मूक दीवारों के जरिए स्वास्थ्य का संदेश

स्वास्थ्य का क्षेत्र कई मायनों में सबसे कम प्रचलित विषय है, जिस पर बात होती हो। ऐसे में जनसाधारण तक स्वास्थय की जागरूकता को फ़ैलाने के लिए बेजान दीवारें एक बेहतर माध्यम के रूप में सामने आ रही हैं। मूक दीवारें भी तब बोलने लगती हैं, जब उन पर बनी रंग-बिरंगी तस्वीरें अनकहे जज्बातों को पिरोकर संवाद करने लगती है।

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अंग्रेजी में एक कहावत है, Pictures can speak louder than words. कई बार जो बातें आप लिखकर बयान नहीं कर पाते, उसे बयान करने का सबसे अच्छा माध्यम तस्वीरें हो सकती हैं। एक तस्वीर के जरिए ना केवल कोई बात कही जा सकती है बल्कि तस्वीरों के जरिए उनमें छुपे भावों को भी दर्शाया जा सकता है। प्राचीन काल से यह प्रथा चली आ रही है, जब शब्दों को दरकिनार करके तस्वीरों के माध्यम से संवाद स्थापित किए जाते थे। यह आमतौर पर समस्या और समाधान के सिद्धांत पर काम करता है।

बदलते वक्त के साथ मायने भले ही बदल गए हैं, लेकिन तस्वीरों के जरिए संवाद का सिलसिला अब भी चल रहा है बल्कि अब तस्वीरों के जरिए होने वाले इस संवाद ने व्यापक रूप ले लिया है, जो कागजों तक सीमित नहीं है बल्कि अब इन तस्वीरों का कैनवास पूरी धरती हो गई है क्योंकि चौक-चौराहों की दीवारें, सड़कें, गलियां सब जगह अब रंग-बिरंगे तस्वीरों के जरिए विभिन्न मुद्दों पर जागरुकता फैलाई जा रही है। दीवारों पर बिखरे कैनवास के रंगों ने दीवारों को भी जुबान दे दी है, जो समाज में मौन रह कर भी जागरुकता का संदेश पहुंचा रहे हैं।

कोविड-19 में दीवारें लगी बोलने 

समाज में जागरुकता का संदेश पहुंचाने के लिए दीवारों पर बनी कलाकृतियां सबसे बेहतरीन माध्यम हो सकती हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां शिक्षा का प्रसार ना के बराबर है, ऐसे में तस्वीरों के माध्यम से स्वास्थ्य संबंधित जागरुकता फैलाना सबसे अच्छे माध्यम के रूप में उभर कर सामने आता है। कोविड-19 के दौरान मास्क, हैंड सेनेटाइजर और दो गज की दूरी को लेकर जागरुकता फैलाने और लोगों को कोविड-19 से जुड़ी जानकारी देने का सबसे आसान साधन दीवारें ही बनी थीं क्योंकि उस वक्त लोगों का एक-दूसरे के संपर्क में आना जोखिम भरा था।

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Source: Project MAD

मुंबई जिला एड्स नियंत्रण सोसायटी (वडाला) और MAD के सहयोग से राशि रघुनाथ ने दीवारों पर तस्वीरों के माध्यम से स्वास्थ्य संबंधित जागरुकता फैलाने का कार्य शुरू किया था। वे बताती हैं, “मेरे लिए दीवारों पर स्वास्थ्य संबंधित तस्वीरों को बनाना पहला अवसर था। यहां मैंने HIV/AIDS को लेकर जागरुक करने वाले कलाकृतियां बनाई थी लेकिन दीवारों पर कलाकृतियां बनाना और उसके द्वारा संदेश पहुंचाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है क्योंकि कई बार लोग सामने से गुजर जाते हैं और दीवारों की ओर देखते भी नहीं इसलिए हमारे लिए तस्वीरों में जान डालना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। अगर तस्वीरे आकर्षक होंगी, तब लोग जरूर रुक कर देखेंगे और उस पर लिखें संदेशों एवं तस्वीरों से समझ सकेंगे कि एक कलाकार तस्वीरों के जरिए किन बिंदूओं पर प्रकाश डालना चाह रहा है।”

Broken Window Theory खोलती है कई राज

राशि आगे बताती हैं, “मैंने बैंगलोर जैसे अन्य शहरों और देशों में जहां सड़कें साफ थीं, वहां दीवारों पर साफ-सफाई और स्वच्छता को लेकर कई परियोजनाएं देखीं लेकिन ‘The Ugly Indian‘ मेरे लिए एक बड़ी प्रेरणा थी क्योंकि इसके बाद मैंने Broken Window Theory के बारे में पढ़ना शुरू किया, जिसमें कहा गया है कि जब किसी क्षेत्र को नया रूप देने के लिए साफ रखा जाता है और रंगा जाता है, तो लोग उस क्षेत्र को साफ और सुरक्षित रखने के बारे में अधिक जागरूक होते हैं।” 

