सूर्यग्रहण से जुड़े हैं कई अंधविश्वास 

दीपावली के अगले दिन 25 अक्टूबर को सूर्यग्रहण लग रहा है। सूर्यग्रहण से कई अंध विश्वास जुड़े हुए हैं। ऐसा ही एक अंधविश्वास है विकलांगता दूर होने की उम्मीद में बच्चों को जमीन में दफन करना । आइये जानते हैं ऐसा क्यों होता है ...

Last Updated on अक्टूबर 23, 2022 by Neelam Singh

सूर्यग्रहण से कई अंधविश्वास जुड़े हुए हैं। ऐसा ही एक अंधविश्वास है असाध्य रोगों व लकवे के कारण और जन्म से विकलांग बच्चों को जमीन में गड्ढा खोदकर गाडऩे का। जब सूर्यग्रहण लगता है तो देश के कई राज्यों मेंं अंधविश्वास के चलते ऐसे बच्चों और कई बार बड़ों को भी गहरा गड्ढा खोद कर मिट्टी मेंं दबा दिया जाता है। ऐसे बच्चों का जिस्म कई घंटों तक जमीन में गड़ा रहता है। केवल सिर ही बाहर रहता है। ऐसा करने वालों को विश्वास होता है कि जब सूर्यग्रहण के उपरांत बच्चों को बाहर निकाल जाएगा तो उनकी विकलांगता ठीक हो चुकी होगी लेकिन हकीकत इससे पूरी तरह अलग है।

डॉक्टरों के मुताबिक अंधविश्वास के कारण ऐसा करने वाले लोग चाहे कुछ भी सोचें लेकिन वास्तविकता यह है कि किसी विकलांग को जमीन में दबाने से उसकी शारीरिक स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ता। उल्टे, कई तरह के नुकसान होने की आशंका रहती है।

यद्यपि पिछले कुछ वर्षों में लोगों में शिक्षा का प्रसार और जागरूकता आने के कारण इस तरह के अंधविश्वासों में कमी आई है लेकिन इसे पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सका है। देश के विभिन्न राज्यों से प्रकाश में आने वाली घटनाएं इसका प्रमाण हैं। दूरदराज गांवों में सूर्यग्रहण के दिन विकलांग बच्चों को कई घंटों तक गाड़ कर रखने की परंपराएं आज भी जारी हैं। इनमें से ज्यादातर तो सामने भी नहीं आ पाती हैं।

राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के सूरतगढ़ में कुछ महीने पहले इस तरह की घटना सामने आई जहां बिना सूर्यग्रहण के ही कुछ साधुओं ने एक विकलांग बच्चे को जमीन में दबा दिया। कुछ युवकों को जब इसकी भनक लगी तो वह वहां पहुंचे और यह देखकर हैरान रह गए कि दस-बारह साल के बच्चे का जिस्म गर्दन तक रेत में दबा हुआ था। उसे इस अवस्था में पड़े कई घंटे बीत चुके थे। युवकों ने बच्चे को बाहर निकाला तो साधुओं ने इसका विरोध किया। उनका दावा था कि सूर्यग्रहण के दिन जमीन में दबाए रखने से अपाहिज व्यक्ति पूरी तरह ठीक हो जाता है।

सूर्यग्रहण के दौरान 26 दिसम्बर 2019 को कर्नाटक के कालबुरगी जिले के ताज सुल्तानपुर गांव में आठ से ग्यारह साल की उम्र के तीन विकलांग बच्चों को ग्रामीणों ने गहरा गड्ढा खोदकर जमीन में कई घंटे तक गाड़े रखा। उनका कहना था कि ग्रहण के दौरान सूर्य की किरणें शरीर पर पडऩे से अपाहिज बच्चों की शारीरिक विकृति दूर हो जाती है। जब इस आशय की सूचना मिली तो चाइल्ड प्रोटेक्शन टास्क फोर्स ने बच्चों को मुक्त करवाया। इसी साल कालबुरगी जिले के ही गांव अर्जुनगी में भी कुछ बच्चों को जमीन मेंं दफन किया गया। विजयापुर में तो एक परिवार के लोग शारीरिक विकृति से पीडि़त चौबीस साल के पुत्र को जमीन मेंं गाड़कर घंटों इस उम्मीद मेंं बैठे रहे कि इससे वह चलने-फिरने लगेगा। कर्नाटक में 2019 मेंं करीब दस बच्चों को गाड़े रखने की रिपोर्ट प्रशासन को मिली।

