बुनाई ने दी नई जिंदगी और सिखाया मानसिक स्वास्थ्य का पाठ

सिलाई-बुनाई करना महिलाओं के खाली वक़्त का काम होता है। ऐसी सोच को बदलने का काम कर रहे हैं, बंगलुरु के सोहेल.. पढ़िए चेंजमेकर्स की कड़ी में…

ऊन की जब कभी बात छिड़ती है, तो हम सबसे पहले एक महिला का चेहरा ही सोचते हैं क्योंकि अधिकतर महिलाएं ही अपने खाली समय में ये काम करती हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि इन कामों के द्वारा हम अपने आपको मानसिक तौर पर भी स्वस्थ रख सकते हैं? 

Sohail

सुनने में थोड़ा अचंभित करने वाला लग सकता है लेकिन हुबली कर्नाटक के रहने वाले 29 साल के सोहेल नरगुंड ने कोरोना माहमारी के दौरान चिंता, बैचेनी और अवसाद से उबरने के लिए बुनाई शुरू की थी। सोहेल के अनुसार ये काम ना केवल उन्हें मानसिक शांति देता है बल्कि आर्थिक रुप से भी सबल बनाता है। 

कोरोना माहमारी के प्रचंड रुप लेने के बाद साल 2020 में सोहेल के लिए स्थिति थोड़ी गंभीर हो गई थी क्योंकि वे आत्मनिर्भर नहीं थे और दिनभर बहुत सोचा करते थे। वे बताते हैं, “शुरुआत में मैं छोटी-छोटी बातों को लेकर चिंतित रहता था, लेकिन धीरे-धीरे मेरी हालत खराब हो गई। मैं हर समय बहुत ज्यादा सोचता रहता था और मेरे हृदय की गति बहुत तेज हो जाती थी।” 

ऑनलाइन मिला आइडिया

हालांकि अब तक उन्हें इस स्थिति से उबरने का कोई तरीका नहीं मिल रहा था लेकिन एक दिन उनकी नज़र एक ऑनलाइन पोस्ट पर पड़ी, जिसमें चिंता एवं अवसाद से राहत पाने के लिए बुनाई करने की सलाह दी गई थी। चुंकि सोहेल अपने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर काफी परेशान थे इसलिए उन्होंने इस नुस्खे को आजमाने का निश्चय किया। इस तरह उन्होंने बुनाई की शुरूआत की। उन्होंने कहा, जब मैंने बुनाई शुरू की, तो मुझे एहसास हुआ कि इससे मुझे राहत मिल रही है और मैं मानसिक तौर पर स्थिर महसूस कर रहा हूं क्योंकि अब मैं इधर-उधर के चीजों के बारे में ज्यादा नहीं सोच रहा था। मुझे आराम और व्यस्तता महसूस हुई।” उन्होंने बुनाई का काम विभिन्न युट्युब वीडियो की मदद से सीखा है। 

कुछ महीनों तक हाथ आजमाने और हुनर को तराशने के बाद सोहेल ने साल 2021 में एक इंस्टाग्राम पेज की शुरूआत की, जहां उन्होंने तस्वीरें और ट्यूटोरियल पोस्ट करना शुरू किया। आज वे इसी पेज के माध्यम से विभिन्न हस्तनिर्मित उत्पाद बेचते हैं और रूढ़िवादिता को तोड़ते हुए अन्य लोगों को प्रेरित करते हैं। इतना ही नहीं वे अपने अनुभवों को भी साझा करते हैं और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरुक करने का प्रयास करते हैं।

पहले ऑर्डर से मिली प्रेरणा

Knitting

देखा जाए, तो जिस प्रकार की धारणा बनी हुई है, उसे तोड़ना या चुनौती देना मुश्किल होता है। वे कहते हैं, “मैं वास्तव में अपने पिता को अपना काम दिखाने में शर्माता था। मुझे हमेशा ऐसा महसूस होता था कि कुछ ऐसा कहेंगे, जिससे मुझे निराशा होगी लेकिन मुझे आश्चर्य है कि वे मेरे काम से बहुत प्रभावित और खुश हैं बल्कि उन्होंने मुझे यह भी बताया कि हुनर का स्त्री पुरुष से कोई लेना-देना नहीं है।” 

बुनाई से जुड़े एक किस्से के बारे में वे बताते हैं कि, “एक दिन मेरी बहन की दोस्त ने मुझसे एक स्वेटर बुनने के लिए कहा, तो मैंने उन्हें 1,000 रुपये की फीस के बारे में बताया लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि ‘नहीं! यह बहुत कम है और मुझे अधिक पैसे चार्ज करने चाहिए।” उन्होंने मुझे 1,700 रुपये का भुगतान किया। वो मेरा पहला ऑर्डर था।” इसके बाद उन्हें एहसास हुआ कि खुद के काम को कम आंकना बिल्कुल गलत है। इसके बाद उनके अंदर और जोश आया और अब वे पूरी तल्लीनता के साथ अपने काम में लग गए। 

लय से मिलती है सीख

Knitting

सोहेल बताते हैं कि बुनाई करने से उन्हें इसलिए मानसिक तौर पर आराम मिलता है क्योंकि ऊन और सलाई की एक लय होती है। उन्हें ऐसा लगता है कि जिंदगी भी ऐसी ही चलती है इसलिए मानसिक तनाव को किनारे रखकर हमें जिंदगी को खुलकर जीना चाहिए। 

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरुकता फ़ैलाने के लिए वे फिलहाल सोशल मीडिया की मदद ले रहे हैं और आगे की रणनीति भी तैयार कर रहे हैं। बुनाई के साथ मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने का तरीका अनोखा है क्योंकि इससे दिमाग अवसाद या अन्य चीजों के बारे में नहीं सोच पाता है। उनके इस काम में उन्हें उनके परिवार का पूरा सहयोग मिलता है। 

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