चैन में होने वाली गड़बड़ियों की वजह से कुछ क्षेत्रों में दवाइयां पहुंचाने में देर हो सकती है लेकिन फिर भी समय पर चिकित्सा केंद्रों में दवाई की आपूर्ति करना केंद्र और राज्य दोनों की जिम्मेदारी होती है। हमारी जांच में अधिकतर दुकानों में दवाई पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध पाई गयी।

अतः उपर्युक्त आधिकारिक जानकारी के अनुसार कहा जा सकता है कि यह दावा अधिकतर गलत है। सरकारी दुकानों में टीबी के दवाओं की कमी को लेकर गलत दावे किए जा रहे हैं। हमने पहले भी इस तरह के दावों की जांच की है, जैसे –  प्रधानमंत्री का आरक्षण विरोधी भाषण चुनाव से प्रेरित है और नारियल तेल और एलोवेरा जेल की मदद से स्ट्रेच मार्क्स को हटाया जा सकता है। 

तथ्य जाँचः क्या भीगे बादाम के छिलकों में कैंसर कारक गुण होते हैं?

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क्या बादाम के छिलके कैंसर के विकास का कारण बन सकते हैं?
वास्तव में नहीं। यह सुझाव देने के लिए कोई पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि बादाम के छिलके कैंसर के विकास का कारण बन सकते हैं। बादाम एक लोकप्रिय असूखे मेवे की श्रेणी में आता है और आमतौर पर दुनिया भर में खाया जाता है। बादाम के छिलकों में एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर सहित विभिन्न लाभकारी यौगिक होते हैं।





सारांश 

एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि भीगे बादाम खाने से कैंसर होने की संभावना होती है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा ज्यादातर गलत है। 

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दावा 

इंस्टाग्राम पर जारी एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि बादाम खाने से कैंसर होने की संभावना होती है। 

almond cancer claim

तथ्य जाँच 

क्या बादाम में कोई आत्मरक्षा प्रणाली होती है?

हां, बादाम के पेड़ों में कई आत्मरक्षा तंत्र होते हैं, जो उन्हें संभावित खतरों से बचाने में मदद करते हैं। इस पेड़ की प्राथमिक रक्षा रणनीतियों में से एक ऐसे यौगिकों का उत्पादन शामिल है, जो शाकाहारी जीवों के लिए विषाक्त या अरुचिकर हो सकते हैं। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि बादाम के छिलके में टैनिन और फेनोलिक यौगिक जैसे पदार्थ होते हैं, जो उनके थोड़े कड़वे स्वाद में योगदान करते हैं। ये यौगिक निवारक के रूप में कार्य कर सकते हैं, जिससे जानवरों द्वारा बाहरी सुरक्षात्मक परत को खाने की संभावना कम हो जाती है। 

क्या भीगे बादाम में कैंसर कारक तत्व छिलके के नीचे आ जाते हैं? 

नहीं, बादाम को पानी में रखने के बाद कैंसर कारक पदार्थ आमतौर पर सतह पर नहीं आते हैं। बादाम के अंकुरण की प्रक्रिया में एंजाइमों की सक्रियता और उसकी संरचना में परिवर्तन शामिल होता है क्योंकि यह एक नए पौधे के रूप में विकसित होना शुरू होता है। पौधों के प्राकृतिक विकास चक्र के हिस्से के रूप में इस प्रक्रिया का कैंसर कारक पदार्थों से कोई संबंध नहीं है।

1982 का अध्ययन क्या कहता है?

1982 के एक अध्ययन से पता चला है कि 67 वर्षीय महिला (जिनका वजन 60 किलोग्राम था) को अस्पताल में भर्ती होने से एक साल पहले बड़ी आंत के कैंसर (कार्सिनोमा) का पता चला था। उनका ट्यूमर ऑपरेशन योग्य नहीं था इसलिए मरीज ने सर्जिकल हस्तक्षेप और कीमोथेरेपी पर विचार करने से इनकार कर दिया। अस्पताल में भर्ती होने से पहले आठ महीनों तक मरीज ने स्वतंत्र रूप से मेक्सिको से लाए जाने वाले इंजेक्शन लेट्राइल का उपयोग किया। बाद में उन्होंने आर्थिक तंगी के कारण लेट्राइल टैबलेट लेना शुरू कर दिया। 

इस तरह का उपचार करने से लगभग दो सप्ताह पहले उन्हें एक दोस्त ने प्रोटीन सेवन बढ़ाने का दावा करते हुए कड़वे बादाम दिए थे। बादाम खाने के बाद उन्हें चक्कर आना, मितली, उल्टी और पेट दर्द के लक्षण महसूस हुए। हालांकि कभी-कभी उन्हें आराम महसूस होता है लेकिन उन्होंने कड़वे बादाम का सेवन करने की इस प्रक्रिया को जारी रखा, जिसके परिणामस्वरूप पेट में गंभीर दर्द हुआ और वे बेहोश हो गईं। पैरामेडिक्स ने अस्पताल के रास्ते में नालोक्सोन हाइड्रोक्लोराइड और डेक्सट्रोज़ घोल दिया, जो अप्रभावी साबित हुआ। आपातकालीन कक्ष में पहुंचने पर मरीज़ शिथिल हो गया।

अस्पताल में मरीज को लगातार उपचार दिए गए, जिसके परिणास्वरुप उनकी स्थिति में सुधार हुआ और अंततः उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। हालांकि रक्त के नमूनों की जब जाँच की गई, तो उससे साइनाइड के स्तर और मेथेमोग्लोबिन प्रतिशत का पता चला, जिसे उपचार शुरू करने के संबंध में समय के साथ प्लॉट किया गया था। यह मामला कड़वे बादाम की घातक खुराक के सेवन से उत्पन्न साइनाइड का एक गंभीर उदाहरण है।

क्या बादाम की त्वचा में कैंसर कारक गुण होते हैं?

नहीं, ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, जो बताता हो कि बादाम के छिलके में कैंसरकारी गुण होते हैं। बादाम अपने पोषक तत्व और स्वास्थ्य लाभों के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है। वे स्वस्थ वसा, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों का एक समृद्ध स्रोत हैं।

Oncologist

रंगाडोर मेमोरियल अस्पताल, बेंगलुरु में सलाहकार सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. कविता जैन ने कहा, “बादाम को भिगोना हानिरहित है और कैंसर पैदा करने वाला नहीं है। यह वास्तव में इसकी पाचनशक्ति को बढ़ाता है।” 

वे आगे बताती हैं कि बादाम के छिलकों में एंटीऑक्सिडेंट और आहार फाइबर जैसे विभिन्न यौगिक होते हैं, जो उनके संभावित स्वास्थ्य-प्रचार प्रभावों में योगदान करते हैं। खाद्य पदार्थों में कार्सिनोजेनिक गुण आमतौर पर कुछ रसायनों या पदार्थों की उपस्थिति से जुड़े होते हैं, जो कैंसर के खतरे को बढ़ाने वाले साबित हुए हैं। आमतौर पर बादाम और उसके छिलके में कैंसर कारक यौगिक होने की जानकारी नहीं है।

Dr Swati Dave, Phd in Food and Nutrition

पोषण विशेषज्ञ डॉ. स्वाति दवे बताती हैं, “बादाम के छिलके में टैनिन और फाइटिक एसिड जैसे एंटी-पोषक तत्व होते हैं। बादाम को पानी में भिगोने के साथ-साथ सिरका या नींबू के रस जैसे अम्लीय माध्यम का स्पर्श करने से फाइटिक एसिड की उपस्थिति कम हो जाती है। यह भिगोने की प्रक्रिया फाइटिक एसिड को कम से कम 7 घंटे में प्रभावी ढंग से बेअसर कर सकती है। हालांकि, बादाम के जरिए उपचार करने की प्रक्रिया के संबंध में सतर्क रहना महत्वपूर्ण है। उपचार के दौरान कठोर और खराब गुणवत्ता वाले रसायनों के इस्तेमाल से अधिक मात्रा में सेवन करने पर ‘एक्रिलामाइड’ नामक कैंसर कारक के संपर्क में आने की संभावना हो सकती है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, भीगे हुए बादाम चुनने की सलाह दी जाती है। कच्चे या भूने हुए बादाम की बजाय भीगे हुए बादाम का चयन करना एक स्वास्थ्यवर्धक विकल्प है। भीगे हुए बादाम ना केवल चबाने में आसान होते हैं, बल्कि वे आसानी से पचने में मदद करके पाचन तंत्र में भी सहायता करते हैं। 

