सारांश
एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि धूप यानी कि सूरज की रौशनी में 30 मिनट बैठने से अवसाद की समस्या ठीक हो जाती है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा आधा सत्य है।

दावा
एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि धूप में 30 मिनट बैठने से अवसाद की समस्या ठीक हो जाती है।

तथ्य जाँच
अवसाद क्या है?
अनुसंधानकर्ताओं के लिए अवसाद हमेशा से एक शोध का विषय रहा है। अवसाद एक आम लेकिन गंभीर बीमारी है, जो किसी भी व्यक्ति की मानसिक स्थिति को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। अवसाद कई शारीरिक एवं भावनात्मक समस्याओं का कारण बन सकता है।
धूप और अवसाद में क्या संबंध है?
शोध बताते हैं कि धूप के संपर्क में कम रहने से संज्ञानात्मक बधिरता (Cognitive Impairment) होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके साथ ही पर्यावरण और जीवनशैली उन लोगों को ज्यादा प्रभावित करती है, जो सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD) और अन्य प्रकार के अवसाद की समस्या से ग्रसित हैं।
खासतौर पर सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (एसएडी) की समस्या धूप के संपर्क में कम आने से जुड़ी हुई है, जो सामान्यतः ठंड के मौसम में होती है क्योंकि इस दौरान सूरज की किरणें कमजोर हो जाती हैं और लोग घरों में ज्यादा रहते हैं। यही कारण है कि वे बाहरी दूनिया के संपर्क में कम आते हैं और उन पर सूरज की किरणें भी नहीं पड़ती, जिस कारण अवसाद की समस्या ठंड के मौसम में बढ़ जाती है, जिसका संबंध धूप से है।
अवसाद को प्रभावित करने वाले सिद्धांतों में से एक शरीर के मौसमी चक्रों पर भी आधारित है क्योंकि ज्यादातर Suprachiasmatic nuclei (SCN) द्वारा शरीर के circadian rhythms के नियमन पर आधारित है। SCN को शरीर के तापमान और शारीरिक गतिविधि जैसे विभिन्न कारकों द्वारा नियंत्रित किया जाता है लेकिन विशेष रूप से रेटिनल सेंसर द्वारा प्राप्त प्रकाश के जरिए संशोधित किया जाता है, जो 477 नैनोमीटर तरंग दैर्ध्य (Wave length) के करीब होने चाहिए। SCN नींद, शरीर का तापमान, रक्तचाप, पाचन, प्रतिरक्षा प्रणाली और विभिन्न हार्मोनल प्रणालियों को नियंत्रित करता है। शोध इस बात को स्पष्ट करता है कि सूरज की रौशनी ना केवल अवसाद को कम करने में सहायक होती है बल्कि शारीरिक गतिविधियों को सुचारु ढंग से चलाने में भी मदद करती है।
साथ ही सूरज की किरणें मेलाटोनिन हार्मोन के स्तर को भी नियंत्रित करती हैं, जिससे सोने-उठने का चक्र संतुलित रहता है लेकिन सूरज की किरणें कम होने के कारण सोने-उठने का चक्र असंतुलित हो जाता है, जो insomnia (रात को नींद नहीं आना) या hypersomnia (दिन के वक्त नींद आना) का कारण बनता है।
क्या ज्यादा वक्त तक धूप में बैठना हानिकारक हो सकता है?
शोध बताते हैं कि ज्यादा वक्त तक धूप में बैठना भी हानिकारक हो सकता है। खासतौर पर गर्मी के मौसम में धूप के संपर्क में रहने से शरीर पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। जिन लोगों को बैचेनी या व्यर्थ में तनाव लेने की आदत होती है, उन्हें विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता हो सकती है। उच्च तापमान कोर्टिसोल हार्मोन के स्तर को बढ़ा देता है, जो तनाव के लक्षणों को खराब कर सकता है या बार-बार पैनिक अटैक आने की संभावना को भी बढ़ा सकता है। इस शोध के अनुसार गर्म मौसम या धूप में ज्यादा वक्त तक रहना आक्रामकता और उत्तेजना को बढ़ा सकता है। यह उन लोगों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जो मानसिक रुप से स्वस्थ्य नहीं रहते हैं।

इस दावे के बारे में जब हमने मनोवैज्ञानिक डॉ. बिंदा सिंह से बात की, तब उन्होंने बताया कि अवसाद केवल धूप की रौशनी में बैठने से ठीक नहीं होता लेकिन धूप की रौशनी अवसाद की संभावनाओं को कम करने में अवश्य सहायक होती हैं। ठंड के मौसम में जब सूरज की किरणें तीव्र नहीं होती हैं और कई-कई दिनों तक सूरज नहीं निकलता है, तब कुछ लोगों में अवसाद के लक्षण पाए जाते हैं। इसके अलावा जिन देशों में सूरज नहीं निकलता है, वहां के लोगों में भी अवसाद होने की संभावना होती है लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि अवसाद को केवल धूप में बैठने से ठीक किया जा सकता हैं क्योंकि गर्मियों के मौसम में 30 मिनट से कम भी धूप के संपर्क में रहना हानिकारक हो सकता है क्योंकि सूरज की किरणें तीव्र होती हैं, जो अन्य शारीरिक परेशानियों को उतपन्न कर सकती है। साथ ही अवसाद से ग्रसित मरीजों का इलाज भी वर्तमान स्थिति को देखते हुए ही किया जाता है, जिसमें काउंसलिंग, दवाइयां आदि शामिल होती हैं।
अतः उपरोक्त शोध पत्रों एवं चिकित्सक के बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि पोस्ट में दिखाया जा रहा दावा आधा सत्य है क्योंकि सूरज की किरणें स्वास्थ्य के लिए लाभदायक तो होती हैं और अवसाद के संभावनाओं को भी कम करती हैं लेकिन केवल धूप में बैठने से अवसाद ठीक नहीं हो सकता।
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