ऐसे मरीजों के कारण परेशान हैं डॉक्टर

इंटरनेट और मोबाइल की पहुँच दूरदराज तक हो जाने के कारण इसका जनमानस पर व्यापक असर देखने को मिल रहा है। इस उन्नत तकनीक के लाभ के अतिरिक्त कुछ नुकसान भी हैं। अब व्यक्ति हर प्रकार के सवालों का जवाब इंटरनेट पर ढून्ढ लेता है। पर क्या ये जवाब वास्तव में सही दिशा दिखाते हैं? आइये जानते हैं क्या कहना है स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों का...

Last Updated on मई 24, 2022 by Neelam Singh

जब से मोबाइल और इंटरनेट क्षेत्र में क्रांति आई है, दूरदराज के गांव-देहात तक इसका असर पहुंच गया है। जब भी कोई सवाल मन में उठता है, लोग झट से Google पर ढूंढना शुरू कर देते हैं। नए-नए पकवान, वेकेंसी, न्यूज, फैशन, मूवी, कल्चर, ब्यूटी, हेल्थ समेत चाहे किसी भी तरह की जानकारी चाहिए, लोग इंटरनेट पर सर्च करने को तरजीह देने लगे हैं। इंटरनेट का असर और उस पर भरोसा इतना व्यापक हो गया है कि स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या होने पर लोग तत्काल डॉक्टर के पास जाने के बजाय इंटरनेट देखना जरूरी समझने लगे हैं। लोग न केवल अपने लक्षणों के आधार पर गूगल के जरिए अपनी बीमारी का पता लगाने की कोशिश करते हैं, बल्कि उसमें जरूरी जांच और दवाइयों की जानकारी भी ले लेते हैं। लोगों में इस बढ़ती प्रवृत्ति के कारण अब डॉक्टर अपना माथा पकडऩे पर मजबूर हो रहे हैं।

पहले जहां डॉक्टर अपने पास आए मरीजों से बात करके उन्हें संभावित बीमारी के बारे में बताया करते थे, पुष्टि के लिए आवश्यक जांचें करवाते थे और दवाइयां दिया करते थे, वहीँ आजकल मरीज डॉक्टर के पास पहुंचते ही उन्हें अपने लक्षणों के साथ अपनी बीमारी के बारे में भविष्यवाणी करते हुए यह बताने लगते हैं कि शायद मुझे फलां रोग हो गया है। मैं इंटरनेट पर इस बारे में पढ़कर आया हूं। इतना ही नहीं, पेशेंट डॉक्टर को यह तक सलाह देने लगे हैं कि आप मेरी फला-फलां जांच करवा लीजिए।

गूगल सर्च से प्रभावित मरीजों के उपचार में डॉक्टरों को मुश्किलें आने लगी हैं। डॉक्टरों को मरीज की बीमारी का तो इलाज करना ही होता है, पर अब साथ में गूगल सर्च की वजह से मरीजों के दिमाग में आए फितूर को निकालने की कवायद करने की जिम्मेदारी उन पर और बढ़ गई है। कई मामलों में तो डॉक्टर ऐसे मरीजों को काउंसलिंग की सलाह भी देते हैं।

हनुमानगढ़ के वरिष्ठ कंसलटेंट फिजिशियन डॉ. पारस जैन कहते हैं, ”जरूरी नहीं है कि इंटरनेट पर किसी बीमारी के जो लक्षण किसी लेख में लिखें हों, वह हर व्यक्ति में हों। सतही जानकारियों से लोग भ्रांतियों के शिकार हो रहे हैं।”

