गोरी रंगत की लत कर रही है लड़कियों को मानसिक रूप से बीमार

यूँ तो भारत देश ने अंग्रेजों से वर्ष १९४७ में आज़ादी पा ली थी लेकिन लोगों के अंदर गोरी रंगत की नींव इतनी मजबूत करके गए कि आज तक भारतीय समाज की आधी आबादी गोपेरन के दंश को झेल रही है।

Last Updated on जुलाई 20, 2022 by Neelam Singh

अखबारों के विज्ञापन ‘गोरी लड़की चाहिए’ से ही शुरु होते हैं क्योंकि लड़कियों की रंगत के साथ गोरापन एक ऐसा पैमाना है, जिसकी कसौटी पर लड़कियों को खड़ा उतरना पड़ता है और जिन लड़कियों के लिए इस कसौटी पर खड़ा उतरना मुश्किल होता है, वे लड़कियां हर संभव उपाय करती हैं ताकि गोरी रंगत की रेस में उन्हें कोई पीछे ना करे। विज्ञापनों में महिलाओं को बेसन आदि के घरेलू नुस्खों को इस्तेमाल करते दिखाया जाता है और इस दौरान बताया जाता है कि अब गोरापन पाने और रंगत निखारने के ये तरीके पुराने हो गए हैं इसलिए इनसे अब फर्क नहीं पड़ेगा। आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में त्वचा को चाहिए कुछ नया और फिर दिखाया जाता है कि इस क्रीम को लगाने से रंगत बदल गई और रिश्ता पक्का हो गया या नौकरी मिल गयी इत्यादि। 

इन धारणाओं के कारण आज भी महिलाओं को उनके रंग के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। भले ही आजकल विज्ञापनों में गोरे रंग का प्रचार कुछ कम हुआ हो लेकिन लोगों के मनोभावों पर आज भी उसके जख्मों के निशान बाकी हैं। 

रंग के आधार पर भेदभाव 

ऐसी ही एक महिला हैं, जिन्हें केवल अपने सांवले रंग के आधार पर अपने पति और ससुराल के बाकि लोगों के द्वारा भेदभा का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं एक बेटी के जन्म के बाद स्थिति और बद्तर होती चली गई क्योंकि लोगों का कहना था कि महिला सांवली है इसलिए बच्ची भी सांवली है और आगे चलकर उसकी शादी में परेशानी आएगी और केवल सांवले रंग को आधार बनाकर उस महिला को शारीरिक और मानसिक रुप से प्रताड़ित किया गया। 

क्या कहते हैं आंकड़े

India Fairness Cream & Bleach Market Overview, 2018-2023 द्वारा प्रकाशित रिसर्च के अनुसार साल 2023 तक महिलाओं को केंद्र में रखकर बनाए जाने वाली फेयरनेस क्रीम्स 5000 करोड़ का मार्केट बना सकती है। ये विज्ञापनों द्वारा लोगों में फैलाए जा रहे भ्रम का ही नतीजा है कि महिलाओं के लिए गोरा दिखना अब किसी प्रतियोगिता से कम नहीं है। इतना ही नहीं बल्कि भारत और वैश्विक स्तर पर आयोजित हो रहे ब्यूटी आयोजन, जैसे – Miss Universe, Miss World, Miss India के कारण भी महिलाओं के अंदर भौतिक रुप से बेहतर दिखने की ललक विकसित होने लगती है। हालांकि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि इन प्रतियोगिताओं में कई तरह के पैमाने होते हैं मगर सुंदरता का पैमाना एक अहम पैमाना होता है। 

हर महिला चाहे गोरापन 

महिलाओं में हमेशा से ही गोरी रंगत वाली त्वचा का क्रेज रहा है। सांवली महिलाएं अक्सर अपने ही देश में नस्लीय भेदभाव का शिकार होती हैं। ऐसे कई वैवाहिक वेब साईट हैं, जो त्वचा के रंग को गोरा, सांवला और गहरा रंग का नाम देते हैं। गोरी त्वचा की चाहत सभी आर्थिक वर्गों की युवतियों में होती है लेकिन हर किसी के लिए महंगे ब्यूटी प्रोडक्ट्स खरीदना संभंव नहीं होता है इसलिए वे नींबू का रस, गुलाब जल, शहद, जैसे पारंपरिक उपचारों का उपयोग करते हैं। शादी के समय लड़के के माता-पिता उस लड़की को तरजीह देते हैं, जिसकी त्वचा गोरी होती है। वरना लड़की को ज्यादातर बार नापसंद कर दिया जाता है। ऐसी परिस्थिति कभी-कभी लड़की के परिवार खासकर लड़की के लिए काफी तनाव और डिप्रेशन पैदा कर देती है।

