डॉक्टरों की लापरवाही मरीजों को पड़ रही है भारी

मरीजों की अपने अधिकारों के प्रति अज्ञानता व डॉक्टरों की मरीजों के प्रति असंवेदनशीलता का परिणाम अंततः मरीजों व उनके परिवारजनों को ही भुगतना पड़ता है। आइये जानते हैं ऐसी परिस्थिति में क्या करना चाहिए ...

Last Updated on दिसम्बर 3, 2022 by Neelam Singh

आए दिन डॉक्टरों की लापरवाही की खबरें आती रहती हैं। साल 2021 की ही घटना है, जब डॉक्टर दंपती और उनके स्टाफ के कारण एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। वहीं साल 2022 में ही बिहार से एक खबर आई थी कि एक महिला जो अपने कान का इलाज कराने गई थी, वहां डॉक्टरों ने उसे एक ऐसा इंजेक्शन दे दिया कि महिला का एक हाथ ही काटना पड़ गया।  कानून नामक इस वेबसाइट पर दर्जनों ऐसे मामले दर्ज हैं, जहां डॉक्टरों की लापरवाही की कीमत मरीजों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी या अपने किसी अंग को गंवाकर चुकानी पड़ी। 

भारत में हर साल 5,200,000 लोगों की मृत्यु चिकित्सीय लापरवाही के कारण हो जाती है। इन आंकड़ों से ही लापरवाही की स्थिति और समाज में व्याप्त गंभीरता की कमी को समझा जा सकता है।

गलती की कीमत मरीज की जान 

पहले पहल देखकर भले लगे कि ये मामले उतने ज्यादा गंभीर नहीं हैं लेकिन एक पल रुक कर अगर सोचा जाए, तब महसूस होगा कि किसी एक की गलती या लापरवाही की कीमत किसी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है। दिक्कत अगर कानों में है, तो हाथ का क्या दोष? लेकिन उस महिला को आखिर अपने हाथ गंवाने पड़े, जिसके बाद उसकी पूरी जिंदगी ही पलट गई। 

वहीं पहले केस में अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण एक बुजुर्ग व्यक्ति को अपनी जान गंवानी पड़ गई। लुधियाना निवासी दीपक कुमार ने पुलिस को दी शिकायत में बताया है कि 15 जनवरी को उसके पिता को संक्रमण के इलाज के लिए आरोग्य अस्पताल में भर्ती कराया गया। 18 जनवरी को डॉक्टर दंपती की तरफ से उनका आपरेशन कर रिकवरी रूम में शिफ्ट कर दिया। दीपक कुमार बताते हैं कि, “उस समय सर्दी का मौसम था। पिता पर कंबल डाला हुआ था और दोनों पैरों के बीच एक हीटर लगा था। मैंने देखा कि पिता के कंबल से धुआं निकल रहा है। मैंने जैसे ही कंबल हटा कर देखा तब तक दोनों पैर बुरी तरह हीटर की गर्मी से झुलस चुके थे। जब मैंने डॉक्टर को पूरी बात बताई तो डॉक्टरों ने आश्वासन दिया कि पिता का ठीक उपचार किया जाएगा लेकिन मेरे पिता की हालत बिगड़ती गई। उन्हें डीएमसी में भर्ती कराया गया वहां डॉक्टर्स ने जांच के बाद एक पैर को काट कर हटा दिया। 12 अप्रैल को वह पिता को लेकर पीजीआई चंडीगढ़ चला गया जहाँ 20 अप्रैल को उनकी मृत्यु हो गयी।”

डॉक्टरों द्वारा लापरवाही के मामले बढ़ रहे हैं इसलिए हर एक नागरिक को अपने अधिकारों का ज्ञान होना आवश्यक है ताकि जरुरत पड़ने पर कानून की मदद ली जा सके। हालांकि डॉक्टरों द्वारा की गई लापरवाही को साबित करना मुश्किल होता है क्योंकि मरीज के पास ऐसे कम सबूत होते हैं, जिससे वे डॉक्टरों की लापरवाही को साबित कर सके लेकिन यदि कोई गलत दवाइयां मरीज को दी जा रही है, तब भी इसे लापरवाही की श्रेणी में रखा जाता है। अनेक मामले ऐसे भी होते हैं, जिसमें गर्भवती महिलाओं की डॉक्टरों की लापरवाही के कारण प्रसव के दौरान ही मौत हो जाती है। साथ ही डॉक्टर और मरीज के बीच संवाद की कमी भी लापरवाही का कारण बनती है।

धारा 337 एवं धारा 338 को जानें

आई पी सी (IPC) की धारा 337 लापरवाही से होने वाली साधारण क्षति के संबंध में उल्लेख करती है। हालांकि इस धारा में डॉक्टर शब्द का कहीं उल्लेख नहीं है लेकिन यह सभी तरह की लापरवाही के मामले में लागू होती है। इस धारा के अनुसार लापरवाही से अगर सामान्य नुकसान होता है, तब यह धारा लागू होती है। इसमें 6 महीने तक के दंड का प्रावधान है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 338 किसी आदमी के लापरवाही से किए गए काम की वजह से सामने वाले को गंभीर नुकसान होने पर लागू होती है। अगर डॉक्टर अपने इलाज में किसी भी तरह की कोई लापरवाही बरतते हैं, जिससे मरीज को स्थाई रूप से कोई चोट पहुंचती है या जीवन की हानि होती है, तब डॉक्टर को इस धारा के अंतर्गत आरोपी बनाया जाता है। इस धारा के अनुसार 2 वर्ष तक का कारावास दोष सिद्ध होने पर दिया जा सकता है। 

डॉक्टर की सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में रखा गया है, जिसका अर्थ उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण करना है। अगर किसी सेवा देने वाले या उत्पाद बेचने वाले व्यक्ति द्वारा कोई ऐसा काम किया गया है, जिससे उपभोक्ता को किसी तरह का शारीरिक या स्वास्थ्य से जुड़ा कोई नुकसान होता है, तब मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत चलाया जाता है। 

कानूनी धाराओं का हो सही इस्तेमाल 

हालांकि ये सारी कानूनी कार्यवाही एवं धाराएं हैं, जिसकी मदद से मरीज न्याय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं लेकिन कभी-कभी मामले इतने संगीन भी हो जाते हैं कि डॉक्टरों की लापरवाही को साबित करना ही स्वयं में एक चुनौती बन जाती है। यहां तक की अधिकांश मामलों में मरीज भी इसका गलत फायदा उठाते हैं और कोर्ट केस या डॉक्टरों के साथ मार पीट कर देते हैं। 

अगर अन्याय हुआ है, तो अपने हक के लिए आवाज़ उठाना बिल्कुल गलत नहीं है। साथ ही डॉक्टरों की लापरवाही के कारणों को जानना भी जरुरी है। जैसे – अत्याधिक काम का दबाब, व्यक्तिगत कारण आदि। इसके द्वारा डॉक्टरों की मानसिक स्थिति जानने-समझने का मौका मिलेगा और मरीजों के उपचार को लापरवाही रहित बनाया जा सकेगा। परस्पर एक दूसरे के सहयोग से ही बदलाव की आस लगाई जा सकती है। 

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