डॉ. जैन बताते हैं कि उनके पास एक मरीज आया, जिसे सिरदर्द की शिकायत थी। आने से पहले जब उसने गूगल पर देखा तो उसे सिरदर्द का एक कारण ब्रेन ट्यूमर भी पढऩे को मिला। उसे सामान्य सिरदर्द था पर उसने इसे ब्रेन ट्यूमर मान लिया। इस मरीज ने उनसे आग्रह किया कि वे उसका एक्स-रे, सीटी स्कैन, एमआरआई वगैरह टेस्ट करवा लें। “मैंने उसे मना किया और कहा कि इनकी कोई जरूरत नहीं है लेकिन वह नहीं माना। खुद ही जा कर ढेर सारे टेस्ट करवा लाया। उसने अनावश्यक पैसा खर्च किया। साथ ही जांचों के दौरान बिना वजह रेडियेशन का खतरा उठाया। ऐसे ही एक व्यक्ति ने थोड़ा वजन घटने पर इंटरनेट पर पढ़कर अपने में टीबी, कैंसर, आंतों की बीमारी, हृदय रोग आदि बीमारियों का अंदेशा पाल लिया। मेरे मना करने पर भी उसने ईसीआर टेस्ट, सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड आदि ढेरों टेस्ट करवा लिए। हकीकत में वह एक्जाइंटी का शिकार था।  इंटरनेट से प्रभावित ऐसे मरीज हमारे पास आते रहते हैं, जिन्हें समझाने की कवायद हमें करनी पड़ती है।”

श्रीगंगानगर के होम्योपैथिक फिजिशियन एवं क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. एनपी सिंह कहते हैं कि, “इंटरनेट पर बीमारी के लक्षण पढ़कर आए मरीज से मेरा रोजाना वास्ता पड़ता है। हाल ही में मेरे पास आए एक पेशेंट ने ‘वजन घटने, ठंड लगने और आवाज में फर्क आने के लक्षणों के आधार पर स्वयं को थायराइड से ग्रसित समझ लिया। इस मरीज से जब मैंने पूछा कि तुम्हें कैसे पता तो उसने बताया मैंने इंटरनेट पर इस बारे में पढ़ा है।” डॉ. सिंह ने बताया कि इंटरनेट पर पढ़कर लोगों ने होम्योपैथी की दवाइयों को भी अलग-अलग बीमारी की दवा मानना शुरू कर दिया है जब कि होम्योपैथिक दवाइयां किसी रोग की न हो कर लक्षणों के आधार पर उपयोग में लाई जाती हैं। होम्योपैथी की हर दवा दर्जनों लक्षणों में काम आती है और यह सभी लक्षण अलग-अलग बीमारियों के होते हैं।

अधकचरा ज्ञान पड़ रहा है भारी

इंटरनेट सर्च से प्राप्त अधकचरा ज्ञान लोगों की सेहत पर भारी पड़ रहा है। वह मनमाने तरीके से दवाइयां लेना चाहते हैं और डॉक्टर की बताई दवाओं पर शक करने लगते हैं। श्रीगंगानगर के राजकीय जिला चिकित्सालय के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. प्रेमप्रकाश अग्रवाल बताते हैं, ”इंटरनेट सर्च से प्रभावित मरीज को समझाना बड़ा मुश्किल होता है। कई मरीज तो ऐसे आते हैं जो हमारी लिखी हुई दवा के बारे मेंं गूगल सर्च करते हैं और फिर आकर कहते हैं कि डॉक्टर साहब इस दवाई के तो कई सारे साइड इफेक्ट्स हैं। हम उन्हें समझाते हैं मगर वह दवा नहीं लेते। पैरासिटामोल के भी कई साइड इफेक्ट होते हैं। अगर ऐसे ही सर्च करके देखेंगे तो हम बुखार की दवा भी नहीं दे सकते।” 

डॉ. पारस जैन के अनुसार कई महिलाओं में एक बीमारी पॉलिसिस्टिक ओवरी डिजीज (पीसीओडी) होती है। इसमें महिलाओं को टेंशन, थकान, पीरियड्स डिस्टर्ब होने और गर्भ में कठिनाई जैसी समस्याएं आती हैं। हम इस बीमारी में मेटफॉर्मिन दवा देते हैं लेकिन कई मरीज या उनके परिजन हमें कह देते हैं यह दवा तो डायबिटीज की है, मुझे डायबिटीज थोड़े ही है। डॉ. जैन कहते हैं कि एक दवा कई रोगों में काम आती है। किसी दवा का आविष्कार दर्द निवारण के लिए हुआ हो सकता है, पर बाद में वह दवा कई बीमारियों के इलाज में काम आने लगती है। मरीजों को यह समझाना कठिन हो जाता है। 

