झारखंड में गहराता एनीमिया का संकट

एनीमिया रक्त से संबंधित एक ऐसी बीमारी है, जो शरीर में आयरन की कमी से होती है। जानिए कैसे झारखण्ड में इस बीमारी का संकट फ़ैल रहा है और प्रसाशन द्वारा इसकी रोकथाम के लिए क्या कदम उठाये जा रहे हैं...

Last Updated on अप्रैल 28, 2022 by Neelam Singh

मानव शरीर में जब हीमोग्लोबिन का बनना कम हो जाता है, तब शरीर की स्फूर्ति भी धीरे धीरे घटती चली जाती है। परिणाम स्वरूप इंसान सुस्त व कमजोर होता चला जाता है।  गर्भवती महिलाओं, छोटे बच्चों व लम्बे समय से बीमार चल रहे इंसानों में अक्सर यह बीमारी देखने को मिलती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार गर्भवती महिलाओं में एनीमिया होने का अत्यधिक खतरा रहता है। दुनिया भर में 40 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रसित रहती हैं। वैसे तो गर्भवती महिलाओं में 20 से 30 फीसदी अधिक रक्त मात्रा होती है ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे को ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन मिल सके किन्तु ऐसा हमेशा संभव नहीं है।

चिकित्सकों के मुताबिक एनीमिया तीन तरह का होता है, माइल्ड, मॉडरेट व सीवियर। अगर बॉडी में हीमोग्लोबिन 10 से 11 जी/डीएल के आसपास हो, तो इसे माइल्ड एनीमिया कहते हैं। यदि हीमोग्लोबिन 8 से 9 जी/डीएल हो तो मॉडरेट एनीमिया, और यदि हीमोग्लोबिन 8 जी/डीएल से कम हो तो इसे सीवियर एनीमिया कहते हैं। उपरोक्त तीनों में से सबसे आम आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया है। आंकड़ों के मुताबिक करीब 90 फीसदी लोगों में यही एनीमिया होता है। आयरन की कमी वाला एनीमिया एक ऐसी स्थिति है, जिसमें रक्त में पर्याप्त स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं की कमी होती है।

एनीमिया की वजह

उन प्रदेशों में एनीमिया की स्थिति ज्यादातर देखने को मिलती है, जहां गरीबी, अशिक्षा, अंधविश्वास, महिलाओं की दयनीय स्थिति, अनावश्यक प्रजनन, आहार की समस्या और उचित संसाधनों का अभाव पाया जाता है। दलित, आदिवासी, अनपढ़ और आर्थिक स्तर पर पिछड़े इलाकों में एनीमिया जैसी बीमारी से प्रतिवर्ष सैकड़ों महिलाएं, पुरुष व बच्चे असमय ही काल के गाल में समा जाते हैं।

आदिवासी बहुल इलाकों में जहां एक ओर खेती और वनोपज पर अधिकांश आबादी की निर्भरता होती है, वहीं दूसरी ओर पौष्टिक भोजन की अपेक्षा शराब व नशीले पेय पदार्थों का सेवन, घर से लेकर बाजार तक की तमाम व्यवस्था में औरतों का अत्यधिक शारीरिक श्रम व शिक्षा तथा आय उर्पाजन के लिए पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर परिवार की निर्भरता भी महिलाओं और किशोरियों में इस बीमारी के फैलने का एक बड़ा कारण है।

ज्यादातर महिलाएं एनीमिया से पीड़ित होती हैं, लेकिन बच्चे और पुरुष भी इसका शिकार हो जाते हैं। मनुष्य के शरीर में लौह तत्व की कुल मात्रा शरीर के वजन के हिसाब से 3 से 5 ग्राम होती है। जब यह कम हो जाता है, तो खून बनना कम हो जाता है। जब मनुष्य के शरीर में कुछ विटामिन फोलेट, विटामिन बी -12 और विटामिन सी सामान्य से कम होते हैं तो वह एनीमिया को जन्म देते हैं। एनीमिया अनुवांशिक या अधिग्रहित बीमारियों के कारण भी हो सकता है। फैंकोनी एनीमिया एक दुर्लभ बीमारी है, जो मुख्य रूप से अस्थि मज्जा को प्रभावित करती है। इसके परिणामस्वरूप सभी प्रकार की रक्त कोशिकाओं का उत्पादन कम हो जाता है।

जानिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

पटमदा (पूर्वी सिंहभूम) झारखंड में पदस्थापित डॉ. क्रिस्टोफर बेसरा के अनुसार एनीमिया कई वजहों से हो सकता है। लगातार खून बहने की वजह से, शरीर में खून की कमी, फोलिक एसिड, आयरन, प्रोटीन, विटामिन सी और बी 12 की कमी से। डॉ. बेसरा के अनुसार अगर किसी के परिवार में ल्यूकेमिया या थैलीसीमिया की बीमारी रही हो तो फिर उस स्थिति में एनीमिया होने का खतरा 50 फीसदी तक बढ़ जाता है। किसी दुर्घटना में अत्यधिक रक्तस्राव, अल्सर, मासिक धर्म या कैंसर एनीमिया के प्रमुख लक्षण हैं। थकान, असामान्य धड़कन, व्यायाम के समय सांस की तकलीफ व सिरदर्द, पीली त्वचा, पैर में मरोड़, अनिद्रा, सिर दर्द इसके अन्य प्रमुख लक्षण हैं।

डॉ. बेसरा आगे कहते हैं, लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने के लिए मानव शरीर में पर्याप्त हार्मोन नहीं होने के कारण हाइपर थायरायडिज्म, हाइपोथायरायडिज्म, किडनी की बीमारी, ल्यूपस और अन्य दीर्घकालिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। अल्सर, बवासीर, महिलाओं की मासिक अवधि और प्रसव के दौरान रक्त की कमी से एनीमिया हो सकता है। 1 से 2 वर्ष की आयु के बच्चों के शरीर में विकास के दौरान अधिक आयरन की आवश्यकता होती है। 65 से अधिक लोगों को खानपान सही नहीं होने के कारण बीमारियों की संभावना होती है।

एनीमिया की रोकथाम को लेकर वे आगे कहते हैं, उचित आहार का पालन करके आयरन की कमी, विटामिन बी 12 की कमी और विटामिन बी 9 की कमी से होने वाले एनीमिया को रोका जा सकता है। इस बीमारी में पर्याप्त खाद्य पदार्थों के साथ एक संतुलित पौष्टिक आहार शामिल है। पौष्टिक और संतुलित भोजन के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करना होता है कि शुद्ध और पर्याप्त पानी का सेवन किया जाता है या नहीं। ये सभी हीमोग्लोबिन के स्तर को काफी हद तक बनाए रखने में मदद करते हैं।

खुराक में बरतें सावधानी

एक ही समय में कैल्शियम और लोहे की खुराक नहीं लेनी चाहिए। कॉफी, चाय, और कुछ मसालों जैसे टैनिन युक्त चीजें दूध, सफेद अंडे, फाइबर कब्ज का कारण बनता है। बीमारी चाहे कोई भी हो, बिना डॉक्टर की सलाह से उसका उपचार नहीं होना चाहिए। बीमारी की अवस्था में मानव शरीर की तत्कालीन परिस्थितियों में डॉक्टर ही उचित सलाह दे सकता है। रक्त परीक्षण न केवल एनीमिया के निदान की पुष्टि करता है बल्कि अंतर्निहित स्थिति को इंगित करने में भी मदद करता है। पूर्ण रक्त गणना (सीबीसी), लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या, आकार, मात्रा और हीमोग्लोबिन सामग्री को निर्धारित करती है। रक्त लोहे का स्तर और सीरम फेरिटिन स्तर, शरीर के कुल लोहे के भंडार का सबसे अच्छा संकेतक माना जाता है।