Botanist

वनस्पति शास्त्री निधि सिंह बताती हैं, “कच्चे और भुने हुए बादाम दोनों ही आहार के रुप में एक आदर्श विकल्प हैं। वे विटामिन ई, मैंगनीज, ओमेगा-3 और 6 फैटी एसिड जैसे लाभकारी पोषक तत्वों का एक अच्छा स्रोत हैं, लेकिन इनका सेवन भी कम मात्रा में किया जाना चाहिए। बादाम, ब्राजील नट्स और पिस्ता जैसे मेवों में एक्रिलामाइड और मायकोटॉक्सिन एफ्लाटॉक्सिन की थोड़ी मात्रा भी होती है, जो लंबे समय तक उच्च जोखिम (यदि बड़ी मात्रा में सेवन किया जाता है) के साथ उपभोक्ताओं के शरीर में जमा हो सकता है। पशु और महामारी विज्ञान दोनों अध्ययन एफ्लाटॉक्सिन और यकृत कैंसर (liver cancer) के बीच मजबूत संबंध दिखाते हैं। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि नट्स और अनाज को भिगोने, अंकुरित करने, भूनने या किण्वित करने से एफ्लाटॉक्सिन की उपस्थिति काफी कम हो जाती है।

Voomika Mukherjee, Health & Nutrition Life Coach

स्वास्थ्य और पोषण विशेषज्ञ वूमिका मुखर्जी बताती हैं, इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि बादाम के छिलके को भिगोने से कोई कैंसरकारी घटक होता है। बादाम के छिलके एंटीऑक्सीडेंट, आहार फाइबर और अन्य लाभकारी यौगिकों से भरपूर होते हैं। वास्तव में इन्हें अक्सर संभावित स्वास्थ्य लाभ माना जाता है, जिसमें इसके ओमेगा -3 गुणों के कारण हृदय रोग और मधुमेह जैसी पुरानी बीमारियों के जोखिम को कम करना भी शामिल है। 

वे आगे बताती हैं कि इसके अलावा, ऐसे कुछ अध्ययन हैं, जो कैंसर की रोकथाम से संबंधित हैं। विशेष रूप से प्रोस्टेट, स्तन और पेट के कैंसर के बीच संबंध जोड़ा जा सकता है। इसी तरह बादाम में भी सैलिसिलेट होता है। चूंकि सैलिसिन प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला सैलिसिलेट है इसलिए ऐसा माना जाता है कि बादाम सिरदर्द या यहां तक कि माइग्रेन को पूरी तरह से ठीक कर सकता है। 

अंतः विशेषज्ञों के साथ गहन शोध और परामर्श के बाद हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बादाम दुनिया भर में खाया जाने वाला एक अत्यधिक लोकप्रिय सूखा मेवा है। इसके अलावा इस बात का सुझाव देने वाले ठोस वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी है कि बादाम के छिलकों में कैंसर कारक यौगित होते हैं। 

हमने पहले भी इस तरह के तथ्य जाँच किए है, जैसे- बादाम और काली मिर्च का सेवन आंखों की रौशनी ठीक कर सकता है और अखरोट का सेवन शुक्राणु की गुणवत्ता में सुधार करता है.

कांटी थर्मल पॉवर प्लांट, जहां लोग चुका रहे विकास की कीमत 

मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से तकरीबन 15-16 किलोमीटर की दूरी पर कांटी शहर स्थित है, जिसके पास से गंडक नदी भी गुजरती है, जिससे यहां का इलाका काफी हरा-भरा रहता है। नदी के गुजरने के कारण आसपास अनेक तलाब बन गए हैं। यहां के लोग जीवनयापन करने के लिए खेती, मछली पालन, पशुपालन और यही स्थित कांटी थर्मल पॉवर प्लांट में कोयला आदि ढोने का काम करके अपनी जिंदगी की गाड़ी चला रहे हैं। 

Kanti power station

कांटी में साल 1985 में एक कोल बेस्ड थर्मल पावर स्टेशन लगाया गया था, जिसे आम बोलचाल की भाषा में कांटी थर्मल प्लांट भी कहा जाता है। NTPC के इस पावर प्लांट में कोयला जलाकर बिजली बनाने का काम शुरु हुआ था। लोगों को उम्मीद थी कि काम शुरु होने से उन्हें भी रोजगार का अवसर मिलेगा क्योंकि यहां से गुजरने वाली ट्रेने भी कोयला ढोने का काम करती हैं, ताकि बिना रुके सुचारु ढंग से बिजली उत्पादन का काम चलता रहे। 

सस्ता लेकिन जहरीला

भले ही कोयला से बिजली उत्पादन करना एक सस्ता तरीका है लेकिन यह तरीका काफी नुकसानदायक है। यही कारण है कि जिस भी इलाके में थर्मल पॉवर प्लांट लगाया जाता है, वहां इस बात का ख्याल रखा जाता है कि आसपास घनी आबादी ना हो। मगर मुजफ्फरपुर के कांटी प्रखंड के अंतर्गत कोठियां गांव की आबादी करीब 5000 लोगों की है। हालांकि, प्लांट लगने के बाद कुछ लोगों को रोजगार तो मिला लेकिन इससे काफी सारे लोगों को त्वचा संबंधी दिक्कत, दमा, हार्ट अटैक इत्यादि स्वास्थ संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा। 

कोयला जलने से कार्बन डाई ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स और मिथेन जैसी जहरीली गैसों के साथ-साथ राख भी निकलती है। इस प्लांट से दो तरह की राख निकलती है। पहली, महीन कणें जो उड़कर हवा में मिल जाती है, इसे फ्लाई ऐश कहा जाता है। यह राख थर्मल पावर प्लांट के आसपास के इलाकों में उड़ती रहती है, जिससे पावर प्लांट के नजदीक रहने वाले लोगों में सांस के जरिये राख के टुकड़े फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। इससे लोगों को सांस संबंधी बीमारियां होती हैं। 

वहीं दूसरी प्रकार की राख तरल पदार्थ के रुप में निकलती है। आम बोलचाल की भाषा में इसे ‘छाई’ या बॉटम ऐश भी कहा जाता है। यह आसपास के तालाब, नदी और नहर के पानी में मिल जाती है फिर इसी पानी से फसलों की सिंचाई होती है, मवेशियों को नहलाने का काम होता है और वहां रहने वाले लोग भी इसी पानी का इस्तेमाल करते हैं। 

स्थानीय निवासी सत्यनारायण साहनी ने बढ़ते और अनियंत्रित प्रदूषण के खतरे के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में शिकायत दर्ज की। पावर प्लांट अधिकारियों से नाराज NGT ने बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (BSPCB)) को कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। 

सत्यनारायण साहनी बताते हैं, “मैं 1988 से इस लड़ाई में हूं कि कांटी थर्मल पॉवर प्लांट के प्रदूषण से स्थानीय लोगों को बचाया जा सके लेकिन अफसोस, अब तक कोई सुखद परिणाम हासिल नहीं हुआ। मैं किसी को दोष नहीं देना चाहता पर इतना जरुर कहना चाहता हूं कि स्थानीय गांव के लोगों को इस प्रदूषण के कारण कैंसर, टीबी, त्वचा संबंधित, सांस संबंधित बीमारियां घेर रही हैं।” 

सब कुछ है प्रदूषित

साहनी आगे बताते हैं, “स्थानीय तौर पर हम लोगों ने पौधारोपण का काम किया, जिससे थोड़ी राहत मिली लेकिन पुरवा या पछवा हवा के तेज गति में चलते ही दिक्कत होती है। यहां गेट नंबर तीन पर बनाए गए बांध के कारण तालाब में प्रदूषित पानी आता है, जिसमें फ्लाई ऐश यानी की हवा में मिली राख निकलती है, जिसमें जले हुए कोयले का अवशेष होता है। इससे यहां के पौधे, फसल, मवेशी, मछली सब कुछ प्रभावित हो गए हैं।”   

