युवाओं और बच्चों में बढ़ रहा नशा और मुंह के कैंसर का खतरा

बदलते सामाजिक परिवेश में जहाँ बच्चों द्वारा मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है वहीँ उनमें नशा व् धूम्रपान आदि गलत आदतों के प्रति आकर्षण भी बढ़ता जा रहा है जिसका प्रभाव अंततः उनके स्वास्थ्य पर दिखाई देता है। आइये जानते हैं इन दुष्परिणामों के बारे में ...

Last Updated on जुलाई 14, 2022 by Neelam Singh

मुजफ्फरपुर बिहार के रहने वाले मो. अनीस जब 20-21 साल के थे तब से नशा कर रहे हैं। आज वे उम्र के 25वें पड़ाव पर पहुंच गए हैं लेकिन नशा नहीं छूट रहा। वे स्मैक, चरस और गांजा लेते हैं, जिसमें एक पुड़िया स्मैक की कीमत 120 रुपये होती है। घर पर नशा करने के लिए जब पैसे नहीं मिलते हैं, तब वे अपनी मां और बहन को मारते-पीटते हैं और घर से पैसे छीनकर नशा करते हैं। इतना कहते-कहते अनीस की आंखों से आंसू आ गए। जब उनसे पूछा गया कि नशा करने की चीजें न मिलने पर उन्हें कैसा महसूस होता है, इस पर फिर से डबडबाई आंखों से अनीस ने बताया कि चलने में दिक्कत होती है, बिछावन से उठा नहीं जाता है और शरीर में अजीब-सा महसूस होता है। अनीस से जब पूछा गया कि उन्हें नशे की लत कैसे लगी? तब उन्होंने बताया कि ऐसे ही जान-पहचान के कुछ दोस्त पिया करते थे और स्मैक आसानी से मिल भी जाता है, जिस कारण एक-दो बार के बाद ही आदत लग गई और अब आदत छुट ही नहीं रही है। बिहार में गांजे की एक पुड़िया 30-50 रुपयों में मिलती है, तो वहीं चरस की एक पुड़िया करीब 500 रुपयों की मिलती है।

नशे की बढ़ती लत

ऐसे एक नहीं बल्कि अनेक अनकहे किस्से हैं, जहां मासूमों का जीवन नशे की लत के कारण अंधकारमय होता जा रहा है। कुछ ऐसी ही हालत करीब 14-15 साल के बच्चों की भी है, जो सड़कों के चौराहों पर भीख मांगते नजर आते हैं लेकिन उन्हें भीख एक वक्त का खाना खाने के लिए नहीं बल्कि नशा करने के लिए चाहिए होती है। वे राहगीरों से खाना खाने के नाम पर पैसे मांगते हैं और कुछ दूर जाकर सिगरेट खरीदकर पीने लगते हैं।


स्विच ओवर ऑफ ड्रग्स

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार साल 2016 में बिहार में 496.3 किलो गांजा जब्त हुआ था। साल 2017 के फरवरी माह तक ये आंकड़ा 6884.47 किलो तक जा पहुंचा था। भले ही बिहार में साल 2016 से ही शराबबंदी है लेकिन शराबबंदी के बाद नशा करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। युवा ‘स्विच ओवर ऑफ ड्रग्स’ की समस्या से जूझ रहे हैं यानी शराब नहीं मिलने पर दूसरे तरह के नशे के आदि हो जाना।


होश उड़ा देंगे आंकड़े

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 के मुताबिक कानूनी तौर पर ड्राई स्टेट बिहार में महाराष्ट्र की तुलना में शराब का सेवन ज्यादा हो रहा है। शहरी क्षेत्रों में पुरुषों के बीच 15 साल से ऊपर के आयु वर्ग के 14 प्रतिशत लोग शराब का सेवन कर रहे हैं। वहीं ग्रामीण इलाकों में ये आंकड़ा 15.8 प्रतिशत है। वहीं महिलाओं के मामले में शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा 0.5 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 0.4 प्रतिशत है लेकिन शर्म और लोकलाज के कारण महिलाएं नशा मुक्ति केंद्र तक पहुंच ही नहीं पाती।

युवाओं का आंकड़ा भयावह

मुजफ्फरपुर में सम्पर्ण नशा मुक्ति केंद्र बीते 12 सालों से नशा मुक्ति को लेकर कार्य कर रही है। वहां के स्थानीय संचालक ने बताया कि उनकी मुख्य शाखा मध्य प्रदेश झांसी में स्थित है लेकिन मुजफ्फरपुर में भी उनकी शाखा काम करती है, जो हर महीने में करीब 10 से ज्यादा लोगों को संपर्क करने पर गाड़ी के जरिए अपने केंद्र में लेकर आती है। हर महीने लाए गए लोगों की संख्या में करीब 20-30 साल की उम्र के युवा होते हैं।

वहीं मुजफ्फरपुर स्थित सदर अस्पताल में दोबारा नशा मुक्ति केंद्र को शुरू किया गया है। हालांकि इसकी शुरुआत अप्रैल 2016 में ही हुई थी लेकिन ये केंद्र 10 जुलाई 2020 तक चला और उसके बाद बंद हो गया। अभी इसे दोबारा शुरू किया गया है, जहां लोगों का निशुल्क इलाज किया जाएगा।