व्यक्तित्व को निखारना जरुरी

मनोचिकित्सक डॉ. बिंदा सिंह बताती हैं कि हर एक लड़की को समझना होगा कि असली सुंदरता चेहरे से नहीं बल्कि व्यक्तित्व में होती है। बचपन से ही लड़कियों के अंदर सांवली हो, आंखें छोटी हैं, नाक चपटी है, कहकर कमतर आंका जाता है। उन्हें एहसास दिलाया जाता है कि अगर चेहरे की रंगत साफ नहीं है, तब शादी नहीं होगी और इसका नतीजा होता है कि लड़कियां घरों में चोरी करने लगती हैं ताकि महंगे ब्रांड्स के प्रोडक्ट खरीद सकें। इतना ही नहीं बिना जाने-समझें किसी के भी कहने से घरेलू चीजें लगाना शुरु कर देती है, जिसके परिणाम कभी कभी त्वचा के लिए घातक भी साबित होते हैं। हर इंसान को समझना होगा कि खूबसुरती रंग-रुप में नहीं बल्कि पूरे व्यक्तित्व और व्यवहार में होती है। 

अभिभावकों के लिए आवश्यक है कि वे अपने बच्चों के अंदर ऐसी हीन-भावना पनपने नहीं दे। बच्चों को सीखाना चाहिए कि वे अपनी पढ़ाई, भाषा, बुद्धिक्षमता व व्यवहार पर ध्यान दें। ना कि किसी के बहकावे में आकर स्वयं को कमतर आंके क्योंकि हर एक व्यक्ति के अंदर कुछ ना कुछ खासियत होती है, जिसे निखारना चाहिए। 

सच कर देगा हैरान 

डॉ पूजा चोपड़ा, कंसल्टेंट, त्वचा रोग विशेषज्ञ, आकाश हेल्थकेयर, द्वारका, नई दिल्ली बताती हैं कि, “लोगों में बढ़ती गोरी त्वचा के क्रेज ने ही फेयरनेस क्रीम बनाने वाली कंपनियों के लिए रोज़गार के अवसर खोले हैं। हम जिस त्वचा के साथ पैदा हुए हैं, उसकी रंगत कोई नहीं बदल सकता। हालांकि इन तथाकथित फेयरनेस क्रीम में हाइड्रोक्विनोन जैसे ब्लीचिंग एजेंट होते हैं, जो मेलेनिन के उत्पादन को कम करते हैं (त्वचा वर्णक जो आपके रंग को निर्धारित करता है) वे सूर्य की किरणों को भी अवरुद्ध करने का काम करते हैं। 

हाइड्रोक्विनोन के अलावा इनमें से कुछ क्रीम में लेड, क्रोमियम, निकेल और मरकरी जैसे हानिकारक रसायन भी होते हैं, जो त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं और जिससे मुंहासे, एलर्जी आदि होने का खतरा भी होता है। ये स्टेरॉयड तुरंत गोरा बनाने का काम करते हैं, जिससे असमय बूढ़ापा, मुंहासे, त्वचा के पतला होने का खतरा बढ़ जाता है। फेयरनेस क्रीम निश्चित रूप से नशे के समान है, जिसे अगर एक बार लगा लिया और त्वचा गोरी लगने लगी, तब बार-बार उसे खरीदने की इच्छा होती है।” 

किसी भी महिला या लड़की के लिए उसकी रंगत कभी भी सुंदरता का पैमाना नहीं हो सकती। किसी खूबसूरत सेलिब्रेटी को उदाहरण के तौर पर देखने से बेहतर है कि लड़कियां स्वयं समाज-परिवार में एक उदाहरण बनकर उभरे और गोरेपन की कसौटी पर नहीं बल्कि अपने पहचान को मजबूती प्रदान करें और व्यक्तित्व की कसौटी पर खरी उतरें। 

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