स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं बिहार के औद्योगिक क्षेत्र के मजदूरगण

किसी भी देश की प्रगति में वहां के हर नागरिक का योगदान होता है, जिसे कमतर आंकना कहीं से भी सही नहीं है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि जो लोग संगठित क्षेत्र में कार्य करें, वे ही समस्त सुविधाओं के योग्य हो, असंगठित क्षेत्रों के कर्मचारी भी बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त करने का अधिकार रखते हैं ।

Last Updated on जुलाई 18, 2022 by Neelam Singh

किसी भी देश की प्रगति वहां रहने वाले नागरिकों पर निर्भर करती है। एक स्वस्थ्य नागरिक देश की जीडीपी में अपना पूरा योगदान दे पाता है, जिससे देश को आर्थिक तौर पर मजबूती मिलती है। यहां स्वास्थ्य का पैमाना केवल शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक तौर पर भी स्वस्थ्य होना है। देखा जाए तो संगठित क्षेत्रों में काम करने वाले नागरिकों को स्वास्थ्य संबंधित सुविधाएं मिलती हैं लेकिन असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले नागरिकों को स्वास्थ्य संबंधित सुविधाएं नहीं मिलती। साथ ही उनका काम भी जोखिम से भरा होता है मगर सुविधा के नाम पर केवल आश्वासन ही मिलता है। एक स्व-नियोजित कर्मचारी या एक वेतन कर्मी जो (ESIC-Employees’ State Insurance Corporation) या कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) का सदस्य नहीं है, वह एक असंगठित कर्मचारी कहलाता है।

हर नागरिक को मिले अ्धिकार 

एक रिसर्च के अनुसार असंगठित क्षेत्र रोजगार सृजन और राष्ट्रीय घरेलू उत्पाद के मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था में आवश्यक भूमिका निभाता है। यह क्षेत्र कुल कार्यबल का 93 प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें 79 प्रतिशत गरीब और कमजोर वर्ग हैं, जो काम करते हैं लेकिन दूषित स्थिति में रहते हैं और विभिन्न बीमारियों से प्रभावित भी रहते हैं। लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित की जानी चाहिए क्योंकि “स्वास्थ्य हर एक नागरिक का अधिकार है।” चिकित्सा उपचार अब उन गरीब लोगों की पहुंच से बाहर है, जो असंगठित क्षेत्र में बढ़ती लागत के कारण काम कर रहे हैं। 

सभी को आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना भारत जैसे विशाल व जनसँख्या बहुल देश के लिए एक बड़ी समस्या है, जहां बड़ी संख्या में आबादी गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) ग्रामीण इलाकों में रह रही है। असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले अधिकांश नागरिक गरीबी रेखा से नीचे हैं। अधिकांश असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले नागरिकों के पास ना आर्थिक सहारा होता है और ना स्वास्थ्य संबंधिक सुविधाएं होती हैं। ऐसे में नागरिकों के मूल्यों की रक्षा करना सरकार का उद्देश्य है। साथ ही संंबंधित क्षेत्र में काम कर रहे मजदूरों की सुरक्षा समेत स्वास्थ्य की पुष्टि करना स्थल पर मौजूद अधिकारियों की जिम्मेदारी है। 

सरकार की स्वागतयोग्य पहल 

हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने ईएसआईसी को अपने चिकित्सा बुनियादी ढांचे को बढ़ाने और सभी 740 जिलों तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए अपने 1 ट्रिलियन रुपये से अधिक के रिजर्व फंड का उपयोग करके योजना पर काम करने का निर्देश दिया है, जो ज्यादातर बैंकों के पास फिक्स्ड-इनकम इंस्ट्रूमेंट्स में पड़ा है। इसके तहत असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहे नागरिकों को भी स्वास्थ्य सुविधाएं महैया कराई जाएंगी।

