पुरुषों में बांझपन के कारण महिलाएं क्यों सहती हैं समाज का तिरस्कार?

बांझपन की समस्या केवल महिलाओं की नहीं बल्कि पुरुषों की भी है। इस लेख के माध्यम से जानिए कि कैसे एक पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों के बाँझपन के लिए भी महिलाओं को ही उत्तरदायी ठहराया जाता है...

Last Updated on सितम्बर 25, 2022 by Neelam Singh

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार 12 महीने या उससे अधिक असुरक्षित संभोग के बाद भी ​​गर्भावस्था को प्राप्त करने में असमर्थता को बांझपन (Infertility) कहा जाता है। इसके दो प्रकार हैं। पहला – प्राइमरी अर्थात जिन्होंने कभी गर्भधारण ना किया हो और दूसरा सेकेंडरी मतलब पिछली गर्भावस्था के बाद गर्भधारण करने में विफलता। यह बांझपन, महिला और पुरुष किसी में भी हो सकता है लेकिन सामाजिक नियमों के अनुसार बांझपन की समस्या सिर्फ महिलाओं को होती है, जो गलत है। भारत में पिछले कुछ वर्षों से पुरुषों में बांझपन की समस्या बढ़ी है। WHO की रिपोर्ट के अनुसार 30% से 50% पुरुषों के वीर्य की गुणवत्ता परिभाषित मानकों से कम है। मोटापा या अधिक वजन होना, नियमित व्यायाम की कमी, तनाव, तंबाकू, धूम्रपान या शराब की लत ऐसे कई कारण हैं, जो पुरुषों में बच्चे पैदा करने की संभावना को कम कर रहे हैं। हमारे देश में अक्सर लोग पुरुषों के बांझपन को स्वीकार करने से हिचकिचाते हैं। परन्तु पुरुष निःसंतानता की स्वीकृति और उसका सही समय पर उपचार दंपति के जीवन में खुशियां ला सकता है।

गोपालगंज की प्रसिद्ध स्त्री प्रसूति रोग व बांझपन विशेषज्ञ डॉ मंजू कहती हैं, “हमारे यहां संकीर्ण मानसिकता है कि पुरुषों में जितनी भी कमियां हों उन्हें दोष न देकर महिला को ही उत्तरदायी ठहराया जाता है जबकि बांझपन के लिए 30-40% पुरुष, 40-55% महिला और 10% दोनों जिम्मेदार होते हैं। 10% अज्ञात कारण हैं, जिसका कारण विज्ञान अभी तक नहीं खोज पाया है इसलिए डॉक्टर दम्पतियों को साथ बुलाकर काउंसलिंग करते हैं और उन्हें बांझपन के बारे में समझाते हैं एवं उनका इलाज करते हैं।”

इन उदाहरणों से समझे स्थिति

Dr Manju

एक केस के बारे में डॉ. मंजू बताती हैं, “सुप्रिया और आशीष (बदला हुआ नाम) की शादी को 3 साल हो गए थे लेकिन उनके कोई बच्चा नहीं था। घरवालों के कहने पर सुप्रिया मुझसे मिलने आई। पहले दिन वह अपनी सास के साथ आई थी। मैंने कुछ टेस्ट किए और सलाह दी कि अगली बार अपने पति को भी साथ लेकर आए क्योंकि उनका भी टेस्ट करना होगा। इस पर आशीष की मां का कहना था, “गर्भ में तो इसके ही पलना है फिर मेरा बेटा क्यों आए?” मेरे समझाने पर भी यह बात उन्हें पसंद नहीं आई। फिर कई दिनों बाद सुप्रिया आशीष के साथ आयी पर उनके चेहरे पर झिझक साफ दिख रही थी। मैंने उन दोनों से बात की। बांझपन के केस में काउंसलिंग सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि तब ही इलाज की प्रक्रिया शुरु होती है।

कई बार तो ऐसा भी होता है कि पति कहीं दूर रहता हो और केवल एक-दो दिन के लिए ही घर आता हो। ऐसे में भी पत्नी गर्भवती नहीं होती है, तो घरवाले महिला को लेकर हमारे पास आ जाते है कि इसका इलाज कीजिए। हम तब भी उन्हीं उन्हें यही सलाह देते हैं कि पति-पत्नी को साथ भेजें और समझाते हैं कि पुरुषों में स्पर्म 72 घंटे और महिलाओं में एग 24 घंटे के लिए ही सक्रिय रहते हैं। पति-पत्नी महीने के 20 से 25 दिन भी साथ रहे और ओव्यूलेशन के समय साथ नहीं रहे, तब भी गर्भ धारण करना मुमकिन नहीं है। अगर पति-पत्नी दोनों में कोई दिक्कत नहीं है, तो हम उन्हें ओव्यूलेशन के आसपास की तारीख़ बताकर उस समय साथ रहने की सलाह देते हैं।

