बच्चों में बढ़ती सोशल मीडिया की लत किस प्रकार है स्वास्थ्य के लिए हानिकारक?

Last Updated on मार्च 10, 2023 by Shabnam Sengupta

आजकल सोशल मीडिया व इंटरनेट आदि ने बच्चों को समय से पहले बड़ा बना दिया है, जिस कारण अब बच्चे पश्चिमी सभ्यता की ओर मुड़ते चले जा रहे हैं। साथ ही कम उम्र में एक्साइटमेंट और जिज्ञासा बच्चों को बहुत भारी पड़ रही है। एक ओर जहां हम घरों में पीरियड्स को लेकर भी खुलकर बातें नहीं करते हैं, ऐसे में सेक्स एजुकेशन की बातें बहुत लंबी परिधि लगती है, जिस कारण बच्चे गलत तरीकों से जानकारी इकट्ठा करने लगते हैं।

सोशल मीडिया स्टेटस ने बच्चों को इस कदर प्रभावित कर दिया है कि बच्चे अब रिलेशनशिप में रहना, गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड रखना एक स्टेटस सिंबल मानते हैं। इसी नादानी में बच्चे गलत कदम उठा लेते हैं, जो आगे चलकर उनके लिए बहुत बड़ी परेशानी बनकर सामने आती है। रिलेशनशिप में आने के बाद बच्चे एक्सप्लोर करने के लिए कम उम्र में वे कदम उठाते हैं जो उनकी उम्र के लिए सही नहीं होते।

युट्युब देखकर नए नए प्रयोग करना

असुरक्षित संबंध बनाने के बाद लड़कियां कम उम्र में गर्भवती हो जाती हैं लेकिन लोकलाज के कारण वे बच्चा गिराने का निश्चय कर लेती हैं। इन सबमें युट्युब बहुत बड़ी भूमिका निभाता है क्योंकि युट्युब पर ऐसे अनेक वीडियो उपलब्ध होते हैं जो आपको अजीबोगरीब चीजें करने की विधि सिखाते हैं, जैसे अनानास खाकर गर्भपात करनाएक महीने के अंदर प्राकृतिक तरीके से गर्भपात करना, आदि, जिसे देख कर वे बिना डॉक्टरी परामर्श के दवाइयां खा लेती हैं, जिससे बच्चा तो अबोर्ट हो जाता है लेकिन शरीर के साथ-साथ मानसिक तौर पर बहुत गंभीर असर पड़ता है। इन वीडियो पर देखने वाले लोग कमेंट कर सवाल भी पूछते हैं लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं होता कि ये वीडियो महज अपने नंबर बढ़ने के लिए कुछ लोगों द्वारा प्रेषित किये जाते हैं और इनका मक़सद कभी भी लोगों की मदद करना नहीं होता है।  

इसका एक दूसरा पहलू भी है, जहाँ लड़कियां कम उम्र में मां नहीं बनना चाहती हैं या बिना शादी के गर्भवती हो जाती हैं तब वे इन नुस्खों का सहारा लेती हैं और अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करती हैं। वहीं गर्भपात होने के बाद अधिकांश लड़कियों को लगने लगता है कि उन्होंने हत्या की है, उन्होंने एक बच्चे को मार दिया है, जिस कारण वे अंदर ही अंदर घुटने लग जाती है और अनेक प्रकार के मानसिक विकारों से ग्रस्त हो जाती हैं।

डॉक्टर कल्पना सिंह

महिला रोग-विशेषज्ञ डॉक्टर कल्पना सिंह कहती हैं कि कम उम्र में गलत तरीके से गर्भपात कराने पर अत्याधिक रक्तस्त्राव होने लगता है, जिस कारण शरीर काफी कमजोर हो जाता है। कभी-कभी अगर भ्रुण का कोई अंश अंदर रह जाता है, तब कैंसर, इनफर्टिलिटी आदि की समस्या होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे कई केस होते हैं, जहां लड़कियां सोशल मीडिया पर नानी-दादी के वायरल नुस्खों से प्रभावित होकर गलत उपचार कर लेती हैं, जिसे ठीक होने में बहुत समय लग जाता है। साथ ही ठीक हो भी पाएगा या नहीं कभी-कभी इसकी गारंटी तक नहीं होती है। इसके अतिरिक्त लड़कियों का धूम्रपान करना, शराब पीना, या ड्रग्स लेना सीधे तौर पर प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित करता है लेकिन नयी पीढ़ी आधुनिकता की दौड़ में अपने स्वास्थ्य के साथ समझोते कर लेती है क्योंकि उनका मुख्य लक्ष्य सोशल मीडिया होता है जो उनके निर्णयों को प्रभावित करता है। जिससे-

