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साँच के पड़ताल: जड़ी बूटी मिश्रण के उपयोग करे से 3 दिन में ही कैंसर के अंतिम चरण के ठीक करल जा सकेला

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सारांश

सोशल मीडिया पे एगो वीडियो वायरल भइल रहे जेमे दावा करल गइल रहे कि अंतिम चरण वाला कैंसर के 72 घंटों में भी ठीक करल जा सकेला। दावा बा कि अखरोट, अंकुरित अनाज, शहद, लहसुन और नींबू से घर पर बनल मिश्रण के सेवन करें से इ बीमारी ठीक हो सकेला। वीडियो के हिसाब से, सबके घोल बना के फ्रिज में रख के और दिन भर खाते रहे के जरुरत परेला।
हमनी के जब जांच करनी तो दावा झूठ निकलल।

दावा

यूट्यूब (YouTube) पर एगो हिंदी वीडियो संदेश में दावा करल गइल रहे की अखरोट, अंकुरित अनाज, शहद, लहसुन और नींबू के घर के बनल मिश्रण, कैंसर के अंतिम चरण के रोग ठीक कर सकेला। वीडियो में ‘दवा’ बनाइके तरीका बतईले बाटे।

वीडियो के एगो संग्रहीत संस्करण इंहा दे खल जा सकेला।

ई वीडियो को एगो यूट्यूब (Youtube) चैनल हेल्थ टिप्स फॉर यू के नाम से प्रकाशित करल गइल रहे।

साँच के पड़ताल

का बतावल गइल नुस्खा से कैंसर के इलाज करे में मदद कर सकेला?

दावा कौनो भी शोध के स्रोत केजइसन उल्लेख न करेला। हमनी के दुसरको अनुसंधान भी अइसन कोनो शोध के पहचान ना कर पाइल जेमे कही लिखल हो की प्राकृतिक अवयवों के घोल से कोनो कैंसर रोधक औषधीय मिलल हो।

हमनी के इ मुद्दा पे जानकारी लेवेला कैंसर रोग विशेषज्ञ, आहार विशेषज्ञ और आयुर्वेद चिकित्सकों के पास पहुंचनी।

डॉ मनीष सिंघल, वरिष्ठ ऑन्कोलॉजिस्ट के हिसाब से, “इ दवा के कोनो आधार नइखे। इ घातक भी हो सकेला काहेकि एकरा चक्कर में जे लोग परी ऊ लोग असल असल वाला कैंसर रोग के हलके में लेवे लगी। कौनो तरह के कैंसर में डॉक्टर के सलाह के हिसाब से गंभीर चिकित्सा इलाज के जरुरत परेला। अइसन तरह के फर्जी दावा पे आंख मूंदकर के भरोसा करे से और ऊ भी कैंसर के चरम चरण में घातक होसकेला”।

काजल गुप्ता, डाइटिशियन और न्यूट्रिशनिस्ट और ईगो सर्टिफाइड अल्टरनेटिव मेडिसिन व्यवसायी के भी इ बारे में एकहि विचार बा। ऊ कहेली की, “इ सच नइखे। देईल गइल खाद्य प्रदार्थ स्वस्थ बा। लेकिन इ कहल जाए की इ कैंसर रोग के ठीक करसकेला उहो 3 दिन में तो इ पूरा झोट बात बा। कैंसर से बचेला सब स्वस्थ भोजन खाये के चाही पर खाली आहार से कैंसर के इलाज करल संभव नइखे”।

का कैंसर रोग के आयुर्वेद के माध्यम से या प्राकृतिक उत्पाद या हर्बल सामग्री के उपयोग से ठीक करल जा सकेला?

अभी तक अइसन कौनो सबूत नइखे मिलल जेमे कहल जा सके की कैंसर के इलाज कोइयो आयुर्वेद उत्पाद से ठीक करल जा सकेला। (स्रोत: इंहा और इंहा)

एकरा बारे में डॉ सिंघल कहेलन, “एलोपैथी दवाई में प्राकृतिक तत्त्व होएला जहां जरुरत परेला। पर कौनो विशेष उपचार पर कोई भी सामग्री के गुणवक्ता शोध द्वारा प्रमाणित करल जायेला।
प्राकृत उत्पाद कैंसर के इलाज कर सकेला, एकरा पे विश्वास करे से पहले, हमनी के इ जानल जरुरी बा की कितना मात्रा में प्राकृत अवयवों के कौन तरह के रोगी के उपचार ला देवे के चाँहि।

2017 में, AIIMS एगो प्रमुख शोध परियोजना शुरू करले रहे, जेमे केन्द्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के विशेषज्ञ लोगन के साथ मिलकर स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और मुंह के कैंसर के इलाज़ खातिर उपयोग करल जाए वाला आयुर्वेद औषधियों के प्रभावकारिता के अध्ययन और सत्यापन करि। जबकि एलोपैथी दवा के दुष्प्रभावों के कम करे में मदद करे वाला इ प्राकृतिक उत्पादों के बारे में कुछ रिपोर्टें सामने आइल बा, लेकिन एकर कोनो सबूत नइखे मिलल की आयुर्वेद के उत्पाद से कैंसर के इलाज हो सकेला। (इंहा स्रोत)

का गरम नारियल पानी कैंसर के इलाज कर सकेला?

