मां के इलाज के दौरान आया आइडिया और बन गए ब्लडमैन

मानवता का सबसे बड़ा धर्म एक दूसरे की मदद करना है ताकि धरती का चक्र यूं ही चलता रहे। आइए चेंजमेकर्स की अगली कड़ी में आज जानते हैं, पटना निवासी मुकेश हिसारिया के बारे में जो इस चक्र को आगे बढ़ा रहे हैं।

Last Updated on जून 14, 2022 by Neelam Singh

कहते हैं, भगवान का दिया कभी अल्प नहीं होता और रक्त का कोई विकल्प नहीं होता। 

हर साल लोगों को रक्तदान के प्रति जागरूक करने के लिए 14 जून को विश्व रक्तदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस साल की थीम- “Donating blood is an act of solidarity. Join the effort and save lives” है। पिछले साल 2021 की थीम “Give blood and keep the world-beating” थी। 

रक्त दान को महादान कहा जाता है लेकिन आज भी जागरुकता और डर के अभाव में लोग रक्तदान करने से डरते हैं बल्कि एक बूंद रक्त की कीमत उसी इंसान को महसूस हो सकती है, जिसने रक्त की कमी के कारण अपनों को खोया है। झारखंड के झुमरीतलैया में जन्मे मुकेश हिसारिया की जिंदगी ने भी कुछ ऐसा मोड़ लिया कि उन्होंने रक्तदान को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।  

शुरुआती कहानी 

मुकेश बताते हैं कि उनकी परवरिश पटना में हुई और शिक्षा राममोहन राय सेमिनरी स्कूल पटना से हुई। उसके बाद उन्होंने वाणिज्य महाविद्यालय, पटना कॉलेज से बी.कॉम पार्ट-1 तक की पढ़ाई की। हालांकि पढ़ाई अधूरी ही रह गई क्योंकि घर की जिम्मेदारियों ने अपने पंख फैलाने शुरु कर दिए थे इसलिए साल 1989 में उन्हें नौकरी करनी पड़ गई। 

कहते हैं होनी को कोई नहीं टाल सकता और मंजिल जहां लिखी होती है, वहां पहुंचा ही देती है, जिसके लिए केवल एक बहाना ही काफी होता है। कुछ ऐसा ही मुकेश के साथ भी हुआ। साल 1991 में मां की तबीयत बिगड़ गई और मां को इलाज के लिए वेल्लोर लेकर जाना पड़ा क्योंकि मां को गहन इलाज की जरूरत थी। मुकेश कहते हैं, “मां के इलाज के लिए करीब 1 महीने तक वेल्लोर रुकना पड़ा, जहां रक्त की कमी से परेशान लोगों को जूझते और रोते-बिलखते देखा। मेरा मन इन दृश्यों को देखकर दहल जाता था क्योंकि कई लोग मेरी आंखों के सामने चल बसे। हालांकि मां के इलाज के बाद मैं पटना वापस आ गया मगर एक कसक भी लेकर लौटा कि लोगों को रक्तदान के प्रति जागरूक करना होगा ताकि लोग रक्तदान करें।”

जब पसीज गया था मन 

वहीं एक और घटना के बारे में मुकेश कहते हैं, “वेल्लोर में मां के इलाज के दौरान मैंने एक बंगाली दंपति को भी देखा था, जो अपने 3 महीने के इकलौते बेटे के इलाज के लिए आए थे लेकिन बदकिस्मती से रक्त की आपूर्ति सही समय पर नहीं हो सकी और उस बच्चे की जिंदगी समाप्त हो गई। अपने इकलौते बेटे को खोने का गम शब्दों में पिरोया नहीं जा सकता। साल 1991 में ही मुकेश ने भी पहली बार सीएमसी वेल्लोर में रक्तदान किया था।”

“इन सब हालातों को देखने के बाद मन में इरादा पक्का हो गया था कि अब ब्लड बैंक शुरू करना है फिर 20-25 लोगों को इकट्ठा करके मां वैष्णो देवी सेवा समिति ट्रस्ट की नींव रखी, जिसका नाम मां ब्लड बैंक है। उस वक्त मां बेड पर थीं इसलिए काफी वक्त होता था। उस वक्त में कई लोगों को इकट्ठा करके रक्तदान करने के लिए प्रेरित करने का सिलसिला शुरू हुआ।” 