  • गर्भपात
  • प्रीमैच्योर बर्थ
  • बच्चे में विकास का रुक जाना
  • SIDS- Sudden Infant Death Syndrome अर्थात बच्चे की सोते हुए ही अचानक मृत्यु हो जाना। इसे Cribs death भी कहा जाता है, Cribs अर्थात झुला. (झुले में बच्चे की मृत्यु हो जाना)
  • बच्चे में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न होना।

अनिद्रा व मानसिक तनाव

सोशल मीडिया की बढ़ती लत की कारण बच्चे रातों को अपनी नींद तक पूरी नहीं करते, जिस कारण अनिद्रा की समस्या होने लगती है। पहले तो ये सामान्य महसूस होता है कि नींद नहीं आ रही लेकिन बाद में नींद पूरी ना होने के कारण चिड़चिड़ापन, बैचनी आदि की समस्या होने लगती है। मां बाप अगर गौर करेंगें तो पायेगें कि एक नयी छवि बनाने कि होड़ में बच्चे रातों को अपने सोशल मीडिया पर काफी समय व्यतीत करते हैं। जिनसे उनके अंदर के तनाव को समझा जा सकता है। इतना ही नहीं बहुत ज्यादा समय तक फोन इस्तेमाल करने के कारण आंखों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और आंखों से जुड़ी गंभीर समस्या होने लगती हैं। अपनी तस्वीरों को लेकर बहुत चिंतित रहना और उसके लिए अच्छे दिखने की होड़ में भोजन को नजरंदाज करना आजकल के बच्चों में आम समस्या हो गई है।  


बच्चों को दें समय

डॉ. बिंदा सिंह

मनोचिकित्सक डॉ. बिंदा सिंह बताती हैं कि आजकल भागदौड़ इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि माता-पिता के पास अपने बच्चों के लिए वक्त ही नहीं होता है। वक़्त न दे पाने के बदले माता पिता छोटी उम्र के बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन पकड़ा कर अपनी जम्मेदारी से छुट्टी पा लेते हैं लेकिन यहीं से बच्चों के अंदर ज़िद और लत बढ़ती चली जाती है। कुछ समय बाद बच्चों को अपना पर्सनल फोन मिल जाता है और फिर उसके बाद वे क्या देखते हैं, क्या करते हैं, इसकी माता-पिता को कोई खबर तक नहीं होती। यदि माता पिता सख्ती करने की कोशिश करते हैं तो बच्चे प्राइवेसी की माला जपकर उन्हें चुप करा देते हैं। यहीं से स्थिति गंभीर होते चली जाती है।  

ध्यान देने वाली बातें

  • सोशल मीडिया मनोरंजन का एक साधन भर हो सकता है लेकिन जीवन जीने का तरीका नहीं बता सकता।
  • साथ ही सिगरेट पीना, ड्रग्स लेना या किसी भी प्रकार का नशा करना कभी नारीवाद या फेमिनिज्म नहीं हो सकता बल्कि इसे फेक फेमिनिज्म की संज्ञा दी जाती है।
  • साथ ही बच्चों की हर एक ज़िद मान लेना उन्हें बिगड़ने की पहली सीढ़ी पर चढ़ा जाता है। बेहतर यही होगा कि बच्चों के साथ थोड़ा सामंजस्य बिठाया जाए।
  • सोशल मीडिया के लाभ के साथ-साथ सोशल मीडिया के दुष्परिणामों के बारे में भी उन्हें बताएं।
  • बच्चों को गुड-टच, बैड-टच की जानकारी देना भी बहुत जरूरी है।
  • लड़कों और लड़कियों के बीच भेदभाव ना करते हुए, उन्हें एक-दूसरे की इज्जत करना सिखाया जाना चाहिए।
  • बच्चों के बदलते व्यवहार और उनके दोस्तों पर नजर रखना भी बच्चों को गलत इरादों से बचा सकता है।

कोई भी नयी टेक्नोलॉजी अच्छी व बुरी दोनों होती है, यह अभिभावकों का कर्त्तव्य है कि वे अपने बच्चों के साथ बात करैं और उन्हें सही व गलत का फर्क समझाएं। अन्यथा बहुत जल्द इनके दुष्परिणाम सबके प्रत्यक्ष होंगे।

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