माहवारी के दौरान सावधानी बरतें व बचें यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण (UTI) से

माहवारी एक सामान्य प्रक्रिया है, जो लड़कियों के शरीर के विकास के लिए आवश्यक है परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों व गरीब परिवारों में यह लड़कियों के लिए एक दुखद प्रक्रिया है, जानिए क्यों ...

Last Updated on मार्च 25, 2022 by Shabnam Sengupta

हम एक ऐसे समाज में रहते हैं, जहां महिलाओं को अपने कपड़े तक धूप में सुखाने की आज़ादी नहीं होती है। ऐसे में माहवारी या पीरियड्स को लेकर लोगों की सोच संकीर्ण होने से हम बिल्कुल अचंभित नहीं हो सकते हैं। आज भी ऐसी अनेक महिलाएं हैं, जिनके लिए पीरियड्स केवल एक सामान्य प्रक्रिया नहीं बल्कि एक दुखद प्रक्रिया है क्योंकि सुविधाओं की कमी और संसाधन का अभाव होने के कारण माहवारी अनेक समस्याओं को जन्म देती है।

हम सब जानते हैं कि माहवारी एक बायोलॉजिकल प्रक्रिया है, जो किशोर उम्र अर्थात 13-14 की उम्र पार करने के बाद लड़कियों को होती है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो लड़कियों के शरीर के विकास के लिए अत्यावश्यक है, मगर आज भी लगभग 23 लाख लड़कियों को पीरियड्स के दौरान वे सारी जरूरी सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं जिसकी वे हकदार होती हैं (NGO दसरा द्वारा 2014 में किये गए Spot On नामक सर्वे के आधार पर)। यही कारण है जिससे लड़कियां स्कूल छोड़ने पर मजबूर हो जाती हैं। जहां एक ओर लोग पीरियड्स के समय मेंसट्रुअल कप इस्तेमाल करने की दलील दे रहे हैं, वहीं हमारे समाज में आज भी एक तबका ऐसा है जो पीरियड्स की मूलभूत जरूरतों से भी अछूता है।

पीरियड्स के समय साफ-सफाई बहुत जरूरी

डॉ. कल्पना सिंह

यहां स्कूल छोड़ने के अलावा भी अनेक समस्याएं हैं, जिन पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना आवश्यक है। पटना की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. कल्पना सिंह बताती हैं कि पीरियड्स के समय गंदा कपड़ा इस्तेमाल करने और सेनेटरी पैड या कपड़ा निश्चित अंतराल के बाद ना बदलने के कारण लड़कियों को अनेक तरह के इंफेक्शन हो जाते हैं। जैसे – फंगल इंफेक्शन, बैक्टीरियल इंफेक्शन, सफेद पानी का बढ़ जाना, खुजलाहट बढ़ जाना, आदि। समस्या अगर गंभीर हो जाए तो योनि के आसपास की त्वचा का रंग लाल पड़ जाता है और वे सूज जाती है, जिनमें घाव होने का खतरा भी होता है। कई केसों में पीरियड्स के समय हुई साफ-सफाई की अनदेखी के कारण प्रजनन मार्ग (Reproductive tract) तक समस्या पहुंच जाती है जिससे फैलोपियन ट्यूब तक को क्षति पहुंच सकती है।

वहीं जब ये इंफेक्शन योनि से युरिनरी ट्रैक्ट की ओर बढ़ते हैं, तब यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण (UTI) होने का खतरा भी बढ़ जाता है। यूटीआई होने का एकमात्र कारण पीरियड्स ही नहीं है बल्कि साफ शौचालयों का ना मिलना और गंदे जगहों पर पेशाब या शौच करने से भी अनेक प्रकार की गंभीर बीमारियां महिलाओं को घेर लेती है।

जब सफाई के अभाव में हुआ यूटीआई

बिहार के मुजफ्फरपुर की रहने वाली कोमल (बदला हुआ नाम) ने बताया कि एक बार उन्होंने अपने दोस्तों के साथ नालंदा जाने का प्रोग्राम बनाया था। वे सब लोग ट्रेन के इंतजार में रेलवे प्लेटफार्म पर खड़े थे कि इतने में कोमल को पीरियड्स की आहट हुई। चुंकि तारीख नजदीक थी इसलिए वे सेनेटरी पैड के साथ ही निकली थी मगर सेनेटरी पैड लेने के लिए भी किसी शौचालय की जरुरत थी लेकिन रेलवे स्टेशन का एक टॉयलेट बंद पड़ा था और दूसरे का दरवाजा खुला हुआ था। ना चाहते हुए भी कोमल को उसी टॉयलेट का इस्तेमाल करना पड़ा लेकिन उसके करीब दो-तीन घंटे के बाद ही पेट के निचले हिस्से में दर्द बढ़ने लगा। बाद में डॉक्टर को दिखाने पर पता चला कि गंदे शौचालयों का इस्तेमाल करने के कारण ही उन्हें संक्रमण हुआ है।

