Shira ने बनाया सर्जरी प्रक्रिया को आसान

Last Updated on फ़रवरी 1, 2024 by Saumya Jyotsna

दुर्घटनाओं के कारण हर साल ना जाने कितने लोग अपने शरीर के अंगों को गंवा देते हैं। मेडिकल की भाषा में इसे amputation कहा जाता है, यानी की विच्छेदन। एक बार अपने शरीर का कोई हिस्सा खोने के बाद शल्य चिकित्सा से गुजरना हर किसी के लिए आसान नहीं होता है। और ना ही आसान होता है विच्छेदन को ठीक करना क्योंकि पुनर्निर्माण शल्य चिकित्सा- reconstructive surgery जिसे माइक्रोवास्कुलर सर्जरी के रूप में जाना जाता है, यह एक अत्यधिक जटिल प्रक्रिया है। 

इस प्रक्रिया में रक्त परिसंचरण को बहाल करने के लिए रक्त वाहिका के दो टूटे हुए शिरों को फिर से जोड़ा जाता है। ऐसे बहुत कम विशेषज्ञ हैं, जो इस क्षेत्र में प्रशिक्षित हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान – IIT मद्रास के स्नातक और शिरा मेडटेक के संस्थापक आनंद पारिख कहते हैं, “कई जूनियर डॉक्टर जो इस सर्जरी को सीखने के लिए अपनी प्रैक्टिस शुरू करते हैं, वे आमतौर पर इसे बीच में ही छोड़ देते हैं क्योंकि इस शल्य क्रिया को सीखना अपने आप में एक बड़ी चुनौती होती है।”

जटिल शिराओं से बना शिरा

Shira 1

हमारे शरीर में रक्त वाहिकाओं की व्यवस्था काफी जटिल है क्योंकि शरीर में कई नसें आदि हैं, जो शरीर के अंदर त्वचा के नीचे होती हैं। ऐसे में शल्य चिकित्सका की मदद से इन शिराओं को दोबारा जोड़ना और विच्छेदन को ठीक करना चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि कई शिराएं पकड़ में नहीं आ पाती हैं और एक जगह स्थिर भी नहीं हो पाती हैं। इन्हीं परेशानियों और चुनौतियों को गंभीरता से समझते हुए आनंद ने शिरा की नींव रखी। उन्होंने शिरा-Shira नाम इसलिए चुना क्योंकि ये उपकरण शिराओं को स्थिर रखने में सहायता करते हैं, जिससे शल्य चिकित्सा थोड़ी सरल हो जाती है। 

करीब चार सालों के शोध के बाद आनंद ने रक्त वाहिका सर्जरी को आसान बनाने के लिए शिरा क्लैंप नामक एक उपकरण का निर्माण किया है। यह उपकरण जूनियर डॉक्टरों को भी इस प्रक्रिया में महारत हासिल करने और शारीरिक चोटों के कारण होने वाले अंग-विच्छेदन को रोकने के लिए शल्य चिकित्सा को करना सरल बनाता है। आनंद के मुताबिक आज तक पूरे भारत में 60 डॉक्टरों और अस्पतालों द्वारा 200 शिरा क्लैंप का उपयोग किया जा रहा है। इसके अलावा थाईलैंड, ब्राजील, अर्जेंटीना, सऊदी अरब और अन्य देशों में भी इस उपकरण का उपयोग किया जा रहा है।

परेशानी को करीब से जाना 

Anand

आनंद के लिए शिरा की नींव रखने का निर्णय लेना आसान नहीं था और ये एक दिन में बिल्कुल भी नहीं हुआ। जब आनंद इंजीनियरिंग डिजाइन की पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें दिल्ली के एक प्रसिद्ध अस्पताल में काम करने का अवसर मिला। आनंद बताते हैं, ”मैं हर दिन अस्पताल में डॉक्टरों द्वारा किए जाने वाले काम और अस्पताल में चल रही हर चीज का निरीक्षण करता था। जहां मैंने देखा कि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में प्रशिक्षित चिकित्सकों की कमी है और यही कारण है कि बाकी चिकित्सकों पर काम का काफी दबाब है।”

