बच्चों की सुविधा अनुसार अपग्रेड हो रहे हैं अस्पताल 

बच्चों को टीका लगवाना हो या किसी बीमारी का इलाज कराने अस्पताल लेकर जाना हो, ये हर एक माता-पिता के लिए चुनौती होती है। लेकिन अब अस्पताल प्रबंधकों ने बच्चों के लिए खोज निकाली है एक अनूठी तरकीब। आइए जानते हैं कि क्या है ये तरकीब..

Last Updated on सितम्बर 30, 2022 by Neelam Singh

स्कूल के बाद अगर किसी जगह पर सामान्यतः बच्चे जाना पसंद नहीं करते तो वो जगह अस्पताल है। इसके पीछे की वजह भी बिल्कुल सामान्य है क्योंकि वहां का माहौल बच्चों को बिल्कुल पसंद नहीं आता। कहीं चीख-पुकार मची रहती है, तो कहीं लोगों का रोना लेकिन बच्चों के इलाज एवं समय-समय पर होने वाले टीकाकरण के लिए उन्हें अस्पताल ले जाना भी जरुरी होता है इसलिए बच्चों की सहुलियत के अनुसार अब अस्पताल भी अपग्रेड हो गए हैं। 

हम सब जानते हैं कि बच्चों को टीवी पर कार्टून देखना कितना पसंद होता है। जैसे –  मोटू-पतलू, डोरेमॉन, छोटा-भीम, आदि। तक की 2 वर्ष के छोटे बच्चे भी आसपास का रंगीन माहौल देखकर आकर्षित हो जाते हैं। 

बच्चों को रिझाने का अनोखा अंदाज 

रांची, झारखंड के सदर अस्पताल में बच्चों को रिझाने के लिए रंगीन पर्दे लगाए गए हैं, दीवारों पर कार्टून बनाए गए हैं और बच्चों के लिए एक प्ले एरिया भी बनाया गया है ताकि बच्चों को एक दोस्ताना माहौल दिया जा सके। रांची के सिविल सर्जन डॉ. विनोज कुमार बताते हैं कि, “Aura (आसपास का माहौल) किसी भी मरीज की रिकवरी रेट को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संक्रमण या बीमारी के दौरान बच्चे लगातार अपनों के साथ नहीं रह सकते इसलिए उनके लिए एक ऐसा माहौल विकसित करना एक सकारात्मक पहल है, जिससे बच्चों को तुरंत स्वस्थ्य होने में मदद मिलेगी।” 

इंदौर, भोपाल स्थित महाराजा यशवंत राव अस्पताल में भी प्रसूता विभाग व नवजात शिशु इकाई में बच्चों के पलंग के पास कार्टून की पेंटिंग बनाई गई है। मुजफ्फरपुर स्थित श्री कृष्ण मेडिकल कालेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) में भी शिशु रोग विभाग में ए-बी-सी-डी, मोटू-पतलू, डोरेमॉन, मिकी-माउस कार्टून आदि के चित्र लगाए गए हैं। एसकेएमसीएच प्रशासन ने विशेषज्ञों की सलाह पर सारी व्यवस्था की है ताकि बच्चे इलाज के दौरान डरें नहीं और इलाज की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सके।

सामने आया सकारात्मक परिणाम 

अस्पताल अधीक्षक डॉ. बाबूसाहेब झा का कहना है कि एसकेएमसीएच में अधिकांश बच्चे ग्रामीण इलाके से आते हैं और बीमारी के दौरान बहुत चिड़चिड़े हो जाते हैं। ऐसे में अगर इलाज का माहौल हल्का रहे और बच्चों की सुविधा के अनुसार हो, तब इलाज करना आसान हो जाता है और बच्चे इलाज के प्रति सकारात्मक रिसपांस देते हैं।” 

मुजफ्फरपुर स्थित जीरो माइल की रहने वाली अनीता देवी अपनी 3 वर्षीय नातिन के इलाज के लिए एसकेएमसीएच में आई थीं, जहां उनकी नातिन का इलाज सही तरीके से किया गया और वे काफी संतुष्ट दिखीं।  

अपने 24 माह की बेटी का टीकाकरण करा रही अनुप्रिया ने बताया, पहले बच्ची डॉक्टर का चेहरा देखकर ही रोने लगती थी क्योंकि बच्ची के जन्म के बाद से एक ही अस्तपाल में उसका टीकाकरण करवाया जा रहा है लेकिन अब डॉक्टर के केबिन में आसपास रंगीन चित्र, फूल-पौधे लग गए हैं, जिससे बच्ची का ध्यान इन पर चला जाता है और उसके टीकाकरण में आसानी होती है।

सर्वे एवं रिसर्च द्वारा हुई पुष्टि 

Current Pediatric Research पर प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार अस्पतालों में ऐसे संसाधन अवश्य मौजूद होने चाहिए, जो मरीज को ना केवल अच्छा महसूस करा सके बल्कि एक ऐसा वातावरण भी दे, जहां उसे अपने घर जैसा एहसास हो सके। रोगी की भावनात्मक जरूरतों को पूरा करने के लिए एक छोटी सी पहल उनके स्वास्थ्य की स्थिति में बहुत बड़ा अंतर ला सकती है। इससे सकारात्मक एवं स्वास्थ्य परिणाम सामने आते हैं। 

रिसर्च में शामिल सर्वे के आधार पर जब अस्पताल प्रबंधक एवं अस्पताल में भर्ती हुए लोगों से उनकी प्रतिक्रिया ली गई, तब करीब 90% प्रतिशत लोग इलाज के इस नए तरीके से काफी संतुष्ट दिखे। अस्पताल में बच्चों के लिए दीवारों पर जानवरों के पोस्टर लगाए गए थे, उम्र के अनुसार अलग-अलग प्ले रुम बनाए गए थे, एक आकर्षक वेटिंग रुम और बच्चों के लिए प्लाज़मा टीवी लगाए गए थे। शोध के अनुसार जब कोई वातावरण बच्चों के लिए आकर्षक होता है, तब वे कम चिंतित रहते हैं और इलाज में काफी सहयोग करते हैं।

Kids hospital

विकासशील होती है कार्यप्रणाली 

National Library of Medicine पर प्रकाशित Patient‐friendly hospital environments: exploring the patients’ perspective रिपोर्ट में सर्जरी, मेडिसिन, बाल एवं मातृत्व विभाग में मौजूद मरीजों पर किए गए एक सर्वे में सामने आया कि भले ही ये चारों विभाग एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं लेकिन इनमें मौजूद हर एक मरीज की इच्छा थी कि उन्हें इलाज के दौरान बिल्कुल दोस्ताना माहौल मिले।   

अपने आस पास के माहौल में सकारात्मक परिवर्तन तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ना केवल मरीज बल्कि अस्पताल में कार्य कर रहे नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टरों के लिए भी एक स्वच्छ एवं सकारात्मक माहौल उनके कार्यप्रणाली में विकासशील भूमिका निभाता है, जिससे वे भी अपना बेहतर योगदान देने में सफल हो पाते हैं।

Disclaimer: Medical Science is an ever evolving field. We strive to keep this page updated. In case you notice any discrepancy in the content, please inform us at [email protected]. You can futher read our Correction Policy here. Never disregard professional medical advice or delay seeking medical treatment because of something you have read on or accessed through this website or it's social media channels. Read our Full Disclaimer Here for further information.

Subscribe to our newsletter

Stay updated about fake news trending on social media, health tips, diet tips, Q&A and videos - all about health