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सारांश

व्हाट्सएप पर एकठो सन्देश कई बार सामने आयिल बा जेमे इ दावा बा की गरम नारियल के पानी पिए से कैंसर ठीक हो सकेला। इ दावा के मुंबई मेंटाटा मेमोरियल सेंटर के निदेशक डॉ राजेंद्र बडवे ने मान्यता देले बारन। हमनी के इ दावा के जांच की और पाया की यह पूरी तरह से गलत मिलल।

दावा

व्हाव्हाट्सएप पे एगो सन्देश कई बार सामने आयिल बा जे इ दावा करल गइल बा की गरम नारियल पानी पिए से कैंसर ठीक हो सकेला। सन्देश इ दावा करेला की नारियल के फांक और गरम पानी के मिश्रण “क्षारीय/अम्ल” बन जायेला और शरीर के घातक कोशिकाएं के मारेला।

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इ कथनी के बारे में डॉक्टर राजेंद्र बावडे का कहेलन?

मुंबई के टाटा मेमोरियल सेण्टर के डॉ राजेंद्र बावडे जे इ दावा के मान्यता देले बारन, इ दावा से इंकार करेलन। ओकरे बारे में मीडिया रिपोर्ट्स इंहा और इंहा देवल गइल बा।

का नारियल का पानी कैंसर के इलाज कर सकेला?

ई दावा के दुनिया के प्रमुख तथ्य चेक प्लेटफॉर्म्स भी नकार देलस। उ में से कई त वरिष्ठ ऑन्कोलॉजिस्ट को उद्धृत करले बारन। (स्रोत: इंहा क्लिक करें और इंहा क्लिक करें)

हमनी के वरिष्ठ ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ मनीष सिंघल से बात कइनी। उनकर कहना बा की “जे डॉक्टर के इ दावा का श्रेय जायेला ऊहे इ कथनी के खंडन करेलन। इ मिथक के साँच मान के बहुत्ते रोगि आपन नियमित उपचार बंद कर देले बारे। इ पूरा तरह से झूठ बा। हालाँकि नारियल के पानी अपने आप में स्वास्थ्य ला लाभदायक बा जेकरा से हाइड्रेटेड रखे में मदद करेला, लेकिन इ कैंसर का इलाज ना कर सकेला।”

का क्षारीय घोल कैंसर को ठीक कर सकेला?

इस पोस्ट में इ भी दावा करल गइल बा की गरम नारियल के पानी से कैंसर को ठीक करे के क्षमता एकर “क्षारीय” प्रकृति से आवेला। इ संदर्भ में डॉसिंघल कहेलन “कैंसर के ठीक करे वाला इ क्षारीय भोजन एकठो मिथक बा जो प्रयोगशाला में पेट्री डिश परकरल गइल कुछ शोधों से सामने आयल बा। मानव शरीर अलग तरह से काम करेला। भोजन के माध्यम से शरीर के PH को अम्लीय या क्षारीय ना बनावल जा सकेला। अगर कौनो तरहशरीर का PH बदल जायेला, तो एगो व्यक्ति के ICU में ले जा सकेला।”

क्या नारियल पानी और कैंसर पर एकर प्रभाव पर चिकित्सा शोध बा?

कैंसर कोशिकाओं पे नारियल पानी के प्रभाव के विषय में कुछ चिकित्सा अनुसंधान बा और ज्यादातर मामला में, परिणाम सकारात्मक बाटे।

हाल ही में 2019 में करल गइल एगो अनुसंधान में नारियल पानी के सिरका के संभावित कैंसर विरोधी पूरक आहार पायल गइल बा। इ अध्यन में स्तन कैंसर कोशिकाओं पर नारियल पानी के सिरका के ट्यूमर विरोधी प्रभावों की जांच करल गइल और परिणाम सकारात्मक मिलल बा।

एगो अन्य शोध में, हरा नारियल के पानी में ऋणात्मक(एनाओनिक) कैंसर विरोधी पेप्टाइड पायल गइल बा, जेकर अर्थ बा कि ऊ कुछ हद तक कैंसर से बचावे में सक्षम मानल गइल बा।

लेकिन ऐपे ध्यान देवे के जरूरत बा की एकरा में अधिकांश शोध इन-विट्रो करल गइल बा यानी की कोशिकाओं पे इ शोध प्रयोगशाला वातावरण में करल जायेला। वास्तव में ओमे से बहुत कम मनुष्यों पे वास्तविक जीवन में करल गइल बा। इसलिए, ऊ आगे के अध्ययन या बेहतर आहार के संकेत के रूप में कार्य करेलन, लेकिन ओमे नियमित उपचार प्रतिस्थापन के रूप में ना माने के चाहीं।

का मास्क फेफड़ा में फंगल संक्रमण के कारण बन सकेला?

