इन्होंने किया साबित कि अंगदान से बड़ा कोई परोपकार नहीं

मरने के बाद इस शरीर को खाक में मिल जाना है लेकिन अंगदान के जरिए हम किसी के दिल में धड़कन बनकर, किसी के आंखों की रौशनी बनकर जिंदा रह सकते हैं। यही कारण है कि अंगदान को महादान कहा जाता है।

Last Updated on जून 30, 2022 by Neelam Singh

लोगों को जीवनदान देना मनुष्यों के वश में नहीं होता क्योंकि जीवन-मरण का चक्र केवल ऊपर वाले के हाथों में होता है मगर मनुष्यों के हाथों में केवल प्रयास होता है, जिसकी बदौलत अगर वह चाहे तो किसी के जीवन को बचाने का प्रयास जरुर कर सकता है। 

हम इस संसार से कुछ भी लेकर नहीं जाते क्योंकि अंत समय में इस शरीर को पंचतत्व में विलीन हो जाना है लेकिन दूनिया को अलविदा कहते हुए अगर ये शरीर किसी के जीवन को बचाने में काम आ जाए, तो इससे बड़ी खुशी की बात कुछ हो ही नहीं सकती है। हालांकि जागरुकता के अभाव में लोग अंगदान नहीं कर पाते क्योंकि लोगों के मन में तरह-तरह की भ्रांतियां होती हैं। जैसे – अगर शरीर से कोई अंग गायब रहेगा, तो अगला जन्म बिना उस अंग के होगा। इसके विपरीत हमारे समाज में कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं, जो बिना किसी संकोच और दुविधा के अंगदान को लेकर ना केवल जागरुकता फैलाने का काम कर रहे हैं बल्कि अंगदान के जरिए लोगों को जीवनदान भी प्रदान कर रहे हैं। 

और बेटा हो गया जीवित

शशि भूषण और सरिता सिन्हा
सौरभ प्रतिक

पटना, बिहार के शशिभूषण जी के बेटे सौरभ प्रतिक (19 वर्ष) की मृत्यु साल 2018 में छत से गिर जाने के कारण हो गई थी। एक मां को अपने बच्चे से बेहद लगाव होता है लेकिन अपने ह्रदय को मजबूत करते हुए सौरभ की मां सरिता सिन्हा ने अपने बेटे के अंगों का दान करने का निश्चय किया और पटना के आईजीआईएमएस में अपने बेटे की आंखों, लिवर और किडनी का दान कर दिया, जिससे चार लोगों की ज़िंदगी रौशन हो गई और उन जिंदगियों के माध्यम से उनका बेटा फिर से जीवित हो गया। 

बातचीत के दौरान शशिभूषण जी ने बताया, “यह फैसला मेरी पत्नी का था कि हम सौरभ के अंगों का दान करेंगे और ऐसा करने में हमें कोई हिचकिचाहट नहीं हुई। हालांकि कुछ लोगों ने मना भी किया लेकिन हम अपने फैसले पर अडिग रहे।” 

उत्पल सेन

मैंने भी बनवाया डोनर कार्ड

पटना, बिहार के ही रहने वाले उत्पल सेन ने अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद उनका पूरा शरीर आईजीआईएमएस में दान कर दिया था। उन्होंने बताया कि “देहदान करना मेरी पत्नी की इच्छा थी। उनका कहना था कि जब मरने के बाद शरीर को जलाकर खाक में मिलाना है, तब उससे बेहतर है कि उसका दान कर दिया जाए ताकि लोगों को जीवनदान मिल सके और सामाजिक कार्य हो सके। उन्होंने आगे बताया कि मैंने भी अपना डोनर कार्ड बनवा लिया है। मेरी मृत्यु के बाद मेरा शरीर भी दान कर दिया जाएगा।”

धड़क रहा है रोहित का दिल

वहीं मुजफ्फरपुर बिहार के औराई प्रखंड के रहने वाले 17 वर्षीय रोहित भी अन्य लोगों के लिए जीने की वजह बन गए। वे सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे और आईजीआईएमएस में भर्ती थे, जहां 17 मार्च 2020 को उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया, जिसके बाद 17 मार्च को ही परिवार वालों ने अंगदान की लिखित अनुमति सौंप दी। उसके बाद डॉक्टरों की टीम ने पुनः निरीक्षण किया और ऐसे मरीजों की तलाश शुरु हुई, जिन्हे अंग की जरुरत थी। मरीज मिलने के बाद आईजीआईएमएस से ग्रीन कॉरिडोर बनाकर साढ़े तीन मिनट में रोहित के हार्ट को पटना एयरपोर्ट पहुंचा दिया गया। इसके लिए आधे घंटे तक इस रूट में ट्रैफिक को पूरी तरह रोक दिया गया था। हार्ट लेने के लिए मेडिका अस्पताल, पश्चिम बंगाल से डॉ. कुणाल सरकार की टीम आई और किसी जरूरतमंद को को जीवनदान मिल सका। 

