डीमेक सर्जरी द्वारा बचायी जा सकती है आंखों की रौशनी

आंखें हमारे शरीर का सबसे कीमती एवं महत्वपूर्ण अंग है। नए तकनीकी विकास सदैव मदद करते है आँखों के स्वास्थ्य को बनाये रखने में। आइये जानते हैं एक ऐसी ही नयी तकनीक के बारे में...

Last Updated on फ़रवरी 15, 2022 by Neelam Singh

आंखें हैं, तो जहान है। आंखें न केवल प्राकृतिक सुंदरता को देखने में मदद करती है बल्कि स्वास्थ्य और खूबसूरती के लिए भी यह एक जरूरी अंग है। नेत्र विशेषज्ञ डॉ प्रतीक गुर्जर पाठकों के लिए कॉर्निया प्रत्यारोपण की एक अत्याधुनिक तकनीक के बारे में जानकारी दे रहे हैं। इसे डीमेक सर्जरी भी कहा जाता है। हालांकि यूएसए में इस तकनीक की शुरुआत वर्ष 2014 से हो चुकी है। भारत में अभी ये तकनीक सिर्फ तीन शहरों के आई केयर सेंटरों जेसे- चेन्नई, हैदराबाद और दिल्ली में उपलब्ध है।

क्या है डीमेक सर्जरी?

डॉ प्रतीक गुर्जर

नेत्र विशेषज्ञ डॉ प्रतीक गुर्जर बताते हैं डीमेक (Descemet Membrane Endothelial Keratoplasty – DMEK)आंशिक कॉर्निया प्रत्यारोपण की अत्याधुनिक तकनीक है, जिसकी मदद से आंखों के अत्यंत अंदरूनी हिस्से में मौजूद परत जिसे एंडोथेलियल कहा जाता है, की सर्जरी जाती है। एंडोथेलियल परत में कई कोशिकाएं मौजूद होती हैं। डीमेक सर्जरी में क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की केवल एक पतली परत को बदला जाता है। इस तकनीक के आने के पूर्व पूरे कॉर्निया या आम भाषा में कहें तो आंख की काली पुतली को दूसरे इंसान से ली गई पुतली से बदला जाता था, जबकि जरूरत पुतली के भीतर के किसी एक हिस्से को बदले जाने की होती थी।

कॉर्निया में पांच महत्वपूर्ण हिस्से या परते होती हैं। पूरी की पूरी पुतली को बदलने पर शरीर के सुरक्षा तंत्र प्रतिकार के कारण कई बार नई पुतली को रिजेक्शन का सामना करना पड़ता था और ऑपरेशन फेल हो जाते थे। ऑपरेशन फेल होने का प्रतिशत अक्सर 40 से 50 फीसदी तक चला जाता था जो बहुत अधिक था। इस समस्या को दूर करने के लिए डीमेक तकनीक विकसित की गई है, जो अब पूरे विश्व में एंडोथेलियल से जुड़ी समस्याओं के उपचार की सर्वमान्य तकनीक बन गई है। चूंकि इस तकनीक में केवल एंडोथेलियल की कोशिकाओं को बदला जाता है इसलिए इसमें रिएक्शन की संभावना ना के बराबर होती है।

डीमेक पद्धति में अब केवल उस हिस्से को बदला जाता है, जिसे बदले जाने की जरूरत होती है। कॉर्निया के पांच महत्वपूर्ण हिस्से या परते होती हैं, जिन्हें क्रमशः पीथेलियम, बोमेन्स लेयर, स्ट्रोमा, डेसमेट मेम्ब्रेन और एंडोथेलियल कहा जाता है। सबसे अंदर के हिस्से एंडोथेलियल में बहुत सारी कोशिकाएं होती हैं। ये कोशिकाएं हमारी पुतली या कॉर्निया को पारदर्शी बनाए रखती हैं। गौरतलब है कि ये  कोशिकाएं जन्म के समय ही बनकर आती हैं और उसके बाद दोबारा नहीं बनतीं। उम्र बढ़ने के साथ ये कोशिकाएं कम हो जाती हैं। जब ये कोशिकाएं अनुवांशिक कारणों, किसी चोट अथवा मोतियाबिंद की सर्जरी में आने वाली किसी परेशानी की वजह से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो आंख की पुतली पारदर्शी नहीं रह पाती और सफेद पड़ जाती है, और पुतली में सूजन आ जाती है। जैसे-जैसे पारदर्शिता कम होती है, वैसे-वैसे आंखों से दिखाई देना कम होता जाता है। साथ ही आंखों में चुभन, गड़न, छाले होना, धूप न देख पाना, पानी आना और आंखों का लाल होने जैसी समस्या सामने आती हैं। चूंकि शरीर इन कोशिकाओं को पुनः बना नहीं पाता इसलिए हमें किसी व्यक्ति से इन कोशिकाओं को लेकर प्रत्यारोपित करना होता है, जिसने नेत्रदान किया हो।