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सारांश

फेसबुक पे एगो उपयोगकर्ता एगो संदेश पोस्ट करले बाटे जेमे इ दावा कराल गइल बा की मास्क के प्रयोग से लोगन के फेफड़ा में फंगल संक्रमण होजाएल। हमनी के इ दावे के संभावनाओं के जाँच करनी और पता चलल की मास्क तब्बे फंगल संक्रमण के कारण बन सकेला अगर ऊ अस्वच्छ या फिर गन्दा स्थिति में रखल गइल हो। हमनी के इ संदेश बहुते हद तक गलत पाइल गइल।

दावा

फेसबुक के एगो पोस्ट में इ दावा करल गइल रहे की मास्क पहने से लोगों के फेफड़ा में फंगल संक्रमण होजायेला। इ पोस्ट सभनि के इहो भी सलाह देवेला की मास्क पहने से ‘थोड़ा अंतराल लेवे के चाहीं’। इ दावे का एक संग्रहीत संस्करण यहां देखअल जा सकेला है और एकर आशुचित्र नीचे देवल गइल बा।

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साँच के पड़ताल

फेफड़ा के फंगल संक्रमण केकरा हो सकेला?

CDC के वेबसाइट के मानल जाए त केकरो के कौनो समय फंगल संक्रमण हो सकेला। हमनी के हर दिन फंगल बीजाणुओं के संपर्क में आवेनी और कई बार आपन सांस के माध्यम से इ अंदरो चल जाए ला। हमनी के शरीर के प्रतिरक्षा प्रणाली अइसन फंगल बीजाणु के खिलाफ लड़ने में सक्षम बा और एहिला ज्यादातर हमनी के कौनो दिक्कत ना होवेला। पर जॉन लोगन के प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर होवेला या जेकरा में पहिलहे ही से कौनो बीमारी बाटे त कवक/फंगस जइसन बीमारी का कारण बन सकेला।

का केहूके के मास्क पहिने से फंगल संक्रमण हो सकेला?

आम तौर पे मास्क पहिने से केहूके फंगल संक्रमण होये के संभावना बहुत कम या ना के बराबर होवेला। दिल्ली के फोर्टिस हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजिस्ट सलाहकार संजीव जैन के हिसाब से “फंगल संक्रमण खली अलग अलग तरह के मास्क के कारन न हो सकेला। या तो पहिने वाला अइसन वातावरण में होवे के चाही या जेकर प्राथमिक शारीरिक स्थिति अइसन हो, जे कारन ऊ अइसन संक्रमण के चपेट में आ सकेला।”

लेकिन, तब का होइ जब अस्वस्थ (पुन: उपयोग, अशुद्ध, गंदे हाथों से चुवल गइल ) हो? का ऊ फेफडा में फंगल संक्रमण का कारण बन सकेला?

डॉ जैन के इ मानना बा की इ बहुते हद तक मुमकिन बा और कहलन की “अगर मास्क के सही से ना रखल गइल तो मास्क में फंगस बढ़ सकेला जो की द्वितीयक फेफड़ा का संक्रमण का कारण हो सकेला।” अधिकतर भारतीय मास्क का पुनः उपयोग या मास्क ला उचित स्वच्छता बनाये रखेके या फिर सही तरह से मास्क के ना फेके से जेकरा वजह से मास्क के दूषित होये से सम्भावना बहुत बढ़ जावेला। डॉ जैन कहलन “गंदे मास्क के मतलब बा की ऊ साफ़ नइखे और वह पहले से ही दूषित होइ। गंदा या दूषित मास्क पहिने से द्वितीयक फेफड़े का संक्रमण जइसन की फंगल संक्रमण या फिर सामान्य जीवाणु संक्रमण हो सकेला।”

का मास्क पहिने से संक्रमण के कौनो कोई अन्य संभावना बा?

हमनी के ऐपर विस्तृत लेख करलेबनि कि लंबे समय तक मास्क के उपयोग करे से सांस लेवे में कोई समस्याएं कइसे होसकेला।

Dr-Joyeeta-Chowdhury-Dermatologist

इसके अलावा एनआरएस मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की एमडी सहायक प्रोफेसर, डर्मेटोलॉजी के डॉ जोइता चौधरी कहेली की “लोग फुटपाथ से मास्क खरीद रहल बारन। इ मास्क को बढ़िया से साफ़ करके या कीटाणुरहित बनाइल जरुरी बा। ना तो त्वचा संक्रमण भी हो सकेला। एकरा अलावा डिज़ाइन दार छप्पल मास्क पहिने के भी फैशन बा। इ मास्क में छपाई करल जाए वाला सस्ता गुणवत्ता के स्याही भी त्वचा के संक्रमण का एक कारण हो सकेला। हालाँकि, हमने इ तरह के केवल कुछ मामला के अलग-थलग करने के बारे में सुनले बानी।”

तो, का हमनी के मास्क पहनने से बचे के चाहीं?