अमृता भूषण

पटना, बिहार में कार्य कर रही दधीचि देहदान समिति की सदस्या अमृता भूषण ने कहा, “बिहार में हर साल लगभग 700 से ज्यादा लोग अंगदान करने की शपथ लेते हैं। इसके साथ ही लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए समिति द्वारा सेमिनार और जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं क्योंकि लोगों के मन में अंगदान को लेकर कई तथ्य और मिथक होते हैं, जिस कारण लोग अंगदान नहीं करना चाहते। लोगों की इसी हिचक को तोड़ने और अंगदान के प्रति प्रेरित करने के लिए इस दिशा में कार्य करना अत्यंत जरुरी है।”

भाई के लिए उमड़ी ममता

जाह्नवी दूबे अपने भाई के साथ

भोपाल की रहने वाली 41 वर्षीय जाह्नवी दुबे ने बहन का फर्ज़ निभाते हुए अपने 26 वर्षीय भाई जीतेन्द्र को जीवन दान दिया है। उनके भाई का लिवर 90 प्रतिशत तक खराब हो चुका था और बचने की उम्मीद केवल 10 प्रतिशत थी। यह बात जब जाह्नवी को जब पता चली तो वे अपने परिवार के साथ भागी-भागी जबलपुर पहुंच गई। अपने भाई को देखकर मन में ऐसी ममता उमड़ी की उन्होंने अपने भाई को अंगदान करने का निश्चय कर लिया। जाह्नवी बताती हैं, “ मेरा भाई मुझसे 15 साल छोटा है और मैंने उसे अपनी गोद में खिलाया है। मैं उसे किसी भी कीमत पर अपनी आँखों के सामने जाने नहीं दे सकती थी इसलिए मैंने उसे अपना लीवर देने का निश्चय किया।” डॉक्टर के अनुसार इस ऑपरेशन में बहुत जटिलताएं थी लेकिन जाह्नवी अपने निश्चय पर टिकी रहीं और अपने भाई को मौत के मुंह से वापस ले आई, जिसमें उनके परिवार ने भी उनका भरपूर सहयोग किया। यह एक ऐसी तस्वीर है, जिसने लोगों को उनके मानवीय मूल्यों से अवगत कराया है।

जानिए दान का असल आंकड़ा

भारत की जनसंख्या जिस अनुसार बढ़ रही है, उसके अनुसार अंगों की जरुरत भी बढ़ रही है लेकिन भारत में केवल 0.01 प्रतिशत लोग ही अंगदान करने का निश्चय लेते हैं। हालांकि लोगों में अंगदान के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए भारत सरकार साल 2019 में National Organ Transplant Programme लेकर आई थी, जिसका बजट 149.5 करोड़ था। भारत में हर साल 2 लाख कोर्निया की आवश्यकता पड़ती है लेकिन केवल 50,000 कोर्निया ही दान स्वरुप मौजूद हैं। इस कारण करीब प्रत्येक चार लोगों में से केवल एक को ही आंखों की रौशनी मिलती है और तीन लोगों की जिंदगी में अंधेरा ही रह जाता है। हर साल 5 लाख लोगों को अंग प्रत्यारोपण की जरुरत पड़ती है लेकिन इनमें से अधिकांश लोगों की मृत्यु हो जाती है। हर साल 2 लाख किडनी, 50 हजार हार्ट और लिवर की जरुरत होती है लेकिन केवल 1684 किडनी, 339 हार्ट और 708 लिवर प्रत्यारोपण के लिए मौजूद रहते हैं। 

मानव शरीर के कई अंगों को कृत्रिम तौर पर नहीं बनाया जा सकता इसलिए उचित होगा की परिवारजन मृत्यु के पश्चात अंगदान का संकल्प लें ताकि भारत अंगदान के आंकड़ों में पिछड़े ना रहे बल्कि अन्य देशों के लिए मिसाल बने।

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