जागरूकता की कमी व झाड़-फूंक दे रहा है पीलिया को बढ़ावा 

पीलिया को लेकर जागरुकता का अभाव ही है कि लोग पीलिया के दौरान भी नशा करने लगते हैं और स्थिति अत्यंत गंभीर हो जाती है...इसी विषय पर पढ़िए पर्वतीय इलाके से यह आलेख..

Last Updated on दिसम्बर 14, 2022 by Neelam Singh

वर्तमान समय में पीलिया अर्थात जोंडिस (Jaundice) एक सामान्य बीमारी मानी जाती है। यह रक्त और शरीर के ऊतकों में बिलीरुबिन नामक पदार्थ के निर्माण के कारण होती है। कोई भी स्थिति जो बिलीरुबिन की रक्त से यकृत तक और शरीर से बाहर की गति को बाधित करती है, वह पीलिया का कारण बन सकती है। बिलीरुबिन एक पीला वर्णक है, जो यकृत में मृत लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) के टूटने से बनता है। पीलिया के लक्षणों में आंखों एवं शरीर की त्वचा का पीला होना, शरीर में खुजली होना प्रमुखता से शामिल हैं।

National Institute of Communicable Diseases (NICD) द्वारा किए गए अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि भारत में पीलिया एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। हालांकि जागरूकता के अभाव में कोई भी बीमारी घातक हो सकती है। पीलिया के संदर्भ में देखें तो आज पीलिया सामान्यतः हर उम्र और वर्ग के लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। 

जागरुकता का अभाव 

जागरूकता की कमी के कारण पीलिया पर्वतीय क्षेत्रों में अपने पैर पसार रहा है। पीलिया की शिकायत होने पर ग्रामीण समुदाय अस्पताओं की ओर रूख न करते हुए नजदीकी झाड़-फूंक करने वालों पर निर्भर रहते है। इतना ही नहीं बल्कि ऐसी निर्भरता शिक्षित लोगों में भी देखने को मिलती है, जो शहरों में रहने के बावजूद झाड़-फूंक को प्रथामिकता देते हैं।  

ग्राम गूना, लमगड़ा अल्मोड़ा के रहने वाले अर्जुन कुमार बताते हैं कि उन्हें 3-4 बार पीलिया हुआ है लेकिन उन्होंने हर बार ग्राम धुरासंगरौली में जाकर झाड़ने वाले से इसका इलाज कराया है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में डाॅक्टरों एवं जांच की सुविधाएं मौजूद नहीं है। साथ ही ग्राम स्तर से स्वास्थय केन्द्रों तक आने-जाने का व्यय एवं उपचार में लगने वाला व्यय भी ग्रामीणों के लिए बड़ी चुनौती है। 

नशे की गिरफ्त में पर्वतीय समुदाय 

पर्वतीय समुदाय में नशा करना पीलिया का एक प्रमुख कारण बनता जा रहा है क्योंकि अत्याधिक शराब पीने और नशा करने के कारण लीवर को हानि पहुंचती है। करीब 60 प्रतिशत पुरुष नशे के आदि हो चुके हैं और राज्य में अधिकांश मौतों का कारण पीलिया बीमारी के दौरान शराब पीना भी है। 

ग्राम असोटा जनपद अल्मोड़ा की जानकी देवी बताती हैं कि उनके पति अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी मौत का कारण पीलिया के दौरान शराब पीना था। डाॅक्टरों के मना करने के बावजूद भी उन्होंने शराब पीना नहीं छोड़ा और साल 2017 में उनकी मौत हो गई। अपने पति को खोने के बाद से परिवार की सारी जिम्मेदारी उनके कन्धों पर आ गई है। वे बताती हैं, अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में नशा करना सामान्य बात है। शाम के 5 बजे के बाद ही ग्राम में दारू की लहर में झूमते व्यक्ति दिखाई देने लगते हैं। ऐसी स्थिति को देखते हुए ग्राम स्तर पर शिविर के माध्यम से जागरूकता फ़ैलाने की और कड़े कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। 

खानपान का रखें विशेष ध्यान 

हल्द्वानी, नैनीताल के सुशीला तिवारी हाॅस्पिटल के डाॅक्टर अनिल अग्रवाल बताते हैं, “शुरुआत में ही अगर पीलिया की जानकारी हो जाए तब उपचार करना आसान हो जाता है लेकिन  5-6 माह बीत जाने पर भी अगर सही उपचार ना मिले तब व्यक्ति को पित्त नली में रूकावट महसूस होने लगती है, जो असमय मौत का कारण बनती है। पीलिया के दौरान पपीता, आम, सरसों का साग व विटामिन डी युक्त खाध्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए और हेपेटाइटिस का टीका लगवाना चाहिए और नशे से दूर रहना चाहिए।” 

साल 2022 के इस अध्ययन के अनुसार जो लोग प्रतिदिन 3 कप से अधिक कॉफी पीते हैं, उनका लीवर स्वस्थ पाया गया। हालांकि जब शोधकर्ताओं ने इस घटना का गहन अध्ययन किया तो उन्होंने पाया कि यह परिणाम कॉफी में कैफीन के कारण नहीं थे। इसी तरह साल 2022 के एक अध्ययन में पाया गया कि ग्रीन टी का सेवन भी लीवर के लिए काफी फायदेमंद है। साथ ही रेशेदार फल एवं सब्जियों का सेवन करना और तरल पदार्थों का सेवन करना भी लीवर के लिए फायदेमंद साबित होता है। 

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