बिलकुल ना। अइसन समय में मास्क एगो जरुरी वस्तु बा, खासकर यदि कौनो भीड़ वाले क्षेत्रों में यात्रा करता या सार्वजनिक क्षेत्रों से गुजरत होई। हालांकि, कइसनो संक्रमण से बचेला उचित स्वच्छता बनाए रखना और आपन मास्क साफ़ रखल जरुरी बा।

साँच के पड़ताल: का भोजन के बाद ठंडा पानी पिए से कैंसर होएला?

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सारांश

एक एगो फेसबुक पोस्ट इ दावा करेला की खाना खाये के बाद ठंडा पानी पिए से कैंसर होवेला। हमनी के जब इ जांच कइनी तो इ दावा गलत निकलल।

दावा

कौनो रघिदा द्वारा हेल्थ टिप्स नामक एक फेसबुक पेज इ दावा करले बा की खाना खाये के बाद ठंडा पानी पिए से कैंसर होवेला काहेकि ठंडा पानी तैलीय पदार्थ के जमा देवेला। इ दावे का एगो संग्रहीत संस्करण इंहा देखल जा सकेला और एकर आशुचित्र नीचे देवल गइल बा।

साँच के पड़ताल

का भोजन के बाद ठंडा पानी पिए से कैंसर होएला?

अइसन नइखे। ठंडा पानी पिए से कैंसर ना होएला। अगर रउवा वसायुक्त खाना खाये के बाद भी ठंडा पानी पियातनि तो रउवा ओकरा से कैंसर नहीं होगा। पेट में खाना ठंडे पानी की वजह से ना जमेला।
इ अवैज्ञानिक और झूठा दावा बा जेकर जाँच हमने पहले करले बानी। रउवा लोगन ईंहा पढ़ सकेनी

का गरम पानी पिए से शरीर ला फ़ायदा होएला?

आयुर्वेदा और चीनी औषधीय प्रथाओं के हिसाब से गुनगुना पानी पिए कुछ पहलुओं में फायदेमंद होवेला। पर एकर मतलब यह नइखे की ठंडा पानी पिए से नुकसान करि। हम नई के इ सुझाव बा की रउवा लोगन हमार इ विस्तृत तथ्यों के जांच पढ़ी जेकर लिंक इंहा देवल गइल बा।

साँच के पड़ताल : का १० सेकंड से १ मिनट तक सांस रोके से COVID-19 के जांच होसकेला?

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सारांश

सोशल मीडिया पर बहुत्ते पोस्ट में दावा करल गइल बा कि १० सेकंड तक सांस रोके से कोविद १९ के स्वयं जांच होसकेला, जबकि औरो दावा बा कि १ मिनट तक सांस रोके से कोविद ना हो सके ला। हमनी के जांच कइनी और पाइल गइल की कोविद १९ के जांच करे वाला ‘सांस रोकके रखल जाईल’ वाला बात गलत बा।

दावा

सोशल मीडिया पे बहुत तरह के दावा करल जा रहल बा जेमे लोगो के सुझाव देवल जाता की सांस रोके से कुछ देर COVID-19 के पता लगावल जा सकेला। अइसने एक जगह और पोस्ट में कहल गई रहे की नावेल कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों में 50% फुफ्फुसीय फाइब्रोसिस होवेला। इ तरह के एक पोस्ट का एक संग्रहीत संस्करण इंहा बा और स्नैपशॉट नीचे देखल जा सकेला।

सुप्रसिद्ध योग गुरु रामदेव भी इ साफ साफ दावा करले बारन की, जेमे लोगन के इ कहल गइल बा की 1 मिनट ले सांस रोके से इ पता चल जाई की रउवा कोविद-19 के रोगी बानी की ना।

साँच के पड़ताल

का COVID-19 के कउनो स्व परीक्षण बा?

दुनिया भर में बहुते संगठन द्वारा लक्षण के जांच करे वाला बहुते ऑनलाइन साधन शुरू करल गइल बा। आरोग्य सेतु जौना की भारत सरकार के एगो आधिकारिक एप्लिकेशन बा, जेकरा में कोविद-19 के दिखाई देवे वाला लक्षण जइसन की बुखार, गला में खराश, थकान, सुखल खांसी आदि के स्वयं मूल्यांकन के सुविधा देवेला। अगर लक्षण सकारात्मक दिखी, तो रोगि लोगन के आगे रक्त जांच ला सलाह देवल जायेला जो इ सुनिश्चित करेला कि उनकरा कोविद-19 बा या ना। USFDA हाले में कोविद-19 के घरे पे आत्म परीक्षण ला एगो रक्त परीक्षण किट के मंजूरी देले बा। इ परीक्षण डॉक्टरों के परामर्श और निर्देशों के अनुसार ही करे के परी।
लेकिन ‘सांस रोककर रखे वाला ‘ कौनो लक्षण जांचे वाला या बीमारी ला इ वैध परीक्षण नइखे।

का कोविद-19 वाला सभनि मरीज के सांस लेवे में दिक्कत होवेला?