वे बताते हैं कि BSPCB द्वारा किए गए निरीक्षण में कांटी थर्मल पॉवर प्लांट में फ्लाई ऐश तालाबों का कोई रखरखाव नहीं किया गया है। तालाबों के पास फ्लाई ऐश घोल फ़ेंक दिया जाता है और औद्योगिक कचरे के लिए कोई अलग नाली भी नहीं है। 

निवासी हैं परेशान 

कोठियां गांव निवासी फूलो देवी बताती हैं, “घर में छाई (राख) घुस जाती है और हमारे खाने में भी पड़ जाती है। पेड़-पौधे भी हरे-भरे नहीं रहते हैं और मवेशियों को भी काफी नुकसान पहुंचा है। राख के टुकड़े आंखों में भी चले जाते हैं, जिससे गांव वालों की आंख भी कमजोर हो रही हैं। आंधी चलने पर राख घर में घुस जाती है और इसके साथ पूरे गांव का सांस लेना मुश्किल हो जाता है। इससे स्त्रियां, बच्चे व बुजुर्ग सबसे अधिक प्रभावित हैं क्योंकि उन्हें ज्यादा समय तक कमरे में बंद करके रखना मुश्किल है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं की परेशानी दुगुनी हो जाती है इसलिए प्रसव के पहले और प्रसव के बाद कोई भी इस गांव में रहने की हिम्मत नहीं करता है।” 

कोठियां गांव निवासी राम विलास राख ढोने का काम करते थे लेकिन वहां उनकी सुरक्षा का ख्याल नहीं रखा जाता था। उनके पैरों में घाव हो गया है, जिसका कारण चिकित्सकों ने कांटी थर्मल पॉवर प्लांट से निकलता प्रदूषण बताया। इसके परिणामस्वरूप, पिछले साल 60 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। उनके पुत्र अर्जुन बताते हैं कि उनके पिता के पैरों में एक जख्म हुआ था, जिसके इलाज को लेकर उन्होंने काफी प्रयास किया मगर वे बच नहीं सके। वर्तमान में, अर्जुन भी राख ढोने का काम कर रहे हैं क्योंकि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। 

किसकी है जिम्मेदारी?

कांटी थर्मल प्लांट के एक अधिकारी ने अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कहा, “पिछले दो दशकों में फ्लाई ऐश की धारणा ‘खतरनाक अपशिष्ट’ से ‘संसाधनपूर्ण सामग्री’ के रूप में पूरी तरह से बदल गई है। यह मुख्यतः औद्योगिक परिप्रेक्ष्य के कारण है। सामाजिक रूप से थर्मल प्लांट की स्थापना के बाद से फ्लाई ऐश द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने और साथ ही प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने की शिकायतें मिली हैं। कुल मिलाकर, फ्लाई ऐश के प्रबंधन की जिम्मेदारी थर्मल प्लांट प्रबंधन की है। 

यदि देखा जाए तो दिन-रात कांटी थर्मल इलाके और कोठियां गांव के लोगों के फेफड़ों में रोजाना ज़हर घुल रहा है। उनकी आजीविका के साधन रहे तालाब नष्ट होते जा रहे हैं, किसानों की पैदावार कम हो गई है, लीची के पेड़ भी सूखने लगे हैं। हर वो बीमारी जो प्रदूषण के कारण होती है, वे सारी बीमारियां लोगों को घेर रही हैं लेकिन इसके बावजूद भी कोई सुनने वाला नहीं है। 

सत्यनारायण साहनी ने अंत में कहा, “मैं ये लड़ाई लड़ते-लड़ते थक गया हूं लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। हम विकासशील से विकसित होते-होते अपनी ही जान के साथ खेल रहे हैं। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं, जिसकी कीमत इन बेगुनाह लोगों को चुकानी पड़ रही है।”

क्या ग्लूकोमा एक वंशानुगत समस्या है?

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क्या ग्लूकोमा अनुवांशिक रूप से बढ़ता है?
ऐसा लगता है कि ग्लूकोमा का पारिवारिक संबंध है। यदि उनके परिवार में किसी को यह बीमारी थी तो लोगों को अधिक खतरा हो सकता है। जब परिवारों में ग्लूकोमा को कम करने की बात आती है, तो दो मुख्य तरीके होते हैं। पहिलकेँ ऑटोसोमल डोमिनेंट इनहेरिटेंस कहल जाइत अछि। हालांकि, दूसरे तरीके को ऑटोसोमल रिसेसिव इनहेरिटेंस कहा जाता है।

ग्लूकोमा से तात्पर्य आंखों की ऐसी समस्या है, जिसके कारण तंत्रिका नष्ट हो जाती है और लंबे समय तक लाइलाज रहने पर अंधेपन का रूप भी ले सकती है। चिकित्सा के क्षेत्र में यह चर्चा का विषय है कि क्या ग्लूकोमा एक वंशानुगत समस्या है या नहीं। इस लेख में वंशानुगत ग्लूकोमा और इसके विभिन्न वंशानुगत कारकों और पैर्टन का उल्लेख किया गया है।

क्या ग्लूकोमा में आनुवंशिक प्रवृत्ति होती है?

अध्ययनों से पता चलता है कि ग्लूकोमा के लिए एक आनुवंशिक प्रवृत्ति है, जिसमें पारिवारिक इतिहास वाले व्यक्तियों को अधिक जोखिम होता है। आनुवंशिक कारक ऑप्टिक तंत्रिका संरचना और कार्य को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे कुछ व्यक्तियों को इंट्राओकुलर दबाव बढ़ने का अधिक खतरा हो सकता है।

शोध से यह भी संकेत मिलता है कि ग्लूकोमा को एक वंशानुगत नेत्र रोग बनाने के लिए कई जीन परस्पर क्रिया करते हैं। जबकि शारीरिक कारक अक्सर इस प्रकार से जुड़े होते हैं, एक वंशानुगत घटक, प्रभावित व्यक्तियों के रिश्तेदारों के बीच एक उच्च प्रसार के साथ।

ऑटोसोमल डोमिनेंट/रिसेसिव इनहेरिटेंस ग्लूकोमा को कैसे प्रभावित करता है?

जब ग्लूकोमा और आनुवंशिकी की बात आती है, तो दो महत्वपूर्ण तरीके हैं जिनसे इसे परिवारों में फ़ैल रहा है। पहले वाले को ऑटोसोमल डोमिनेंट इनहेरिटेंस कहा जाता है। इस मामले में, परिवर्तित जीन की केवल एक प्रति होने से किसी व्यक्ति को ग्लूकोमा होने की संभावना अधिक हो जाती है। इसलिए, यदि किसी व्यक्ति को यह परिवर्तित जीन माँ या पिता से मिलता है, तो उनमें ग्लूकोमा होने की संभावना बढ़ जाती है। कुछ प्रकार के ग्लूकोमा, जैसे किशोर ओपन-एंगल ग्लूकोमा, इस तरह से काम करते हैं।

दूसरा तरीका ऑटोसोमल रिसेसिव इनहेरिटेंस है। किसी को इस प्रकार के ग्लूकोमा का खतरा होने के लिए, उन्हें बदले हुए जीन की दो प्रतियां प्राप्त करने की आवश्यकता होती है-एक माँ से और एक पिता से। यदि माता-पिता दोनों के पास इस परिवर्तित जीन की एक प्रति है, तो संभावना है कि उनके बच्चे को दोनों प्रतियां मिल सकती हैं और ग्लूकोमा का खतरा हो सकता है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि यदि किसी को इस परिदृश्य में एक माता-पिता से बदले हुए जीन की केवल एक प्रति मिलती है, तो वे जीन के वाहक हो सकते हैं लेकिन उन्हें ग्लूकोमा नहीं हो सकता है।

तो, सरल शब्दों में, ऑटोसोमल डोमिनेंट का मतलब है कि एक परिवर्तित जीन जोखिम को बढ़ाता है, जबकि ऑटोसोमल रिसेसिव का मतलब है कि दो परिवर्तित जीन की आवश्यकता होती है। इन प्रतिरूपों को समझने से परिवारों में ग्लूकोमा की संभावनाओं का अनुमान लगाने में मदद मिलती है, यह मार्गदर्शन करते हुए कि हम आनुवंशिक परामर्श और स्क्रीनिंग कैसे करते हैं।

ग्लूकोमा के खतरे में आनुवंशिकी और पर्यावरण कैसे परस्पर जुड़े हुए हैं?

