मेंस्ट्रुअल कप को लेकर जागरूकता फैला रही हैं दिप्ती

बाहर जा रही हो? सैनिटरी पैड रख लेना। पैड रखा या नहीं.. ? ये कुछ ऐसे वाक्य हैं, जो एक लड़की के जीवन का अभिन्न हिस्सा होते हैं और सैनिटरी पैड्स भी एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है लेकिन इसके विकल्प के बारे में पढ़िए चेंजमेकर्स की इस कड़ी में..

Last Updated on नवम्बर 29, 2023 by Neelam Singh

मासिक धर्म को लेकर जब से बातचीत का माहौल विकसित करने का प्रयास हुआ है, तब से सैनिटरी पैड चर्चा में आ गए हैं। यह एक कदम है जो लड़कियों को मासिक धर्म के प्रति जागरूक करने का प्रयास कर रहा है और उन्हें सैनिटरी पैड का उपयोग करने के लिए प्रेरित कर रहा है। यहां तक कि सैनिटरी पैड के उपयोग के लिए कई कैंपेन भी चलाए गए, जिससे अब लोगों के अंदर जागरूकता फैली है। हालांकि अभी भी सैनिटरी पैड और मासिक धर्म को एक संवेदनशील मुद्दा और लड़कियों वाली चीज़ मानकर लोग बात करने से कतराते हैं। 

सैनिटरी पैड का उपयोग बढ़ने के बाद कई ऐसे उत्पाद भी बाज़ार में शामिल हुए, जो महिलाओं के मासिक धर्म के दिनों की मुश्किलों को कम करने का दावा करते हैं, लेकिन चूंकि सैनिटरी पैड सालों से चला आ रहा है इसलिए लोग इसे विश्वसनीय मानते हैं लेकिन सैनिटरी पैड पर कुछ सवाल भी खड़े किए जा रहे हैं।   

सैनिटरी पैड का दूसरा पहलू 

एक शोध के अनुसार अधिकांश महिलाएं अपने जीवनकाल में औसतन 1800 दिनों तक मासिक धर्म के दौरान सैनिटरी पैड का उपयोग करती हैं। हाल के वर्षों में सैनिटरी पैड की कार्यक्षमता और कोमलता में सुधार के लिए सिंथेटिक प्लास्टिक सामग्री का उपयोग एक तरल अवशोषक के रूप में किया जाने लगा है। हालांकि इनमें से कुछ प्लास्टिक सामग्री वाष्पशील कार्बनिक यौगिक-  volatile organic compounds (VOCs) और एंडोक्राइन ग्रंथी को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों को छोड़ते हैं, जो संभावित रूप से महिलाओं के लिए जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं। 

Xylene एक सुगंधित हाइड्रोकार्बन है, जिसका चिकित्सीय क्षेत्र में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। हालांकि Xylene के महक के कारण कई लोगों को न्यूरोसाइकोलॉजिकल और न्यूरोफिज़ियोलॉजिकल परेशानियां हो सकती हैं। जैसे – सिरदर्द, चक्कर आना, मितली और उल्टी होने की संभावना अधिक होती है। इसके अलावा Xylene के साथ बार-बार या लंबे समय तक त्वचा के संपर्क में रहने से जलन, सूजन, सूखापन और त्वचा के फटने की संभावना भी होती है। 

Wrapped in Secrecy: Toxic Chemicals in Menstrual Productsनामक अध्ययन बताता है कि कुछ ऑर्गेनिक पैड्स में भी Phthalate का स्तर काफी अधिक पाया गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार Phthalate को विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ा गया है, जिनमें endocrine disruption, हृदय और प्रजनन प्रणाली पर प्रभाव, मधुमेह, कैंसर और जन्मजात विकलांगताएं शामिल हैं। 

सैनिटरी पैड के कारण हुई परेशानी

Dipti

महाराष्ट्र की रहने वाली दिप्ती कशालकर मासिक धर्म के दौरान मेंस्ट्रुअल कप को लेकर जागरूकता फैला रही हैं और Period Cup Cause नाम से एक कैंपेन चला रही हैं। दिप्ती बताती हैं कि उनके पति सौरभ कशालकर ने साल 2007 में बच्चों को शिक्षा से जुड़ी चीजें मुहैया कराने के लिए एक कदम बढ़ाया था लेकिन जब वे गांवों-कस्बों में जाने लगे, तब उन्हें महसूस हुआ कि अहम परेशानी मासिक धर्म है, जो लड़कियों को शिक्षा से, समाज से और मुख्य धारा से अलग कर रही है। इसके बाद उन्होंने मासिक धर्म के दौरान लड़कियों को जागरूक करने की कोशिश शुरू की, जिसे उन्होंने साल 2011 में एक एनजीओ के रूप में स्थापित किया और नाम Menstruation2019 रखा क्योंकि 2019 तक उनका उद्देश्य मासिक धर्म को लेकर संपूर्ण जागरूकता फैलाना था। उस वक्त वे मुंबई के आसपास के इलाकों में, गांवोंं-कस्बों में जाकर मासिक धर्म को लेकर जागरूकता फैलाने लगे और उन्होंने लड़कियों को सैनिटरी पैड बांटना शुरू किया। 