पुरुषों को होती है झिझक

पुरुषों के बांझपन के बारे में डॉ. मंजू बताती हैं, “पुरुषों में बांझपन प्री टेस्टक्यूलर, टेस्टक्यूलर और पोस्ट टेस्टक्यूलर कारणों से होता है। टेस्टक्यूलर में कम शुक्राणु उत्पादन, असामान्य शुक्राणु कार्य या दूसरे किसी रुकावटों के कारण होता है या इसकी समस्या उन पुरुषों में ज़्यादा होती है, जो ज़्यादा गर्म स्थान या रेडिएशन से संबंधित जगह पर काम करते हैं इसलिए पुरुषों की जांच के लिए सबसे पहले सीमेन की जांच की जाती है। इस टेस्ट से स्पर्म के बारे में सारी जानकारियां जुटाई जाती हैं। जैसे – बनावट, आकार, गतिशीलता, आदि। आमतौर पर एक मिलीलीटर सीमेन में 20 मिलियन स्पर्म होने चाहिए। 50% से ज़्यादा स्पर्म फॉरवर्ड प्रोग्रेसिव मोशन (मतलब जिन स्पर्म की गति बिल्कुल सही हो) के साथ होने चाहिए। इन्हें एक्टिव मोटाइल स्पर्म कहा जाता है।

अगर स्पर्म काउंट एक मिलीलीटर में 15 मिलियन से कम या टोटल इजेकुलेशन में 39 मिलियन से कम है, तो यह भी बांझपन का एक बहुत बड़ा कारण है। अगर स्पर्म की संख्या 15 मिलियन से कम है, तो उस स्थिति को ओलिगोस्परमिया (Oligospermia), स्पर्म की संख्या नग्णय है, तो एजोस्परमिया (Azoospermia) और अगर टेढ़े मेढे स्पर्म हैं, तो टरैटोस्पर्मिया (teratospermia) कहते हैं। कभी कभार ऐसा भी होता कि स्पर्म की संख्या कम है और आकार भी सही नहीं तो इसे ओलिगोटरैटोस्पर्मिया (Oligoteratospermia) कहते हैं। टेस्टेस में संक्रमण भी स्पर्म की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।”

और भी हैं कई कारण

एक आंकड़े के मुताबिक 90% से अधिक पुरुषों में बांझपन का कारण स्‍पर्म की खराब क्‍वालिटी और कम संख्‍या है। ऐसे केस में शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने के लिए डॉक्टर हार्मोन थेरेपी देते हैं। इसके विपरीत कई ऐसे पुरुष भी होते हैं, जो कम स्पर्म काउंट के बाद भी पिता बन जाते हैं, अगर उनके शुक्राणु अधिक गतिशील होते हैं। एजोस्परमिया के केस में ‘डोनर सीमेन’ की मदद से भी दम्पति माता-पिता बन सकते हैं। ब्लड बैंक की तरह सीमेन बैंक भी अधिकांश जगहों पर मौजूद हैं। कभी-कभार ऐसा भी होता है कि पुरुष में अनुवांशिक तौर पर टेस्टिस अनुपस्थित है, तो इस केस में भी डोनर सीमेन की मदद से पत्नी को गर्भ धारण कराया जाता है।

इरेक्‍टाइल डिस्‍फंक्‍शन (Erectile Dysfunction), सीमेन इजेकुलेशन फेलियर (Semen Ejaculation Failure) या प्रीमैच्‍योर इजैकुलेशन आदि कुछ अन्य कारण हैं जो गर्भ धारण में रुकावट पैदा करते हैं। हालाँकि इनमें से अधिकांश को दवाओं या काउंसलिंग के माध्यम से ठीक करने की कोशिश की जाती है।

अपना सकते हैं ये तरीके भी

बदलते समय के साथ बांझपन की समस्या से निजात पाने के लिए कई नयी तकनीक भी आ गई हैं, जिसमें इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) सबसे प्रमुख है। इसके अलावा Intra Cytoplasmic Sperm Injection तकनीक के जरिए भी माता-पिता बनने का सुख प्राप्त किया जा सकता है।

डॉक्टर सलाह देती हैं कि पुरुषों को बांझपन से बचने के लिए स्वस्थ और संतुलित आहार खाने के साथ साथ दिनचर्या में नियमित रूप से व्यायाम को भी शामिल करना चाहिए ताकि वजन संतुलित रहे। एक स्वस्थ दम्पति ही एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकते हैं इसलिए सिर्फ महिलाओं पर दोषारोपण न कर पुरुषों को भी स्वास्थ्य जांच के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए

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