जागरुकता के अभाव में उत्तराखंड में बढ़ रही हैं हड्डी सम्बंधित समस्याएं

Last Updated on नवम्बर 25, 2022 by Shabnam Sengupta

गठिया को सामान्य बोलचाल की भाषा में आर्थराइटिस के नाम से जाना जाता है। अमूमन इसे दो भागों में विभाजित किया जाता है। Osteoarthritis एवं Rheumatoid Arthritis. Osteoarthritis में हड्डियों के आपस में रगड़ने के कारण कार्टिलेज कमजोर हो जाते हैं। कार्टिलेज एक प्रकार का द्रव होता है, जो हड्डियों के घर्षण को आसान बनाने का काम करता है। वहीं Rheumatoid Arthritis में शरीर की रोग-प्रतिरोधक प्रणाली जोड़ों के विरुद्ध कार्य करने लगती हैं। भारत में 22%-39% लोग Osteoarthritis से ग्रसित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 60 वर्ष की आयु पार कर चुके 9.6% पुरुष एवं 18% महिलाएं Osteoarthritis से ग्रसित हैं लेकिन बदलती जीवनशैली के कारण युवा वर्ग भी इसकी चपेट में आने लगे हैं। 

Vinay Chauhan

पहाड़ों में Osteoarthritis की समस्या जटिल हो जाती है। ओखलकांडा विकासखंड के ग्राम खन्स्यू के प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र स्थित डाॅ. विनय चौहान कहते हैं, “ग्रामवासियों में जानकारी का अभाव एक बड़ी समस्या है। शरीर में कई जोड़ होते हैं, जो हड्डियों को जोड़ने का कार्य करते हैं। यह जोड़ एक नर्म टिशु के बने होते हैं, जिसे कार्टिलेज कहा जाता है। हम जब चलते हैं, तो जोड़ों पर दवाब होता है और कार्टिलेज इस दवाब को अवशोषित कर जोड़ों को सुरक्षित रखता है।” 

“गठिया रोग के 100 से भी ज्यादा प्रकार हैं मगर पर्वतीय इलाके में ऑस्टियोआर्थराइटिस, गाउट, एंकिलोसिंग स्पाॅन्डिलाइटिस, जुवेनाइल इडियोपेथिक आर्थराइटिस मुख्य हैं। कई बार इस रोग की वजह से व्यक्ति के शरीर में अन्य बीमारियों के लक्षण भी पैदा हो जाते हैं, जिसमें दिल का दौरा, फेफड़े, आंखों व हृदय में सूजन के साथ कार्पल टनल सिंड्रोम प्रमुख हैं।” 

लोगों में जागरूकता का अभाव

पर्वतीय क्षेत्रों में गठिया (Osteoarthritis) मुख्य बीमारी है, जिसके कई कारण हैं मगर पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों द्वारा बीमारी के लक्षणों की अनदेखी करना भी सबसे बड़ी समस्या है। ग्रामीण परिवेश कठिन कार्यो से भरा होता है, जिसके दौरान चोट लगना सामान्य बात है। ग्राम सिरसोड़ा, विकासखंड लमगड़ा, जनपद अल्मोड़ा की हेमा देवी बताती हैं कि जंगल से लकड़ी, घास इत्यादि की व्यवस्था करते समय वे कई बार गिर चुकी हैं मगर स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण कई बार कई चोट का इलाज घरेलू तरीकों से कर दिया जाता था। उनकी टालने की प्रवृति के कारण ही उन्हें चलने में काफी दिक्कत हो रही है। यद्यपि ग्राम से दूर हल्द्वानी शहर के सरकारी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है पर उनके डाॅक्टर ने उन्हें बताया कि घुटने में लगी चोट के कारण जोड़ों पर दबाव बढ़ गया है। साथ ही उनके द्वारा घ्यान न दिए जाने व कार्यों को करते रहने के कारण कार्टिलेज में परेशानी उत्पन्न हई और गठिया की बीमारी हो गई। अब स्थिति इतनी बद्तर हो गई है कि घुटनों का प्रत्यारोपण भी करना पड़ सकता है। 

आधुनिकीकरण बन रहा मुसीबत

आरोही आरोग्य केन्द्र, सतोली, नैनीताल की स्वास्थ्य टीम के अनुसार उनके अस्पताल में आने वाले मरीजों में 50 प्रतिशत घुटनों एवं कमर दर्द से परेशान होते हैं। गठिया एक गंभीर समस्या है लेकिन लोगों की अराजकता एवं लक्षणों को टालने के कारण अब यह पर्वतीय क्षेत्र में व्यापक रूप लेने लगा है। आधुनिकीकरण के कारण युवा वर्ग इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। घंटों टीवी, मोबाईल, कम्प्यूटर पर कार्य करना, फास्ट फूड खाना, व्यायाम न करना आदि युवा वर्ग को इस ओर धकेल रहा है। 

स्वास्थ केन्द्र में आने वाले मरीजों में 30 प्रतिशत युवा वर्ग है, जो चिन्ता का विषय है। स्वास्थ्य टीम के अनुसार प्रारम्भिक अवस्था के लक्षण पैरों की जड़ों में सूजन, शरीर में अकड़न, और चलने फिरने में दिक्कत होना है। ऐसी परिस्थिति में तुरन्त डाॅक्टर से सम्पर्क कर स्थिति जानने का प्रयास करें ताकि सही समय पर सही उपचार मिल सके। वे बताते हैं, “किसी भी प्रकार का गठिया क्यों न हो, उसका इलाज व्यायाम और फिजियोथेरेपी द्वारा भी संभंव है। यदि इससे आराम न मिले तो घुटनों का प्रत्यारोपण किया जाता है।” 

ग्राम सेलालेख विकासखंड घारी जनपद नैनीताल के देवेंद्र चन्द्र मेलकानी ने कहा, वे कई सालों से गठिया रोग से ग्रसित हैं। ग्राम से दुकान में आने के दौरान उन्हें अत्यंत पीड़ा होती है। 

arthritis problem

हर साल 12 अक्टूबर को दुनियाभर में विश्व गठिया दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य लोगों को इस रोग के प्रति जागरूक करना है। विशेषज्ञ बताते हैं, गठिया रोग होने पर सेब, अधिक पानी, विटामिन सी से युक्त फल, लहसुन, अदरक, हल्दी, ब्रोकली, जामुन, पालक, मछली का सेवन लाभप्रद होता है। वही ठंडे पदार्थ, मैदा, कैफीन का इस्तेमाल चिकित्सीय सलाह के बाद ही करें।

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