पोर्क टेपवर्म से बचाव हेतु IIT मंडी ने विकसित किया टीका

IIT मंडी के शोधकर्ताओं ने पोर्क टेपवर्म के विरुद्ध एक प्रोटीन-आधारित वैक्सीन बनाने का प्रस्ताव दिया है, जिसकी उन्होंने अनुसंधान के जरिये पुष्टि भी की है। पढ़िए इस विषय के बारे में चेंजमेकर्स की इस कड़ी में ...

Last Updated on अक्टूबर 11, 2023 by Neelam Singh

कोरोना महामारी के दौरान विभिन्न बीमारियों पर और अधिक शोध करने की आवश्यकता महसूस की गई। क्योंकि किसी बीमारी को दूर करने के लिए टीकों का विकास करना ना केवल बीमारी को जनमानस में फैलने से रोक सकता है बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी सुरक्षा प्रदान करता है। Taenia solium संक्रमण वयस्क टेपवर्म से होने वाला एक आंतों का संक्रमण है, जो दूषित सूअर के मांस से होता है। वयस्क कृमि हल्के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण या मल में गतिशील खंड के निकलने का कारण बन सकते हैं। सिस्टीसरकोसिस टी. सोलियम के लार्वा से होने वाला संक्रमण है, जो मानव मल में उत्सर्जित अंडों के अंतर्ग्रहण के बाद विकसित होता है। 

IIT मंडी के शोधकर्ताओं द्वारा सुअर के मांस से सम्बंधित टैपवार्म (Taenia solium) के विरुद्ध टीकों के विकास में महत्वपूर्ण प्रगति की गई है। यह शोध स्कूल ऑफ बायोसाइंसेस और बायोइंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अमित प्रसाद के नेतृत्व में किया गया है। यह टेपवर्म आंत्रिक संक्रमणों के अलावा गंभीर मस्तिष्क संक्रमण के लिए भी जिम्मेदार है, जिससे मिर्गी भी हो सकती है। 

IIT Mandi team

इस शोध को पंजाब के दयानंद मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों एवं हिमाचल प्रदेश के सीएसआईआर-हिमालयान बायोरिसोर्स प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों के सहयोग से किया गया है। यह शोध चुनौतीपूर्ण संक्रामक बीमारियों के लिए टीकों का उत्पादन करने के लिए एक नवीन एवं अधिक प्रभावी दृष्टिकोण प्रदान करता है।

पोर्क टैपवार्म बीमारियों का प्रमुख कारण

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पोर्क टैपवार्म खाद्य जनित बीमारियों से होने वाली मौतों का एक प्रमुख कारण है, जिससे दिव्यांगता के साथ ही जीवन का भी नुकसान होता है। विकासशील देशों में 30% मिर्गी के मामलों में इसका योगदान है, जो गंदगी और स्वतंत्र रूप घूमते फिरते सूअरों वाले क्षेत्रों में 45%-50% तक बढ़ सकता है। उत्तर भारत में मस्तिष्क संक्रमण का प्रसार चिंताजनक रूप से 48.3% के उच्च स्तर पर है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के “2030 रोडमैप ऑफ़ नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज” का उद्देश्य टी. सोलियम और इसी तरह के संक्रमणों का मुकाबला करना है, जिनसे वैश्विक स्तर पर 1.5 बिलियन लोगों प्रभावित होते हैं।

हालांकि एल्बेंडाजोल और प्राजिक्वेंटेल जैसी कृमिनाशक दवाओं का बड़े पैमाने पर सेवन कराया जा रहा है लेकिन इसमें सार्वजनिक भागीदारी की कमी है। साथ ही दवा प्रतिरोध के बढ़ते जोखिमों के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे इस पद्धति से वांछित परिणाम प्राप्त नहीं हुए हैं। 

व्यावहारिक दृष्टिकोण है जरूरी 

परंपरागत रूप से टेपवर्म से सम्बंधित टीके टेपवर्म के अंडों या लार्वा से प्राप्त उत्पादों या एंटीजन का उपयोग करके विकसित किए गए हैं। हालांकि यह तरीके हमेशा विश्वसनीय नहीं होते हैं और इनमें काफी समय भी लग सकता है।

शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करने के लिए पूरे टेपवर्म या टेपवर्म के कुछ हिस्सों को इंजेक्ट करना एक सुरक्षित या व्यावहारिक दृष्टिकोण नहीं है। जबकि एक बेहतर और सुरक्षित तरीका यह है कि टेपवर्म से केवल विशिष्ट प्रोटीन या अंशों को मानव शरीर में इंजेक्ट किया जाए। यह प्रक्रिया दुष्प्रभावों को कम करती है और टेपवर्म को टीके के प्रति प्रतिरोध विकसित करने से रोकती है।

मजबूत टीकाकरण क्षमता वाले सही प्रोटीन टुकड़े की पहचान करना एक जटिल प्रक्रिया है। इसमें काफी अधिक मेहनत और समय की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि टेपवर्म वैक्सीन के विकास की प्रगति में तेजी लाने के लिए एक अधिक नवीन और कुशल दृष्टिकोण आधारित प्रक्रिया की आवश्यकता है, इसलिए आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी विधि विकसित की है, जिसमें प्रोटीन अध्ययन और जैव-सूचना विज्ञान के संयोजन का उपयोग किया गया है।

प्रतिरक्षा प्रणाली हो प्रभावी

इस शोध के बारे में विस्तार से बताते हुए IIT मंडी के स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अमित प्रसाद ने कहा, “इस शोध में सबसे पहले हमने टेपवर्म के सिस्ट तरल पदार्थ के विशिष्ट एंटीजन की पहचान की है, जो रोगियों के रक्त सीरम के साथ परीक्षण करके प्रतिरक्षा प्रणाली को ट्रिगर करते हैं। इसके बाद हमने सुरक्षित और प्रभावी प्रोटीन टुकड़े खोजने के लिए प्रतिरक्षा-सूचना विज्ञान उपकरणों का उपयोग करके इन एंटीजन का विश्लेषण किया है। हमने आकार, स्थिरता और प्रतिरक्षा प्रणाली के साथ अनुकूल कारकों को ध्यान में रखते हुए एक मल्टी-पार्ट वैक्सीन बनाने के लिए इन टुकड़ों को संयोजित किया है।”

इस अनुसंधान में शोधकर्ताओं ने पाया है कि टीका प्रतिरक्षा रिसेप्टर्स के साथ प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करता है, जिससे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावी रूप से प्रोत्साहित करने की उम्मीद की जानी चाहिए। यह शोध भविष्य में इसी तरह के परजीवियों के कारण होने वाली बीमारियों के खिलाफ टीके विकसित करने के लिए एक आधार प्रदान करता है। इस आशाजनक वैक्सीन की सुरक्षा और इसके प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए अभी पशु और नैदानिक ​​अध्ययन की आवश्यकता है।

बन सकता है मॉडल 

जैव सूचना विज्ञान के साथ प्रोटीन अध्ययन का संयोजन एक प्रभावी कदम है। यह समयबद्ध तरीके से संभावित प्रोटीन-आधारित टीकों की पहचान करने के लिए एक शानदार दृष्टिकोण है। यह केंद्रित प्रयास स्वास्थ्य कर्मियों को न्यूरोसिस्टीसर्कोसिस से निपटने के लिए एक नया उपकरण प्रदान कर सकता है और अन्य रोगों के समाधान के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर सकता है।

इस शोध कार्य के विवरण को USA के जर्नल ऑफ सेल्युलर बायोकैमिस्ट्री में प्रकाशित किया गया है। इसके सह-लेखक डॉ. रिमनप्रीत कौर, प्रोफेसर गगनदीप सिंह, डॉ. नैना अरोड़ा, डॉ. राजीव कुमार, श्री सूरज एस. रावत और डॉ. अमित प्रसाद हैं। इस पेपर को इस लिंक पर जाकर पढ़ा जा सकता है।

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