माहवारी के दौरान शारीरिक सफाई को दें प्राथमिकता

मासिक धर्म व इससे सम्बंधित बीमारियां एक महत्त्वपूर्ण विषय है जिस पर चर्चा जरूरी है,आइये जानते है कुछ आवश्यक तथ्य...

Last Updated on मई 31, 2022 by Neelam Singh

“क्या पीरियड स्टार्ट हो गया?  श..श..श.. धीरे बोलो, कोई सुन लेगा। यह बातें ऊंची आवाज़ में और हर किसी के सामने नहीं कही जाती।” यह हर किसी से नहीं की जाने वाली बात ही कई तरह के वहम पैदा करती है।

पीरियड् अर्थात मासिक धर्म एक ऐसा विषय है, जिस पर हमारे देश में अभी भी खुलकर बात नहीं होती है, जिस कारण शर्म और जानकारी के अभाव में कई महिलाएं गलत आदतों को अपना लेती हैं। आज भी कई जगहों पर महिलाएं सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतिबंधों से घिरी हुई हैं। जैसे – मासिक के समय रसोई में प्रवेश वर्जित होता है। उनका बिस्तर अलग कर दिया जाता है। परिवार के किसी भी पुरुष सदस्य से इस विषय में बातचीत न करने की हिदायत दी जाती है। कुछ जगहों पर तो महीने के इन पांच दिनों तक पालन किये जाने वाले नियम काफी सख्त हैं।

पटना की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. अलका पांडेय बताती हैं कि मासिक धर्म चक्र गर्भाशय के अंतर्गर्भाशयकला (एंडोमेट्रियम) में परिवर्तनों की एक समान रूप से चलने वाली श्रृंखला है, जो इसे एक फर्टिलाइज्ड ओवम (ovum) के आगमन के लिए तैयार करती है। यदि फर्टिलाइजेशन नहीं होता तो ओवरी के हार्मोन कम हो जाते हैं जो एंडोमेट्रियम के परत गिरने का संकेत देते हैं। अंडा टूटकर रक्त के साथ बह जाता है। उसके बाद फिर नया चक्र शुरू हो जाता है। वे आगे कहती हैं कि यह कोई बुराई नहीं है, जिस पर छिप छिपाकर बातें की जाए बल्कि माहवारी के दौरान स्वच्छता के प्रति सजग और जागरूक रहना बहुत ज़रूरी है।

ब्लाउज से हुआ योनि संक्रमण

कुछ गांवों और छोटे शहरों में आज भी महिलाएं माहवारी के दौरान पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं। एक आंकड़े के मुताबिक लगभग 44 प्रतिशत महिलाएं अपनी माहवारी में इस्तेमाल करे वाले कपड़ों को धोकर पुन: उपयोग करती हैं। इस्तेमाल के बाद वह उस कपड़े को धोती व छिपाकर सुखाती है। खुली हवा और धूप में कपड़े को नहीं सुखाने तथा बार बार एक ही कपड़ा इस्तेमाल करने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। एक केस (WHO) में देखा गया कि एक महिला द्वारा पीरियड्स के समय अपना पुराना ब्लाउज इस्तेमाल करने के कारण ब्लाउज के हुक पर लगे जंग से उसे योनि में इन्फेक्शन हो गया, इसलिए यह सुनिश्चित करना बहुत ज़रूरी है कि आप क्या इस्तेमाल कर रही है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार पीरियड्स के दौरान स्वचछ्ता का ध्यान न रखने के मामले में बिहार की महिलाएं सबसे निचले पायदान पर हैं। यहां मात्र 59 फीसदी महिलाएं ही ऐसी हैं, जो मासिक धर्म के दौरान साफ सुथरे व सुरक्षित साधनों का इस्तेमाल करती हैं।

निश्चित अंतराल पर बदले कपड़ा

सुझावों के बारे में बात करते हुए डॉ. अलका बताती हैं कि मासिक धर्म का रक्त शरीर से बाहर निकलने के बाद धीरे-धीरे अपघटित होने लगता है इसलिए लंबे समय तक एक ही सैनिटरी पैड या कपडे को इस्तेमाल करने से बचना चाहिए। मासिक धर्म के समय कुछ महिलाएं पैड, कुछ टैम्पोन तो कुछ मेंस्ट्रूअल कप का इस्तेमाल करती हैं। सैनिटरी पैड बदलते समय योनि को अच्छी तरह साफ करना भी ज़रूरी है। एक सैनिटरी पैड औसतन 4-6 घंटे पर बदल लेना चाहिए। लंबे समय तक एक ही पैड के इस्तेमाल से पसीना तथा योनि में मौजूद बैक्टीरिया के कारण पैड में नमी बढ़ती जाती है, जिससे खुजली तथा संक्रमण का खतरा अधिक हो जाता है।

अगर आप मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करती हैं, तो उसे 6-12 घंटे इस्तेमाल कर सकती हैं। इसे दिन में एक बार गर्म पानी और एंटीसेप्टिक लिक्विड से ज़रूर धोएं ताकि कीटाणुओं और इन्फेक्शन का खतरा कम हो जाए। साथ ही एक कप को 5 से 10 साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है।

