कुष्ठ रोग के प्रति दृढ़ करनी होगी लड़ाई

Last Updated on जनवरी 29, 2023 by Neelam Singh

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत के कई राज्य और केंद्र शासित प्रदेश कुष्ठ रोग से ग्रसित है। प्रति 10,000 व्यक्ति की जनसंख्या पर 4.56 मामले सालाना स्तर पर सामने आ रहे हैं। देश में कुष्ठ रोग की व्यापकता दर प्रति 10,000 जनसंख्या पर 0.4 है। साल 2020-2021 के दौरान पाए गए नए मामलों में 58.1% मल्टीबैसिलरी थे, 39% महिलाएं थीं, 5.8% 14 साल से कम उम्र के बच्चे थे और 2.41% लोगों में कुष्ठ रोग होने की संभावना पाई गई है। इन आंकड़ों को अगर साधारण भाषा में समझें, तो लोगों में कुष्ठ रोग के प्रति जागरुकता का अभाव है, जिस कारण कुष्ठ रोग के मरीज बढ़ रहे हैं। 

विश्व कुष्ठ रोग दिवस हर साल जनवरी के अंतिम रविवार को मनाया जाता है. इस बार की theme “Act Now. End Leprosy” है। इसका अर्थ है- मूल से खत्म करना संभव है (Elimination is possible), अभी करो (Act Now), पहुंच से बाहर लोगों तक पहुंचे (Reach the unreached).  

अंग विकृति का हो सकते है शिकार

Leprosy Mission Trust India कुष्ठ रोग को लेकर जागरुकता फैलाने और इससे जुड़े मिथकों को तोड़ने के लिए प्रयासशील है। उन्होंने बताया, महाराष्ट्र के अमरावती जिले की रहने वाली सीमा,चरवाहा समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। जब उनकी मां पशुओं को चराने जाया करती थीं, तब सीमा भी उनके साथ जाती थीं। एक रोज सीमा की मां को सीमा के गाल, पैर,और कमर पर धब्बे दिखाई दिए और उस वक्त सीमा केवल 9 साल की थी। किचन में काम करने के दौरान सीमा की मां ने महसूस किया कि सीमा को दर्द का एहसास नहीं हो रहा है। जब सीमा के दाहिने हाथ में गरम तवा लगा, तब भी सीमा को दर्द का अंदाज़ा तक नहीं हुआ। इसके बाद सीमा की मां ने सीमा को गांव के ही एक डॉक्टर को दिखाया, जहां तकरीबन 1 साल तक सीमा का इलाज चला। 

Leprosy

इलाज तो हो गया मगर सीमा के दाएं हाथ में deformity आ गई। एक एनजीओ की सहायता से सीमा ने स्वयं पर ध्यान दिया, अपनी पढ़ाई पूरी की और शादी के बाद अपने हाथों का ऑपरेशन भी करवा लिया है, जिसके बाद उनके हाथ बिल्कुल सामान्य हो गए हैं। 

विकलांगता का डटकर किया सामना

उत्तप्रदेश के प्रयागराज जिले के रहने वाले पंकज कुमार श्रीवास्तव कुष्ठ रोग के विरुद्ध अभियान चला रहे हैं क्योंकि उन्होंने भी कुष्ठ रोग के समय होने वाले मानसिक एवं शारीरिक परेशानियों का सामना किया है। वे बताते हैं, जब उन्हें कुष्ठ रोग के बारे में पता चला तब देर हो चुकी थी। उनके शरीर से बदबू आती, शरीर में किसी दर्द का एहसास नहीं होता, यहां तक की उनकी आंखें भी पूरी बंद नहीं हो पाती थी। 

इन कारणों से उनके दोस्त उनसे दूरी बनाने लगे और इलाज के बावजूद भी उन्हें अपने दाएं पैर से हाथ धोना पड़ा क्योंकि कुष्ठ का घाव पैर में पूरी तरह फैल चुका था। लेकिन इस यात्रा ने उन्हें पूरी तरह बदल दिया। अस्पतालों की स्थिति और कुष्ठ रोग को लेकर लोगों के अंदर हीनभावना ने उन्हें कुष्ठ समुदाय आधारित संगठन बनाने के लिए प्रेरित किया। साल 2017 की फरवरी में उन्होंने 12 लोगों के साथ मिलकर जागरूकता आधारित संगठन का निर्माण किया और वे लोगों को कुष्ठ रोग के प्रति जागरुक कर रहे हैं।  

