क्या आपको भी पसंद है ‘गॉब्लिन मोड’ दिनचर्या?

आजकल ऐसे कई शब्द ट्रेंड करने लगते हैं, जिनका अर्थ समझ ही नहीं आता मगर netizens के लिए हर एक शब्द का अर्थ निकल जाता है। आज हम जानेंगे एक ऐसे ही शब्द 'गोब्लिन मोड' के बारे में…

Last Updated on जनवरी 25, 2023 by Neelam Singh

कोरोना काल ने इंसानी सोच को बहुत प्रभावित किया है। दो साल तक घर से बाहर न निकलने के कारण कई प्रकार के बदलाव हमारी जिंदगी में देखने को मिल रहे हैं। लोगों की जीवनचर्या अब बदल चुकी है। इसके साथ ही लोगों के सोचने का नजरिया भी बदल गया है और इसी बदलाव का नतीजा है कि इस साल ऑक्सफोर्ड वर्ड ऑफ द ईयर के लिए तीन शब्द मैदान में थे। इसमें ‘गॉब्लिन मोड, मेटावर्स और हैशटैग आईस्टैंडविद’ शामिल थे। साथ ही इस बार वोट देने का ऑप्शन मौजूद था इसलिए ऑनलाइन सर्वे में Goblin Mode को काफी पसंद किया गया। तीन लाख से ज्यादा वोट के साथ यह 93 प्रतिशत लोगों की पहली पसंद रहा। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस गॉब्लिन मोड का अर्थ क्या होता है? 

बचपन में आपने एक ऐसे किरदार के बारे में जरुर सुना होगा, जो गंदे, मैले-कुचले कपड़े पहनता था। उसके शरीर से हमेशा बदबू आती थी और लोग उससे दूर रहना पसंद करते थे। यहां तक की बच्चों को उनका नाम लेकर डराया जाता था। यह तो काल्पनिक हिस्से की बात हुई। वर्तमान समय में यह शब्द चर्चा का विषय इसलिए बना हुआ है क्योंकि अब गॉब्लिन मोड लोगों की पसंद बन गया है, मतलब गंदे या एक ही तरह के कपड़े पहने रहना, दिनभर बिस्तर पर पड़े रहना, सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना, घंटों लेटे-लेटे वेबसीरीज देखना, कामों को टालते रहना, आदि। यहां ध्यान रखें कि यहां अपने काम को केवल इसलिए टाला जा रहा है क्योंकि काम करने की इच्छा नहीं है। 

कोरोना की उपज है गॉब्लिन मोड? 

आपजैसा की हम सब जानते हैं कि कोरोना के समय लोग कमरों में बंद थे। यहां तक की कई दिनचर्या के काम भी थम गए थे और ऐसी स्थिति में ही धीरे-धीरे लोग आलस, टालू प्रवृत्ति की ओर बढ़ने लगे। ‘घर में ही तो रहना है तो क्यों करें’ वाला रवैया हावी होने लगा। हालांकि स्वच्छ्ता के प्रति लोग जागरुक थे मगर अब जब स्थिति सुधरने लगी है, तब लोग पूरी तरह से गॉब्लिन मोड में आ गए हैं। इसके साथ ही लोग बेहद खुशी और आत्मविश्वास के साथ स्वीकार कर रहे हैं कि वे गॉब्लिन मोड में हैं क्योंकि इसमें लोगों को लग रहा है कि वे अपनी मर्जी का काम कर रहे हैं और अपनी शर्तों पर जीवन जी रहे हैं।

अब आप खुद सोचिए कि अगर आप पानी पुरी खाने के लिए रुके हैं और आलू की जगह रबड़ी की फिलिंग मांगे, तब वहां खड़े लोगों के लिए आप खुद चर्चा का विषय बन जाएंगे और बाकी लोग आपको एक अलग निगाह से भी देखेंगे। कुछ ऐसा ही लोगों का व्यवहार होता है, जब वे गोब्लिन मोड में होते हैं। वे एकदम बेपरवाह हो जाते हैं लेकिन कुछ देर रुक कर सोचिए कि क्या यह सही है औ अगर सही है, तो किस हद तक सही है। 