एनीमिया के दुर्लभ कारणों का पता लगाने के लिए विशेष रक्त परीक्षण जैसे – लाल रक्त कोशिकाओं पर प्रतिरक्षा हमला, लाल रक्त कोशिका की नाजुकता और एंजाइमों, हीमोग्लोबिन की जांच महत्वपूर्ण होती है। विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे – संतरा, स्ट्रॉबेरी और टमाटर आयरन के अवशोषण को बढ़ाने में मदद करते हैं।

झारखंड में बढ़ रहा एनीमिया

झारखंड के कई जिलों में महिलाओं में एनीमिया की समस्या काफी बढ़ गई है। आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021-22 में एनएफएचएस-4 तथा एनएफएचएस-5 के आंकड़ों की तुलना करते हुए बताया गया है कि राज्य के 24 जिलों में से 10 जिलों में सभी आयु की महिलाओं (15-49 वर्ष) में एनीमिया में वृद्धि हुई है। 14 जिलों में युवा महिलाओं (15-19 वर्ष) में एनीमिया में वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार यहां संस्थागत प्रसव में काफी सुधार हुआ है। रांची में संस्थागत प्रसव की संख्या सबसे अधिक है। इसके बाद गिरिडीह का स्थान है। संस्थागत प्रसव की दर की बात करें तो यह पूर्वी सिंहभूम और कोडरमा में सबसे अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी सिंहभूम में वर्ष 2015-16 में संस्थागत प्रसव सबसे कम 37 प्रतिशत थी जो वर्ष 2019-21 में बढ़कर लगभग दोगुनी 68 प्रतिशत हो गई है। झारखंड में केवल 1998-99 की अवधि के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) थोड़ा अधिक था। इसके बाद वर्तमान दौर 2019-21 तक ग्रामीण क्षेत्रों में टीएफआर अधिक है।

सरकार है सजग

राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के अनुसार झारखंड के 42.9 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। एनीमिया से झारखंड के 69 प्रतिशत बच्चे और 65 प्रतिशत महिलाएं प्रभावित हैं। एनीमिया जैसी समस्या के समाधान की दिशा में किए जा रहे कार्य के अंतर्गत माताओं, बच्चों व किशोरियों के स्वास्थ्य में सुधार कर कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ तीन वर्षीय महा अभियान चलाया जा रहा है। अभियान के लिए बनाई गई टीम के माध्यम से घर-घर जाकर पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण से सम्बंधित जानकारी के साथ-साथ एनीमिया से पीड़ित 15 से 35 वर्ष आयु वर्ग की किशोरियों, महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के स्वास्थ्य की जानकारी हासिल करने की व्यवस्था की गई है। एनीमिया और कुपोषण के लक्षण दिखने पर नजदीकी आंगनवाड़ी केंद्र में रोगी की सघन जांच और उसके आधार पर आगे की कार्रवाई सुनिश्चित करने की व्यवस्था बनाई गई है। गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों को आवश्यक उपचार के लिए निकटतम स्वास्थ्य केंद्र भेजना सरकार की प्राथमिकता सूची में सबसे आगे है।

परियोजना के किए ग्रामीण क्षेत्रों में भेजने से पूर्व आंगनबाड़ी सेविका, आशा, एएनएम और स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के क्षमता निर्माण के लिए प्रखंड स्तरीय कार्यशाला आयोजित कर उन्हें प्रशिक्षित करने की व्यवस्था की गई है। जिला समाज कल्याण पदाधिकारी अनिता कुजूर कहती हैं, ग्रामीण क्षेत्र की अधिकतर महिलाएं और किशोरियां अपने स्वास्थ्य और पोषण को लेकर बहुत सजग और जागरुक नहीं हैं, जिसकी वजह से वे एनीमिया सहित कई अन्य बीमारियों की शिकार हो जाती हैं।। ऐसे में उन्हें पोषण अभियान के माध्यम से अपने घर परिवार में स्वास्थ्य और पोषण को लेकर सजग और जागरूक जागरूक करने का कार्य किया जा रहा है।

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