वे बताते हैं कि उन्होंने लोगों को अस्पताल के वार्डों के बाहर लंबी कतारों में इंतजार करते हुए देखा, जो अपने प्रियजनों का इलाज कराने का इंतजार कर रहे थे। वहां मौजूद कुछ लोगों से बात करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि कई लोग चिकित्सा उपचार प्राप्त करने के लिए दूरदराज के इलाकों से आए थे। 

आनंद बताते हैं, “मैंने महसूस किया कि ना केवल दूरी एक अहम कारण है बल्कि शल्य चिकित्सका एक काफी महंगी प्रक्रिया है और उसमें भी विच्छेदन तो और भी महंगी प्रक्रिया का हिस्सा है।” यही कारण था कि आनंद ने साल 2014 में IIT मद्रास में मास्टर्स के अंतिम वर्ष की पढ़ाई के दौरान ही स्वास्थ्य देखभाल उपकरणों को डिजाइन करने का एक प्रोजेक्ट शुरू किया। उनका लक्ष्य ऐसी तकनीक बनाना था, जो स्वास्थ्य सेवा को सभी के लिए सुलभ और किफायती बनाए। नतीजतन उन्होंने साल 2016 में शिरा मेडटेक लॉन्च किया।

नौकरी और किराये से फंडिंग

आनंद ने दो सलाहकार (जो सह-आविष्कारक भी थे) डॉ वीबीएन मूर्ति (प्लास्टिक सर्जन) और प्रोफेसर वी बालासुब्रमण्यम (आईआईटी मद्रास में प्रोफेसर) के साथ शोध करना शुरू किया। चार वर्षों के दौरान उन्होंने कई प्रोटोटाइप बनाए और प्रत्येक का परीक्षण प्रयोगशाला स्तर पर पशु ऊतकों पर किया गया। 

प्रारंभिक वर्षों के दौरान आनंद ने पैसे जुटाने के लिए अपने अपार्टमेंट के एक कमरे को किराये पर लगा दिया और स्वयं एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने लगे।

आनंद बताते हैं, “इतनी कड़ी मेहनत के बाद साल 2017 में हमें भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग से फंडिंग प्राप्त हुई। इसके साथ ही मैंने शिरा मेडटेक में अपना पूरा समय देने लग गया।” इसके बाद साल 2018 में उन्होंने आधिकारिक तौर पर शिरा क्लैंप लॉन्च किया, जिसका आकार 10 रुपये के सिक्के के बराबर था। इसका इस्तेमाल माइक्रोवैस्कुलर सर्जरी के दौरान शिराओं को अलग रखने के लिए किया गया। 

उन्होंने आगे कहा, “यह उपकरण काफी हल्का है। इसमें दो क्लैंप होते हैं, जो क्षतिग्रस्त रक्त वाहिका के दोनों खुले शिरों को पकड़कर स्थिर रखते हैं। इस क्लैंप को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि यह धमनियों को सर्जन के सामने एक कोण पर रखता है। इससे डॉक्टरों के लिए सर्जरी करना आसान हो जाती है। शिरा को बनाने में प्लेटीनम, स्टैनलेस स्टील का इस्तेमाल किया जाता है। ”

डॉक्टर करते हैं पुष्टि

शिरा की वैधानिकता और उपयोगिता के बारे में डॉ. अधिश्वर शर्मा (प्लास्टिक सर्जन) ने कहा, “शिरा स्वास्थ्य सेवा उद्योग में एक गेम-चेंजर है। मैं हर महीने कम से कम 9-10 बार डिवाइस का उपयोग करता हूँ। बाजार में मिलने वाले अन्य क्लैंप केवल एक साल ही चलते हैं, जबकि शिरा को एक साल से भी ज्यादा इस्तेमाल किया जा सकता है।” 

शिरा के आविष्कार के लिए आनंद को कई पुरस्कार एवं अनुदान मिल चुके हैं। जैसे- Gandhi Young Technical Innovation Award, प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड द्वारा अनुदान, इत्यादि। आनंद चाहते हैं कि वे आने वाले समय में सर्जरी की गंभीरता एवं चुनौती को और करीब से जाने एवं अन्य आविष्कारों पर भी काम करें।  

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