लोक-लाज के कारण उत्तराखंड में बढ़ रहे एड्स के मामले 

संयुक्त राष्ट्र ने साल 2030 तक ए़ड्स को खत्म करने का लक्ष्य रखा था लेकिन अब भी जागरुकता और लोक-लाज के कारण इस बीमारी को नियंत्रित नहीं किया जा सका है। पढ़िए उत्तराखंड से यह आलेख, जिसमें एड्स की चुनौतियों को लेकर चर्चा की गई है।

Last Updated on मार्च 6, 2023 by Neelam Singh

वर्ष 1988 से विश्व एड्स दिवस की शुरूआत की गई थी, तब से हर साल 01 दिसम्बर को दुनियाभर में एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश में इसके मरीजों की बढ़ती संख्या सभी के लिए चिन्ता का विषय बनती जा रही है। अब पर्वतीय क्षेत्र भी इसकी चपेट में आने लगे हैं। उत्तराखंड राज्य में एड्स के मरीजों की संख्या में वृद्धि होना स्वास्थ विभाग व राज्य के लिए चिंता का विषय है। 

अल्मोड़ा जिले में साल 2021 में 08 नये मरीज मिले। पिछले पांच वर्षों में 110 से अधिक मरीज जिले में पाए गए हैं लेकिन चिंता का विषय केवल आंकड़े नहीं हैं बल्कि स्वास्थय विभाग द्वारा जागरूकता अभियानों के बाद भी संख्या में वृद्धि होना चिंताजनक है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में 8356 एड्स के मरीज पंजीकृत हैं मगर इनमें से 5000 मरीज ही अपना इलाज करवा रहे हैं। यदि रोग से ग्रसित व्यक्ति सामाजिक लोक-लाज के कारण इलाज से कतरायंगे तो अन्य के लिए खतरा बढ़ जाएगा जबकि एआरटी केन्द्रों में निःशुल्क इलाज सुविधाएं उपलबध हैं। 

असुरक्षित यौन संबंध प्रमुख कारण

भारत में एड्स के फैलने का सबसे ज्वलन्त कारण असुरक्षित यौन सम्बन्धों को भी माना जा सकता है। वर्ष 2011 से 2021 के बीच 1708777 असुरक्षित यौन सम्बन्धित संक्रमित केस देखने को मिले हैं। जब देश का 70 प्रतिशत वर्ग शिक्षित है एवं देश में जागरूकता के लिए मीडिया जैसा एक सशक्त माध्यम है, तब भी जागरुकता की कमी होना एक गंभीर मामला है। मीडिया ने देश के शहरी क्षेत्र ही नहीं बल्कि ग्रामीण व पर्वतीय क्षेत्रों में भी गहरा असर किया है मगर लोग अब भी इसके बदलावों को स्वीकार नहीं कर पा रहे। 

अस्पताल एक ऐसी जगह है, जहां सबसे अधिक लोगों की भीड़ होती है। इनमें से लगभग 20 प्रतिशत मरीजों विभिन्न प्रकार की जांच करने आते हैं, जिनमें खून की जांच प्रमुख होती है। अतः अस्पताल में सचेत होने की आवश्यकता होती है, जैसे इस बात का ध्यान रखना कि हर बार प्रत्येक व्यक्ति की जांच की लिए नयी सुई का प्रयोग किया जाये। किसी भी राज्य के लिए यह दुर्भाग्य की बात है कि राज्य में एड्स के फैलने का सबसे प्रमुख कारण यही है। 

नशा भी है प्रमुख कारण

सोबन सिंह जीना अस्पताल, हल्द्वानी, नैनीताल से डाॅक्टर प्रदीप जोशी (परिवर्तित नाम) बताते हैं, नशे की लत ने भी राज्य में एड्स को फैलने में मदद् की है। इंजेक्शन से नशा लेने की प्रवृति ने युवाओं को अपनी चपेट में लेना प्रारम्भ कर दिया है। यह प्रवृत्ति हाई रिस्क श्रेणी में आती है। इस प्रकार के नशे में अधिकतर एक ही इंजेक्शन को कई बार नशा करने के लिए अलग अलग लोग इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में यदि एक भी व्यक्ति एच.आई.वी पाॅजिटिव है अन्य में भी बीमारी के फैलने का खतरा होता है। 

कुछ समय पहले तक एड्स को लाइलाज माना जाता था लेकिन दवाओं और सही समय पर इलाज से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। अक्सर इसकी दवा से निदान को पूर्ण इलाज समझ लिया जाता है मगर इलाज के बाद डाॅक्टर के पास नियमित रूप से चेकअप के लिए जाना अत्यंत आवश्यक है। बीमारी के प्रारम्भ पर पता चल जाने पर इसका इलाज किया जा सकता है लेकिन इस बीमारी को लेकर शर्म ही इसके प्रसार को बढ़ा रही है क्योंकि इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद समाज में बदनामी के कारण भी लोग इसका इलाज नहीं करवाते हैं।  

शिक्षा द्वारा संभव है बदलाव

वही इस पर प्रकाश डालते हुए ग्राम सिरसौड़ा, लमगड़ा, अल्मोड़ा के युवा महेन्द्र सिंह अधिकारी बताते हैं, मीडिया किसी भी बात को जन समुदाय तक पहुंचाने का सबसे सशक्त माध्यम है। इसकी सहायता से देखा जाए तो गलत को सही व सही को गलत भी साबित किया जा सकता है। अतः इसकी सहायता से एड्स के प्रति लोगों को जागरूक किया जा सकता है। 

साथ ही शिक्षा द्वारा भी एड्स को नियंत्रित किया जा सकता है। जैसे – प्रारम्भिक या उच्च शिक्षण संस्थानों में सम्बन्धित विषय की वृहद जानकारी के माध्यम से भी जागरूक किया जा सकता है। विद्यालयी शिक्षा में लिंग से सम्बन्धित विषयों पर चर्चा में संकोच भाव को हटाये जाने की जरूरत है। युवा वर्ग को इससे सुरक्षित रहने की आवश्यकता है। यह उम्र का वह पड़ाव होता है, जहां अक्सर गलतियां होती हैं। अतः इसके भयावह प्रकोप से सचेत किए जाने की आवश्यकता है।       

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