प्रोस्थेटिक आंख ने लौटाया जीवन में आत्मविश्वास

आंखों का सही सलामत होना किसी वरदान से कम नहीं होता क्योंकि आँखों की रौशनी के बिना जीवन रंगहीन है । आइए जानते हैं, एक ऐसी कहानी जिसमें प्रोस्थेटिक आँख के प्रयोग से जीवन में आत्मविश्वास वापस आया ...

Last Updated on जुलाई 22, 2022 by Neelam Singh

आप सब को भारतीय क्रिकेट का वो सितारा अवश्य याद होगा, जिसने सिर्फ एक आंख से क्रिकेट की दुनिया में अभूतपूर्व प्रदर्शन कर नाम कमाया था। जी हाँ – मंसूर अली खान पटौदी, जिसे लोग नवाब पटौदी (टाइगर) के नाम से जानते हैं। भारत के लिए 46 टेस्ट मैच खेलने वाले टाइगर पटौदी ने 40 मुकाबलों में भारतीय टीम की कमान संभाली थी। नवाब पटौदी की एक आँख नकली थी, हालांकि उनकी आंख जन्म से ठीक थी लेकिन इंग्लैण्ड के होव शहर में एक भयानक सड़क हादसे में उनकी एक आंख ख़राब हो गई थी। यह उदाहरण इसलिए क्योंकि छोटे-छोटे शहरों और गांव में रहने वाले लोग अपनी छोटी-मोटी समस्याओं से लोहा लेने के बजाय हिम्मत हार जाते हैं। 

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 136 किलोमीटर दूर स्थित राजगढ़ के कुरावर तहसील के चैकी गांव के राहुल मीणा के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था। बचपन में चिकन पॉक्स (Chickenpox) से संक्रमित होने पर उसकी एक आंख टेढ़ी होने के साथ-साथ भूरी हो गई थी। यहां तक आंखों की रोशनी भी चली गई, जिस कारण उसे भेदभाव का सामना करना पड़ा। इन तानों से उसका आत्मविश्वास कम होता चला गया और राहुल ने सबसे मिलना-जुलना बंद कर दिया। शादी की उम्र हुई, तो समाज द्वारा वहां भी उपेक्षा सहनी पड़ी।

अंधविश्वास में खोई आंखें

राहुल मीणा की आंखें जन्म से ख़राब नहीं थी। राहुल ने बताया, “मैं करीब चार साल था, जब chickenpox का संक्रमण हुआ। उसी दौरान दायीं आंख में समस्या शुरू हुई और समय रहते उपचार न मिल पाने के कारण धीरे धीरे आंख की रोशनी चली गई।” राहुल इसके लिए अपने परिवार के अंधविश्वासी दृश्टिकोण को जिम्मेदार ठहरता है।

बचपन से राहुल अपने व्यक्तित्व की इस कमी के साथ जीता रहा। बड़े होने के बाद अपनी खुशी और आत्मविश्वास वापस लाने के लिए उसने स्वयं प्रयास करना शुरू किया। एक बार फिर तमाम अस्पतालों व डॉक्टरों से मुलाकात की ताकि उसके चेहरे को सामान्य बनाया जा सके। दो वर्षों तक चली खोज के बाद भोपाल में रह रहे एक रिश्तेदार द्वारा उसे सुदर्शन नेत्रालय में बनने वाली प्रोस्थेटिक आंख के बारे में पता चला। जानकारी मिलने के बाद भोपाल पहुंचकर उसने तमाम जांच, परीक्षण और प्रक्रियाओं को करने के बाद प्रोस्थेटिक आंख लगवाने का फैसला किया। फिर कुछ समय बाद उसने 30,000 रुपयों के खर्च पर प्रोस्थेटिक आँख को अपना लिया।

जानें एक्सपर्ट की राय

सुदर्शन नेत्रालय के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रतीक गुजर कहते हैं, “आंखों का नुकसान हर किसी के लिए झकझोरने वाला होता है। जब कोई व्यक्ति किसी बीमारी या दुर्घटना में अपनी आंख खो देता है, तो उसका जीवन बहुत कठिन हो जाता है। इसका सबसे बड़ा असर उसके आत्मसम्मान और आत्मविश्वास पर भी पड़ता है। हमारा उद्देश्य लोगों को अपना सामान्य जीवन वापस लाने में मदद करना है। चिकित्सा विज्ञान की एक शाखा प्रोस्थेसिस ने इस समस्या के समाधान की दिशा में काफी प्रगति की है, जिसके तहत असली दिखने वाले नकली अंग जैसे आंख, नाक, कान और उंगलियां आदि बनाए जाते हैं लेकिन यह प्लास्टिक सर्जरी से अलग होती है। मेडिकल साइंस और फाइन आर्ट के अनूठे संयोजन वाली इस विधा में सिलिकॉन, एक्रिलिक, पेंट, ब्रश और खूबसूरत रंगों का इस्तेमाल होता है।”

नकली आंख का कांसेप्ट पहले हमारे समाज में बहुत कम स्वीकार्य था लेकिन अब यह पूरी तरह से चलन में आ गया है। पहले ये आंखें अलग दिखाई देती थीं लेकिन समय के साथ तकनीक व मटेरियल में आए बदलाव से इतनी सजीव व सटीक बनती है कि असली और नकली के बीच अंतर कर पाना मुश्किल होता है। पहले प्रयुक्त होने वाले मटेरियल की वजह से इसे पत्थर की आंख कहा जाता था। इसके विपरीत अब प्रोस्थेटिक आंख को पुरानी आंख निकाले बिना लगाया जा सकता है। इसकी लाइफ 10 से 15 साल की होती है। इसके बाद इसे पुनः पेंट करके मामूली खर्चे में पहले जैसा बना दिया जाता है। प्रोस्थेटिक आंख से आप अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों जैसे तैराकी आदि खेलों में भी भाग ले सकते हैं। अब तो चिकित्सा बीमा भी कृत्रिम आंखों की लागत को कवर करने लगा है।

रखें इन बातों का ख्याल

लोग सदियों से कृत्रिम आंखें बनाते और पहनते रहे हैं लेकिन अब जो प्रोस्थेटिक आंख बनने लगी हैं, वे प्राकृतिक आंख की तरह दिखती हैं। वहीं इसकी सर्जरी में भी ज्यादा समय नहीं लगता है। इस प्रक्रिया से गुजरने वाले लोगों को आमतौर पर कम से कम दो रातों तक अस्पताल में रहना पड़ता है और जब वे सामान्य अनुभव करने लगते हैं, तब उन्हें घर जाने की अनुमति दे दी जाती है। इसके बाद ड्रेसिंग का ध्यान रखना आवश्यक होता है।

राहुल इन सब प्रक्रियाओं से गुजर चुका है। अब वह बहुत खुश है और उसका चेहरा भी आत्मविश्वास से दमकने लगा है। उसने गांव में खेती का सारा काम संभाल लिया है। अब उसे कोई नहीं चिढ़ाता और अब वो जीवन के प्रति काफी आशावान है। 

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