अपनी कोख खोने के बाद महिलाओं को है अब न्याय का इंतज़ार

Last Updated on नवम्बर 18, 2022 by Neelam Singh

कहते हैं, महिला बहुत मज़बूत होती हैं इसीलिए ईश्वर ने उसे जन्म देने की शक्ति दी है ताकि प्रकृति का चक्र सदैव चलता रहे। अधिकांश महिलाओं को अपनी इस शक्ति का एहसास तो होता है लेकिन इसके पीछे छिपे विज्ञान या शरीर की वास्तिवक संरचना का ज्ञान नहीं होता है, जिस कारण वे अनेक प्रकार के जालसाजों या गर्भाशय के सौदागरों के चंगुल में फंस जाती हैं। 

मुजफ्फरपुर के ग्रामीण इलाके की रहने वाली लगभग 30 वर्षीय शशिकला देवी ने नाम और जगह ना बताने की शर्त पर कहा, साल 2012 में दूसरे बच्चे के जन्म लेने के बाद मुझे बवासीर की दिक्कत हो गई थी। मलद्वार से खून आता था, जिस कारण कमजोरी बढ़ गई थी। गांव के ही एक डॉक्टर को दिखाने पर पता चला कि बवासीर को ठीक करने के लिए बच्चेदानी का ऑपरेशन करना होगा। उस वक्त सरकारी योजना (राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना) के तहत 30,000 रुपयों तक का इलाज मुफ्त में किया जाता था इसलिए बवासीर को ठीक कराने के लिए बच्चेदानी का ऑपरेशन करवा लिया लेकिन शशिकला को नहीं पता था कि अपनी अज्ञानता की कीमत उसे अपनी बच्चेदानी देकर चुकानी पड़ेगी। यह केवल एक उदाहरण है जबकि बिहार में ऐसी अनगिनत महिलाएं है, जिन्हें जागरुकता के अभाव में ऐसे कदम उठाने पड़ रहे हैं जिनका सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।

10,000 रुपयों के लिए किया ऑपरेशन 

साल 2011 एवं साल 2012 में बिहार में करीब 702 महिलाओं के बच्चेदानी का ऑपरेशन हुआ था। हालांकि ये केवल पंजीकृत आंकड़ा है इसलिए केवल आंकड़ों से हकीकत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। जांच में पता चला कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत डॉक्टरों ने केवल 10,000 रुपयों की कमाई करने के लिए महिलाओं की अज्ञानता का फायदा उठाया और बच्चेदानी का ऑपरेशन किया। 

28 अप्रैल 2016 को जांच के बाद बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग ने 40 साल से कम उम्र की महिलाओं को 2.5 लाख और 40 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को 1.5 लाख के मुआवजे का एलान किया लेकिन राज्य स्वास्थ्य विभाग ने हर महिला को समान मुआवजा देने के लिए उसे 50,000 रुपये कर दिया और कहा कि ये निर्णय वित्त विभाग द्वारा लिया गया है। इनमें से अधिकांश मामले समस्तीपुर और गोपालगंज जिलों से मिले, जहां क्रमशः 316 और 318 मामले सामने आए। कुछ मामले सीवान, शेखपुरा, मधुबनी और नवादा में भी मिले। 

अवैध तरीकों से महिलाओं का गर्भाशय निकालने का मामला काफी पुराना है। साल 2012 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत 16,765 महिलाओं के गर्भाशय का अवैध रुप से ऑपरेशन किया गया। बिहार में 15 प्रतिशत से ज्यादा ऑपरेशन किए गए और इनमें सबसे ज्यादा प्रभावित बिहार का समस्तीपुर ज़िला रहा। साल 2010 से 2012 के बीच समस्तीपुर में 5503 ऑपरेशन हुए। असल बात तो यह है कि साल 2022 तक भी महिलाओं को इंसाफ नहीं मिल सका है। कई योजनाओं के नाम बदल गए, कई डॉक्टरों के प्रमोशन हो गए। देखा जाए, तो सबकुछ बदल गया लेकिन ना महिलाओं को इंसाफ मिला और ना ही ऐसे मामलों में कमी आई। 