सभनि कोविद-19 वाला रोगि में एक जइसन लक्षण ना होवेला। एकरा अलावा, विशेष लक्षण के गंभीरता भी एगो आदमी से दुसरका में भिन्न होवेला।

संजीव जैन, सलाहकार – पल्मोनोलॉजिस्ट, फोर्टिस अस्पताल, दिल्ली, के अनुसार, “हमनी के केवल कुछ मुट्ठी भर रोगी के देखतानी जे वास्तव में सांस लेवे के समस्या के शिकायत करेलन। इ उ कोविदरोगियों में से आधा से कम बा जिनकर हम इलाज करेनी।”

एहीसे, अगर इ कहल जाए की कोविद-19 के सभी रोगी के सांस लेवे में दिक्कत होवेला या कोविद-19 के मरीज़ सांस न रोक सकेला, इ बात गलत बाटे ।

फेफड़ों का फाइब्रोसिस का होवेला? का सभी कोरोनोवायरस रोगियों में 50 प्रतिशत फुफ्फुसीय फाइब्रोसिस होवेला?

पल्मोनरी फाइब्रोसिस (PF) अंतरालीय फेफ़ड़ा के बीमारी का एगो रूप बा जेमे फेफड़ा में निशान (क्षतचिह्न) बनजायेला। इ एगो प्रगतिशील बीमारी बा और उम्र या समय के साथ बढ़ते जायेला। इ बीमारी में फेफड़े के टिश्यू सख्त हो जायेला और मरीज को सांस लेवे में दिक्कत करदेवेला।
डॉ जैन कहेलन, “जौन रोगि में श्वसन संबंधी गंभीर जटिलताएँ होवेला, ऊ गंभीर एआरडीएस की ओर बढ़ सकेला, जेकरा से फेफड़ा में फाइब्रोसिस हो सकेला। लेकिन एकरा मतलब इ नइखे कि प्रत्येक सीओवीआईडी रोगी के फेफ़ड़ा में फाइब्रोसिस होये के खतरा बा। एकरा के मापेला कौनो अध्ययन नइखे करल गइल कि इ कहल जा सके फुफ्फुसीय फाइब्रोसिस के मामले में भी इ 50% तक बढ़ सकी। हर रोगि के इलाज के विशेषज्ञता के अनुसार, डेटा अस्पताल से अस्पताल में अलग-अलग हो सकेला।”

का नारियल तेल डेंगू के मच्छर के काटे से बचा सकेला?

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सारांश

सोशल मीडिया पोस्ट के ईगो दावा बा कि नारियल तेल के घुटना के नीचे से लगावे से मच्छर के काटे से बचाव हो सकेला और एहीसे डेंगू से भी बचल जा सकत बा। ई खबर तिरुपति के श्री साईसुधा अस्पताल के डॉ. बी. सुकुमार से आयिल रहे। हमनी के जांच कइनी तो ई गलत पाइल गइल।

दावा

सोशल मीडिया पे एगो दावा करल गई बा, “रउवा लोगन के इ बतावल जाता कि डेंगू वायरल हो रहल बा। त एहिला घुटना के निचे नारियल तेल लगाई ई एकठो जीवाणुनाशक ह और डेंगू वाल मच्छर घुटना से ऊपर न उड़ सकेला। तो रउवा लोगन से अनुरोध बा एकरा के ध्यान में रखी और प्रयोग में लायी। जेतना हो सकेला ई सन्देश के लोगन तक पहुँचाई। राउर एगो खबर बहुते जीवन बचा सकेला।”

ई खबर के श्रेय तिरुपति के श्री साईसुधा अस्पताल के डॉ. बी. सुकुमार के देवल जाता।

पोस्ट का संग्रहीत संस्करण यहां देखल जा सकेला। ओकरे केएक स्नैपशॉट नीचे देवल गइल बा:

साँच के पड़ताल

का श्री साईसुधा अस्पताल के डॉ. बी. सुकुमार दावा करले रहलन?

नाही। हमनी के डॉ. सुकुमार के पास पहुंचनी, ऊ कहलन कि उनकरा ला गलत तरीका से बतायिल गइल पुराना सन्देश बा। अइसन ऊ कोनो दावा नइखे करलन।

का एडीस मच्छर घुटना से ज्यादा ऊंचाई से ऊपर उड़ सकेला?

