IIT Madras ने विकसित की आर्सेनिक जल को स्वच्छ करने की तकनीक

स्वच्छ पेयजल से अनेकों स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां दूर हो सकती हैं, लेकिन भारत के कई ग्रामीण हिस्से स्वच्छ और शुद्ध पेयजल का सेवन नहीं कर पाते। इसी परेशानी का हल निकालने के लिए चेंजमेकर्स में पढ़िए एक नया आलेख…

Last Updated on नवम्बर 14, 2023 by Neelam Singh

पानी सबसे आवश्यक संसाधनों में से एक है, जिसकी मनुष्य को जीवित रहने के लिए आवश्यकता होती है। आज भारत के हर कोने तक सुरक्षित पेयजल की विश्वसनीय आपूर्ति की आवश्यकता है, जिससे शरीर को स्वस्थ रखा जा सके। हालांकि आजकल स्वच्छ पेयजल मिलना किसी चुनौती से कम नहीं है। शहरों में लोग टीडीएस को नियंत्रित कर सकते हैं या पानी को शुद्ध करने वाले महंगे उपकरण लगा सकते हैं लेकिन हर सुविधाओं तक हर व्यक्ति की पहुंच सुनिश्चित हो, ऐसा संभव नहीं है। ग्रामीण हिस्सों में स्वच्छ पेयजल की कमी एक गंभीर मुद्दा है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) स्वस्थ और हाइड्रेटेड रहने के लिए प्रतिदिन कम से कम दो लीटर पानी पीने की सलाह देता है क्योंकि पानी शरीर को हाइड्रेटेड रखता है। यह विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है और पाचन में सहायता करता है। अगर पेयजल स्वच्छ ना हो, तो उससे सिरदर्द और एकाग्रता में कमी हो सकती है। इन सब बातों पर गौर करें, तो ग्रामीण हिस्सा स्वच्छ पेयजल से कोसों दूर नजर आता है और इसी समस्या का समाधान निकालने के लिए IIT Madras के अनुसंधान समूह द्वारा प्रोफेसर थलप्पिल प्रदीप के नेतृत्व में किफायती और टिकाऊ नैनोमटेरियल की खोज की गई है, जो भूजल से आर्सेनिक (मुख्य रूप से), मैंगनीज, यूरेनियम और आयरन जैसी अशुद्धियों को दूर कर सकता है और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पानी की पहुंच को सुनिश्चित कर सकता है।

Prof Pradeep

बिजली की जरूरत नहीं

IIT Madras की टीम ने सरल डिजाइनों की मदद से रेट्रोफिटेड तकनीक के जरिये लाखों प्रभावित घरों तक पहुंचने के लिए कम लागत पर भूजल को शुद्ध करने का साधन प्रदान किया है। दूरदराज के इलाकों में यह तकनीक ज्यादा फायदेमंद है क्योंकि इसमें बिजली की जरूरत नहीं होती है। हालांकि जहां आबादी ज्यादा है और जल आपूर्ति प्रणाली की ज्यादा जरूरत है, वहां पंपिंग, वितरण, निगरानी और नियंत्रण के लिए बिजली की आवश्यकता होती है।

प्रोफेसर प्रदीप बताते हैं कि पीने के पानी में आर्सेनिक की मात्रा होने से हृदय रोग और मधुमेह होता है। यहां तक कि कैंसर होने की संभावना भी होती है लेकिन आर्सेनिक को लेकर मौजूदा शोधक तकनीक में कुछ समस्याएं हैं, जैसे- 

1. आर्सेनिक दो आयनिक रूपों में मौजूद होता है- आर्सेनिक (3+) और आर्सेनिक (5+)। इन सामग्रियों को हटाने की प्रक्रिया भी उतनी प्रभावी नहीं है। कुछ तरीके हैं, जो As+5 को अधिक तथा As+3 को कम हटाते हैं लेकिन तब भी पानी में आर्सेनिक की मात्रा होती है। 

2. वहीं जिन समुदायों को प्रतिदिन ज्यादा मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, उनके लिए आर्सेनिक हटाने की गति पर्याप्त तेज़ नहीं हो सकती है। 

3. किसी पदार्थ द्वारा हटाया गया आर्सेनिक उस पर दोबारा नहीं रहना चाहिए क्योंकि इससे पानी पुनः दूषित हो सकता है। 

उन्होंने आगे कहा, “हमने सामग्रियों के साथ इन समस्याओं का समाधान किया। यानी हमारी तकनीक As+3 और As+5 दोनों को प्रभावी ढंग से हटा देती है। दो लीटर या एक मिलियन लीटर प्रति दिन से किसी भी प्रकार की प्रवाह दर पर निष्कासन की गति तेज होती है। यदि लोगों के लिए यह सुलभ तौर पर उपलब्ध हो, तो प्रौद्योगिकी को अपनाया जाता है। ये सामग्रियां टिकाऊ भी हैं क्योंकि वे अपने उत्पादन के लिए अतिरिक्त ऊर्जा का उपयोग नहीं करते हैं। साथ ही यह तकनीक पानी को दोबारा प्रदूषित नहीं करती है।”

