यह कहानी है राजस्थान के हनुमानगढ़ निवासी किशनाराम शर्मा की। किशनाराम केवल 24 साल के थे जब उनकी दोनों किडनी खराब हो गईं। सौभाग्य से समय रहते बीमारी पकड़ में आ गई। डॉक्टर भी हर जगह ऐसे मिले, जिन्होंने किशनाराम के जीवन को बचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। बड़े भाई ओमप्रकाश ने अपनी किडनी डोनेट कर दी। आज साढ़े 44 साल बीत चुके हैं किडनी ट्रांसप्लांट हुए। वह पूरी तरह स्वस्थ हैं। किशनाराम की कहानी डॉक्टर्स पर विश्वास की प्रेरक कहानी है।
बुजुर्ग किशनाराम की कहानी सुनकर किडनी डोनेशन और ट्रांसप्लांट से जुड़े तमाम डर एवं भ्रांतियोंं का समाधान हो जाता है और किसी तरह की आशंका बाकी नहीं रहती।
किशनाराम ने बताया, ”मेरा जन्म 6 जुलाई 1953 को हुआ। मैंने 1973 मेंं सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। 1974 में सिंचाई विभाग बाड़मेर में अस्थाई नौकरी मिल गई। 1975 में विवाह हो गया । 1976 में नौकरी पक्की हो गई और नियुक्ति अनूपगढ़ में मिली। 1977 में लोकसभा चुनाव में केसरीसिंहपुर में ड्यूटी लगी। इसी दौरान मुझे उल्टी होने लगी। चुनावी ड्यूटी से फारिग हो कर हनुमानगढ़ अपने घर पहुंचा, वहां एक वैद्य से दवा ली लेकिन लाभ नहीं हुआ। एक-दो दिन बाद ही सरकारी अस्पताल में कंसलटेंट फिजिशियन डॉ. पारस जैन को दिखाया। डॉ. जैन ने लक्षण देखकर भांप लिया और संदेह जताया कि किडनी संबंधी परेशानी हो सकती है।”
नहीं बरती कोई कोताही
किशनाराम बताते हैं, ”डॉ. जैन की सलाह पर मैं अपने बड़े भाई ओमप्रकाश के साथ उसी दिन जयपुर चला गया। वहां एसएमएस अस्पताल में डॉक्टर को दिखाया। तब चेहरे पर हल्की सूजन, खाना खाते ही उल्टी की शिकायत थी। बीपी बढ़ रहा था। आखिरकार वही हुआ, जिसका डर था। एसएमएस के डॉक्टर ने ब्लड यूरिया और क्रिएटिनिन जांच के बाद किडनी खराब होना घोषित कर दिया। डायलिसिस किया। डॉक्टर ने कहा कि किडनी ट्रांसप्लांट ही एक मात्र उपाय है। यह सुनकर हम पर मानो बिजली सी गिर पड़ी।”
सिर्फ वेल्लोर में थी ट्रांसप्लांट सुविधा

किशनाराम बताते हैं, ”उस जमाने में जयपुर में किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा नहीं थी। ऐसे मेंं सवाल उठा-अब क्या किया जाए। डॉक्टर ने वेल्लोर (तमिलनाडु) के सीएमसी अस्पताल जाने की सलाह दी। डॉक्टर ने कह दिया कि वेल्लोर जाओ या घर जा कर मौत का इंतजार करो। डॉक्टर पर विश्वास करके मैं और मेरा भाई जयपुर से ही वेल्लोर रवाना हो गए। हम 36 घंटों की यात्रा कर वेल्लोर पहुंचे। बाकी परिजन तो बाद में आए। मुझे 21 मार्च 1977 को वहां एडमिट कर लिया गया। वहां महीनों तक डायलिसिस चला। फिर डॉक्टरों ने ट्रांसप्लांट का कह दिया। भाई, बहन, पिता सभी किडनी देने के लिए तैयार थे। तमाम जांचें हुईं और अंतत: मेरे बड़े भाई ओमप्रकाश की किडनी मैच हुई। फिर 10 जून 1977 को वेल्लोर में डॉ. एपी पांडे और डॉ. जेसीएम शास्त्री ने किडनी ट्रांसप्लांट की। उस जमाने में करीब 70 हजार रुपये खर्च आया, इनमें से 35 हजार रुपये अस्पताल का खर्चा था। तब मेरी तनख्वाह तो मात्र 180 रुपये महीना थी। मेरे इलाज के लिए घर का ट्रैक्टर बेचना पड़ा।”
स्वस्थ होने के बाद किशनाराम सिंचाई विभाग में ड्यूटी पर लौट आए। घर-गृहस्थी पहले की तरह चलने लगी। वह सहायक अभियंता के पद से रिटायर हो चुके हैं। उनकी यह कहानी तब शुरू हुई, जब वे जवां थे। अब वह 68 साल के हैं। इतनी उम्र और किडनी प्रत्यारोपित होने के बावजूद वह पूरी तरह स्वस्थ और सक्रिय हैं। अब तो भरे-पूरे परिवार के मुखिया हैं। एक प्राइवेट स्कूल चला रहे हैं। उनके भाई ओमप्रकाश भी पूरी तरह तंदुरुस्त हैं। किशनाराम ने 10 जून 2021 को किडनी ट्रांसप्लांट के 44 साल पूरे किए तो उनका नाम पहले एशिया बुक वल्र्ड रिकॉड्र्स तथा फिर गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया।
मानी डॉक्टर की हर सलाह
किशनाराम कहते हैं, ”मैंने शुरू से लेकर अब तक डॉक्टर्स पर पूरा विश्वास किया है। उनकी हर सलाह मानी है। जो डाइट डॉक्टर्स ने 44 साल पहले फिक्स की, आज भी वही ले रहा हूं। दिनचर्या को नियमित रख रहा हूं। इस उम्र में भी रोजाना दो-तीन किमी पैदल चलता हूं। हर दो साल के बाद वेल्लोर जा कर चेकअप कराना नहीं भूलता। मैं किडनी पेशेंट को यही सलाह दूंगा कि डॉक्टर की सलाह का ध्यान रखो। समय पर दवा लो। घूमो-फिरो। साइकिल चलाओ।”
अनूठा उदाहरण मानते हैं डॉक्टर

डॉक्टर किशनाराम शर्मा के मामले को अनूठा उदाहरण मानते हैं। श्रीगंगानगर के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. संदीप चौहान कहते हैं, ”मेडिकल साइंस प्रत्यारोपित की गई किडनी की उम्र 10-15 साल मानती है। किशनाराम 44 साल बाद भी स्वस्थ और प्रसन्नतापूर्वक जीवन जी रहे हैं तो यह भगवान का आशीर्वाद, उनका संयंम और डॉक्टर पर विश्वास का मिलाजुला फल है। इससे साबित होता है अगर सही इलाज हो और मरीज डॉक्टर की सलाह पर चले तो कुछ भी संभव है।”
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