मच्छर घुटना से उपरो उड़ सकेला। हालांकि, मच्छर के इ प्रवृत्ति बा जो जमीन के निचे स्तर पे रहे के और एहीसे ज्यादातर पैर पे काटेला। लेकिन एकर इ मतलब नइखे कि ऊ ऊँचा न उड़ सकेला और हमनी के शरीर के कोनो हिस्सा में काट सकेला।

क्या नारियल के तेल में मच्छर भगावे के गुण होएला?

शोध से पता चलल ह कि नारियल के तेल में में स्वयं कौनो मच्छर निरोधक गुण ना होएला (स्रोत इंहा)। लेकिन नारियल तेल के अंदर पाए जावे वाला यौगिक, जब बहुते मात्रा में संसाधित होएला, त प्रभावी मच्छर से बचाये वाला क्रीम के रूप में कार्य कर सकेला। जबकि नारियल तेल से बनल मच्छर विकर्षक जल्द ही वास्तविकता हो सकेला, नियमित रूप से नारियल तेल को शरीर पर रगड़े से मच्छर के काटे से बचाओ ना हो सकेला

कोरोनावायरस के मारेला खातिर यूवी किरण: का सूरज के रोशनी असर ड़ाल सकेला?

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सारांश

सोशल मीडिया में एगो दवा करल जात रहे की यूवी किरण कोरोनावायरस के मार सकेला। हमनी के दावा के की पड़ताल करनी तो पालगाइल की ई आधा सच बा।

दावा

फेसबुक पर डालल गइल पोस्ट में लिखल रहे: सूरज के निचे रहा, काहे की सूरज से यूवी किरण निकली जो कोरोना वायरस के मारदेवेला। सभनि लोग अपन ध्यान रखी। हमरा पुरा यकीं बा की हमनी के जल्दी ठीक होजाम। सभनि लोगन दुआ करि / बढ़िया से खाई, सूती और घरे में रही।
पोस्ट के संग्रहीत संस्करण के यह देखल जा सकेला और ओकरे के एक स्नैपशॉट नीचे देवल गइल बा:

साँच के पड़ताल

का युवी किरण कोरोना के वायरस मार सकेला?

शायद। नेशनल अकादमी ऑफ़ साइंसेज के हिसाब से, ‘ई होसकेला की युवी किरण अन्य प्रकार के कोरोना वायरस के मार सकेला। एहीसे शायद ई नावेल कोरोना वायरस में कम करसकेला।’ (श्रोत)। UV-C वायरस या बैक्टीरिया के अनुवांशिक (श्रोत) के ख़त्म करेला एहिला एकरा के सार्वजनिक जगहवा पे कीटाणु मारेला उपयोग करल जायेला। बहुत्ते देश में एकहि तरीका से सभनि लोग कोरोना वायरस पे प्रयोग करतां।

ई साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एगो रिपोर्ट बा जेमे दिखाल गइल बा कि कइसे शंघाई में अधिकारी लोगन सार्वजनिक बसवा के कीटाणुरहित करेला UV किरण के उपयोग करतां।

सूरज के किरण में UV किरण होएला, त का एकर रौशनी कोरोना के वायरस मारसकेला?

अब तक हमनी के जो सचाई के जानतानी, ओकरा आधार पे सूरज के किरण कोरोना वायरस के ना मारसकेला। हमनी के पाहिले भी विस्तार से जांच करले बानी। इंहा पढ़ सकेनी।

अगर युवी किरण कोरोना के मारसकत रहे त सूरज से निकलता युवी किरण ओकरा के कहे नाही मार सकत?

कोविद -19 महामारी के शुरुए से और ओकरा बाद से, सूरज के रौशनी से वायरस के मारे वाले बहुत दावा करल। हमनी के एकरा पे जाँच पड़ताल पहिले ही करले बानी, इंहा देखि

सूरज के किरण से जो UV किरण आयेला ऊ तीन प्रकार के होएला – प्रकार ए ( जानल जायेला UV-A), प्रकार बी ( जानल जायेला UV-B) और प्रकार सी ( जानल जायेला UV-C)। ई सब में से UV-C बहुते ज्यादा ताकतवर विहीकरण बा जो सबो तरह के वायरस और बैक्टीरिया के आरएनए और डीएनए को बदलकर मारसकेला। मगर खाली UV-A और UV-B धरती तक पहुंचेला बाकी UV-C धरती के सतह तक पहुँच ना पावेला। UV-C धरती के ओजोन परत में फसंल रह जाला। (जोकि ठीक बा कहे की UV-C अगर धरती पे पहुंची त हमनी के श्राइस के चमड़ा जल सकता या त्वचा कर्क रोग होसकेला। इंहा तक की UV-A और UV-B जो धरती पे पहुंचेला, ऊ समय से पाहिले बूढ़ा कर देवेला , बहुते देर संपर्क से आवे में के चमड़ा जल सकेला या त्वचा कर्क रोग होसकेला)

