माहवारी को लेकर झारखंड के तरुण चला रहे हैं जागरुकता अभियान

महिलाओं के लिए माहवारी केवल कुछ दिनों का मसला नहीं है बल्कि इन दिनों अपने आप को स्वस्थ रखना भी एक चुनौती है। चेंजमेकर्स की इस कड़ी में जानिए कैसे एक इंसान ने छोटी सी पहल के माध्यम से माहवारी को बना दिया तोहफा लेने का जरिया...

Last Updated on सितम्बर 16, 2022 by Neelam Singh

संकीर्ण मानसिकता, गरीबी, मूलभूत सुविधाओं का अभाव आदि अनेक कारण हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति को प्रभावित करते हैं। घर परिवार की जिम्मेदारी के अतिरिक्त उन्हें हर महीने माहवारी की पीड़ा को भी झेलना पड़ता है। किशोरियों के लिए इस पीड़ा को सहना और मुश्किल हो जाता है क्योंकि समाज में इस विषय पर खुलकर बातें नहीं होतीं और वे कई परेशानियों से चुपचाप जूझती रहती हैं। हालांकि कुछ हद तक स्थिति थोड़ी बदली जरुर है और कई स्वयंसेवी संस्थाएं व लोग माहवारी के दौरान स्वच्छता के महत्व को समझाने और जागरुकता फैलाने का काम कर रहे हैं। 

कैसे हुई शुरुआत

कोल्हान, झारखंड के रहने वाले तरुण ने साल 2009 में IGNOU से बीसीए में स्नातक की डिग्री लेने के बाद ही एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सामाजिक संस्था के साथ एक प्रोजेक्ट में काम करना शुरु कर दिया था। काम के सिलसिले में ही झारखंड के सुदूर ग्रामीण इलाकों में जाकर लोगों से मुलाकात करने का मौका मिलता रहा। खासतौर पर उनकी रुचि बालाधिकार मामलों में होती थी, जिस कारण स्कूलों में आना-जाना लगा रहता था। इस क्रम में एक रोज उन्होंने संवाद कार्यक्रम के दौरान एक बच्ची को कक्षा से चुपचाप निकलते हुए देखा। वो बच्ची बहुत असहज थी। बाद में पूछने पर पता चला कि उस बच्ची को माहवारी शुरु हो गई थी और उसके पास कोई इंतजाम नहीं था इसलिए वो घर लौट गई थी। इतना सब सुनने के बाद तरुण को लगा कि अगर सारी बच्चियां ऐसे ही हर महीने कक्षा छोड़कर चली जाएंगी तब उनकी पढ़ाई रुक ही जाएगी। उस वक्त ही तरुण ने निश्चय किया कि वे इन बच्चियों के लिए कुछ सार्थक कदम उठाएंगें। उसके बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और निश्चय फाउंडेशन संस्था की नींव रखी फिर शुरुआत हुई माहवारी सुरक्षा जागरुकता अभियान की, जिसका उद्देश्य किशोरियों समेत महिलाओं को माहवारी के दौरान सुरक्षा और साफ-सफाई को लेकर जागरुक करना था। 

माहवारी सुरक्षा जागरुकता अभियान के तहत निम्न बिंदूओं पर काम किया जाता है। 

  • माहवारी सुरक्षा वर्कशॉप 
  • ग्रामीण बस्तियों में रहने वाली महिलाओं के लिए एक पेड़ के बदले एक पैड का तोहफा  
  • हर सरकारी विद्यालय में पैड बैंक की सुविधा मुहैया कराना
  • प्रोजेक्ट पैड ह्युमन के तहत पुरुषों को भी माहवारी को लेकर जागरुक किया जाता है क्योंकि समाज के लिए शिक्षित महिला एवं पुरुष विकासशील पहिये के समान होते हैं। 

प्रकृति को बचाना सबकी जिम्मेदारी

तरुण ने कहा, “महिलाएं ही प्रकृति हैं। प्रकृति और महिलाओं के बीच कोई अंतर नहीं है लेकिन सेनेटरी पैड के कारण कहीं ना कहीं हम पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं क्योंकि उसमें मौजूद प्लास्टिक प्रकृति के लिए हानिकारक है। इस बात को केंद्र में रखते हुए हमने महिलाओं को एक पैड के बदले एक पेड़ लगाने और उस पेड़ की रक्षा करने का संकल्प दिलाया ताकि प्रकृति को नुकसान ना हो”

