कैसे संभाले बोर्ड परीक्षा का दबाव?

बोर्ड परीक्षाएं हर वर्ष अपने साथ कुछ नई मुश्किलें और ढेर सारा दबाव ले कर आती हैं। आइये जानते हैं मनोविश्लेषक डॉ बिन्दा सिंह से इन मुश्किलों का सामना करने के उपाय...

Last Updated on फ़रवरी 27, 2023 by Neelam Singh

हर वर्ष फरवरी और मार्च के महीने बोर्ड परीक्षा व कई अन्य तरह की परीक्षाएं लेकर आते हैं। जैसे – CBSE, स्टेट बोर्ड, IIT, NEET, AIIMS, आदि परीक्षाएं। सीबीएसई द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इस बार सीबीएसई दसवीं बोर्ड परीक्षा में करीब 21,86,940 और बारहवीं की बोर्ड परीक्षा में करीब 16,96,770 परीक्षार्थी शामिल हो रहे हैं। 

जहाँ एक और अधिकांश बच्चों का ध्यान अपने वार्षिक परीक्षाओं पर है वहीँ कई अभिभावकों ने भी अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना शुरु कर दिया होगा क्योंकि बारहवीं के बाद इनमें से ही कई परीक्षार्थी अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठेंगे जो कहीं ना कहीं उनके भविष्य को एक दिशा देगा लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि किसी परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन ना कर पाना या अच्छे नंबर न ला पाना आपको सफल या असफल बना देता है बल्कि अब ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां आप अपने आपको निखार सकते हैं।

क्या सोच रहे हैं बच्चे?

इस बार पहली बार दसवीं की बोर्ड परीक्षा दे रहे हैं ऋषि बताते हैं कि, “एग्जाम को लेकर थोड़ा प्रेशर है क्योंकि ऐसा लग रहा है कि सारा पढ़ा हुआ भूल गया हूं मगर स्कूल में प्री-बोर्ड एग्जाम हुए हैं, जिसको देने के बाद थोड़ा कॉन्फिडेंस है लेकिन बोर्ड के एग्जाम का माहौल पूरा अलग होता है। इसके साथ ही घर पर भी मेरी दीदी की बोर्ड परीक्षा में अच्छे नंबर आए थे इसलिए मेरे ऊपर भी थोड़ा दबाव है।” 

वहीं बारहवीं की बोर्ड परीक्षा देने वाली सृष्टि का कहना है कि, “मैंने मैथ्स, फिजिक्स और केमेस्ट्री लिया है। इसके बाद मुझे आईआईटी की परीक्षा भी देनी है लेकिन दोनों के सिलेबस और परीक्षा के लेवल में अंतर है इसलिए बहुत डर लग रहा है क्योंकि दोनों ही परीक्षा में बेहतर करना जरुरी है। ऐसे में आस पास के पडोसी आए दिन इम्तिहान के बारे में पूछ कर और ज्यादा दबाव बना देते हैं।”

इन दो बच्चों की बातों से एक बात बिल्कुल साफ है कि बच्चे अपनी परीक्षा को लेकर ना केवल प्रेशर ले रहे हैं बल्कि उनके लिए ये वातावरण पूरा डरावना भी हो गया है, मगर इस दबाव को यदि थोड़ा समझदारी से लिया जाये तो परफार्मेंस बेहतर होने की संभावना होती है। 

बच्चों और अभिभावकों के लिए टिप्स 

Psychologist

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. बिंदा सिंह बताती हैं, बोर्ड परीक्षा का नोटिफिकेशन आते ही, ना केवल बच्चों को बल्कि अभिभावकों को भी अपनी रुटीन बदलने की जरुरत है। जैसे- 