जो जीन हमें अपने परिवार से विरासत में मिले हैं, वे कुछ लोगों को ग्लूकोमा होने की अधिक संभावना बना सकते हैं। यदि परिवार में किसी को ग्लूकोमा है, तो यह दूसरों के लिए संभावना बढ़ाता है। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, ग्लूकोमा का खतरा बढ़ जाता है। उम्र बढ़ना, हमारे जीन के साथ मिलकर, हमारी आँखों को इस स्थिति के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है।

अलग-अलग नस्लों में ग्लूकोमा होने की अलग-अलग संभावना होती है। उदाहरण के लिए, अफ्रीकी अमेरिकियों को यह होने की अधिक संभावना है, यह दर्शाता है कि हमारी पृष्ठभूमि भी जोखिम को प्रभावित कर सकती है। अन्य कारक जैसे स्वास्थ्य की स्थिति और कुछ आंखों की चोटें संभावित ग्लूकोमा जोखिम कारक हैं।

ग्लूकोमा केवल जीन या आसपास के बारे में नहीं है; यह तब होता है जब ये दोनों चीजें मिल जाती हैं। जबकि जीन किसी को इसके होने की अधिक संभावना बना सकते हैं, यह अन्य पर्यावरणीय कारकों के साथ संयोजन है जो इसे बाहर लाता है।

जीन और पर्यावरण के इस मिश्रण को समझने से हमें ग्लूकोमा को प्रभावी ढंग से रोकने, जल्दी पता लगाने और इलाज करने के तरीके खोजने में मदद मिलती है। यह एक जटिल स्थिति है क्योंकि हर किसी का जोखिम अलग होता है, कुछ को अपने जीन से अधिक जोखिम होता है, कुछ को अपने पर्यावरण से, और अधिकांश के लिए, यह दोनों का मिश्रण है।

क्या ग्लूकोमा में आई ड्रॉप का प्रयोग करना सुरक्षित है?

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क्या ग्लूकोमा आई ड्रॉप का उपयोग करना सुरक्षित है?
ग्लूकोमा आई ड्रॉप आँखों के दबाव को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, लेकिन कभी-कभी वे लालिमा या धुंधली दृष्टि जैसी हल्की समस्याएं पैदा कर सकते हैं। ये दुष्प्रभाव आमतौर पर लंबे समय तक नहीं रहते हैं और अधिकांश लोगों को ड्रॉप्स की आदत हो जाती है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि इन ड्रॉप्स के साथ ग्लूकोमा के प्रबंधन के लाभ आमतौर पर छोटे जोखिमों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होते हैं।

ग्लूकोमा एक ऐसी स्थिति है जिसमें इंट्राओकुलर दबाव में वृद्धि और संभावित ऑप्टिक तंत्रिका क्षति सम्मिलित है। अतः ऐसी स्थिति में दृष्टि को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रबंधन की आवश्यकता होती है। विभिन्न उपचार विकल्पों में, ग्लूकोमा आई ड्रॉप इंट्राओकुलर दबाव को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चूंकि रोगी दीर्घकालिक देखभाल के लिए इन दवाओं पर भरोसा करते हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा के बारे में सवाल उठते हैं। यह लेख इस बात की पड़ताल करता है कि क्या ग्लूकोमा आई ड्रॉप सुरक्षित हैं। हम इन ड्रॉप्स के प्रणालीगत अवशोषण और शरीर पर उनके दीर्घकालिक प्रभावों पर भी चर्चा करेंगे।

क्या ग्लूकोमा आई ड्रॉप नेत्र स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा करते हैं?

ग्लूकोमा आई ड्रॉप की सुरक्षा अक्सर नेत्र स्वास्थ्य पर संभावित प्रतिकूल प्रभावों के आसपास केंद्रित होती है। इंट्राओकुलर दबाव के प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण ये दवाएं कभी-कभी लालिमा, खुजली या जलन जैसे दुष्प्रभाव पैदा कर सकती हैं। कुछ रोगियों को धुंधली दृष्टि या आईरिस और पलकों के रंग में परिवर्तन जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है।

यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि ये दुष्प्रभाव आम तौर पर हल्के और अस्थायी होते हैं। अधिकांश रोगी समय के साथ आंखों की ड्रॉप्स के आदी हो जाते हैं। ग्लूकोमा को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लाभ आमतौर पर संभावित जोखिमों से अधिक होते हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञ आंखों की मौजूदा स्थितियों और संभावित दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए रोगी के समग्र स्वास्थ्य के आधार पर आंखों की ड्रॉप्स का सावधानीपूर्वक चयन करते हैं। ग्लूकोमा को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने लिए प्रभावकारिता और सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।

ग्लूकोमा आई ड्रॉप की सुरक्षा नेत्र स्वास्थय के समग्र प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण विचार है। यद्यपि नेत्र और प्रणालीगत स्वास्थ्य पर इन दवाइयों के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में चिकित्सा समुदाय के भीतर आम सहमति नहीं है फिर भी इन दवाओं से होने वाले लाभों पर अधिक जोर दिया जाता है। नेत्र रोग विशेषज्ञ इन विचारों को नेविगेट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रत्येक रोगी के अद्वितीय स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल के अनुरूप उपयुक्त नेत्र ड्रॉप्स का चयन करते हैं। रोगियों और नेत्र विशेषज्ञों के बीच प्रभावी संचार महत्वपूर्ण है, जिससे किसी भी चिंता या दुष्प्रभाव की समय पर पहचान और प्रबंधन की अनुमति मिलती है। ग्लूकोमा प्रबंधन से गुजरने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा और कल्याण को प्राथमिकता देते हुए दृष्टि को संरक्षित करना व्यापक लक्ष्य है।

क्या ग्लूकोमा आई ड्रॉप के साथ प्रणालीगत अवशोषण एक चिंता का विषय है?

नेत्र दवाओं के स्थानीय प्रभावों के अलावा एक अन्य महत्वपूर्ण विचार ग्लूकोमा आई ड्रॉप्स का प्रणालीगत अवशोषण और समग्र स्वास्थ्य पर उनका संभावित प्रभाव है। कुछ दवाएं, जैसे कि बीटा-ब्लॉकर आई ड्रॉप, रक्तप्रवाह में अवशोषित की जा सकती हैं, जिससे प्रणालीगत दुष्प्रभावों के बारे में चिंता बढ़ जाती है। पहले से मौजूद हृदय या श्वसन संबंधी स्थितियों वाले व्यक्तियों को विशेष जोखिम हो सकता है।

इस चिंता को दूर करने के लिए कड़ी निगरानी आवश्यक है। नेत्र रोग विशेषज्ञ प्रणालीगत दुष्प्रभावों के किसी भी संकेत के लिए रोगियों का आकलन करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर अन्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ सहयोग करते हैं। अनुकूलित करने के लिए सिलाई उपचार योजनाएँ व रोगी का चिकित्सा इतिहास संभावित जोखिमों को कम करने में मदद करता है। यदि प्रणालीगत दुष्प्रभाव एक महत्वपूर्ण चिंता पैदा करते हैं, तो रोगी के समग्र स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए वैकल्पिक दवाओं या उपचार के तरीकों का पता लगाया जा सकता है।

सर्वाइकल कैंसर परीक्षण कैसे किए जाते हैं?