युवाओं में बढ़े स्वयंसेवा की भावना

वर्तमान में तरुण के साथ 100-150 लोग निःशुल्क सेवा दे रहे हैं। बतौर तरुण, “जब मैंने माहवारी को लेकर जागरुकता अभियान की शुरुआत की थी, तब स्वयं के ही बचाए हुए पैसों का इस्तेमाल किया था फिर सोशल मीडिया की मदद से क्रॉउड फंडिंग की ताकि इच्छुक व्यक्ति भी योगदान कर सकें।” उन्होंने आगे बताया, “शुरुआती दौर में काफी परेशानियां हुई लेकिन लोगों का सहयोग बना रहा। पूर्वी सिंहभूम जिले के सभी 11 प्रखंडों में वे और उनके साथी गांव-गांव जाते हैं और महिलाओं से संवाद स्थापित करते हैं और महिलाओं व स्कूली छात्राओं के बीच नि:शुल्क सैनिटरी पैड बांटते हैं।साल 2018 में जहाँ क्रॉउड फंडिंग के जरिए 5000 पैड्स इकट्ठे किए गए थे, वही कोविड के दौरान क्रॉउड फंडिंग के जरिए 9000 पैड्स जुटाकर जरूरतमंद महिलाओं में बांटे गए थे।”

उन्होंने जमशेदपुर, पोटका, घाटशिला, धालभूमगढ़, मुसाबनी, डुमरिया, गुड़ाबांधा, बहरागोड़ा, चाकुलिया, बोड़ाम, पटमदा प्रखंड के लगभग 100 स्कूलों में पैड बैंक बनवाया है। साथ ही ‘चुप्पी तोड़ो’ मुहिम द्वारा विशेष रुप से किशोरियों को माहवारी को लेकर जागरुक करना और विद्यालयों में पैड उपलब्ध कराया जाता है। उन्होंने अब तक 70,000 किशोरियों से संवाद कार्यक्रम चलाकर जागरुक करने का प्रयास किया है। 

तरुण आगे बताते हैं, “इस अभियान को सुचारु रुप से चलाने में आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि आय का कोई मुख्य स्त्रोत नहीं है। सरकार के तरफ से भी कोई सहयोग नहीं मिलता इसलिए लेखन करके कुछ पैसे कमाकर अभियान में लगा देते हैं। इसके अलावा जो लोग स्वैच्छिक तौर पर पैड दान करते हैं, उनसे काफी सहयोग मिल जाता है।”

अन्य विकासशील प्रयास

इसके साथ ही वे वीर शहीद गणेश हांसदा फैलोशिप प्रोग्राम भी चलाते हैं, जिसके जरिए बहरागोड़ा, चाकुलिया, गुड़ाबांधा, धालभूमगढ़, मुसाबनी एवं घाटशिला प्रखंडों में सरकारी विद्यालयों से 10वीं पास करने वाले विद्यार्थियों को स्नातक तक सहायता एवं मार्गदर्शन दिया जाता है। उन्होंने शिक्षा की लौ को जगाए रखने के लिए अपने स्तर पर दो पुस्तकालयों का भी निर्माण कराया है। वहीं ‘नन्हें रचनाकार योजना’ के जरिए बच्चों में लेखन एवं पत्रकारिता के गुणों का विकास किया जाता है।

तरुण द्वारा किया जा रहा यह प्रयास वाकई सराहनीय है क्योंकि माहवारी के समय स्वच्छ ना रहने पर कई तरह की बीमारियों के होने का भी खतरा रहता है। ऐसे में महिलाओं के लिए इलाज करा पाना मुश्किल हो जाता है इसलिए बेहतर है कि शुरुआत से ही स्वच्छ रहने की आदत सिखाई जाए ताकि आने वाली पीढ़ी भी अपने अधिकारों के प्रति जागरुक रहे।

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