तो का UV-A और UV-B रोगजनकों के ना मार सकेला? UV-A अउर UV-B बैक्टीरिया अउर रोगजनकों (स्रोत) को मारेला जानल जायेला। UV-A अउर UV-B भी कई वायरस बनावेला हैं जइसन की कि इन्फ्लुएंजा वायरस जेकर कम असर बा (स्त्रोत)। मगर एक्के समय में, सूरज के किरण (UV-A अउर UV-B) SARS वायरस (जो एगो प्रकार के कोरोना वायरस बा) के 15 मिनट के संपर्क में आवे के बाद ही कुछ वायरस अप्रभावी हो जायेला।(स्त्रोत)

हमनी के जो UV लैंप जो काम में लावेनि ऊ सतहों अउर सार्वजनिक सुविधाओं जगह पे कीटाणुनाशक के रूप में उपयोग कराल जायेला, मानव से बनल जो UV किरण बाटे ओकरो UV-C वाला फ्रीक्वेंसी बा। जबकि ई एगो बढियाँ कीटाणुनाशक होसकेला, लेकिन ई मानव जाती ला खतरा बन सकेला। वैज्ञानिक के मानल जाए तो मानव जाती से बनल UV-C किरण से नावेल कोरोना वायरस मारसकेला काहेकि उनकरा लागेला के भूतकाल ऐसेही वायरस के खिलाफ कम कराल गइल होई।

ध्यान दे: वायरस पर प्रभाव डालेवला (या अप्रभाव ड़ालेवाला) UV किरणों के बारे में उपरोक्त सबो तथ्य तभी बा जबले वायरस शरीर के बाहर बा अउर सूरज के प्रकाश के संपर्क में होवेके चाही। एक बार जब वायरस देह के भीतर घुस जाइ तोह कउनो मात्रा में सूरज या UV किरण ओकरा के ना मार सकेला।

का हमनी हाथ साफ करेला के लिए UV लैंप या UV लाइट का इस्तेमाल करेके चाही?

WHO हाथ के साफ करेला UV लैंप के उपयोग करे के खिलाफ सख्त दिशा-निर्देश देल गइल बाटे। UV लैंप मानव कोशिका पे प्रमुख नकारात्मक प्रभाव डाल सकेला अउर अच्छे से अधिक हर्जा के कारण बन सकेला । WHO वेबसाइट कहेला की, “अल्ट्रा-वायलेट (UV) लैंप के उपयोग हाथ या आपन त्वचा के कउनो क्षेत्रों के कीटाणुरहित करेला ना करे की चाही । UV विकिरण त्वचा के जलन अउर आँख में नुकसान पहुंचा सकेला।”

का सूरज के रोशनी रउवा विटामिन डी लेवे में मदद कर सकेला अउर अइसने अउर तरह के बीमारी के रोक सकेला?

सूरज के रोशनी विटामिन डी के एगो बड़ा स्रोत हो सकेला, बशर्ते रउवा सीमित समय ला हर रोज सूरज के किरण से त्वचा का एगो बड़का हिस्सा उघार के रखी। हमनी के ई बारे में वरिष्ठ ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. मनीष सिंघल से बात करनी। नीचे देवल गइल वीडियो देखि:

साँच के पड़ताल: कोरोनावायरस ला गर्म चाय और भाप

सारांश

कोरोनावायरस के इलाज ला एगो और दावा सोशल मीडिया पर सामने आइल ह। ई गरम चाय पिए के, भाप लेवेके और गलाला के बारे में बाटे। हमनी के साँच के जब जांच करनी तो ई झूट निकलल।

दावा

एगो सोशल मीडिया पे एकठो पोस्ट पढ़ता की “चीनी लोग कोरोना वायरस ला कउनो दवाई या टिका नइखे लेवत। ऊ लोग हस्तपाल जाये छोड़ देलन। ओकरा बजाये ऊ लोग गर्मी से वायरस के ख़त्म करता। केतली से ऊ लोग दिन में ४ बार गरम भाप लेवेला। ४ बार दिन में गलाला करेला। ४ बात गरम चाय पीयेला। वायरस ४ दिन में मर जाएला। और पांचवा दिन ऊ लोग के कोरोना नेगेटिव होजायेला।”

पोस्ट के एक स्नैपशॉट नीचे देवल गइल बा और ओकरे से संग्रहीत संस्करण के यह देखल जा सकेला

साँच के पड़ताल

ये झूठो दवा बा, और दूसर दवा से मिलल जुलल निकलल जेकर जांच हमनी के पहले भी करले रहनी जेकरा के रउवा लोग इंहा – उँहा पढ़ सकेनी।

का चीन के कौनो फ़िक्र नइखे कोविद 19 दवा ला?

