अज्ञानता की वजह से बढ़ रहे हैं राजस्थान में सर्पदंश के मामले

राजस्थान में सर्पदंश से हर साल हजारों लोगों की मौत हो जाती है क्योंकि उन्हें सही समय पर इलाज नहीं मिल पाता। आइए जानते हैं कि आखिर क्या है इसके पीछे की वजह...

Last Updated on नवम्बर 4, 2022 by Shabnam Sengupta

हाल ही में राज्य के दौसा जिले के सूरजपुरा में दो और चार वर्ष की दो बहनों को जहरीले सांप ने डस लिया। परिजन उन्हें अस्पताल के बजाय एक बाबा के पास झाड़-फूंक कराने के लिए ले गए। वहां चार घंटे तक टोने-टोटके का तमाशा चलने के बाद आखिरकार दोनों बच्चियों ने दम तोड़ दिया। ऐसी घटनाएं राज्य के सभी जिलों में अक्सर होती रहती हैं।

हनुमानगढ़ जिले के 12 एसपीडी गांव में बारह वर्षीय बच्ची सुमन की जान भी समय पर इलाज न मिल पाने के कारण हो गई। सुमन को सांप ने डस लिया तो उसके परिजन उसे आसपास के गांवों में सपेरों के पास लेकर घूमते रहे और बच्ची की मौत हो गई। डूंगरपुर के सतीरामपुर में चौदह वर्षीय अर्जुन को जब सांप ने डसा तो उसके घर वाले उसे अस्पताल के बजाय एक भोपा के पास ले गए। भोपा बच्चे के इलाज का नाटक करता रहा और उधर बच्चे की हालत बिगड़ती चली गई। अंतत: बच्चा मौत के मुंह में चला गया। बांसवाड़ा के गनोड़ा में 21 वर्षीय छात्रा कला को सांप ने डसा तो उसे एक मंदिर में ले जाकर जहर उतारने के प्रयास होते रहे और छात्रा की मौत हो गई।

झाड़-फूंक को मानते हैं इलाज

सर्पदंश के शिकार लोगों को जल्द नजदीकी अस्पताल में ले नहीं ले जाया जाता और अगर ले जाया भी जाता है, तो इसमें इतनी देरी हो जाती है कि पीड़ितों को बचाना डॉक्टर के बस में नहीं रहता। कई मामले तो ऐसे भी सामने आते हैं, जब लोग सर्पदंश के शिकार व्यक्ति को अस्पताल तो ले गए लेकिन वहां भी झाड़-फूंक से बाज़ नहीं आए। राज्य के करौली में कुछ दिन पहले एक युवक को सांप ने काट लिया तो परिजन उसे अस्पताल ले गए। डॉक्टरों ने युवक को आईसीयू में भर्ती कर इलाज शुरू कर दिया। हैरानी तो तब हुई, जब युवक के परिजन आईसीयू में ही झाड़-फूंक करने वाले बाबा को लेकर पहुंच गए। डॉक्टर ने उन्हें ऐसा करते देखा तो इसका विरोध किया।

किसी को सांप डसता है, तो उसे यह नहीं मालूम होता कि सांप विषहीन या विषधर है। पीड़ित लोगों को मंदिरों तथा झाड़-फूंक करने वालों के पास ले जाया जाता है। राजस्थान के प्रत्येक गांव में ऐसे कई देवताओं के मंदिर हैं, जिन पर लोग भरोसा करते हैं कि उनके मंदिर में ले जाने से सांप का जहर उतर जाता है।

यूं बढ़ रहा है अंधविश्वास

Psychiatrist

श्रीगंगानगर के राजकीय जिला चिकित्सालय के वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. प्रेम प्रकाश अग्रवाल कहते हैं, ”जिन लोगों को विषहीन सांप ने काटा होता है, वह ऐसे मंदिरों, धार्मिक स्थानों पर ले जाए जाते हैं, तो ऐसे लोगों की जान स्वाभाविक तौर पर बचनी ही होती है क्योंकि उन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव हुआ ही नहीं होता है। मगर ग्रामीण विषहीन और विषैले सांप में फर्क नहीं समझते और विषहीन सांप के दंश का शिकार हुए लोगों की जान बचने को लोक देवताओं का आशीर्वाद और झाड़-फूंक करने वालों का चमत्कार मान लेते हैं। वे इसकी मौखिक पब्लिसिटी करते हैं। इस कारण दूसरों को भी सर्पदंश का योग्य डॉक्टर से इलाज कराने के बजाय ऐसे मंदिरों में जाने की प्रेरणा मिलती है। एक-दूसरे की देखादेखी सांप के डस लेने पर मंदिरों व झाड़-फूंक करने वाले बाबाओं के पास जाना गांव-कस्बों में सामान्य बात है। लेकिन ऐसे में विषैले सांप के डसने का मामला होने पर पीड़ित व्यक्ति का बचना मुश्किल हो जाता है”।

डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि इस हालात के लिए अशिक्षा जिम्मेदार है। जब तक लोग शिक्षित नहीं होंगे, वे इस तरह के भ्रमजाल में फंसे रहेंगे। लोगों को शिक्षित व जागरूक करने तथा निचले स्तर के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों को सर्पदंश के उपचार का प्रशिक्षण देने तथा वहां एन्टी स्नेक वेनम इंजेक्शन उपलब्ध करवाने की आवश्यकता है। ज्यादातर पीएचसी (PHC) और सीएचसी (CHC) में फिजिशियन व इंजेक्शन के अभाव में सर्पदंश पीडि़तों का उपचार नहीं हो पाता। सीएचसी व पीएचसी से सर्पदंश से पीड़ित लोगों को जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज के लिए रैफर कर दिया जाता है, जो गांवों से कई घंटों की दूरी पर होते हैं। ऐसे में लोग अस्पताल के बजाय झाड़-फूंक के चक्कर में पड़ जाते हैं।

अगर संयोग से विषैले सर्प के काटने पर भी कोई व्यक्ति बच जाता है, तो उसे जीवन भर कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार ”दुनिया में हर साल लगभग 81,000 से 138,000 लोगों की सर्पदंश के कारण मौत हो जाती है। इससे तीन गुना लोगों के अंग काटने और स्थाई दिव्यांगता जैसी समस्या हो जाती है। जहरीले सांपों के काटने से पक्षाघात हो सकता है, जो सांस लेने में बाधा डाल सकता है। इस वजह से होने वाला रक्तस्राव विकार घातक रक्तस्राव, गुर्दे फेल होने और ऊतक क्षति का कारण बन सकता है। सर्पदंश से खेतिहर मजदूर और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। बड़ों की तुलना में बच्चों को अक्सर अधिक गंभीर प्रभाव झेलने पड़ते हैं।”

आंकड़ों से कहीं ज्यादा मौतें

सरकारी आंकड़ों में सांप के डसने की वजह से जितनी मौतें दर्ज होती हैं, वास्तविक संख्या इससे कई गुना अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में सर्पदंश से होने वाली मौतों के संबंध में एक व्यापक कम्युनिटी बेसड स्टडी से वर्ष 2005 में 45,900 मौतों का प्रत्यक्ष अनुमान सामने आया है, जो आधिकारिक भारत सरकार के आंकड़ों से 30 गुना अधिक है।

केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 1998-2014 के बीच मिलियन डेथ स्टडी नामक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2001 से 2014 के बीच चौदह सालों के दौरान भारत में तकरीन आठ लाख 8 हजार लोगों की मौत सांप के डसने की वजह से हो गई। भारत में प्रति वर्ष 58 हजार व्यक्तियों की जान सांप के काटने से चली गई। इनमें से 94% व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र के थे। इनमें से 77% की मौत अस्पताल से बाहर ही हो गई यानी उन्हें इलाज के लिए अस्पतालों में नहीं पहुंचाया गया था।

देश में आंध्रप्रदेश, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, झारखंड आदि राज्यों में सर्पदंश की सर्वाधिक घटनाएं होती हैं। इनमें राजस्थान छठे स्थान पर है। मिलियन डेथ स्टडी के अनुसार राजस्थान में चौदह सालों में 52 हजार एक सौ लोगों की जान सर्पदंश के कारण चली गई। यानी राज्य में हर साल 3722 लोगों को सर्पदंश के कारण जान गंवानी पड़ती है।

जागरूकता लाए जाने की जरूरत

Physician

हनुमानगढ़ के सीनियर कंसल्टेंट फिजिशियन डॉ. पारस जैन कहते हैं, ”सरकारी तथा प्राइवेट अस्पतालों में काबिल डॉक्टर तथा एन्टी स्नेक वेनम इंजेक्शन उपलब्ध रहते हैं। अगर सर्पदंश से पीड़ित लोगों को तत्काल अस्पताल ले जाया जाए तो सर्पदंश से होने वाली मौतों में काफी कमी लाई जा सकती है। एन्टी स्नेक वेनम इंजेक्शन सर्पदंश का कारगर उपाय है। इसके लिए सांपों के प्रति लोगों में जागरूकता लाए जाने की जरूरत है।

गांव-देहात के लोगों को विषहीन और विषैले सांपों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। इस जानकारी की बदौलत सांप के डसने की स्थिति में लाभ होगा। सबसे पहले यह जानकारी होनी चाहिए कि जिस सांप ने काटा है, वह कौन सा है, कितना जहरीला है, आदि। सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति में बेहोशी, सांस लेने में दिक्कत जैसे लक्षण तेजी से आने लगते हैं। ऐसे में उसे तत्काल अस्पताल ले जाया जाना जरूरी है।” डॉ. जैन बताते हैं कि कई मामलों मैं देखा गया है कि सांप के काटने के बाद पहले दिन कुछ नहीं होता लेकिन दूसरे दिन से सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। ऐसे वक़्त पर अस्पताल न जाना मरीज के लिए जानलेवा हो सकता है। इसलिए उचित समय पर चिकित्सीय सहायता आवश्यक है।

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