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गर्भाशय ग्रीवा कैंसर परीक्षण की प्रक्रिया क्या है?
सर्वाइकल कैंसर के निदान तक पहुँचने के लिए कोलोनोस्कोपी, पंच बायोप्सी, एंडोसर्विकल क्यूरेटेज, कोन बायोप्सी या कोनाइजेशन सहित विभिन्न परीक्षण किए जाते हैं। हालाँकि, 21 वर्ष की आयु तक पहुँचने के बाद प्रत्येक महिला को नियमित पैप परीक्षण और एचपीवी परीक्षण करवाना चाहिए। यदि डॉक्टरों को कुछ असामान्य लगता है, तो वे गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के निदान की पुष्टि करने के लिए आगे के परीक्षणों की सिफारिश कर सकते हैं।

शुरू में, सर्वाइकल कैंसर किसी भी संकेत और लक्षण का कारण नहीं बन सकता है। हालांकि, उन्नत मामलों में, यह योनि से असामान्य रक्तस्राव या स्राव का कारण बन सकता है। इसके श्रोणि दर्द, संभोग के दौरान दर्द, जैसे अन्य लक्षण भी हो सकते हैं। इस लेख में, हम गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का निदान करने के तरीकों, इसकी पुष्टि करने के लिए परीक्षणों और क्या अल्ट्रासाउंड गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का पता लगा सकता है, इस पर चर्चा करेंगे।

आप सर्वाइकल कैंसर की जांच कैसे करते हैं?

पैप परीक्षण और एचपीवी परीक्षण दो परीक्षण हैं, जो गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के लिए नैदानिक परीक्षण नहीं, बल्कि स्क्रीनिंग परीक्षण हैं। वे निश्चित रूप से पुष्टि नहीं सकते कि आपको सर्वाइकल कैंसर है या नहीं। हालांकि, अगर किसी महिला का पैप परीक्षण या एचपीवी परीक्षण परिणाम असामान्य आता है, तो उन्हें कैंसर या पूर्व-कैंसर कोशिकाओं की उपस्थिति की पुष्टि करने के लिए आगे के परीक्षण कराने की आवश्यकता होगी।

स्क्रीनिंग की आवश्यकता उम्र के आधार पर अलग-अलग होती है। यदि एक महिला की आयु 30 से 65 वर्ष के बीच है, तो वह हर पांच साल में एचपीवी परीक्षण और हर तीन साल में पैप परीक्षण करा सकती है। 65 वर्ष की आयु के बाद, एक डॉक्टर को यह जांच करनी चाहिए कि क्या एक महिला को स्क्रीनिंग कराने की आवश्यकता है। यदि डॉक्टर को गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर होने का संदेह है, तो वे निदान की पुष्टि करने के लिए आगे के परीक्षणों की सलाह दे सकते हैं।

कैंसर की पुष्टि के लिए कौन से विशिष्ट परीक्षण किए जाने चाहिए?

कोलोनोस्कोपी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें ऐसी असामान्य कोशिकाओं का पता लगाने के लिए कोलोनोस्कोप नामक एक विशेष आवर्धक उपकरण का प्रयोग किया जाता है, जो कैंसर का कारण हो सकती हैं। कोलोनोस्कोपी के दौरान, डॉक्टर कोशिकाओं का अध्ययन करने के लिए बायोप्सी के माध्यम से गर्भाशय ग्रीवा कोशिकाओं का नमूना भी ले सकते हैं। नमूना लेने की प्रक्रियाएँ निम्नलिखित हैंः

पंच बायोप्सी (Punch Biopsy):- यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें ऊतक (टिशू) के एक छोटे गोल टुकड़े को एक तेज, खोखले, गोलाकार उपकरण का प्रयोग करके हटाया जाता है।

एंडोसर्विकल क्यूरेटेजः यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक चम्मच के आकार के उपकरण का उपयोग करके ग्रीवा नहर के अस्तर से ऊतक (टिशू) के एक नमूने को स्क्रैप किया जाता है, जिसे क्यूरेट कहा जाता है।

शंकु बायोप्सी या कोनाइजेशनः इस तकनीक में डॉक्टर गर्भाशय ग्रीवा से ऊतक के शंकु के आकार के टुकड़े को हटा देता है। शंकु बायोप्सी के लिए आमतौर पर उपयोग की जाने वाली विधियों में लूप इलेक्ट्रोसर्जिकल छेदन प्रक्रिया व लूप इलेक्ट्रोसर्जिकल एक्सिशन प्रक्रिया (एलईईपी) शामिल है। इस प्रक्रिया को ट्रांसफ़ॉर्मेशन ज़ोन का बड़ा लूप एक्सिशन (एलएलईटीएज़) भी कहा जाता है। अन्य विधि कोल्ड नाइफ कोन बायोप्सी है।

क्या अल्ट्रासाउंड से सर्वाइकल कैंसर का पता लगाया जा सकता है?

आमतौर पर, बेहतर जांच विकल्पों की उपलब्धता के कारण गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड का प्रयोग नहीं किया जाता है। अल्ट्रासाउंड मुख्य रूप से एक इमेजिंग परीक्षण है, जो आपके प्रजनन अंगों को देखने के लिए उच्च आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों का उपयोग करता है। हालांकि, कुछ शोधकर्ताओं का सुझाव है कि गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की स्थानीय सीमा का आकलन करने के लिए अल्ट्रासाउंड उपयोगी हो सकता है। इसके अलावा, एक अल्ट्रासाउंड केवल लिम्फ नोड्स का आकलन करता है।

संक्षेप में, एक अल्ट्रासाउंड गर्भाशय ग्रीवा कोशिकाओं में सूक्ष्म असामान्यताओं का पता लगाने में सक्षम नहीं होगा। हालांकि, यदि कैंसर बढ़ गया है, तो यह अल्ट्रासाउंड पर दिखाई देगा।

क्या हल्दी कृमि निवारक के रूप में काम कर सकती है?

क्या हल्दी कृमि निवारक है?
हल्दी का उपयोग आमतौर पर डिवॉर्मर के रूप में नहीं किया जाता है। सीमित वैज्ञानिक साक्ष्य एक कृमिनाशक एजेंट के रूप में इसकी प्रत्यक्ष प्रभावशीलता का समर्थन करते हैं। यह एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों वाला मसाला है, जो अपने पाक और पारंपरिक औषधीय उपयोगों के लिए जाना जाता है।

हल्दी का वैज्ञानिक नाम कर्क्यूमा है। ये चिकित्सीय गुणों के साथ सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाला औषधीय पौधा है। हल्दी का करक्यूमिन तत्व इसे अधिक उपयोगी बनाता है। करक्यूमिन में मुख्य रूप से एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीवायरल और एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं। यह लेख कृमि निवारण की प्रक्रिया और इसके महत्व को स्पष्ट करता है। इसके आलावा, हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि क्या हल्दी का उपयोग हल्दी कृमि निवारक के रूप में किया जा सकता है?

कृमि निवारण (Dewormer) क्या है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार कृमि संक्रमण वैश्विक आबादी के एक तिहाई से अधिक लोगों को प्रभावित करता है। हालांकि, कृमि संक्रमण शिशु के सम्रग विकास कारकों अर्थात् स्वास्थ्य, पोषण, अनुभूति, सीखने और शिक्षा ग्रहण इत्यादि कों नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

कृमि-निवारण क्यों आवश्यक है?

डब्ल्यूएचओ (WHO) के अनुसार बच्चों को कृमि निवारण की आवश्यकता होती है क्योंकि वे अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली के विकास के कारण कृमि संक्रमण के आसानी से शिकार हो जाते हैं। यदि इसे लाइलाज छोड़ दिया जाए, तो ये संक्रमण उनके समस्त विकास में बाधा डाल सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें खराब पोषण भी हो सकता है। इसके अलावा, उनकी ध्यान केंद्रित करने और सीखने की क्षमता में भी कमी आ सकती है। कृमि निवारण उपचार प्रत्येक बच्चे में कृमियों की संख्या को कम करने का एक सरल, सुरक्षित और प्रभावी तरीका है। नियमित कृमि निवारण, स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के सुधार में योगदान देता है।

क्या हल्दी में कृमिनाशक गुण होते हैं?

2018 के एक अध्ययन में हल्दी, विशेष रूप से इसके सक्रिय यौगिक करक्यूमिन का, इसके संभावित कृमिनाशक गुणों के लिए अध्ययन किया गया है। शोध से स्पष्ट है कि करक्यूमिन का कुछ परजीवियों जैसे लीशमैनियासिस, एकैंथमोएबा कैस्टेलानी, एंटामोएबा हिस्टोलिटिका, ट्राइकोमोनास वजाइनालिस, इत्यादि के खिलाफ कृमिनाशक प्रभाव हो सकता है। हालांकि अभी भी हल्दी और करक्यूमिन के कृमिनाशक गुणों की जांच की जा रही है। हमें कृमि निवारण उपचार के संदर्भ में इसकी प्रभावकारिता, इष्टतम खुराक और संभावित दुष्प्रभावों को पूरी तरह से समझने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है।

तथ्य जाँचः क्या मधुमेह को हर्बल जड़ी-बुटियों द्वारा जड़ से ख़त्म किया जा सकता है?

