कोविड के दौरान बढ़ी हैं मानसिक परेशानियां – कश्मीर से एक रिपोर्ट

कोविड-19 महामारी ने समाज को हर स्तर पर प्रभवित किया है और लॉकडाउन के दौरान मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में वृद्धि देखने को मिली है। कश्मीर से एक रिपोर्ट प्रस्तुत है...

Last Updated on अप्रैल 27, 2022 by Neelam Singh

18 वर्षीय फराह (बदला हुआ नाम) कोविड-19 से ग्रसित होने के बाद इस बात को लेकर चिंतित थी कि अब कोविड-19 के कारण उसकी मृत्यु हो जाएगी। फराह का पूरा परिवार कोविड-19 से ग्रसित था। सभी को अलग-अलग कमरों में रखा गया था। अकेले रहते-रहते फराह के मन में आत्महत्या के विचार आने लगे, जिस कारण उसने खुद को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। 

फराह का केस देख रहीं कश्मीर के मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (आईएमएचएएनएस) की ​​​​मनोवैज्ञानिक डॉ जोया मीर कहती हैं, “कोविड के दौरान लोगों के अंदर आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ गई थी क्योंकि वे अपने कमरे में अकेले रहते थे और बाहरी दूनिया से एक तरह से संपर्क कट सा गया था। फराह कोविड के संक्रमण से तो उबर गई पर मानसिक तनाव से ग्रसित हो गयी। उसे कोविड से पहले भी कुछ मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं थीं लेकिन अपने परिवार और उपचार के कारण वह इससे उबर चुकी थी। हालांकि कोविड के बाद उसका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ गया, जिस कारण उसने इसे शारीरिक दर्द में बदलने की कोशिश की, जिसे वह मानसिक रूप से सहन नहीं कर सकती थी।”

और भी हैं ऐसे केस

डॉ जोया बताती हैं, “एक 28 वर्षीय व्यक्ति को श्रीनगर से जयपुर की यात्रा के दौरान कोविड-19 संक्रमण हो गया। जयपुर में उस रोगी को लगने लगा कि क्योंकि वह अपने घर से दूर है, और उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है इसलिए वह अब नहीं बच पायेगा। उसकी मनःस्तिथि को साझा करने वाला कोई नहीं था, जिसके बाद उसे बार-बार पैनिक अटैक आने लगे। उसे एक दिन में लगभग 20-25 पैनिक अटैक आते थे। कोविड से उबरने के बाद भी उसे ऐसे अटैक आते रहे और धीरे-धीरे उस पर स्वच्छता का जुनून सवार हो गया। वह हर 10 मिनट में अपने हाथ धोता और साबुन से साफ करने के बावजूद हाथ साफ करने के लिए सैनिटाइज़र का इस्तेमाल करता। घर में रहते हुए भी दिन में 10-15 बार मास्क बदलता क्योंकि उसे लगने लगा था कि उसे फिर से वायरस संक्रमण हो सकता है, जिस कारण उसकी मृ्त्यु तक हो सकती है।” 

क्या कहता है अध्ययन? 

कश्मीर में कोविड-19 के दौरान लोगों के व्यवहार में बदलाव और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों का निरीक्षण करने के लिए कश्मीर में कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य की गुणवत्ता पर IMHANS Kashmir द्वारा एक शोध किया गया। इस अध्ययन में पाया गया कि कोविड के दौरान लोगों में अवसाद, चिंता और तनाव का स्तर बढ़ गया था। साथ ही अधिकांश लोग गंभीर चिंता (94.2%), अवसाद (42.7%) और 48.5% मध्यम से गंभीर तनाव के लक्षण अनुभव कर रहे थे। साथ ही लॉकडाउन के कुछ हफ्तों के भीतर देश भर में मानसिक रूप से बीमार रोगियों में 20% की वृद्धि पाई गई ।

वर्तमान अध्ययन ‘वर्मा और मिश्रा’ द्वारा साल 2020 में किए गए एक अन्य अध्ययन के अनुरूप है, जिसमें पाया गया था कि आम भारतीय जनता में 25%, 28% और 11.6% मध्यम से बेहद गंभीर रूप में उदास, चिंतित और तनाव के लक्षण पाए गए थे। कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीयों में उच्च स्तर की चिंता पाई गई थी।

कुछ सामान्य लक्षण

श्रीनगर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ यासिर राथर ने THIP मीडिया को बताया कि उन पुरुषों और महिलाओं में 9% से 10% चिंता और 10.8% और 10.9% अवसाद की बढ़त देखी गई थी, जो कोविड से संक्रमित थे। 

“कोविड-19 ने ना केवल हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है बल्कि इसने लोगों के बीच मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं भी पैदा की है। दिनचर्या में व्यवधान, अलगाव में समय बिताना, वायरस के कारण लोगों के मरने की खबर सुनना या देखना और कई अन्य संबंधित परिवर्तनों ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है।”  

डॉ. यासिर ने आगे कहा, “कोविड-19 ने लोगों में निराशा की भावना भी पैदा की है। हर बीतते दिन के साथ लोग इसे अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर रहे थे और इस लाचारी ने उन्हें जीवन के नकारात्मक विचारों की ओर धकेल दिया। चिंता या अवसाद की गंभीरता हर मामले में भिन्न होती है। कुछ में हल्के लक्षण थे जबकि अन्य में चिंता और अवसाद के गंभीर लक्षण थे।”

हर वर्ग में अलग लक्षण 

THIP मीडिया से बात करते हुए डॉ. जोया ने बताया, “विभिन्न आयु समूहों ने कोविड से संक्रमित होने के बाद मानसिक स्वास्थ्य संकट के विभिन्न स्तरों को प्रकट किया है। हमने विभिन्न आयु वर्ग के लोगों के साथ मानसिक स्वास्थ्य के विभिन्न स्तरों को लेकर चर्चा की, जिसमें पाया गया कि किशोरों में कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद चिड़चिड़ापन की शिकायत बढ़ गई थी। वयस्कों में चिंता के लक्षण देखे गए थे। वहीं मध्यम आयु वर्ग के लोगों में गंभीर अवसाद के लक्षण बढ़ गए थे जबकि बुजुर्गों में देखा गया कि वे कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद मनोभ्रंश में चले गए। बुजुर्ग आबादी और अन्य मनोवैज्ञानिक सहवर्ती रोगियों में शुरुआती स्तर पर डिमेंशिया के लक्षण भी थे, जो उनमें चिंता या अवसाद की स्थितियों को और जटिल करते थे। इन स्थितियों का समाधान या छूट भी व्यक्ति की स्थिति की गंभीरता के आधार पर व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होती है। इस स्थिति में रोगी का इलाज उसके इतिहास, उसकी वर्तमान स्थिति को देखकर ही की जाती है क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ रोगी के शारीरिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।” 

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