इसके बाद दिप्ती की शादी साल 2016 में हुई और उन्होंने भी पति के साथ मिलकर मासिक धर्म के प्रति जागरूकता फैलाने का निर्णय लिया। लेकिन दिप्ती को स्वयं सैनिटरी पैड इस्तेमाल करना पसंद नहीं था क्योंकि उन्हें इसके इस्तेमाल से त्वचा में जलन और सूजन जैसी दिक्कतें आती थी। इसके पहले वे कपड़ा इस्तेमाल करती थी। 16 वर्ष की उम्र में पहला मासिक धर्म होने के बाद उन्होंने 7 साल तक कपडे से बने घरेलु पैड्स का इस्तेमाल किया, फिर कुछ सालों तक उन्होंने सैनिटरी पैड इस्तेमाल किया।

Menstrual cup

इस बीच दिप्ती को मेंस्ट्रुअल कप के बारे में पता चला और उन्होंने इसके बारे में पढ़ना शुरू किया। कई लोगों से मेंस्ट्रुअल कप के बारे में बातचीत करने के बाद उन्होंने स्वयं इसका इस्तेमाल किया। दो-तीन महीनों तक इस्तेमाल करने के बाद उन्हें महसूस हुआ कि यह तो एक लाइफ चेंजिग प्रोडक्ट है, जो हर एक लड़की को इस्तेमाल करना चाहिए। 

बचत के साथ आरामदायक भी 

दिप्ती बताती हैं, “सबसे पहले मैंने ऑनलाइन जाकर मेंस्ट्रुअल कप के बारे में ढूंढना शुरू किया लेकिन उस वक्त तक इस पर ज्यादा बातचीत नहीं होती थी लेकिन अब लोग मेंस्ट्रुअल कप के बारे में जानने लगे हैं।” 

दिप्ती के अनुसार “सैनिटरी पैड बनाने वाली कंपनियों को मेंस्ट्रुअल कप की जानकारी बहुत पहले से है लेकिन वे मेंस्ट्रुअल कप को लेकर इसलिए जागरूकता नहीं फैलाते क्योंकि सैनिटरी पैड में लाभ ज्यादा है। देखा जाए, तो एक महिला को हर महीने मासिक धर्म होता है और हर महीने सैनिटरी पैड की जरूरत पड़ती है। अगर 100 रूपये का सैनिटरी पैड आता है और एक साल में 1200 रुपये का सैनिटरी पैड एक महिला द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, तो 40 वर्ष तक वो महिला पैड ही इस्तेमाल करेगी यानी कि 40*1200=84,000 रुपये की आमदनी सैनिटरी पैड बनाने वाली कंपनियों को होगी और भारत में महिलाओं की आबादी करोड़ों में है। ऐसे में कोई इतना लाभ कमाने से पीछे क्यों हटेगा?” 

“वहीं मेंस्ट्रुअल कप की कीमत लगभग 500 Rs के अंदर ही होती है, जिसे 8-10 सालों तक इस्तेमाल किया जा सकता है और हर दिन इसे किसी कागज में लपेटकर या पॉलिथिन में रखकर फेंकने की जरूरत भी नहीं है, जिससे पर्यावरण को नुकसान भी कम पहुंचेगा और बीमारियां कम फैलेंगी।”

आदिवासी इलाकों के लिए वरदान 

दिप्ती बताती हैं, सैनिटरी पैड खरीदना हर किसी के बस की बात नहीं होती। खासकर आदिवासी बहुल इलाकों एवं गांवों-कस्बों में क्योंकि वहां के लोगों की आमदनी ही इतनी कम होती है कि वे सैनिटरी पैड पर हर महीने 100 रुपये खर्च करने की हिम्मत नहीं रखते। अगर किसी परिवार में 1 से ज्यादा लड़कियां हैं, जैसे- मां, बहन या बेटी समेत पूरा परिवार तो केवल 100 रुपये के पैड से काम नहीं चल सकता है। इन इलाकों में मेंस्ट्रुअल कप एक क्रांति के रूप में उभर सकता है।

Menstrual cup awareness

मेघालय के आदिवासी बहुल इलाकों में काम करने के दौरान अपने एक अनुभव के बारे में दिप्ती बताती हैं कि सबसे पहले लोग मेंस्ट्रुअल कप के फायदों के बारे में पूछते हैं और जब मैं उन्हें इसके फायदों के बारे में बताती हूं, तब वे इसे अपनी आर्थिक जरूरतों से जोड़कर देखते हैं और इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इसे इस्तेमाल करने के कई फायदे हैं।

दिप्ती ने अब तक महाराष्ट्र, मेघालय, असम, केरल, तमिलनाडू, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गोवा, गुजरात, राजस्थान और दिल्ली में लड़कियों को जागरूक करने और मेंस्ट्रुअल कप के इस्तेमाल के प्रति जागरूक करने का काम किया है। उन्होंने अब तक 500 से ज्यादा सेशन किए हैं, जो वे ऑफलाइन करती हैं। उनका एक युट्युब चैनल भी है। अपने कार्य को बिना रूके चलाने के लिए वे क्रॉउड फंडिंग करती हैं और उस फंड के जरिए ही वे मेंस्ट्रुअल कप का वितरण करती हैं और मासिक धर्म के प्रति जागरूक करती हैं। 

आगे उनका उद्देश्य बाकी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में भी पहुंचना है ताकि वे मेंस्ट्रुअल कप के प्रति सभी को जागरूक कर सकें। 

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