मानसिकता बदलना था चुनौती

मुकेश के लिए ये राह आसान नहीं थी क्योंकि आम आदमी की सोच में रक्त दान करने से कमजोरी होती है। वहीं आजकल इतने फर्जी ब्लड बैंक चल रहे हैं, जो लोगों से ठगी करने का काम करते हैं इसलिए लोगों का विश्वास जीतना भी एक बड़ी चुनौती होती है। हालांकि सोशल मीडिया के कारण एक फर्क जरुर पड़ा है कि अब लोग रक्त की जरूरत की खबर को काफी शेयर करते हैं, जिससे अधिकांश लोगों की जान बच जाती है। हालांकि मुकेश ने यह सीख हैदराबाद के युवाओं से ली थी, जो रक्त की आवश्यकता की खबर सोशल मीडिया पर पोस्ट करते थे। उस वक्त ओरकुट (Orkut) का जमाना हुआ करता था। अब धीरे-धीरे सोशल मीडिया की जड़ें काफी मजबूत हो गई है। 

इसके साथ ही अब तक लगभग 20 से ज्यादा बल्ड कैंप लगाए जा चुके हैं। कैंप में ब्लड डोनेट करने पर डोनर को एक डोनर कार्ड दिया जाता है, जिसकी मदद से वे डोनर कभी भी जरुरत पड़ने पर किसी भी सरकारी अस्पताल से ब्लड ले सकते हैं। इससे लोगों को एक खुशी होती है कि उन्होंने एक अच्छा काम किया है। मुकेश स्वयं हर साल 2-3 बार रक्तदान करते हैं और वे अपनी जिंदगी को यूं ही जीना पसंद करते हैं, जिसमें लोगों की मदद करना सर्वोपरि धर्म है।

थैलेसीमिया मुक्त बनाने का लक्ष्य

मुकेश बताते हैं कि उनका उद्देश्य बिहार को थैलेसीमिया मुक्त बनाने का है। साथ ही वे साल 2009 से सामूहिक विवाह समुदाय के माध्यम से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए ‘एक विवाह ऐसा भी’ मुहिम चला रहे हैं, जिसके तहत 488 जोड़ो का विवाह कराया जा चुका है। इसके अलावा दधीचि देहदान समिति के अंतर्गत आंख और अंगदान के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते हैं। साथ ही वे समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम भी चलाते रहते हैं ताकि लोगों को थैलेसीमिया के प्रति जागरूक किया जा सके। 

कोरोना काल के दौरान मुकेश ने जरूरतमंदों के लिए सोशल मीडिया के जरिए वचुर्अल ब्लड बैंक भी शुरू किया है। वे बिहार ब्लड बैंक नाम से फेसबुक पेज भी चलाते है और वे व्हाटसएप्प पर भी काफी सक्रिय रहते हैं। इसके साथ ही जो लोग डॉक्टरों के यहां जाने में असमर्थ हैं, उनके लिए ऑनलाइन परामर्श उपलब्ध कराया जाता है। हालांकि ये केवल उन डॉक्टरों द्वारा ही व्यवस्थित किया जाता है, जो स्वेच्छा से निःशुल्क कार्य करना चाहते हैं। वे इंडियन रेडक्रॉस सोसाइटी, शक्तिधाम सेवा न्यास के सदस्य भी हैं। 

हो चुके हैं पुरस्कृत 

अपने कार्य के लिए मुकेश को कई पुरस्कार मिल चुके हैं। साल 2017 में बरनवाल भवन न्यास, पटना द्वारा सम्मानित किया गया था। उन्हें साल 2018 में समाज सेवा सम्मान मिल चुका है, साल 2019 बिहार सरकार द्वारा आयोजित सड़क सुरक्षा कार्यक्रम में भी सम्मानित किया जा चुका है, साल 2019 में ही पंडित राजकुमार शुक्ल सेवा सम्मान बिहार सरकार कृषि मंत्रालय द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही साल 2020 अटल सम्मान से भी पुरस्कृत किया जा चुका है। 

लोगों का संघर्ष काफी विशाल होता है लेकिन उसे सफल एक इंसान की मेहनत बनाती है। इसी मेहनत की बदौलत आज मुकेश हिसारिया लोगों को रक्त उपलब्ध कराने का काम कर रहे हैं। रक्त की अहमियत को पहचानते हुए उन्होंने एक मुहिम की शुरुआत की, जिसमें लोगों का सहयोग मिलता गया। अब तो लोग प्यार से उन्हें ब्लडमैन कहकर बुलाते हैं।

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