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Source: Project MAD

दीवारों पर कलाकृति द्वारा उन विषयों पर चर्चा की जा सकती है या उन विषयों पर लोगों को जागरुक किया जा सकता है, जिस पर लोग बात करने से कतराते हैं। जैसे- एचआईवी एड्स, सेक्स के प्रति जागरुकता फैलाना, अकेलापन, अवसाद आदि समस्याएं। साथ ही वैसे विषय जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं लेकिन जाने-अनजाने में लोग उन पर ध्यान नहीं दे पाते। जैसे- खाना खाने से पहले हाथों को साफ से धोना, आसपास साफ-सफाई बनाए, सड़क पर चलते वक्त हेलमेट लगाना, गाड़ी धीमी गति से चलाना आदि। कई बार हाई-वे पर या व्यस्तम इलाकों पर लिखा होता है, ‘गाड़ी धीमी गति से चलाएं, घर पर आपका कोई इंतजार कर रहा होगा’। ये सारी चीज़ें कही ना कही लोगों को सुरक्षा बनाए रखने के नियमों का पालन करने के लिए बाध्य करती है ताकि वे एक स्वस्थ्य जीवन जी सकें। 

चुनौतियां रोकती हैं रास्ता 

हालांकि हर मोड़ पर कहीं ना कहीं चुनौतियां भी खड़ी होती है। राशी के अनुसार दीवारों पर कलाकृति बनाना जितना सुखद एहसास होता है, उसके साथ-साथ उसमें कई चुनौतियां भी होती हैं। जैसे- कई बार अचानक होने वाली बारिश रंगों को धो देती है और पानी के साथ सारी मेहनत बह जाती है। इसके अलावा कई बार कुछ असामाजिक तत्वों के कारण भी पेंटिंग खराब हो जाती है क्योंकि कई बार लोग थूक देते हैं या कुछ फेंक कर दीवारों पर उकेरे गए संदेश को मिटाने का प्रयास करते हैं। 

मानसिक स्वास्थय को दर्शाती कलाकृतियां 

ये मेरे शब्द नहीं, दिल की आवाज़ हैं, ख्वाहिश जिंदा है,
सोचती हूं सुबह कभी तो होगी ही, हर आस में जीती हूं हां,
सुबह लिखती हूं, शाम लिखती हूं, इस चारदीवारी में बैठी जब से, बस तेरा नाम लिखती हूं।
इन फासलों में जो गम की जुदाई है, उसी को हर बार लिखती हूं।

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Source: Tihar Jail Website

देश की राजधानी दिल्ली के तिहाड़ जेल की चारदीवारी पर लिखी ये पंक्तियां अनायास जेल के किनारे से गुजरने वाली सड़क पर राहगीरों का ध्यान खींच लेती हैं। इन पंक्तियों की रचयिता तिहाड़ जेल की महिला कैदी हैं, जो अपने मनोभावों को उकेरने का प्रयास कर रही हैं। देखा जाए, तो करीब दो किलोमीटर लंबी दीवार पर उकेरी गई यह कविता देश की सबसे बड़ी पेंटिंग मानी जाती है।

ये पंक्तियां इस बात का संदेश है कि आप वर्तमान में भले ही चारदीवारी में कैद हैं लेकिन उस चारदीवारी में भी आपकी प्रतिभा, आपके सपनों और आपकी चाहत को मरने नहीं देती। ये पंक्तियों एहसास कराती हैं कि अपने मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए कलम को थामना एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

दीवारों के जरिए संदेश पहुंचाने का तरीका आज का नहीं है क्योंकि पुरातत्व विभाग को कई बार ऐसे शिलालेख, दीवार के खंडित अंश आदि मिले हैं, जिन पर प्राचीन काल में संदेश उकेरे गए थे। वर्तमान समय में दीवारों के जरिए स्वास्थ्य को लेकर जागरुकता फैलाने का तरीका थोड़ा अनोखा कहा जा सकता है क्योंकि रंगों के आने से तस्वीर बदल गई है लेकिन दीवार भी जागरुकता का संदेश देने का एक बेहतर माध्यम हो सकती है, जो कदम-दर-कदम लोगों को बिना बोले ही हिदायत दें। 

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