स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा साल 2021 में World TB Day के अवसर पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 में टीबी के 18.05 लाख मामले देखे गए थे। हालांकि इन आंकड़ों में कोविड-19 के कारण 24 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम- National Tuberculosis Elimination Programme (एनटीईपी) के अनुसार साल 2019 की तुलना में टीबी के केसों में साल 2020 के शुरुआत में अप्रैल महीने में 6 प्रतिशत और दिसंबर में 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
वहीं कोविड-19 की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण टीबी के केस 38-44 प्रतिशत तक कम हुए। रिपोर्ट किए गए सभी मामलों में से 95 प्रतिशत से अधिक केस में इलाज की प्रक्रिया साल 2020 में ही शुरु कर दी गई थी। उनमें से 42 प्रतिशत मरीजों को मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) से ग्रसित थे। मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) टीबी का एक ऐसा रूप है, जिसमें मरीज के शरीर पर टीबी के दौरान दी जाने वाली दो मुख्य दवाएं- आइसोनियाजिड व रिफाम्पिसिन रोगी पर बेअसर हो जाती हैं। यानी टीबी के कीटाणु इन दवाओं के लिए प्रतिरोधी हो जाते हैं, तो उस रोगी की टीबी को एम.डी.आर टीबी कहते हैं। वहीं साल 2019 में रिपोर्ट किए गए 24.04 लाख टीबी मामलों में से उपचार का प्रतिशत 82 और मृत्यु दर 4 प्रतिशत थी।
दवाओं की वजह से परेशानी
एमडीआर टीबी सर्वाइवर आशना अशेष बताती हैं, “मुझे टीबी के दौरान दवाओं की वजह से मानसिक तौर पर दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन सुविधाओं को लेकर दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि मेरी आर्थिक व्यवस्था और स्वास्थ्य की जानकारी अच्छी थी लेकिन हर किसी की स्थिति सामान्य नहीं होती है। भारत में कई टीबी के मरीजों के लिए टीबी जांच और इलाज तक पहुंच अभी भी एक चुनौती बनी हुई है। टीबी को मिटाने के लिए भारत के हर टीबी मरीज को सही जांच और इलाज सही समय पर मिलना आवश्यक है।”
“वहीं कोविड-19 के दौरान टीबी के मामलों में भले गिरावट देखी गई हो लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि टीबी के केस कम हो गए। कोविड-19 के दौरान टीबी के जांच में कमी आई क्योंकि अस्पतालों में उस समय कोविड पर ही लोगों का ध्यान था। हम कोविड-19 से लड़ने के लिए टीबी को नजरअंदाज नहीं कर सकते क्योंकि टीबी के कारण भारत में हर रोज लगभग हजारों लोगों की मौत हो जाती है। इसके लिए लोगों को जागरूक करना और उन तक डॉक्टरी परामर्श पहुंचाना बहुत आवश्यक है। साथ ही अगर मरीज अस्पताल तक नहीं पहुंच पाते, तो घरों तक सुविधाएं पहुंचाई जानी चाहिए।” आशना एक पब्लिक हेल्थ प्रोफेशनल हैं और पेशे से एक वकील भी हैं, जो SATB नाम के संगठन के साथ जुड़ी हुई हैं।
जानिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

टीबी रोग विशेषज्ञ डॉ. साकेत शर्मा (एमडी, डीएम सीनियर कंसलटेंट पलमोनरी मेडिसिन, जयप्रभा मेदांता हॉस्पिटल, पटना) बताते हैं, “टीबी एक संक्रामक रोग है, जो mycobacterium tuberculosis नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। भारत में लगभग 40-50 प्रतिशत लोगों में टीबी का संक्रमण पाया जाता है लेकिन बहुत कम लोगों में टीबी के एक्टिव केस होते हैं। टीबी का संक्रमण शरीर के अन्य अंगों में भी हो सकता है लेकिन ज्यादातर संक्रमण फेफड़ों में होता है। 97 प्रतिशत लोगों में ड्रग्स सेंसेटिव टीबी केस पाए जाते हैं, जिसे मेडिकल भाषा में 1st line ATT (Anti Tubercular treatment कहा जाता है.) इसमें चार तरह के ड्रग्स पाए जाते हैं- HRZE isoniazid, rifampicin, ethambutol, pyrazinamide.
भारत सरकार National tuberculosis elimination program के तहत लोगों को मुफ्त में टीबी का इलाज उपलब्ध कराती है। हालांकि ये डॉक्टर के साथ-साथ मरीज को भी ध्यान रखने की जरूरत है कि दवाओं का कोर्स सही तरीके से पूरा हो। अधिकांश लोग टीबी के इलाज को गंभीरता से नहीं लेते, जिस कारण MDR/XDR टीबी होने की संभावना बढ़ जाती है। इतने प्रचार-प्रसार और हर एक सेंटर पर DOTS-Directly Observed Treatment की व्यवस्था होने के बावजूद भी लोग टीबी को लेकर जागरूक नहीं हैं। लोग जागरूक हो सके, इसके लिए समय-समय पर मीडिया, अस्पतालों आदि द्वारा जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।”
लक्षणों को ना समझे आम
चूंकि टीबी एक संक्रामक रोग है इसलिए संक्रामक हवा में सांस लेने के कारण ये बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और रोग-प्रतिरोधक क्षमता के कमजोर होते ही अपनी जड़े मजबूत बनाने लगते हैं। इसके लक्षणों में कफ, छाती में दर्द, कमजोरी, बुखार, वजन में लगातार कमी होना शामिल हैं। ये लक्षण कुछ महीने तक हो सकता है कि कम परेशान करें लेकिन धीरे-धीरे ध्यान ना देने पर समस्या बढ़ जाती है।
फेफड़ों में होने वाले टीबी की शुरुआती जांच में मुंह से निकले कफ की जांच की जाती है। वहीं शरीर के अन्य भागों में टीबी संक्रमण होने पर खून की जांच की जाती है।
भारत में ही टीबी के 2.64 लाख केस हैं और अन्य देशों की तुलना में 30 प्रतिशत टीबी के केस केवल भारत में ही है। हालांकि भारत को साल 2025 तक टीबी मुक्त बनाने का संकल्प है। इसके लिए राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम को लोगों के बीच चलाया जा रहा है। साथ ही टीबी के मरीजों के लिए निक्षय पोर्टल को भी 4 जून 2012 को लांच किया गया है।
All data reference link- https://www.nextias.com/current-affairs/26-03-2021/india-tb-report-2021
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