डॉक्टर और मरीज के भरोसे पर असर

नागौर के सीनियर डेंटिस्ट डॉ. हापूराम चौधरी कहते हैं कि डॉक्टर और मरीज का संबंध भरोसे पर टिका होता है। इंटरनेट के कारण यह भरोसा प्रभावित हो रहा है। मरीज यूट्यूब पर वीडियो देखकर डॉक्टर के पास आता है और उम्मीद करता है कि जैसा वीडियो मेंं दिखाया गया, वैसे ही ये डॉक्टर भी करेगा लेकिन जब वैसा होते नहीं देखता तो आपत्ति करता है। वह आरोप लगाता है कि आप सही इलाज नहीं कर रहे। डॉ. चौधरी कहते हैं कि हर डॉक्टर का काम करने का अपना तरीका और ढंग होता है। मेरे पास दांतों संबंधी समस्याएं लेकर जो लोग आते हैं, आजकल उनमेंं से ज्यादातर इंटरनेट पर वीडियो देखकर ही आते हैं। गूगल सर्च के जरिए कुछ न कुछ पढ़कर आते हैं। अफसोस है कई मरीज गूगल को सही और व्यावहारिक रूप से अनुभवी डॉक्टर को गलत करार देते हैं।

शहरों के लोगों में ज्यादा है यह समस्या

श्रीगंगानगर के राजकीय जिला चिकित्सालय के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. प्रेमप्रकाश अग्रवाल बताते हैं, ”इंटरनेट सर्च से उपजी समस्या गांवों के बजाय शहरी क्षेत्र के लोगों में ज्यादा देखने को मिल रही है। शहरों के अधिकांश लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे लोग इंटरनेट पर लक्षण सर्च करते हैं। फिर सोचते हैं यह बीमारी उन्हें हैं और खुद ही कई तरह के टेस्ट भी करवा लेते हैं। कई तो अपना उपचार भी खुद ही करने लगते हैं।”

डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि वेबसाइट्स पर बीमारियों के जो लक्षण लिखे जाते हैं, उनमें ऐसे लक्षण भी शामिल होते हैं जो बहुत दुर्लभ होते हैं और लाखों लोगों में से किसी-किसी में हो सकते हैं मगर इंटरनेट पर सर्च करने वाले लोग उन दुर्लभ लक्षणों को भी अपने भीतर मानने लगते हैं और स्वयं को किसी गंभीर बीमारी का शिकार मान लेते हैं। इससे समस्या और बढ़ जाती है।

जागरूकता जरूरी है

श्रीगंगानगर के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. संदीप चौहान कहते हैं कि ”लोग अपने स्वास्थ्य और बीमारियों के बारे में जागरूक रहें, यह बहुत जरूरी है। इंटरनेट जानकारी का अच्छा माध्यम है। इसका फायदा उठाना ही चाहिए लेकिन यह भी उतना ही जरूरी है कि इंटरनेट पर हम जब भी स्वास्थ्य संबंधित कुछ पढ़ें, किसी बीमारी के लक्षणों या उपचार के बारे में पता लगाएं तो माध्यम की प्रमाणिकता भी परखें। यह जरूर देखें कि जो कुछ हम पढ़ रहे हैं, वह किसने लिखा है। लिखने वाला इसके लिए अधिकृत है या नहीं।”

उन्होंने बताया कि ”मेरे पास जितने भी मरीज आते हैं, उनमें से हर दूसरा व्यक्ति इंटरनेट से कुछ न कुछ पढ़कर आया होता है। मैं इसे अच्छा मानता हूं। स्वास्थ्य साक्षरता (Health Literacy) बहुत जरूरी है मगर आधी-अधूरी जानकारियों से नुकसान न हो, इसका ध्यान रखना आवश्यक है। सचेत रहें कि इलाज की चाह में हम गलत जगह जा कर कहीं अपना स्वास्थ्य और ज्यादा न बिगाड़ बैठें।”

Disclaimer: Medical Science is an ever evolving field. We strive to keep this page updated. In case you notice any discrepancy in the content, please inform us at [email protected]. You can futher read our Correction Policy here. Never disregard professional medical advice or delay seeking medical treatment because of something you have read on or accessed through this website or it's social media channels. Read our Full Disclaimer Here for further information.

Subscribe to our newsletter

Stay updated about fake news trending on social media, health tips, diet tips, Q&A and videos - all about health