क्यों आवशयक है ये सर्जरी?

दरअसल डीमेक सर्जरी कॉर्नियल डीकंपनसेशन (Corneal Decompensation) के लिए किया जाता है। इसके लक्षण में कॉर्निया में सूजन आना है। कॉर्निया डीकंपनसेशन ही इसके प्रमुख कारण है। फुच्स (Fuchs) एंडोथेलियल डिस्ट्रोफी (Endothelial dystrophy), स्यूडो फेकिक डीकंपनसेशन (Pseudo thelial decompensation) मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद की सूजन, वायर केराटाइटिस (Viral keratitis) आदि के कारण डीमेक सर्जरी की आवश्यकता होती है।

और कहाँ उपलब्ध है यह सुविधा?

भारत के तीन बड़े शहरों चेन्नई, हैदराबाद और दिल्ली के अलावा भोपाल में भी इस तकनीक को अपनाया गया है। भोपाल स्थित सुदर्शन नेत्रालय में केवल मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान यहां तक कि छत्तीसगढ़ से भी मरीज आते हैं। इसी तरह हैदराबाद, चेन्नई और दिल्ली के आसपास के मरीज वहां जाते हैं। डॉ प्रतीक के अनुसार “अब लोग बहुत जागरूक हो गए हैं। इंटरनेट के जरिए सभी को हर तरह की जानकारी आसानी से मिल जाती है। फोन पर संपर्क कर समय निर्धारित कर सकते हैं। इस तरह के सर्जरी के लिए अब मरीजों को बहुत भटकना नहीं पड़ता है।”

सर्जरी से सम्बंधित खर्चे के बारे में बताते हुए डॉ प्रतीक कहते हैं कि यह सर्जरी सभी प्रकार के लोगों की पहुँच में है। पूरे उपचार पर मात्र 40 से 50 हजार तक का खर्च आता है, जो कोई भी व्यक्ति आमतौर पर खर्च कर सकता है। साथ ही अब प्रायः सभी के पास हेल्थ इंश्योरेंस होता है जो लोगों को अच्छा इलाज कराने में मदद करता है। डॉ प्रतीक बताते हैं कि वर्ष 2014 से उन्होंने डीमेक तकनीक को अपनाया और अब तक इस तकनीक से 100 से अधिक सर्जरी कर चुके हैं।

भोपाल जिले से करीब 70 किलोमीटर दूर होशंगाबाद जिले के डोलरिया तहसील के रहने वाले सतीश राजपूत पेशे से किसान हैं। उन्होंने भी डीमेक सर्जरी द्वारा अपनी आंखों की खोई हुई रोशनी को दोबारा प्राप्त किया है। सतीश ने बताया कि वे अपने खेत में काम कर रहे थे कि अचानक एक टिड्डा आकर उनकी खुली दाहिनी आंख को जख्मी कर गया। इसके बाद से उन्हें उस आंख से दिखाई देना बिल्कुल बंद हो गया। अपनी आंखों के इलाज के लिए उन्हें बहुत भटकना पड़ा, जिसमें काफी पैसे भी खर्च हो गए। फिर सतीश को डॉ गुर्जर के बारे में पता चला और अपना इलाज कराना शुरू किया और करीब 14 माह पहले ही उनकी डीमेक सर्जरी हुई है। उसके बाद 4 माह बाद दूसरी सर्जरी हुई। उसके बाद सतीश की आंखों की ज्योति वापस आई, अब वे उसी आंख से पूरी दुनिया देख पा रहे हैं।

 

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