स्मार्ट फोन की लत ख़राब कर रही है बच्चों की आंखों को

आजकल स्मार्ट स्मार्ट फोन के बिना लोग अपना एक दिन भी नहीं बिता पाते लेकिन अगर ये आदतें एक छोटे बच्चे को लग जाए, तब स्थिति गंभीर हो जाती है। आइए इस लेख के जरिए जानते हैं कुछ समस्याओं के बारे में …

Last Updated on सितम्बर 9, 2022 by Neelam Singh

आजकल जिंदगी सरपट भाग रही है। किसी के पास सुबह के नाश्ते का वक्त नहीं है, तो किसी के पास अपनों के लिए वक्त नहीं है। वक्त की कमी का उलाहना हर किसी की जुबान पर है मगर अपने बच्चों को भी वक्त की कमी के हवाले कर देना माता-पिता के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकता है। 

30 वर्षीय रेखा अपने चार वर्षीय बच्चे (लकी) को शांत कराने के लिए स्मार्ट स्मार्ट फोन थमा देती है ताकि बच्चा तंग ना करे और उसी में उलझा रहे। इस बीच वो अपने अन्य काम निपटाती है। बतौर रेखा “मैंने अपने बच्चे को एक बार कार्टून दिखाने के लिए स्मार्ट फोन पर वीडियो लगाकर दे दिया था। उस समय लकी को अच्छा लगा और वो रोते-रोते चुप हो गया फिर मैं उसे स्मार्ट फोन देने लगी और इस बीच अपने काम करने लगी मगर अब ऐसा लग रहा है कि उसे देखने में दिक्कत हो रही है।”   

बच्चों को होती है क्षणिक खुशी

What Parents Ask की फाउंडर एवं पेरेंटिंग कंस्लटेंट डॉ. देबमीता दत्ता कहती हैं,  “स्मार्ट फोन्स बच्चों के मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं। आमतौर पर देखा जाता है कि बच्चों को एक जगह बिठाए रहने के लिए माता-पिता बच्चों को स्मार्ट फोन दे देते हैं। इससे बच्चों के घूमने और कुछ नया खोजने की प्रवृत्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। स्मार्ट फोन मिलते ही बच्चे के अंदर डोपामाइन हार्मोन का स्त्राव बोता है, जिससे उन्हें खुशी की अनुभूति होती है फिर यही खुशी लत के रुप में समाने आती है। धीरे-धीरे उम्र के साथ इसकी लत बढ़ती चली जाती है।” 

एक अन्य मां बताती हैं “मैं अपने 8 साल के बच्चे के साथ हर जगह मौजूद नहीं रह सकती थी इसलिए उसकी लोकेशन ट्रैक करते रहने के लिए उसे स्मार्ट फोन दिया था। अब उसे स्मार्ट फोन के साथ-साथ टीवी की भी आदत लग गई है, जिस कारण वह ना समय पर खाना खाता है और ना ही पढाई करता है। उसकी पूरी दिनचर्या ही बिगड़ चुकी है, जिसके लिए शायद मैं ही दोषी हूं।” 

आंखों की बढ़ रही परेशानियां

Netram Eye Centre, Delhi में कार्यरत नेत्र विशेषज्ञ डॉ. अंचल गुप्ता कहती हैं, “बच्चों द्वारा लंबे वक्त तक मोबाइल या अन्य स्क्रीन पर लगे रहने से आंखों में अनेक गंभीर समस्याएं उतपन्न हो जाती हैं। जैसे – आंखों के नीचे कालापन, Astigmatism (रेखाओं को पहचानने में परेशानी होना), Asthenopia (आंखों में खिंचाव महसूस होना)। 30% बच्चों को मोबाइल स्क्रीन पर लगातार रहने से Myopia की शिकायत होने का अनुमान है। वहीं अगर बच्चे लंबे वक्त तक कंप्युटर पर भी काम करते हैं, तब ये आंकड़ा बढ़कर 80% हो जाता है। 40% बच्चों में एकाग्रता की कमी हो रही है। शोध से पता चला है कि स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी आंखों के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से को खराब रही है, जिसे Macular Degeneration कहा जाता है।

कई मामलों में माता-पिता की शिकायत होती है कि उनका बच्चा बिना स्क्रीन देखे बिना खाना नहीे खाता। ऐसे में माता-पिता को समझाना जरुरी होता है कि बच्चे को स्क्रीन की आदत लगाई गई है और इस आदत को बदला भी जा सकता है। जैसे – बच्चों के सामने माता-पिता फोन कम-से-कम इस्तेमाल करें, बच्चों द्वारा फोन ना इस्तेमाल करने पर उन्हें पुरस्कृत करें, आदि।”