कई अन्य अशुद्धियों को भी दूर करती है ये तकनीक

IIT Madras ने यह पाया है कि आर्सेनिक के अलावा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के भूजल में मैंगनीज, यूरेनियम, क्रोमियम, पारा और फ्लोराइड मौजूद हैं। नैनोमटेरियल सामग्रियां इन अशुद्धियों को हटा या अवशोषित कर सकती हैं। प्रोफेसर प्रदीप कहते हैं, “हमारी तकनीक उन पानी के नमूनों से संबंधित दूषित पदार्थों को प्रभावी ढंग से संबोधित कर सकती है और प्रति दिन अधिकतम दो मिलियन लीटर पानी शुद्ध कर सकती है।”

हालांकि प्रोफेसर प्रदीप का कहना है कि इस तकनीक की खोज हाल में नहीं हुई है बल्कि साल 2013 में ही उनकी टीम ने आर्सेनिक और अन्य रासायनिक या माइक्रोबियल अशुद्धियों को दूर करने के लिए एक किफायती नैनो-प्रौद्योगिकी-आधारित जल शोधक विकसित किया था और तब से लेकर अब तक उसमें बहुत प्रगति हुई है। देखा जाए, तो आमतौर पर पानी के लिए किसी भी नई तकनीक को प्रयोगशाला से खेत तक पहुंचने में लगभग आठ साल लगते हैं। आज इस क्षेत्र में हमारी प्रौद्योगिकियां पिछले कई सालों में बनाई गई प्रौद्योगिकियों की तुलना में काफी बेहतर है। 

2.5 पैसे प्रति लीटर है लागत

प्रोफेसर प्रदीप बताते हैं, “IIT Madras में कई स्टार्टअप और स्थापित कंपनियां हैं, जो भूजल प्रभावित क्षेत्रों में प्रौद्योगिकियों को लागू करने की जिम्मेदारी लेती हैं। एक संस्था के रूप में हम शुरूआत करने की प्रक्रिया में सहायता के लिए भी तैयार हैं और हम सलाहकार की भूमिका भी निभाते हैं। ये कंपनियां सरकारों के साथ सीधे तौर पर बातचीत करने के लिए भी स्वतंत्र हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “पंजाब में जहां साल 2020-21 में 97 ग्रामीण स्थानों पर 35 केएलडी से 1,000 केएलडी (प्रति दिन किलोलीटर) की क्षमता वाले सामुदायिक जल शोधक स्थापित किए गए हैं। यहां पहले और भी इकाइयां स्थापित थीं। इस जल शोधक को अमृत (भारतीय प्रौद्योगिकी द्वारा आयन और धातु निष्कासन या हिंदी में ‘अमृत’) कहा जाता है। वहीं IIT Madras के शोधकर्ताओं ने विशेष रूप से पंजाब के जल आपूर्ति और स्वच्छता विभाग के साथ इन प्रोटोटाइप को डिजाइन करने में मदद की है। देखा जाए, तो इस तकनीक के जरिये 2.5 पैसे/लीटर रुपयों की लागत आती है, जो आर्थिक तौर पर वहन करने लायक है।

इन पुरस्कारों से हो चुके हैं सम्मानित

Award

साल 2021 में प्रोफेसर थलप्पिल प्रदीप को तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है। साल 2022 में उन्हें भूजल से आर्सेनिक और अन्य धातुओं को हटाने के लिए कम लागत वाली प्रणाली के विकास के लिए विकासशील देशों के इनोवेटर्स के लिए VinFuture Special Prize for Innovators from Developing Countries पुरस्कार प्राप्त हुआ है। साथ ही उन्होंने प्रतिष्ठितएनी अवार्ड भी जीता है, जिसे ऊर्जा और पर्यावरण में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए शीर्ष वैश्विक सम्मानों में से एक माना जाता है।

अंत में प्रोफेसर प्रदीप बताते हैं, “मुझे जो मान्यता मिली है, उसमें से अधिकांश मौलिक विज्ञान के लिए है। मौलिक विज्ञान का पालन करते वक्त व्यावहारिक विज्ञान करना भी संभव है। छात्रों के लिए मेरा संदेश यह है कि आप दोनों ही क्षेत्रों में समानांतर रूप से काम कर सकते हैं क्योंकि इस तरह की समस्याओं को हल करना अनिवार्य है।” 

Disclaimer: Medical Science is an ever evolving field. We strive to keep this page updated. In case you notice any discrepancy in the content, please inform us at [email protected]. You can futher read our Correction Policy here. Never disregard professional medical advice or delay seeking medical treatment because of something you have read on or accessed through this website or it's social media channels. Read our Full Disclaimer Here for further information.

Subscribe to our newsletter

Stay updated about fake news trending on social media, health tips, diet tips, Q&A and videos - all about health