सुविधाओं व जागरूकता के अभाव में पर्वतीय क्षेत्रों में मोतियाबिंद का विस्तार

मोतियाबिंद के मरीजों के लिए सर्जरी ही एकमात्र विकल्प नहीं हैं बल्कि इसके अलावा भी कई बचाव के तरीकों को अपनाया जा सकता हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय इलाके में मोतियाबिंद के आंकड़े बढ़ते जा रहे है, चलिए जानते है इसके कारण...

Last Updated on जनवरी 24, 2023 by Neelam Singh

आंखों के जरिए ही हम प्रकृति की सुंदरता का आनंद ले पाते हैं लेकिन बढ़ता प्रदूषण और बदलती दिनचर्या के कारण आंखों से सम्बंधित परेशानियां बढ़ती जा रही हैं। एक ओर शहरी इलाकों में बढ़ता प्रदूषण आंखों को प्रभावित कर रहा है, तो वहीं ग्रामीण इलाकों की स्थिति भी संसाधनों के अभाव में बद्तर होती जा रही है, जिसका एक कारण लोगों में जागरुकता का अभाव होना भी है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक मोतियाबिंद 50% से 80% मामलों में दोनों आंखों के अंधेपन के लिए जिम्मेदार है। साथ ही पुरुषों की तुलना में महिलाओं में मोतियाबिंद होने की संभावना 69% अधिक होती हैl एक अध्ययन के अनुसार लिंग असमानता और कुछ हद तक जैविक कारकों के कारण भी भारतीय महिलाओं में अंधे होने की संभावना पुरुषों की तुलना में 35% अधिक है।

चूल्हे का अधिकतर प्रयोग भी है एक वजह

ग्रामीण इलाकों में आज भी भोजन की व्यवस्था चूल्हे पर की जाती है, जिसके लिए लकड़ी का प्रयोग किया जाता है, जिसका धुंआ आंखों को बुरी तरह से क्षति पहुंचाता है, मगर जागरुकता की कमी और सीमित संसाधनों के चलते लोग इसे अक्सर अनदेखा कर देते हैं। रसोईघर का काम महिलाओं के ही हिस्से होता है, जिस कारण वे ज्यादा वक्त तक धुंए की चपेट में होती हैं और यही कारण है कि महिलाएं मोतियाबिंद से जल्दी प्रभावित होती हैं।

आंखों की देखभाल अत्यन्त जरूरी है। यदि आंखों में जरा सी चोट लग जाती है, तो बहुत अधिक दर्द की अनुभूति होती है। पर्वतीय क्षेत्रों में आंखों के सबसे अधिक केस मोतियाबिंद के मिल रहे हैं, जिसका एक कारण बढ़ती उम्र में आंखों को पूरी देखभाल ना मिलना भी है। ग्रामों में अधिकांश संख्या बुजुर्गों की है क्योंकि युवा वर्ग व्यवसाय, स्वास्थ्य एवं उच्च शिक्षा के लिए शहरों को पलायन कर गए हैं। 

बुजुर्ग नहीं समझ पाते असल वजह

सामान्य रूप से यह आंखों की वे समस्याएं होती हैं, जिसमें धीरे-धीरे आंखों की रोशनी में धुंधलापन आने लगता है और कम दिखाई देने लगता है। यह किसी भी व्यक्ति की दोनों आंखों को प्रभावित कर सकता है। साथ ही यह जन्मजात भी हो सकता है। सामान्य भाषा में कहा जाए तो आंखों के लेंस के उपर एक तरह की परत जम जाती है, जिससे आंखों की रोशनी कम हो जाती है। 

बुजुर्ग व्यक्तियों को सामान्य तौर पर एक समय के बाद देखने में दिक्कत होती है, जिसे वे उम्र का तकाजा समझ बैठते हैं और मोतियाबिंद की संभावनाओं को नकार देते हैं। इसका एक कारण नजदीकी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी होना भी है, जिस कारण ये वर्ग आवश्यक जानकारी से अछूता रह जाता है और ये रोग निरंतर बढ़ता रहता है। पर्वतीय क्षेत्रों में इसके होने का कारणों में अत्यधिक धूम्रपान, बढ़ती उम्र, डायबिटीज की समस्या मुख्य रूप से शामिल है। 