कूल’ बनने की होड़

डॉ. अभिषेक आनंद

पारस एंड नारायण कैंसर सेंटर के कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ. अभिषेक आनंद का कहना है कि युवाओं और बच्चों में ड्रग्स की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिस कारण उनमें मुंह का कैंसर अर्थात मुंह के कैंसर का खतरा बढ़ता जा रहा है। आमतौर पर अगर एक महीने में लगभग 100 कैंसर के मरीज आते हैं, तब उनमें से युवाओं की संख्या 30 होती है, जो मुंह के कैंसर से ग्रसित होते हैं। अमूमन अगर कैंसर अपने पहले स्टेज में होता है, तब इलाज करना आसान होता है लेकिन कैंसर के ओल्ड स्टेज होने पर ठीक होने की संभावना बेहद कम होती है। आजकल काफी नयी तकनीक आ गई है। जैसे – टार्गेटेड थेरेपी, हार्मोनल थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी द्वारा कैंसर के इलाज को अब कष्ट रहित रुप दिया जा सकता है।

बच्चों में ड्रग्स लेने की प्रवृत्ति का एक कारण बच्चों के बीच कूल बनने का क्रेज होता है। आजकल इंटरनेट, यू tube, वेब सीरीज व फिल्मों में मुख्य किरदारों को नशा करते हुए दिखाया जाता है जिससे प्रभावित होकर बच्चे और युवा नशे की ओर बढ़ते हैं क्योंकि उन्हें भी लगने लगता है कि ऐसा करने से बाकी दोस्तों के बीच कूल छवि बनेगी लेकिन एक-दो बार लिया गया ड्रग्स उम्र भर के लिए जकड़ लेता है।


कैसे पहचाने मुंह
के कैंसर को

कैंसर के शुरुआती लक्षणों में मुंह में छाले बनने लगते हैं, जिन पर अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तब समस्या गंभीर होने लगती है। मुंह से बदबू आना, आवाज सही से नहीं निकल पाना, कुछ भी खाने और निगलने में तकलीफ होना, मुंह में घाव होना, सूजन होना, लार के साथ खून निकलना, जलन होना, मुंह का सुन्न हो जाना, मुंह में दर्द होना आदि मुंह का कैंसर होने की ओर इशारा करते हैं। साथ ही मुंह में गांठ महसूस होना और मुंह के अंदर की रंगत में बदलाव आना, ये सब कैंसर के शुरुआती लक्षणों में आते हैं।

कैसे करें बचाव

मुंह का कैंसर होने की सबसे बड़ी वजह ड्रग्स, शराब और तंबाकू आदि लेना है इसलिए नशे की लत से दूरी बनाए रखें। मुंह की अच्छे तरीके से सफाई करें। ताजे फल, सब्जियां ज्यादा से ज्यादा खाएं और प्रोसेस्ड फूड और डिब्बाबंद भोजन से परहेज करें। मुंह के अंदर कोई भी बदलाव महसूस होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। नशे की आदत छुड़ाने के लिए नशा मुक्ति केंद्रों से संपर्क बनाएं।

बिहार के मुजफ्फरपुर में टाटा मेमोरियल इकाई की पहल के बाद मुजफ्फरपुर के सरकारी अस्पताल एसकेएमसीएच में होमी भाभा कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (HBCHRC) की शुरुआत हुई है, जहां कैंसर के मरीज कम पैसों में कैंसर का इलाज करा सकते हैं। यहां रजिस्ट्रेशन का चार्ज 100 रुपये है और कैंसर के दूसरे स्टेज में आने पर 80,000 रुपये खर्च आते हैं। हालांकि यहां कीमोथेरेपी की सुविधा नहीं है, जिसके लिए मरीज को पटना रेफर कर दिया जाता है लेकिन कीमोथेरेपी का खर्च भी जोड़ दें, तो इलाज में 2.5 लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है। वहीं पटना में पारस कैंसर सेंटर, इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (IGIMS) में कैंसर का इलाज किया जाता है। साथ ही पटना स्थित महावीर कैंसर संस्थान में 18 वर्ष की कम आयु के बच्चों का इलाज मुफ्त किया जाता है। वयस्कों को 10 हज़ार रुपयों की आर्थिक सहायता भी दी जाती है। साथ ही जिन्हें बिहार राज्य का निवासी प्रमाण-पत्र प्राप्त है तथा उनकी वार्षिक आय 2,50,000 तक हो तो ‘मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष’ से 80 हजार से एक लाख रुपये तक मदद की जाती है। 

कैंसर कोई भी हो, वह होता खतरनाक ही है क्योंकि लोग कैंसर शब्द सुनकर ही डर जाते हैं। इसके लिए जरूरी है कि पहले ही उपचार और सावधानी बरती जा सके। युवाओं और बच्चों का नशे की प्रति आकर्षित होना बिल्कुल भी सही नहीं है। जब नशीली चीजों जैसे – गुटखा, सिगरेट आदि पर लिखा होता है कि खतरनाक है, तब उसका सेवन ही क्यों करना?  

बच्चों और युवाओं को नशे और ओरल कैंसर से बचाने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं। जैसे पाठ्यक्रम में नशा को लेकर जागरुकता फैलाना, मानसिक दबाव से लड़ने की हिम्मत देना, अपनी बातों को माता-पिता या अपनों से कहने के लिए अनुकूल माहौल विकसित करना, ओरल कैंसर के बारे में जानकारी देना, आसपास के नशा मुक्ति केंद्रों की जानकारी देना, सही संगति का महत्व बताना, आदि।

ऐसा नहीं है कि किसी बीमारी या किसी समस्या को हल नहीं किया जा सकता, बस जरुरत अपनी इच्छा शक्ति को बनाए रखने की होती है।

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