डॉ. अलका कहती हैं कि अपने देश में टैम्पोन का इस्तेमाल बहुत कम होता है। छोटे शहरों में तो इसका इस्तेमाल ना के बराबर होता है फिर भी यदि कोई महिला टैम्पोन इस्तेमाल करती है, तो उसे अधिकतम 8 घंटे तक इस्तेमाल किया जा सकता है।

योनि में ना लगाएं साबुन

डॉ. अलका अपने शब्दों पर जोर देते हुए कहती हैं कि मेरे पास जितनी बच्चियां आती हैं, उनमें लगभग 60-70% बच्चियों को सफाई का सही तरीका ही नहीं आता है। उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं होती कि हाथों का मलद्वार (anus) से योनि (vagina) की तरफ इस्तेमाल करने से मलद्वार के बैक्टीरिया योनि तक आ जाते हैं। वे बताती हैं कि योनि में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं। वहीं योनि बुरे बैक्टीरिया को ख़ुद ही नष्ट कर देती है। बहुत सी महिलाएं इसे साफ करने के लिए साबुन का इस्तेमाल करती हैं, जो गलत है। साबुन की प्रकृति क्षारीय होती है और योनि की अम्लीय (3.8 से 4.5 के बीच)। अतः साबुन के इस्तेमाल से योनि के जरूरी व अच्छे जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं। इसलिए आवश्यक है कि सफाई के लिए डेटॉल या किसी केमिकल का भी इस्तेमाल नहीं करें।

आप चाहें तो गुनगुने पानी का इस्तेमाल कर सकती हैं। धोने के बाद प्यूबिक एरिया को साफ टिश्यू पेपर या कपड़े से पोंछ लें। चाहें तो टैल्कम पाउडर (जिसका पीएच 7 से कम हो) का प्रयोग भी कर सकती हैं। पाउडर बची हुई नमी को सोख लेता है। साथ ही ध्यान रखने योग्य बात यह भी है कि इस्तेमाल किए गए पैड या टैम्पोन में रक्तस्राव के अपघटित होने से कीटाणु और बैक्टीरिया की संख्या में बढ़ोत्तरी होने लगती है। इसलिए जरूरी है कि इस्तेमाल किए गए पैड या टैम्पोन को सदैव पेपर में लपेट कर ही फेंके। यदि खुला फेंक दिया जाए तो दुर्गंध फैलेगी और बाह्य कीटाणुओं को आकर्षित करेगी।

पीरियड के समय खान-पान

पीरियड्स के समय महिलाओं को थकान या कमर दर्द होना एक सामान्य लक्षण है। इन दिनों मूड में बदलाव और चिड़चिड़ापन भी आम है इसलिए खान-पान का भी मासिक चक्र पर काफी फर्क पड़ता है। मासिक धर्म के दौरान औसत रक्त हानि 35 मिलीलीटर होती है इसलिए इन दिनों में खान पान का खास ख्याल रखें। ज्यादा मीठी चीजें जैसे केक, कुकीज, कैंडी, चीनी युक्त पेय, कॉफी, एनर्जी ड्रिंक्स से कुछ दिनों तक दूरी बना लें। आप चाहें तो मीठे फल जैसे आम, तरबूज या सेब आदि खा सकती हैं। मेवा और फाइबर युक्त चीजें अपनी भोजन में जरूर शामिल करें। सामान्य दिनों से थोड़ा कम पानी पिए और गुनगुना पानी पिए तो ज्यादा सही रहेगा।

जागरुकता से जीत सकेंगे जंग

एक आंकड़े के मुताबिक भारत में मात्र 34% बालिका विद्यालयों में शौचालय भली भांति काम कर रहे हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि सरकार द्वारा सभी विद्यालयों में शौचालय और स्वच्छता सामग्री को बदलने के लिए साफ सुथरी जगह की व्यवस्था की जाए। घर के बाद स्कूल ही ऐसी जगह होती है, जहां लड़कियां ज्यादा समय तक रहती हैं और अध्यापकों के सरंक्षण में होती हैं इसलिए मासिक धर्म और इससे जुड़ी सभी भ्रांतियों को दूर करने की सबसे अच्छी जगह स्कूल है। एक सही मार्गदर्शक द्वारा बच्चियों को दी गई उचित जानकारी उनकी ज़िंदगी बदल सकती है इसलिए बेहतर होगा कि स्कूल और कॉलेजों में माहवारी जागरुकता अभियान चलाएं जाएं ताकि लड़कियों को खुल कर बात करने की हिम्मत मिले और वे अपने शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जागरूक बने।

अंत में डॉ. अलका कहती हैं, “पीरियड्स के दौरान सही समय पर सोने-उठने, नियमित व्यायाम और संतुलित आहार से बहुत फ़र्क पड़ता है। इस पर ध्यान दें और अपने दिनचर्या में शामिल कर लें। अगर आपका बहाव हद से ज़्यादा या कम हो रहा हो, तो डॉक्टर से मिलें। इसे नजरंदाज बिल्कुल ना करें।”

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