नेत्र विशेषज्ञ डॉ. आफ़ताब आलम बताते हैं, “लगातार स्क्रीन पर लगे रहने से बच्चों को कंप्युटर सिंड्रोम की समस्या हो जाती है। जैसे – आंखों में दर्द, आंखों का सूज जाना, कम उम्र में चश्मा लग जाना, मानसिक तौर पर कमजोर होना या आंखों से पानी आना। कुछ केसों में बच्चों की आंखें टेढ़ी भी हो गई हैं, जिसे Squint कहा जाता है। इससे बचाव के लिए बेहतर है कि बच्चों को अन्य गतिविधियों में संलग्न किया जाये जैसे खिलौने दिए जाएं, कहानी सुनाई जाए, आदि।”

एक रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों में बढ़ती स्मार्ट फोन की लत कई प्रकार के गंभीर परिणामों के साथ आती है। जैसे – आंखों की रौशनी कम होना, चिड़चिड़ापन, सोने-उठने के समय में बदलाव, मानसिक स्वास्थ्य का बिगड़ना, सीखने-समझने की शक्ति कम होना, एकाग्रता में कमी होना, आदि। 7-16 वर्ष की आयु के बच्चों पर किए गए एक सर्वेक्षण में सामने आया है कि एक दिन में 4-8 घंटों तक स्मार्ट फोन इस्तेमाल करने से बच्चों की आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

माता-पिता बनें बच्चों के आदर्श 

मनोवैज्ञानिक डॉ. बिंदा सिंह कहती हैं, “स्मार्ट फोन की लत को कम करने के लिए माता-पिता को भी कुछ आर्कषक तरीके तलाशने होंगे ताकि बच्चे का ध्यान भटके। आमतौर पर कामकाजी माता-पिता बच्चों को स्मार्ट फोन इसलिए देते हैं कि बच्चा उनके काम के समय उन्हें परेशान ना करे लेकिन बच्चों को ये मालूम नहीं होता है कि स्मार्ट फोन को आंखों से कितनी दूर रखना है या कितनी देर तक स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करना है। यही चीजें बाद में बच्चों समेत माता-पिता के लिए भी घातक साबित हो जाती है क्योंकि फिर बच्चा बिना स्मार्ट फोन के काम भी नहीं करना चाहता। अपने पास आए एक केस का हवाला देते हुए उन्होंने आगे कहा, एक पांच वर्षीय बच्चे की मां की शिकायत थी कि बच्चा बिना कार्टून देखे खाना नहीं खाता है और अगर स्मार्ट फोन ना दो, तब रोने लग जाता है। उसे खिलौने पसंद नहीं है और अब तो वह खुद से ही कार्टून लगा लेता है।” 

इससे बचने के लिए जरुरी है कि माता-पिता बच्चों के साथ समय बिताएं। इलेक्ट्रोनिक उपकरणों से बच्चे जितना ज्यादा दूर रहें, उतना अच्छा है क्योंकि उससे निकलने वाली तरंगे बेहद हानिकारक होती हैं। बच्चे के सामने स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करने से बचें, जिससे बच्चों को भी सीख मिले कि हमें स्मार्ट फोन का इस्तेमाल नहीं करना है।

नानी-दादी की ले रहा जगह

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा बच्चों की मोबाइल फोन और अन्य उपकरणों की मदद से इंटरनेट तक पहुंच का शरीर, व्यवहार और मन पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया गया है। जिसके अनुसार  स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करने वाले लगभग 23.8 प्रतिशत बच्चे सोने से पहले स्मार्ट फोन का उपयोग करते हैं और 37.15 प्रतिशत बच्चों में स्मार्ट स्मार्ट फोन के उपयोग के कारण एकाग्रता के स्तर में कमी देखने को मिली है। 

कुल मिलाकर देखा जाए तो बच्चों में बढ़ती स्मार्ट फोन की लत को कम करने की जरुरत है। साथ ही जब बच्चे सही-गलत को समझने लायक हो जाएं, तब ही उन्हें स्मार्ट फोन दिया जाना चाहिए। बढ़ते एकल परिवार का चलन भी बच्चों में स्मार्ट फोन की लत के लिए कहीं ना कहीं जिम्मेवार है क्योंकि अधिकांश घरों में नानी-दादी या अन्य बुजुर्ग नहीं होते हैं, जो बच्चों को कहानियां सुनाएं। इस समस्या को वक्त रहते समझना बेहद जरुरी है वरना मासूम बचपन स्मार्ट फोन की लत में ही बीत जाएगा।

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