भीख मांगती बच्ची को देखकर पसीजा मन फिर हुई बदलाव की ‘शुरुआत’

आपने पैडमैन फिल्म ज़रूर देखी होगी पर क्या आप जानते हैं कि ऐसे कई और लोग भी हैं जो फिल्मों के पैडमैन की तरह काम करते हैं। जानिए ऐसी ही एक शख्शियत के बारे में ...

Last Updated on जून 30, 2022 by Neelam Singh

हम हमेशा से सुनते आ रहे हैं कि पीरियड्स के बारे में केवल लड़कियों के साथ ही बातें करनी चाहिए। इन दिनों घर के पुरुषों से भी दूर रहना चाहिए क्योंकि इस समय स्त्रियां अपवित्र हो जाती हैं लेकिन इन सब धारणाओं को तोड़ने की कवायद अब शुरु हो चुकी है, जिसकी नींव प्रयागराज, इलाहाबाद के रहने वाले अभिषेक शुक्ला ने रखी है। 

ग्रामीण इलाके से ताल्लुक रखने वाले अभिषेक की कहानी थोड़ी अलग है क्योंकि उन्हें लड़कियों के लिए प्रयागराज का पहला पैड बैंक खोलने का श्रेय जाता है। अभिषेक ने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि (वर्धा) से साल 2020 में मास्टर ऑफ सोशल वर्क (एमएसडब्ल्यू) की उपाधि ली है। 

नहीं पता था सफर की मंजिल 

अभिषेक बताते हैं कि, “मुझे नहीं पता था कि ये सफर ऐसे शुरु होगा लेकिन कहते है ना आपकी किस्मत आपको वहां जरुर लेकर जाती है, जहां आपकी जरुरत होती है। ये साल 16 सितंबर 2016 की बात है, जब मैं एक रेलवे क्रांसिग के पास से गुजर रहा था। वहां मैंने एक बच्ची को भीख मांगते देखा लेकिन मैंने पहली बार बच्ची पर ध्यान नहीं दिया मगर जब बच्ची लगातार आग्रह करने लगी तब मैंने बच्ची से बात की। बातचीत के दौरान बच्ची ने बताया कि उसकी मां नहीं है, पिता शराब के नशे में धुत रहते हैं और घर में एक छोटा भाई है। मैंने उस बच्ची की बात पर तसल्ली करने के लिए उसके साथ उसके घर चला गया कि क्या वह वाकई सच बोल रही है? मगर अफसोस वहां पहुंचकर मुझे एहसास हो गया कि उस बच्ची के आंसू असली थे।” 

ऐसे शुरु हुई थी यह दास्तां

“शायद उसी दिन पता चला कि आंसुओं की कीमत नहीं होती फिर उसके बाद अच्छी तरह से नींद ही नहीं आई क्योंकि मन उस बच्ची के साथ ही रह गया था कि कैसे इन चीजों को व्यवस्थित किया जाए। उसके बाद उसी साल हरिनगर बस्ती, प्रयागराज में 19 सितंबर को कुछ दोस्तों के साथ ‘शुरुआत-एक ज्योति शिक्षा’ की नींव रखी गई और हमलोग झुग्गियों में बच्चों को पढ़ाने निकल पड़े। हालांकि ये सफर बिल्कुल भी आसान नहीं थी क्योंकि लोगों के लिए यह एक आम बात थी कि कुछ लोग हर साल या हर महीने केवल फोटो, वीडियो लेने के लिए झुग्गियों में आते हैं और कुछ बच्चों को पढ़ाते हैं, कुछ कॉपी-किताब बांटते हैं। उसके बात उन्हें ये गलियां याद ही नहीं रहती इसलिए बहुत ज्यादा परेशानी लोगों का विश्वास जीतने में हुई।”

अभिषेक बताते हैं कि वे और उनकी टीम हर रोज लोगों के घरों में जाती थी ताकि लोगों को बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरुक किया जाए क्योंकि उन लोगों का मानना था कि बच्चे कमाई का जरिया हैं, जो घूम-घूमकर भीख मांगते हैं और घर में आर्थिक तौर पर सहयोग करते हैं। सबसे बड़ी लड़ाई लोगों की सोच को लेकर थी, जिसे ठीक करना बेहद मुश्किल था। “पहले तो कोई भी नहीं आता था पढ़ने इसलिए हमने बच्चों को पढ़ने का लालच दिया कि पढ़ने आओगे तो इनाम मिलेगा। इसके बाद कुछ बच्चे आए लेकिन अभी भी मन को संतोष नहीं मिल रहा था।” 