समझिए आंकड़ों का गणित 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 87.8 प्रतिशत महिलाओं ने बच्चेदानी को हटवाया है। हालांकि इस आंकड़ें में महिलाओं की सहमति शामिल हो सकती है क्योंकि इसमें 51.80 प्रतिशत महिलाओं ने अत्याधिक रक्तस्राव को रोकने, 24.94 प्रतिशत fibroids or cysts के कारण और 11.08 प्रतिशत महिलाओं ने गर्भाशय विकारों के कारण बच्चेदानी का ऑपरेशन करवाया है। 

साल 2012 में ही अपना गर्भाशय खो चुकी अनीता देवी (बदला हुआ नाम, पहचान ना उजागर करने की शर्त पर) ने बताया, “तीसरे बच्चे को जन्म देने के बाद ही मेरी तकलीफ बढ़ गई थी। निचले हिस्से में दर्द होता था। जब मैंने अपनी सास के साथ जाकर डॉक्टर को दिखाया तब उसने ऑपरेशन की बात कही लेकिन पता नहीं था कि बच्चेदानी ही निकल जाएगी फिर बाकी महिलाओं से पता चला कि सबकी कोख का सौदा हो गया है।” अनीता देवी की वर्तमान उम्र करीब 33 साल है । 

गर्भाशय हटाना है एक अंतिम निर्णय 

एक रिसर्च के अनुसार गर्भाशय को हटाना हमेशा एक अंतिम निर्णय होता है। अगर बिना गर्भाशय निकाले महिला का इलाज संभव है, तब गर्भाशय निकालना सही नहीं होता। बहरहाल, fibroid के कारण होने वाली माहवारी के अत्याधिक रक्तस्राव, निचले हिस्से में endometriosis, adenomyosis और fibroids के कारण होने वाले दर्द में या कैंसर के कारण भी गर्भाशय निकालने की सलाह दी जाती है। 

अब हालात ऐसे हैं कि महिलाएं अपने बच्चेदानी को खोने के बाद मुआवजे और न्याय के लिए भटक रही हैं लेकिन उन्हें केवल तारीखों में समेटा जा रहा है। इन महिलाओं की पीड़ा का अंदाजा कोई लगा भी नहीं सकता क्योंकि अधिकांश लोगों को ऐसा लगेगा कि इनका परिवार तो पूरा हो गया है, अब इन्हें अपने बच्चेदानी की जरुरत ही क्या है? मगर कोई ये नहीं सोच रहा कि महिला की कोख केवल बच्चा पैदा करने के लिए नहीं बल्कि स्वयं के स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण होती है। 

आखिर महिलाओं के गर्भाशय कहां जा रहे?

  • सबसे पहली बात जो सामने आती है, वह यह कि महिलाओं का गर्भाशय बीमा के पैसों की निकासी के लिए निकाला गया। निजी अस्पतालों, सरकारी अधिकारियों, बीमा कंपनियों के बीच सांठगांठ ने महिलाओं को गुमराह किया कि सर्जरी की आवश्यकता है।
  • अधिकांश अस्पताल जहां सर्जरी की गई वहां झोलाझाप डॉक्टर थे, जिन्हें दवा तक लिखने का अधिकार नहीं है मगर वे ऑपरेशन कर रहे थे।
  • हालांकि इस मामले में अभी तक किसी नर्सिंग होम और चिकित्सक पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है इसलिए महिलाओं के गर्भाशय के साथ आखिर क्या हुआ, यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल है लेकिन जिस तरह से ये गिरोह कार्य कर रहा था, उससे यही लगता है कि महिलाओं के गर्भाशय का सौदा कर दिया गया होगा या तस्करी हुई होगी।

एक महिला केवल इतना जानती है कि उसके अंदर उर्वरा शक्ति निहीत है और यही शक्ति पृथ्वी का सबसे बड़ा बल है लेकिन वे इस शक्ति से जुड़े वैज्ञानिक कारण से अनजान हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे – महिलाओं को केवल बच्चा पैदा करने की वस्तु समझना, अपनी लालसा को पूरा करने की वस्तु मान लेना आदि। अगर महिला अपने शरीर से जुड़े अंगों को लेकर ही जागरुक नहीं होगी, तब वह कैसे अपने शरीर से जुड़े निर्णय ले सकेगी। 

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