अपने कार्यों से मुंह मोड़ना मतलब अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाना? केवल अपनी सहुलियतों के बारे में सोचना और बाकी के लोगों को कोई महत्व ही ना देना, क्या यह सही है? स्वयं को सर्वोपरि मानना और बाकी लोगों को कुछ ना समझना, क्या यह सही है? अगर ऐसा ही बर्ताव आपके साथ किया जाए, तब आपको कैसा लगेगा? कुछ अलग करना, अपने लक्ष्य के प्रति केंद्रित रहना और नकारातमक टिप्पणियों से स्वयं को दूर रखना ये सारी चीजें गोब्लिन मोड से बिल्कुल अलग हैं। अगर आपका रवैया सकारात्मक है और आप अपने अंदर कुछ बदलाव सकारात्मकता लाने और सकारात्मकता बांटने के लिए कर रहे हैं, तब ही सही है। 

खामियों को जानना भी है जरुरी 

गॉब्लिन मोड की कई खामियां हैं। जैसे- 

  • अगर कोई व्यक्ति अवसाद से ग्रसित होकर ऐसा बर्ताव कर रहा है, तब लोग समझ ही नहीं पाएंगे कि वह गोब्लिन मोड में है या अवसाद में है। ऐसे में परिवार या दोस्तों का ध्यान नहीं जाएगा और संभावना है कि व्यक्ति कोई गलत कदम उठा ले। 
  • कर्म प्रधानता खत्म हो जाएगी और अगर किसी काम के लिए टोका जाएगा तब लोग उसे अपने विरोध मानने लगेंगे कि सामने वाला उसे अपने तौर-तरीके में जीने नहीं दे रहा। 
  • गंदा और साफ-सुथरा ना होने के कारण शारीरिक रुप से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं, जो आगे चलकर गंभीर समस्या बन जाए।
  • लोगों में संवादहीनता बढ़ने लगेगी, जिससे अवसाद के केस भी बढ़ेंगे। 

हर किसी के अंदर है गॉब्लिन

देखा जाए, तो हर किसी के अंदर एक गॉब्लिन होता है। यह बिल्कुल वैसा है, जैसे- किसी इंसान के कंधों पर एक सफेद रंग का एंजेल बैठा हो और दूसरे कंधे पर काले लिबास में एक गॉब्लिन बैठा हो। जब यह गॉब्लिन इंसान पर हावी हो जाता है, तब इंसान गॉब्लिन मोड में होता है। यूं तो हम सबके अंदर नकारात्मक औऱ सकारातमक ख्याल आते हैं मगर हम अपनी परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेते हैं। मन और बुद्धि का सामंजस्य बिठाकर अपने विवेक से निरंतर कर्म करने में ही जीवन की सार्थकता होती है। 

हालांकि यह बात भी जरूर है कि समाज या सोशल मीडिया के दबाव में खुद से अपनी क्षमता के बाहर अपेक्षा करना और तनावपूर्ण जीवन जीना भी उतना ही हानिकारक है मगर उसका समाधान यह भी नहीं है कि ‘गॉब्लिन मोड’ जैसे ट्रेंड के वशीभूत होकर हम जीवन को जीना ही छोड़ दें और उसे जीवनशैली का नाम दे दें। बेहतर यही है कि नकारात्मकता को स्वयं पर हावी ना होने दिया जाए और अगर गॉब्लिन मोड को अपनाना ही है, तो किसी अच्छे काम के लिए अपनाया जाए ताकि समाज में भी आपके बेहतर कर्मों की पहचान बने।

Disclaimer: Medical Science is an ever evolving field. We strive to keep this page updated. In case you notice any discrepancy in the content, please inform us at [email protected]. You can futher read our Correction Policy here. Never disregard professional medical advice or delay seeking medical treatment because of something you have read on or accessed through this website or it's social media channels. Read our Full Disclaimer Here for further information.

Subscribe to our newsletter

Stay updated about fake news trending on social media, health tips, diet tips, Q&A and videos - all about health