जानें क्यों होता है कुष्ठ 

कुष्ठ रोग को अंग्रेजी में Leprosy या चिकित्सक गेरहार्ड आर्मोर हैन्सेन (Dr Gerhard Armauer Hansen) के नाम पर  हैन्सेन का रोग (Hansen’s Disease) कहा जाता है। यह माइकोबैक्टेरियम लेप्री (Mycobacterium leprae) और माइकोबैक्टेरियम लेप्रोमेटॉसिस (Mycobacterium lepromatosis) के संक्रमण के कारण होता है। कुष्ठ में मुख्य रुप से आंखें, त्वचा, परिधीय तंत्रिकाएँ और mucosa of the upper respiratory tract प्रभावित होता है। इसमें सबसे पहले त्वचा के ऊपर हल्के दाग (patches) आते हैं और रोग की शुरुआती स्थिति में त्वचा की संवेदना समाप्त हो जाती है। यदि इस स्थिति में उपचार ना किया जाए, तब रोग में हाथ, पैर, चेहरे ,और आंखों की मांसपेशियों में कमजोरी या पक्षाघात (paralysis), पैरों के तलवों में अल्सर और अंधापन हो जाता है। 

कुष्ठ रोग का इलाज संभव है और प्रारंभिक अवस्था में उपचार करके विकलांगता को रोका जा सकता है लेकिन इसके लिए इस बीमारी के प्रति जागरुकता और इलाज के बारे में जानकारी बेहद जरुरी है क्योंकि कई बार लोग इसी कारण कुष्ठ रोग की चपेट में आ जाते हैं। साथ ही कुष्ठ रोग के प्रति जागरुकता फैलाने और लोगों को बेहतर इलाज मुहैया कराने के लिए कई संगठन एवं एनजीओ कार्य कर रहे हैं। 

निम्नलिखित बिंदूओं पर दें ध्यान

  • मल्टी ड्रग थेरेपी (एमडीटी) नामक एंटीबायोटिक दवाओं के संयोजन से कुष्ठ रोग का इलाज संभव है। यह इलाज पूरी दुनिया में मुफ्त में उपलब्ध है। यदि कुष्ठ रोग का इलाज सही समय पर नहीं किया जाए, तो यह गंभीर जटिलताएं पैदा कर सकता है।
  • कुष्ठ रोग कम से कम 4,000 साल पुराना है, इसे सबसे पुरानी बीमारियों में से एक माना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य साल 2030 तक 120 देशों के कुष्ठ संबंधित आकंडों को शून्य तक पहुचना है।
  • हालांकि COVID-19 से पहले हर साल लगभग 200,000 कुष्ठ रोग के मामले सामने आते रहे हैं। महामारी के दौरान कुष्ठ रोग जागरूकता कार्यक्रमों में हुए व्यवधानों के कारण इन कार्यक्रमों की संख्या 30% तक गिर गई है। लाखों लोग कुष्ठ रोग के कारण दिव्यांगों की जिंदगी जीने को मजबूर हैं।

यह जानना जरुरी है कि जिन कुष्ठ रोगियों का इलाज ना हुआ हो, उनके लगातार संपर्क में रहने पर उस व्यक्ति को कुष्ठ होने का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि कुष्ठ का संक्रमण नाक और मुंह के द्वारा बड़ी आसानी से होता है। यहां तक की सालों साल, कभी-कभी 20 साल तक लग जाते हैं, कुष्ठ रोग के लक्षण दिखाई देने में इसलिए इस दौरान एहतियात बरतना भी जरुरी होता है। हालांकि हम वह पीढ़ी बन सकते हैं, जो अंततः कुष्ठ रोग के संचरण को समाप्त कर दे लेकिन इसके लिए जरुरी है कि कुष्ठ के प्रति जागरुक होने का प्रयास स्वयं से किया जाए।

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