दोनों आंखों में मोतियाबिंद के मामले

ग्राम सलियाकोट, धारी, नैनीताल से कलावती देवी बताती हैं, “मेरी उम्र 56 वर्ष है और मेरी दोनों आंखों में मोतियाबिंद की शिकायत हुई है। पूर्व में भी आंखों में दर्द व साफ न दिखाई देने की शिकायत थी मगर डॉक्टर को न दिखाने के कारण समस्या बढ़ती चली गई।” उन्होंने वर्तमान में हल्द्वानी के सुशीला तिवारी हाॅस्पिटल से इलाज करवाया है, जिसमें समय के साथ अधिक धनराशि व्यय भी हुई मगर आंखों में दर्द बना रहता है। जागरूकता की कमी और स्वास्थ्य सेवाओं की चरमराई व्यवस्था के कारण अक्सर पर्वतीय समुदाय अपनी परेशानियों को नजरअंदाज करते हैं मगर अब इससे बाहर निकलने की जरूरत है। 

Principal

ग्राम सेलालेख, खीमराम आर्य राजकीय इण्टर कालेज, पहाड़पानी, नैनीताल, के प्रधानाचार्य मोहनचन्द्र मेलकानी बताते हैं, “ग्रामीण इलाके भी आधुनिकता की होड़ में शामिल हो रहे हैं। हर समय हाथों में मोबाइल का होना भी चिन्ता का विषय बनता जा रहा है। मोबाइल, टीवी, कम्प्यूटर इत्यादि का अधिक उपयोग आंखों की विभिन्न बीमारियों का कारण बनता जा रहा है। विद्यालय में कई छात्रों को आंखों और सिर में दर्द की समस्या देखने को मिल रही है। आंखों में किसी भी प्रकार की समस्या गंभीरता का संकेत हो सकती है, जिसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।” 

एक्सपर्ट से जानिए बचाव के तरीके

Dr Sameer

वेदान्ता नेत्रालय हल्द्वानी, नैनीताल के डाॅक्टर समीर वर्मा बताते हैं, “रेटिना साफ छवि प्राप्त करे इसके लिए आवश्यक है कि आँखों का लेंस साफ़ हो। यदि लेंस धुंधला हो जाता है, तो लाइट लेंसों से स्पष्ट रूप से गुजर नहीं पाती है, जिससे जो छवि आप देखते हैं वह धुंधली प्रतीत होती है और इसी दृष्टि बाधिता को मोतियाबिंद कहा जाता है। अधिकांश मोतियाबिंद धीरे-धीरे विकसित होते हैं और शुरूआत में दृष्टि प्रभावित नहीं होती मगर समय के साथ देखने की क्षमता प्रभावित होने लगती है। मोतियाबिंद के प्रमुख लक्षणों में दृष्टि में धुंधलापन होना, बुजुर्गों में निकट दृष्टि दोष में निरंतर वृद्धि होना, रंगों को देखने की क्षमता में बदलाव और दोहरी दृष्टि होना है।” 

उम्र का बढ़ना, डायबिटीज, अधिक मात्रा में मदिरा का सेवन, उक्त रक्तदाब (हाई ब्लडप्रेशर), मोटापा, आंखों में पूर्व की चोट, पूर्व में हुई आंखों की सर्जरी व धुम्रपान, मोतियाबिंद के प्रभाव को बढ़ाने में सहायक होते हैं। जब चश्मे या लेंस से साफ दिखाई नहीं पड़ता है, तो सर्जरी एकमात्र विकल्प बचता है मगर सर्जरी की सलाह तभी दी जाती है, जब मोतियाबिंद के कारण जीवन प्रभावित होने का खतरा होता है। सर्जरी के लिए किसी भी प्रकार की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।” 

मोतियाबिंद से आंखों को नुकसान नहीं पहुंचता लेकिन यदि आपको डायबिटीज है, तो देरी न करें। इसके बचाव हेतु चालीस वर्ष के बाद नियमित आंखों की जांच करवाएं, धूप में जाते समय धूप के चश्मे का प्रयोग करें, धुम्रपान व मदिरा के सेवन को कम करें। साथ ही आहार का ध्यान रखें तथा हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें। विटामिन सी एवं ए युक्त फलों का सेवन करें क्योंकि इनमें एंटी-आक्साइड होते हैं। साथ ही डायबिटीज या अन्य बीमारी होने पर इनका इलाज कराएं और अपना वजन सामान्य बनाए रखें।”

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