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सारांश 

फेसबुक के एक वीडियो पोस्ट में यह दावा किया जा रहा है कि मधुमेह की बीमारी को 4-5 महीने में हर्बल जड़ी-बुटियों द्वारा जड़ से ख़त्म किया जा सकता है। जब हमने इस पोस्ट की तथ्य जाँच की तब यह पाया कि यह दावा बिल्कुल गलत है। 

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दावा 

फेसबुक पर जारी वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि मधुमेह यानी की शुगर की बीमारी को 4-5 महीने में हर्बल जड़ी-बुटियों से ठीक किया जा सकता है।

Diabetes cure claim

तथ्य जाँच 

क्या मधुमेह को आहार से ठीक किया जा सकता है?

नहीं। मधुमेह एक दीर्घकालिक स्थिति है, जो रक्त में ग्लूकोज (चीनी) के उच्च स्तर के कारण होती है। यह शोध दर्शाता है कि मधुमेह का कोई इलाज नहीं है। हालांकि, इसे स्वस्थ जीवनशैली और चिकित्सीय सलाह द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। 

Dietitian

आहार और पोषण विशेषज्ञ काजल गुप्ता बताती हैं कि, “मधुमेह अग्न्याशय कोशिकाओं (pancreatic cells) की स्थायी क्षति के कारण या pancreatic cells के इंसुलिन के प्रति संवेदनशील होने के कारण होता है, इसलिए इसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन उचित दवा, आहार और जीवनशैली में बदलाव के माध्यम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।”

हालांकि, टाइप 2 मधुमेह को ‘रिवर्स’ या ‘इलाज’ करने के तरीके पर शोध किए जा रहे हैं, लेकिन अभी तक इस पर कोई निर्णायक स्थिति स्पष्ट नहीं है। वहीं, टाइप 1 मधुमेह वस्तुत: ऐसी स्थिति है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली इंसुलिन का उत्पादन करने वाली कोशिकाएं प्रभावित होती हैं, जिसे दुर्भाग्यवश कभी ठीक नहीं किया जा सकता है। 

इसके अलावा, पोषण विशेषज्ञ डॉ. अवनि कौल ने भी उल्लेखित किया है कि मधुमेह को ठीक नहीं किया जा सकता है। इसे केवल आहार और जीवनशैली के द्वारा ही प्रबंधित और नियंत्रित किया जा सकता है। 

क्या मधुमेह को किसी हर्बल जड़ी-बुटी से ठीक किया जा सकता है? 

नहीं, मधुमेह को किसी भी हर्बल जड़ी-बुटी से ठीक करने के कोई विश्वसनीय वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, जो इसकी पुष्टि कर सके। हालांकि, स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम और कुछ जड़ी-बूटियां मधुमेह से ग्रसित लोगों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती हैं। ये मधुमेह का इलाज करने के तरीके नहीं है क्योंकि डॉक्टर मधुमेह के स्तर के अनुसार मधुमेह से पीड़ित लोगों को दवाईयां या परहेज करने की सलाह देते हैं, जो हर मरीज के लिए अलग-अलग हो सकती है। 

National Center for Complementary and Integrative Health के अनुसार है कि हमारे पास इस बात के विश्वसनीय प्रमाण नहीं हैं कि कोई भी हर्बल सप्लीमेंट या हर्बल जड़ी-बुटी मधुमेह या इसकी जटिलताओं को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।

Yoga Practitioner

डॉ. आयुष चंद्रा (Consultant Diabetologist and Founder of Nivaran Health, Delhi NCR) स्पष्ट करते हैं कि, “मधुमेह को ठीक नहीं किया जा सकता है। यदि आवश्यक हो, तो मधुमेह प्रबंधन में उचित दवाएं और इंसुलिन थेरेपी लेनी चाहिए, जिसके लिए डॉक्टर की सलाह अनिवार्य है। इसके लिए मैक्रो और सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ संतुलित आहार, दैनिक शारीरिक व्यायाम, पर्याप्त पानी पीना, मानसिक स्वास्थ्य और नियमित रक्त शर्करा की निगरानी की भी आवश्यकता होती है। 

वे आगे बताते हैं कि वर्कआउट के साथ-साथ रोजाना 2-3 लीटर पानी का सेवन फायदेमंद होता है। यह चयापचय, रोग-प्रतिरक्षा, बीमारियों के रोकथाम और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। मधुमेह में पानी पीने से मूत्र के माध्यम से अतिरिक्त शर्करा को बाहर निकालने में मदद मिलती है।”

Dr Utsav Sahu

कंसल्टेंट फिजिशियन और डायबिटोलॉजिस्ट डॉ. उत्सव साहू बताते हैं, “नहीं, केवल हर्बल जड़ी-बूटियों का सेवन करने से मधुमेह ठीक नहीं हो सकती है। वास्तव में इस तरह के भोजन का सेवन करना खतरनाक हो सकता है क्योंकि यह शरीर को ठीक से काम करने के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान नहीं करेगा। मधुमेह से पीड़ित लोगों को हृदय रोग, स्ट्रोक, गुर्दे की समस्या और अंधापन जैसी गंभीर जटिलताओं से बचने के लिए अपने रक्त शर्करा के स्तर को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करने की आवश्यकता है। इसका अर्थ है कि स्वस्थ आहार का सेवन, नियमित रूप से व्यायाम करना और अपने चिकित्सक द्वारा बताई गई दवाएं लेना आवश्यक है। मधुमेह के प्रबंधन के लिए उपचार के साथ आहार और जीवनशैली में बदलाव भी करना चाहिए। इसके अलावा, चिकित्सा परिषद के मानदंडों के तहत वैज्ञानिक शोध और नैदानिक ​​परीक्षणों के अनुसार अनुशंसित एलोपैथिक दवाएं भी शामिल होनी चाहिए।”

उन्होंने आगे कहा, “यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि मधुमेह एक जटिल स्थिति है, जो आनुवंशिकी, जीवनशैली और पर्यावरणीय कारकों सहित अन्य कारकों पर भी निर्भर करती है।”

Diabetologist

इस वायरल दावे के बारे में दिल्ली स्थित सरोज डायबिटीज एंड रिसर्च सेंटर के संस्थापक और वरिष्ठ सलाहकार मधुमेह विशेषज्ञ डॉ. रितेश बंसल बताते हैं कि, “मधुमेह मेटाबॉलिज्म से संबंधित विकार है, जिसके लिए कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा की सही मात्रा के साथ संतुलित आहार की आवश्यकता होती है। अधिकांश मधुमेह रोगी लगातार वैकल्पिक चिकित्सा उपचारों की तलाश करते हैं, जो सहायक हो सकते हैं लेकिन सभी मधुमेह रोगियों को आहार, जीवनशैली में बदलाव और एलोपैथिक दवाओं के माध्यम से एक विशिष्ट रक्त शर्करा स्तर बनाए रखने की सलाह दी जाती है। इस दावे के संबंध में जड़ी-बूटियां और रस सहायक भूमिका निभाते हैं लेकिन कारगर हैं या नहीं, यह उस जड़ी-बुटी के बारे में विस्तृत जानकारी के बाद ही पता चलेगा। किसी भी तरह के प्राकृतिक उपचारों का उपयोग करते समय रोगी पर कड़ी निगरानी रखने की आवश्यकता होती है और उसे अपने डॉक्टरों द्वारा सुझाए गए चिकित्सा उपचार का पालन करना चाहिए।”

अतः शोध पत्रों और चिकित्सक के बयान से यह स्पष्ट है कि मधुमेह का कोई इलाज नहीं है। मधुमेह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रण में रखने के लिए निरंतर प्रबंधन और उपचार की आवश्यकता होती है। इसके अलावा यह साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण भी नहीं है कि केवल हर्बल पेय या किसी जड़ी-बुटी का सेवन करने से मधुमेह पूरी तरह से ठीक हो सकता है। इसके अलावा इस वीडियो में इस्तेमाल की जा रही जड़ी-बुटी की अधूरी जानकारी दी गई है। ऐसे में, इस वीडियो पर विश्वास नहीं किया जा सकता। हमने पहले भी मधुमेह संबंधित दावों की जांच की है, जैसे- पूजा करने से मधुमेह को ठीक किया जा सकता है और कुछ लोकप्रिय व्यक्तियों द्वारा मधुमेह की दवाई का प्रचार किया गया है.