मुजफ्फरपुर बेला स्थित इंडस्ट्रिएल एरिया में लगभग 10 से ज्यादा तरह के कारखाने हैं, जहां औसतन हजारों मजदूर काम करते हैं। पिछले साल दिसंबर 2021 को हुई बॉयलर बलास्ट की घटना ने मजदूरों की दयनीय स्थिति को सबके सामने लाकर रख दिया था। पिछले साल हुई इस घटना में करीब 100 मजदूरों की मौके पर मौत हो गई थी। शरीर के अंग दूर-दूर तक फैल गए थे। वहां आसपास बसे अधिकांश कारखाने बॉयलर बलास्ट की भेंट चढ़ गए थे। जैसे- चूड़ा बनाने वाला कारखाना, आटा का कारखाना इत्यादि। 

मुजफ्फरपुर बेला स्थित इंडस्ट्रिएल एरिया

पैसों के लिए जान नजरअंदाज 

वहां काम कर रहे दो मजदूरों ने बताया कि बॉयलर बलास्ट की घटना होने के बाद भी प्रबंधन की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिल रही है। ना काम करते वक्त पहनने के लिए जूता मिलता है और ना कोई दस्ताना। बिना किसी सुरक्षा के ही काम करना पड़ता है। महीने के अंत में 10,000-15,000 रुपये मिल जाते हैं। बस एक इन्हीं पैसों का मोह है, जिसके लिए जाम जोखिम में रखकर काम करना पड़ता है।

बॉयलर के हेड ऑपरेटर छपरा के रसुलपुर थाने के खजुहान निवासी ललन यादव के पुत्र विकास यादव ने बताया कि बॉयलर पहले से ही खराब था, जिसकी जांच नहीं की गई। कई बार प्रबंधन को सूचित किया गया मगर कोई ठोस जवाब नहीं मिला। विकास उसी फैक्ट्री में मिक्सींग हेल्पर का काम करते हैं। उन्होंने आगे बताया कि किसी भी मजदूर का बीमा तक नहीं कराया जाता, जिससे किसी तरह का लाभ मिल सके। 

IndustriALL द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार जनवरी, साल 2021 तक हर एक कारखाने में हर महीने औसतन 7 एक्सीडेंट हुए, जिनमें मरने वालों की संख्या 162 है। देखा जाए, तो असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों का जीवन अनिश्चित होता है, जहां केवल मुआवजे की राशि द्वारा ही उनका मूल्य तय कर दिया जाता है। उदाहरण स्वरुप अगर देखें, तो कोयला के कारखानों में काम करने वाले मजदूर सांस संबंधित परेशानियों से निरन्तर जूझते हैं मगर उनके स्वास्थ्य पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। 

क्या कहते हैं एक्सपर्ट 

केमिकलयुक्त वातावरण में सांस लेने से अनेक तरह की बीमारियां हो जाती हैं। टीबी रोग विशेषज्ञ डॉ. साकेत शर्मा (एमडी, डीएम सीनियर कंसलटेंट पलमोनरी मेडिसिन, जयप्रभा मेदांता हॉस्पिटल, पटना) अपने पास आए एक केस का हवाला देते हुए बताते हैं कि प्रदूषित हवा में सांस लेने से सिलेकोसिस, इम्फाइसिमा (Emphysema) आदि बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। जैसे – पत्थर को बारीकी से काटने का काम जिन कारखानों में होता है, वहां हवाओं में पत्थर के कण फैल जाते हैं। इन मजदूरों में Erasmus syndrome (silicosis+systemic sclerosis) होने का खतरा ज्यादा होता है। Erasmus syndrome बहुत ही दुर्लभ बीमारी होती है। 6-12 महीने में ही मजदूरों में इसके लक्षण दिखने लग जाते हैं। 

कुल मिलाकर देखा जाए, तो इन मजदूरों की स्थिति तब ही सामने आती है, जब इन कारखानों में किसी तरह का हादसा हो जाता है जबकि हर एक व्यक्ति द्वारा दिया गया छोटा-सा योगदान भी महत्वपूर्ण होता है, जिसके बल पर बाकि के कार्य होते हैं इसलिए इन्हें नजरअंदाज करना कहीं से भी सही नहीं है। मजदूर संगठनों को भी स्वयं को विकसित करना हो और अपने हक के लिए आवाज उठानी होगी ताकि उनके स्वास्थ्य संबंधित जरुरतों  को नजरअंदाज ना किया जा सके।

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