जागरूकता की छोटी पहल

मुजफ्फरपुर के मुश्हरी इलाके में बसे सरकारी नव उत्क्रमित हाई स्कूल में पढ़ने वाली छात्रा अल्का ने बताया कि हर लड़की को पीरियड्स से जुड़ी जानकारी देने के लिए सरकार की तरफ से ‘पहेली की सहेली’ नामक एक छोटी पुस्तिका दी जाती है, जिसमें सेनेटरी पैड लेने, इस्तेमाल करने, डिस्पोज करने आदि की जानकारी उपलब्ध होती है। साथ ही सरकार की तरफ से पैड खरीदने के लिए राशि भी अकाउंट में भेजी जाती है।

पीरियड्स से जुड़ी कई परेशानियां

डॉ. कुलदीप कौर

मुजफ्फरपुर में हरि संत मैत्री सदन मातृत्व अस्पताल चलाने वाली स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. कुलदीप कौर ने बताया कि पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई हर एक महिला को रखनी चाहिए लेकिन जहां सेनेटरी पैड का पैकेट ही काली पॉलीथिन में लपेट कर दिया जाता हो और पान-मसाला और गुटखे की बिक्री खुलेआम की जाती हो, ऐसे में हम केवल बातें ही कर सकते हैं कि ‘ध्यान रखा जाना चाहिए’। हालांकि अनेक बार ऐसा देखा गया है कि जिन महिलाओं को सफेद पानी की समस्या और यूरिन पास करने में परेशानी होती है, उनकी बीमारी के मूल में कहीं-न-कहीं पीरियड्स के समय बरती गई असावधानी जुड़ी होती हैं।

एक घरेलू कामगार महिला ने नाम ना उजागर करने की शर्त पर बताया कि हम सब झोपड़ियों में रहते हैं। हमारा कोई पक्का घर या ठिकाना नहीं होता है। हमें जब भी महीना (अमूमन पीरियड्स को आम बोलचाल की भाषा में महीना भी कहा जाता है) होता है, उस समय कोई गंदा कपड़ा ही ले लेती हैं क्योंकि साफ कपड़ों को क्यों गंदा करना? इतना ही नहीं एक बार कपड़े में खून लग जाए, उसके बाद उसे धोकर सुखाकर दोबारा भी इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन उस महिला ने पूछने पर बताया कि कपड़ों को धूप में नहीं सुखा सकते क्योंकि कोई देखेगा तो अच्छा नहीं लगेगा।

अमृता सिंह

साल 2012 से बिहार में पीरियड्स को लेकर महिलाओं को जागरूक करने वाली नव अस्तित्व फाउंडेशन की फाउंडर अमृता सिंह का कहना है कि ‘महिलाओं को अपनी सेहत के प्रति जागरूक होना चाहिए’, ये केवल बोल देने भर से जागरूकता नहीं आ सकती है क्योंकि सालों की सोच को चुटकी में नहीं बदला जा सकता। इसके लिए लड़कियों को किशोरी होने की उम्र से ही पीरियड्स से जुड़ी बातों से अवगत कराना होगा ताकि वे घरेलु तौर-तरीकों और वर्षों से चली आ रही संकीर्ण सोच से लड़ सकें और अपनी सेहत के प्रति जागरूक हो सकें। पीरियड्स के समय साफ-सफाई का ख्याल रखना ना केवल यूटीआई से बचाता है बल्कि भविष्य में होने वाली कई गंभीर बीमारियों से भी रक्षा करता है। साथ ही पीरियड्स होने पर समय-समय पर सेनेटरी पैड के भर जाने और गीला महसूस होते ही, उसे बदल देना चाहिए और कागज में अच्छे से लपेटकर डिस्पोज कर देना चाहिए। साथ ही सामाजिक साफ़ सफाई का ध्यान रखते हुए कभी भी टॉयलेट आदि में फेंकने से बचना चाहिए क्योंकि इससे टॉयलेट के ब्लॉक हो जाने का खतरा बढ़ जाता है और कई तरह के संक्रमण होने लगते हैं।

केवल स्वच्छ माहवारी ही नहीं बल्कि स्वच्छ शौचालयों का होना एक लड़की की जिंदगी को बेहतर बना सकता है। साथ ही बच्चियां कहीं बाहर से किसी प्रकार की गलत या भ्रामक जानकारी ना प्राप्त करें, इसके लिए अभिभावकों को सचेत रहना होगा। माहवारी कोई समस्या नहीं है बल्कि हर एक लड़की के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है, जिसे आपसी सूझबूझ और सही जानकारी के बल पर दुखदायक होने से बचाया जा सकता है। 

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