  • कोरोना के वक्त पढ़ाई के ऑनलाइन होते ही बच्चे ना केवल ऑनलाइन पढ़ रहे थे बल्कि उनका स्क्रीन टाइम अन्य सोशल मीडिया एप्स पर भी बढ़ गया था। 
  • इसके साथ बच्चों के अंदर लिखने की क्षमता भी कम हो गई थी लेकिन बोर्ड परीक्षा में उत्तर लिखने होते हैं इसलिए लिखकर प्रैक्टिस करना जरुरी है। 
  • अभिभावकों को भी एक समय निर्धारित करना होगा कि घर पर स्मार्टफोन इस्तेमाल करने का एक समय तय हो और जब बच्चे पढ़ रहे हो, तब उस वक्त घर में टीवी, वेबसीरीज या किसी ध्यान भटकाने वाले इलेक्ट्रोनिक गैजेट का इस्तेमाल ना हो। 
  • अभिभावक कई बार अपने बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से करने लगते हैं। जैसे – अगर दो बच्चे हैं और इनमें से अगर किसी के नंबर अच्छे आए हो, तो अभिभावक तुलना करने लगते हैं, जो एकदम गलत है। हर अभिभावक अपने बच्चे की क्षमता से परिचित होता है इसलिए तुलना करके उसके अंदर के आत्मविश्ववास को कम करने की नहीं बल्कि उसके आत्मविश्ववास को बढ़ाने की जरुरत है। 
  • बच्चों को अपना भोजन का भी ख्याल रखने की जरुरत है क्योंकि इस वक्त तन का तंदरुस्त रहना जरुरी है, जिससे आप मानसिक रुप से भी स्वस्थ्य महसूस करेंगे। 
  • अपना स्टडी प्लान तैयार करें, पूरी नींद लें, पढ़ाई के बीच ब्रेक लें, सकारात्मक सोचें। 
  • परीक्षा हॉल में खुद को रिलैक्स करें और बार बार अपने अच्छे परिणामों के बारे में सोचें या किसी अच्छे पल को याद करें जो आपको मोटिवेट करता हो। 
  • इसके अलावा सबसे जरुरी बात यह है कि आप उन ट्रिगर्स को पहचाने जिससे आपको तनाव, बैचेनी या परेशानी होती हो और अपने अभिभावक, टीचर या किसी अच्छे दोस्त से बात करें। 
  • साथ ही अभिभावकों के लिए जरुरी है कि वे अपने बच्चों से बात करें कि उनका मन किस चीज में लगता है, जैसे – म्यूजिक, डांसिग या कोई भी क्रिएटिव चीज क्योंकि अब क्षेत्र सीमित नहीं हैं इसलिए बच्चों की इच्छाओं को सीमित करना भी गलत होगा।

नाजुक पौधे की तरह सींचना जरुरी 

डॉ. बिंदा सिंह ने अपने पास आने वाले केस को लेकर बताया कि अब अधिकांश बच्चे भी अपने अभिभावकों के साथ आते हैं और स्वीकार करते हैं कि उन्होंने कुछ नहीं पढ़ा है। कई अभिभावक बताते हैं कि एग्जाम हॉल में ही उनके बच्चे की तबीयत खराब हो गई, उसे चक्कर आ गए या प्रश्न पत्र मिलने के बाद बच्चा इतना डर गया कि उसने कुछ लिखा ही नहीं जिससे वो अपने एग्जाम में ही फेल हो गया। ऐसी स्थिति में कई बार अभिभावकों का मानना होता है कि जाने दो कोई बात नहीं, बच्चे का स्वस्थ रहना ज्यादा जरुरी है लेकिन ये सिक्के का केवल एक पहलू है। अगर बच्चे को प्रेशर हैंडल करना नहीं आएगा, तब वो आगे आने वाले अन्य एग्जाम में भी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकेगा, जिससे उसकी आने वाली जिंदगी मुश्किल हो सकती है। 

अभिभावक अगर बच्चे को सामान्य महसूस कराएं, उससे ज्यादा उम्मीदें ना पालें, ना ही उसे कमतर आंके और थोड़ा फ्रेंडली महसूस कराएं तो हो सकता है कि बच्चा अच्छा महसूस करे। बच्चों को नाजुक पौधे की तरह सींचने की जरुरत है ताकि बड़े बनकर वे एक दृढ़ वृक्ष बनकर तैयार हो सकें। 

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