माहवारी पर हावी है पर्वतीय इलाके का रूढ़िवाद

महिलाओं के लिए माहवारी सिर्फ पांच दिनों का शारीरिक दर्द नहीं, अपितु वह मानसिक व्यथा भी है जो उन्हें छुआछूत के रूप में इन दिनों झेलनी पड़ती है।

Last Updated on जुलाई 8, 2022 by Neelam Singh

दुनिया बदली, कुछ परम्पराएं भी बदल गई लेकिन पर्वतीय समुदाय की परम्पराओं में बदलाव देखने को नहीं मिला। 21वीं सदी में भी पर्वतीय महिलाओं की समाज में स्थिति विचारणीय है, जहां एक ओर समाज की महिलाएं ऊंचाई की बुलन्दियों को छू रही हैं। वही दूसरी ओर पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाली महिलाएं अपने दैनिक कार्यों में ही लिप्त नजर आती हैं। वे प्रतिदिन 14-15 घंटों तक जानवरों की देखरेख, लकड़ी, चारा, घास, खाना, जल व्यवस्था में ही लिप्त रहती हैं। इन कार्यो में वे अपने स्वास्थ्य तक का ध्यान नहीं देतीं। 

माहवारी को लेकर झिझक बरकरार

आज भी पर्वतीय समाज पुरूष प्रधान है, जहां महिलाओं को निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। वे आज भी घरों के काम के साथ प्राचीन प्रथाओं से ग्रसित देखी जा सकती हैं। महिलाओं के जीवन में मासिक धर्म प्रकृति से जुड़ी प्रक्रिया है। हर वर्ष 28 मई को पूरी दुनिया में मासिक धर्म स्वच्छता दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसे मनाने का उद्देश्य महिलाओं को माहवारी के समय स्वच्छता व सुरक्षा के लिए जागरूक करना है लेकिन अफसोस इस बात का है कि माहवारी के बारे में बात करने में न केवल ग्रामीण बल्कि शहरों की महिलाएं भी झिझकती हैं और जानकारी के अभाव में अपने स्वास्थ्य को खतरे में डाल देती हैं।

माहवारी कपड़े के भरोसे  

धारानौली, विकासखंड धारी जनपद नैनीताल में स्थित कमल मेडिकल स्टोर के मालिक बताते हैं कि उनकी दवाईयों की दुकान में महिलाओं की आवाजाही न के बराबर है। यदि भूले भटके कोई महिला आ भी जाती है, तो साधारण दवाईयां लेती है। सैनिटरी पैड 10-15 प्रतिशत ही खरीदे जाते हैं जबकि स्वास्थ्य विभागों द्वारा ग्राम में आयोजित किए जाने वाले स्वास्थ्य शिविरों में महिलाओं को महावारी के दौरान कपड़े के उपयोग से होने वाले संक्रमण के प्रति जागरूक किया जाता है। इसके बावजूद भी ग्रामीण महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति उदासीन पाई जाती हैं। पर्वतीय महिलाएं समुदाय का अहम हिस्सा होने के बाद भी बेबस महसूस करती हैं। 

शुद्धिकरण की मान्यता बरकरार

आज भी अधिकांश पर्वतीय क्षेत्रो में महिलाओं के साथ माहवारी के दौरान छुआछूत का व्यवहार किया जाता है। माहवारी के दौरान किशोरियों और महिलाओं को 4-5 दिन गोठ (जानवरों के कमरे) में रहना पड़ता है। पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकांश ग्रामों में माहवारी के दौरान महिलाओं को देवी देवताओं से अलग रखा जाता है। इस दौरान रसोई व मंदिर में उनका प्रवेश वर्जित होता है। पांचवे दिन शुद्धीकरण के बाद सामान्य रूप से कामकाज करने की अनुमति दी जाती है। ये वह स्थिति है, जब महिला को अपनों की सख्त जरूरत के साथ साफ-सफाई व पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है मगर वे अपनों के बीच अलग-थलग महसूस करती हैं।

आज भी दूर दराज के पर्वतीय इलाकों में गर्भवती महिलाएं बिना डाॅक्टरी इलाज के दाई की देखरेख में घरों में बच्चों को जन्म दे रही हैं, जिसका एक मुख्य कारण इलाकों की स्वास्थ्य केन्द्रों से अधिक दूरी है। यह समाज व प्रशासन द्वारा महिलाओं के स्वास्थ्य से खिलवाड़ को अंकित करता है। 

शारीरिक रुप से हो गईं कमज़ोर

ग्राम सेलालेख, विकासखंड धारी नैनीताल की नन्दी देवी बताती हैं आज पर्वतीय क्षेत्र में 65 प्रतिशत लड़कियों का विवाह 18 से 20 वर्ष की आयु में होता है। इंटर की शिक्षा के बाद न जाने क्यों लड़कियां अपने मां-बाप के लिए बोझ बन जाती हैं। वे बताती हैं कि उनका विवाह भी कम उम्र में हुआ था और मात्र 28 वर्ष की उम्र में उनके 03 बच्चे हो गए थे। आज 40 वर्ष की आयु में वे शारीरिक रुप से कमज़ोर महसूस करती हैं। 

आज नन्दी देवी ब्लड प्रेशर व डायबिटीज से भी ग्रसित है। कम उम्र में बच्चे होने व परिवार के सदस्यों द्वारा स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता न दिखाने का खामियाजा आज उनको झेलना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति केवल उनकी नहीं बल्कि पर्वतीय क्षेत्र की औसतन 50 प्रतिशत लड़कियों की है। जल्द शादी, जल्द बच्चे व स्वास्थ्य पर ध्यान न दिए जाने के कारण 40-45 वर्ष की महिलाएं अपनी उम्र से पहले ही वृद्ध हो जाती हैं।

क्या कहते हैं डॉक्टर

डाॅ मेघा शर्मा, स्त्री रोग विशेषज्ञ, हल्द्वानी, बताती हैं कि पूरे घर की जिम्मेदारी संभालने वाली महिला अपने जीवन में अनेकों स्वास्थ्य समस्याओं से गुजरती है, जिसमें हार्मोनल बदलाव से अनियमित माहवारी की शिकायत, कमजोरी के कारण थकान, चिडचिड़ापन होना, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और हाइपरटेंशन, पीसीओडी, मेनोपाॅज (माहवारी का समाप्त हो जाना) आम बात है। उनके अनुसार महिलाओं को 40 वर्ष के बाद नियमित जांच करवानी चाहिए जिसमें उच्च रक्तचाप, थायराॅइड, मधुमेह व हार्ट के साथ बीएमडी टेस्ट व कैंसर की जांच के लिए हर दो साल में पैपस्मीयर टेस्ट के साथ डाॅक्टरी सलाह पर लिपिड प्रोफाइल जैसी जांच करवायी जानी चाहिए क्योंकि यदि महिलाएं स्वस्थ रहेंगी तो ही अपने परिवार को स्वस्थ रख पाएंगी।

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