तथ्य जाँचः क्या रात के वक्त दही नहीं खाना चाहिए?

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सारांश 

फेसबुक पर जारी एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि रात के वक्त दही नहीं खाना चाहिए। इस पोस्ट को दही खाने का सही समय और तरीका के अंतर्गत जारी किया गया है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा ज्यादातर गलत है। 

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दावा 

फेसबुक पर जारी एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि रात के वक्त दही नहीं खाना चाहिए। इस पोस्ट को ‘दही खाने का सही समय और तरीका’ के अंतर्गत जारी किया गया है। हालांकि इस पोस्ट में रात के वक्त दही खाने से क्या होगा, इस बात की जानकारी नहीं दी गई है इसलिए यह दावा लोगों को भ्रमित करने वाला हो सकता है। 

curd timing claim

तथ्य जाँच 

दही खाने के फायदे क्या हैं?

UCLA के अनुसार बिना मिठास वाला दही मस्तिष्क के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दही में Zinc, Choline और Iodine प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। Iodine मस्तिष्क और neurological विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि Iodine Thyroid Hormone बनाने में मदद करता है। Iodine की थोड़ी भी कमी मस्तिष्क विकास जैसे- बौद्धिक एवं तार्किक शक्ति को प्रभावित करती है। 

दही प्रोबायोटिक्स से भरपूर होता है। ये जीवित बैक्टीरिया होते हैं, जो आपके पेट के स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाते हैं। प्रोबायोटिक्स बेहतर पाचन और पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ावा देकर आंतों के स्वस्थ संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं। वे कब्ज, दस्त और Irritable Bowel Syndrome जैसी समस्याओं में भी मदद कर सकते हैं। प्रोबायोटिक्स संभावित रूप से शरीर को हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने में मदद कर सकते हैं।

दही कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन डी का एक अच्छा स्रोत है, जो हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। कैल्शियम का सेवन ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डी के फ्रैक्चर को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

कुछ अध्ययनों से पता चला है कि दही का सेवन हृदय स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकता है। कुछ प्रोबायोटिक स्ट्रेन खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) के स्तर को कम करने और हृदय रोग के खतरे को कम करने में मदद कर सकते हैं। 

दही खाने से क्या नुकसान होते हैं? 

दही कई लाभ प्रदान करता है लेकिन इसके कुछ संभावित नुकसान भी हैं। कुछ लोगों के लिए दही को पचा पाना मुश्किल हो सकता है, जिससे सूजन, गैस या कब्ज हो सकता है। यह लैक्टोज इंटोलरेंस (Lactose Intolerance) या कमजोर पाचन तंत्र वाले लोगों को ज्यादा प्रभावित करता है। 

कभी-कभी दही उन लोगों के लिए कब्ज का कारण बन सकता है, जिनका पाचन तंत्र कमजोर होता है। 

क्या रात के वक्त दही नहीं खाना चाहिए?

रात के वक्त दही के सेवन को लेकर कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं, जो बताते हो कि किसी निश्चित समय पर दही खाने से किसी तरह के नुकसान होते हैं या नहीं। हालांकि यह लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति पर निर्भर करता है कि उनकी शारीरिक संरचना कैसी है। 

dietitian

आहार विशेषज्ञ नबरुणा गांगुली बताती हैं, “दही का सेवन करना शरीर को पौष्टिक तत्व प्रदान करता है। दही में मौजूद पोषक तत्व यानी प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, पोटेशियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम स्वस्थ जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्कृष्ट स्रोत हैं। दही एक प्रोबायोटिक भोजन है, जो अच्छे बैक्टीरिया द्वारा बेहतर पाचन के साथ-साथ मल त्याग को आसान बनाते हैं, यानी कब्ज की स्थिति को कम करते हैं। वहीं इसमें मौजूद कैल्शियम बेहतर अवशोषण में मददगार साबित होते हैं, जो हड्डियों को स्वास्थ्य बनाए रख सकते हैं। इनमें मौजूद अन्य कारक यानी सोडियम और पोटेशियम सामान्य स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। साथ ही इस बात का कोई व्यावहारिक प्रमाण नहीं है कि दही का रात के वक्त सेवन करने से कोई स्वास्थ्य समस्या होती है।” 

उन्होंने आगे बताया, “दही की तासीर ठंडी होती है इसलिए कभी-कभी ठंड के मौसम में पाचन प्रक्रिया में बाधा डाल सकते हैं, लेकिन जिन लोगों का पाचन तंत्र अच्छा होता है, उन्हें इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है। वहीं रात के समय दही अपच का कारण बन सकता है लेकिन यह हर किसी के लिए सच नहीं है। वहीं अस्थमा, सर्दी से एलर्जी और COPD के रोगियों को ठंड के मौसम और रात के समय दही से परहेज करने की सलाह दी जाती है क्योंकि इससे शरीर का तापमान कम हो जाता है और उनमें बलगम का निर्माण बढ़ सकता है।” 

अतः उपरोक्त शोध पत्रों एवं चिकित्सक के बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा ज्यादातर गलत है क्योंकि भले ही रात के वक्त दही का सेवन करने से अपच की समस्या होती है लेकिन यह हर किसी के लिए एक समान नहीं है।

हमने पहले भी कई भ्रामक दावों की जाँच की है, जैसे-  पुरुषों के लिंग के आकार को हर्बल औषधि के प्रयोग से बढ़ाया जा सकता है और माचिस की तीली बिच्छू के डंक का सही उपचार है.  

कौन से खाद्य पदार्थ अनिद्रा और चिंता में मदद करते हैं?

क्या पोषण के लिए समग्र दृष्टिकोण चिंता और अनिद्रा में सकारात्मक रूप से मदद कर सकते हैं?
हां, पोषण के लिए समग्र दृष्टिकोण मानसिक कल्याण को बहुत प्रभावित कर सकते हैं। संपूर्ण, पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों का चयन करना, ओमेगा-3 फैटी एसिड, विटामिन और खनिजों से भरपूर संतुलित आहार को बढ़ावा देना, मस्तिष्क के स्वास्थ्य का समर्थन करता है। इसके अतिरिक्त, सचेत भोजन, व्यक्तिगत आहार आवश्यकताओं को पूरा करना, और आंत-मस्तिष्क संबंध पर विचार करना मानसिक कल्याण पर समग्र सकारात्मक प्रभाव में योगदान देता है।

अच्छे स्वास्थ्य के लिए अनिद्रा और चिंता से बचना आवश्यक है। इस हेतु उचित खाद्य पदार्थ के चयन के महत्व को कम नहीं किया जा सकता है। हमारे मानसिक और भावनात्मक संतुलन के दो बुनियादी पहलू हैं जो हमारे खाने की पसंद को प्रभावित करते हैं। अत: क्या खाना है, यह जानने से पहले जरूरी है कि चिंता और अनिंद्रा के कारण को समझा जाये?

चिंता और अनिद्रा के कारण क्या हो सकते हैं?

चिंता और अनिद्रा के कारण अक्सर एक-दूसरे से संबंधित होते हैं। काम का दबाव, व्यक्तिगत समस्याएं या वित्तीय चिंता, इत्यादि इन समस्याओं के कारण हो सकते हैं। यह स्थिति नींद के पैटर्न को बाधित करती है, जो अनिद्रा का कारण बनता है। सामान्य चिंता विकार या अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी चिंता और विकार के कारण हो सकते हैं। अत्यधिक कैफीन का सेवन या अनियमित नींद का समय जैसे जीवनशैली के विभिन्न कारक भी इन विकारों में वृद्धि कर सकते हैं। इसके अलावा, चिकित्सा की स्थिति और दवाइयां भी इनके कारण हो सकते हैं।

कौन से खाद्य पदार्थ चिंता और अनिद्रा में वृद्धि कर सकते है?