इससे पहले मार्च 2016 में कर्नाटक के हुलसूर गांव के जन्मजात विकृति से पीडि़त नौ महीने के जमीन में गड़े बच्चे की मीडिया में आईं तस्वीरों ने लोगों को विचलित कर दिया था। बच्चे के माता-पिता ने ही उसे सूर्यग्रहण के दौरान ढाई घंटे तक बदबूदार खाद के ढेर मेंं दफन किया रखा था। बच्चा रोता-बिलखता रहा लेकिन उसके ठीक होने की उम्मीद लगाए मां-बाप खामोश बैठे उसे देखते रहे। यह अलग बात है इस कवायद का नतीजा कुछ नहीं निकला। वर्ष 2009 में सरकार के पास देश भर में दो से सात साल की उम्र के 34 बच्चोंं को सूर्यग्रहण के दौरान जमीन मे गाड़े रखने की सूचनाएं पहुंची थीं। इन बच्चों को भी स्वस्थ होने की उम्मीद से गाड़ा गया। 

पाकिस्तान में भी है यह अंधविश्वास

Psychologist

सूर्यग्रहण से जुड़ा यह अंधविश्वास सिर्फ भारत में है, ऐसा नहीं है। पाकिस्तान मेंं भी यह अंधविश्वास जड़ें जमाए हुए हैं। जब भी सूर्यग्रहण होता है, पाकिस्तान में भी लोग अपने विकलांग बच्चों को जमीन में गाड़ देते हैं। माना जाता है कि विभाजन से पहले जितने भी विश्वास-अंधविश्वास अविभाजित भारत में प्रचलित थे, वह बंटवारे के बाद भी कायम हैं।

जोधपुर स्थित जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के सेवानिवृत विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. रविकांत गुंठे कहते हैं, ”ऐसा करना पूरी तरह अंधविश्वास है और लोगों की गलतफहमी है। समाज में कई पुरानी परंपराएं चली आ रही हैं, जिनका कोई सिर-पैर नहीं है लेकिन लोग देखादेखी उनका अनुसरण करते रहते हैं। लोगों को समझाने, शिक्षित करने और वास्तविक बता कर जागरूक करने से ही ऐसे अंधविश्वासों को खत्म किया जा सकता है।”

इंफेक्शन और गैंगरीन का खतरा

श्रीगंगानगर के आर्थोपेडिशियन डॉ. सुभाष राजोतिया कहते हैं, ”इन सब बातों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। अंधविश्वास के चलते लोग ऐसा करते हैं। मिट्टी में दबाए रखने से विकलांगता ठीक नहीं होती। किसी भी तरह की विकृति के शिकार व्यक्ति की मुकम्मल जांच के उपरांत ही कह पाना मुमकिन होता है कि वह ठीक होने की स्थिति में है या नहीं। यदि किसी बच्चे में कोई शारीरिक विकृति है तो उसे संबंधित डॉक्टर के पास ले जाया जाना चाहिए। एक योग्य डॉक्टर ही सही सलाह दे सकता है।”

डॉ. राजोतिया का कहना है कि मिट्टी में दबाए रखने से अपाहिज बच्चे ठीक तो नहीं होते, बल्कि उनमेंं इंफेक्शन जरूर हो सकता है। गैंगरीन हो जाने की स्थिति में अंग काटने की नौबत भी आ सकती है।

करते हैं चमत्कार की उम्मीद

Psychologist

श्रीगंगानगर के राजकीय जिला चिकित्सालय के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. प्रेमप्रकाश अग्रवाल कहते हैं कि कई बार जब बीमारी लाइलाज होती है या उसके उपचार मेंं समय लगता है तो ऐसे अंधविश्वास जन्म लेते हैं। बीमारी के शिकार लोग आज के युग में भी किसी चमत्कार की उम्मीद रखते हैं और चमत्कार की यही उम्मीद उन्हें अंधविश्वास के जंजाल में फंसा देती है।

समय के साथ समाज में बदलाव आया है, शिक्षा ने भी जागरूकता पैदा की है और मीडिया भी लोगों को जागरूक करने मेंं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है लेकिन फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के अभाव में ऐसे अंधविश्वास अपनी जड़ें जमाए हुए हैं।

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