आर्थिक तौर पर है परेशानी

वे आगे बताते हैं “हालांकि धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ी क्योंकि बच्चों के माता-पिता को जागरुक करने के लिए हमने अपनी पूरी ताकत और इच्छाशक्ति को लगा दिया था। टीम में शालिनी यादव, अंजली, अंजू, अनुश्री घोष, शिवानी, अवंतिका, वर्षा त्रिपाठी, रीता विश्वकर्मा, श्रेया, स्नेहा, माही, निर्देश दुबे, प्रखर श्रीवास्तव, केसवेन्द्र सिंह, अर्पित जायसवाल, अंशित पाठक, प्रवर, आयुष पांडेय, नीतीश संजय, अनूप,अमित श्रीवास्तव, रवि और अमन यादव शामिल हैं। शुरुआत-एक ज्योति शिक्षा के लिए हमने शुरुआती स्तर पर खुद के पैसों से ही शुरुआत की क्योंकि हमारे पास पैसे नहीं थे लेकिन बच्चों के लिए कुछ करने का जूनुन था। उसके बाद फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया की मदद से फंडिंग के लिए पोस्ट्स शेयर करने लगे लेकिन तथाकथित एनजीओ आदि ने छवि को इतना खराब कर दिया है कि लोगों के अंदर की हिचक हमें महसूस हो रही थी इसलिए हमने अपने संस्था को एनजीओ के तौर पर रजिस्टर नहीं किया।”

वर्तमान समय में अलोपीबाग, रामलीला पार्क के पीछे, प्रयागराज में कक्षाएं चलती हैं। इनमें कुल मिलाकर 50 बच्चे पढ़ते हैं। यहां नर्सरी, एलकेजी, यूकेजी तक की कक्षाओं में शिक्षा दी जाती हैं। यहां पढ़ाने वाले शिक्षक मात्र 1 रुपये प्रतिदिन की स्कूल फीस लेते हैं। यहां झुग्गी-झोपड़ी और फुटपाथ पर रहने वाले बच्चे पढ़ते हैं।

महिला सदस्यों ने भांपी परेशानी 

अभिषेक ने आगे कहा, “टीम में मौजूद महिला सदस्यों ने एक बात भांप ली थी कि लड़कियां कुछ निश्चित दिनों में पढ़ने नहीं आती हैं। इस बारे में टीम की महिला सदस्यों ने लड़कियों से बातचीत की, तब उन्हें पता चला कि उन्हें माहवारी के समय घर से निकलने पर मनाही है। वहीं दूसरी ओर उनके पास संसाधन भी नहीं थे ताकि माहवारी के समय साफ सफाई रख सकें। इस बात ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया और साल 2021 की 1 जनवरी को पैडबैंक की नींव रखी गई। यह बिल्कुल बैंक की तरह कार्य करता है। सभी जरुरतमंद लड़कियां और महिलाओं को एक पासबुक दी जाती है, जिसमें पैड लेने की तारीख, उनका नाम, पता और पहचान-पत्र की जानकारी लिखी होती है। अभी वर्तमान समय में करीब 900 लड़कियां पैड बैंक का लाभ ले रही हैं। फिलहाल प्रयागराज की दो शाखाएं हैं। पहला अलोपीबाग है, जिसमें 350 खातें हैं और शास्त्रीनगर मीरापुर है, जिसमें 450 खातें है। इसके अलावा भदोही गोपीगंज में 100 खातें हैं। आर्थिक तौर पर सहयोग की बात करें, तो फिलहाल किसी तरह की कोई विशेष फंडिंग नहीं है। लोग स्वयं अपनी इच्छा से पैड या पैसे दान करते हैं।” 

क्या है अन्य लोगों की राय

वहां से पैड लेकर जाने वाली लड़कियों ने बताया कि हमारे पास पैड खरीदने तक के पैसे नहीं थे क्योंकि एक पैड का पैकेट ही 30 रुपये का आता है और हमारे पास 15 दिनों की आमदनी ही 500-1000 होती है। ऐसे में पैड खरीदना हमारे लिए असंभव है। पैड बैंक के खुल जाने से बहुत सहुलियत हो गई है क्योंकि अब हमें गंदा कपड़ा नहीं इस्तेमाल करना पड़ता और दाग लग जाने के डर से घरों में रहने की जरुरत भी नहीं है। 

पैड बैंक में पैड डोनेट करने वाली एक महिला ने नाम ना उजागर करने की शर्त पर बताया कि, “शहरों में बदलाव के कारण अब लोग माहवारी को टैबू नहीं मानते लेकिन गांवों में अभी ऐसी स्थिति नहीं है इसलिए मैं अपनी तरफ से कुछ पैड्स दान करती हूं ताकि इन लड़कियों की सेहत के साथ खिलवाड़ ना हो और मुझे भी काफी अच्छा लगता है कि मैंने भी इस नेक कार्य में अपना योगदान दिया है।”

अभिषेक कहते हैं, “अभी काफी लंबी डगर है और मैं बस अपने कर्तव्यों का पालन कर रहा हूं। रास्ते में रुकावटें कई हैं लेकिन हमने आगे बढ़ने का प्रण लिया है। उम्मीद है कि हम महिलाओं को एक ऐसी दूनिया दे पाएंगे, जहां उनके पीरियड्स दर्द भरे ना होकर आरामदायक हो। इसके साथ हमारी कोशिश है कि हर बच्ची पढ़े और अपना मुकाम हासिल करे।”

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