अनुचित खाद्य पदार्थ, अनिद्रा और चिंता का कारण बन सकता है। जबकि अपने भोजन में नींद को बढ़ावा देने वाले और चिंता से राहत देने वाले खाद्य पदार्थ को शामिल करना आवश्यक है। कुछ खाद्य पदार्थों के प्रति सचेत रहने की भी सलाह दी जाती है, जो अनिद्रा और चिंता को बढ़ाते हैं। यहां ऐसे खाद्य पदार्थ की सूची है, जिनका परहेज़ करना चाहिए:-

कैफीन

कैफीन से भरपूर खाद्य पदार्थ निद्रा चक्र को बाधित कर चिंता को बढ़ा सकते हैं। इसलिए रात में कॉफी, चाय, ऊर्जा पेय और कैफीनयुक्त पेय पदार्थों का सेवन सीमित मात्रा में करना चाहिए।

चीनी और परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट

चीनी और परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट से युक्त उच्च खाद्य पदार्थ रक्त शर्करा के स्तर में उतार-चढ़ाव और चिंता का कारण बन सकते हैं। इसलिए साबुत अनाज और जटिल कार्बोहाइड्रेट का सेवन करना चाहिए।

शराब

शुरुआती दौर में शराब पीने से नींद में मदद मिल सकती है, लेकिन कुछ समय बाद यह निद्रा चक्र को बाधित कर देती है, जिससे अधूरी नींद या बेचैनी हो सकती है। इसलिए रात में शराब के सीमित सेवन की सलाह दी जाती है।

मसालेदार और भारी खाद्य पदार्थ

मसालेदार या भारी और चिकना खाद्य पदार्थ अपचन और असुविधा का कारण बन सकता है, जिससे चैन से सोना मुश्किल हो सकता है। रात में हल्का भोजन ही करना चाहिए।

अत्यधिक प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ

प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ योजकों और संरक्षकों से भरपूर होते हैं। ये व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। बेहतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को चुनें।

अत्यधिक नमक

खाद्य पदार्थ में सोडियम का उच्च स्तर रक्तचाप और नींद में अनियमितता पैदा कर सकता है। इसलिए, नमक का सेवन कम करने की सलाह दी जाती है।

कृत्रिम मिठास

कुछ लोग कृत्रिम मिठास के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं क्योंकि इसका सेवन परिवर्तित आंत माइक्रोबायोटा से जुड़ा हुआ है, जो मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए, प्राकृतिक मिठास का सेवन करना चाहिए।

कौन सी कमियां अनिद्रा का कारण बनती हैं?

कई पोषक तत्वों की कमी से अनिद्रा हो सकती है। नींद से जुड़ा एक प्रमुख खनिज मैग्नीशियम है। अपर्याप्त मैग्नीशियम का स्तर निद्रा चक्र को बाधित कर सकता है, जिसके कारण अनिद्रा की समस्या हो सकती है। मैग्नीशियम नींद में शामिल मेलाटोनिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर के विनियमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

किस विटामिन की कमी से अनिद्रा होती है?

विटामिन की कमी, विशेष रूप से विटामिन बी की कमी, अनिद्रा में योगदान कर सकती है। विटामिन बी-6 और बी12 न्यूरोट्रांसमीटर के संश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिसमें सेरोटोनिन और मेलाटोनिन शामिल हैं, जो निद्रा चक्र को नियंत्रित करने में शामिल हैं। इन विटामिनों के अपर्याप्त स्तर न्यूरोट्रांसमीटरों के उत्पादन को बाधित कर सकते हैं। इससे अच्छी तरह से नींद नहीं आती है। संभवत: संतुलित आहार या पूरक आहार के माध्यम से बी विटामिन प्राप्त करना महत्वपूर्ण है।

अनिद्रा और चिंता के लिए कौन से खाद्य पदार्थ अच्छे हैं?

हालांकि, केवल डाइट से अनिद्रा और चिंता का इलाज संभव नहीं है, लेकिन ऐसे कुछ खाद्य पदार्थ हैं, जो बेहतर नींद में भी सहायक हो सकते हैं। ध्यान दें कि खाद्य पदार्थों के प्रति व्यक्तिगत प्रतिक्रियाएँ भिन्न हो सकती हैं, इसलिए यह जानना आवश्यक है कि आपका शरीर कैसे प्रतिक्रिया करता है। यहां कुछ खाद्य पदार्थ दिए गए हैं, जिनसे अच्छी नींद आ सकती हैंः

अनिद्रा से बचने के लिए खाद्य पदार्थ

भरपूर नींद समग्र कल्याण के लिए आवश्यक है, जिनमें खान-पान की पंसद अच्छी नींद में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। अच्छी नींद आने के लिए भोजन को ट्रिप्टोफैन, मैग्नीशियम और मेलाटोनिन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होना चाहिए। इनसे शरीर को आराम और निद्रा चक्र को सही करने में सहायता मिलती है। अनिद्रा प्रबंधन के लिए संतुलित आहार को अपनाना आवश्यक है। इनमें हल्दी के साथ गर्म दूध से लेकर साबुत अनाज और मेवों का सेवन किया जाना सम्मिलित है।

चिंता से राहत के लिए भोजन

चिंता आधुनिक जीवन का एक सामान्य पहलू है, जिन्हें आहार समेत अनेक कारक प्रभावित कर सकते हैं। कुछ खाद्य पदार्थों में ऐसे गुण हो सकते हैं, जो चिंता को कम करने में सहायता कर सकते हैं। इसमें कार्बोहाइड्रेट, ओमेगा-3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर आहार फायदेमंद हो सकता है। हमें मानसिक स्वास्थ्य के अनुकूल आहार करना चाहिए। परिणामस्वरूप केवल आहार परिवर्तन ही नहीं अपितु उचित मार्गदर्शन अपेक्षित है।

कैफीन और निकोटीन जैसे उत्तेजक पदार्थों के सेवन को सोने के समय करने से बचना या सीमित करना आवश्यक है, क्योंकि वे अनिद्रा का कारण बन सकते हैं। इसके अतिरिक्त, शराब के सेवन से रात में देर से नींद आने की समस्या हो सकती है।

अनिद्रा और चिंता के लिए नमूना आहार

खानाभोजन के विकल्प
नाश्ता– बादाम, अखरोट और चिया बीज के साथ दलिया।
– प्राकृतिक मिठास के लिए कटे हुए केले।
– कैमोमाइल या तुलसी चाय।
मध्य-सुबह का नाश्ता– मिश्रित जामुन के साथ ग्रीक दही।
दिन का खाना– क्विनोआ या ब्राउन चावल के साथ ग्रील्ड या बेक्ड सैल्मन।
– पालक, ब्रोकोली और शिमला मिर्च जैसी मिश्रित सब्जियां।
दोपहर का नाश्ता– मुट्ठी भर मिश्रित मेवे (बादाम, काजू)।
रात का खाना– भूरे चावल या साबुत गेहूं की रोटी के साथ मसूर दाल।
– हल्की पकी हुई सब्जियां (तोरी, गाजर)।
सोने से पहले– गर्म दूध में चुटकी भर हल्दी मिलाएं।
– हर्बल आसव (लैवेंडर या पुदीने की चाय)।

सेहत के लिए अच्छी नींद लेना बहुत ज़रूरी है। मेलाटोनिन और सेरोटोनिन जैसे नींद को नियंत्रित करने वाले हार्मोन से युक्त कुछ खाद्य पदार्थ और पेय नींद की गुणवत्ता में सुधार करते हैं। एंटीऑक्सीडेंट और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों से जल्दी और लंबी नींद आती है।

इनका सेवन सोने से 2-3 घंटे पहले ही करें ताकि एसिड रिफ्लक्स जैसी पाचन समस्या न हो। हालांकि सोन पर भोजन और पेय पदार्थ के सटीक प्रभाव की पुष्टि हेतु और अध्ययन की आवश्यकता है। वर्तमान में डाइटरी चॉइस को महत्वपूर्ण माना जाता है।