चीनी शोधकर्ता कोविद 19 के दवाई ला पूरा समय अनुसन्धान में लगैले बाटे। इंहा एगो रिपोर्ट बा जेमे चीनी वैज्ञानिक जापानी फ्लू ड्रग पे प्रयोग करतरन (स्रोत) और इंहा चीन के बारे में एगो रिपोर्ट बा जो कोविद -19 के दवा (स्रोत) खोजेला उनकर खोजला क्लीनिकल परीक्षण के आगे बढाई।

का चाय कोरोनोवायरस के मर सकेला?

ना इ झूठा दावा के दुनिया भर के तथ्य जाँचकर्ताओं लोगन ने खारिज कर देहलन। रउवा लोगन एकरा बारे में इहाँ, इहाँ और इहाँ पढ़ सकेनी।

का गर्म पानी पीये से कोरोनावायरस मर सकेला?

नाही। हमनी के पहले भी एगो अइसने विषय पर तथ्य जांच कर चुकल बानी। एकरा बारे में ईहा पढ़ी

का सामान्य रूप से गर्म पानी पीयल शरीर ला अच्छी बात बा?

आयुर्वेद के अनुसार, हाँ। गर्म पानी पीये के कुछ फायदे बा। हमनी एगो विस्तृत कार्य करलेबनि

फाबिफ्लू बनाम लीवफावीर: कीमत के अंतर के मैसेज झूठ बा

सारांश

फेसबुक पे एगो वायरल मैसेज में दावा करल गइल बा कि COVID-19 के इलाज ला ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स द्वारा हाल ही में परचार करल गइल रहे की फैबीफ्लू 200 mg के एगो गोली के दाम 103 रुपैय्या बा। लीवफाविर लिवैलथ बायो फार्मा कंपनी द्वारा बनाइल गइल बा, जे समान संरचना के बहुत सस्ता दवा बा। हमनी के जब जांच करनी त पता लागल कि भले दवा लिफावीर के दाम शुरू में सस्ता सूची में करल गइल रहे मगर ऊ गलती से होगईल रहे। सूची के बाद में हटा देवल गइल रहे और वायरल सोशल मीडिया के खबर अधिकतर गलत रहे।

दावा

एगो फेसबुक पोस्ट में दावा करल गइल बा की “फैबफ्लू 200 मिलीग्राम ग्लेनमार्क द्वारा एकर कीमत 103 रुपैय्या एगो गोली राखल गइल बा। हम पूछ ताछ के बाद पयनी, की इ पहले से ही भारत के बाजार में फेविपिरविर का एगो ब्रांड मौजूद बा, जेकर नाम ‘लीवफाविर’ बा, जेकर आधार मुंबई की एगो कंपनी लिवैलथ बायो फार्मा प्राइवेट लिमिटेड द्वारा करल जाइला – और लीवफाविर 200mg के एक दस गोली के पत्ता 200 रुपैय्या के लागत बा – मतलब एगो टैबलेट 20 रुपैय्या (ग्लेनमार्क ब्रांड का 1/5 से कम)”।

फेसबुक पोस्ट के एक स्नैपशॉट नीचे देवल गइल बा और ओकरे से संग्रहीत संस्करण के यह देखल जा सकेला

*AN EYE OPENER*Fabiflu 200 mg. has been priced at Rs.103 per tablet by Glenmark. After my inquest, I found, already…

Posted by Sheel Kumar on Tuesday, 23 June 2020

साँच के पड़ताल

फैबिफ्लू का होवेला?

फैबिफ्लू ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स द्वारा आधारित एगो परचा पे देबे वाला वायरल विरोधक दवा बा। दवा के मुख्य अंश फेवीपिरवीर बांटे जे जापान में इन्फ्लूएंजा के उपचार ला अनुमोदित देवेला। इ चुनिंदा रूप से आरएनए पोलीमरेज़ को रोकेला, जे वायरल केप्रतिकृति ला जरूरी बा। भारत में फैबीफ्लू के दाम 34 गोली के एक पट्टी ला 3,500 रुपय्या बा यानी एगो गोली के दाम 103 रुपय्या बा।

लीवफाविर का होवेला?

लीवफाविर लिवैलथ बायो फार्मा द्वारा बनाएल गइल एगो ब्रांडेड दवाई ह। फैबिफ्लू जइसन, लीवफाविर के भी मुख्य अंश फेवीपिरवीर बांटे।

का लीवफाविर फैबिफ्लू से सस्ता बाटे?

जबकि शुरू में लीवफाविर, फैबीफ्लू से, सस्ता सूची में डालल गइल रहे, कंपनी हे पे दवा कर्लस की इ मार्केटिंग टीम के गलती रहल।
“हमनी के एकठो गोली के दाम 200 रुपय्या लिखेके रहे और एकरा बनावेला इजाजत भी मिल गइल रहे, हलाकि भविष्य में एकरा के बाजार में उतारे के या बेचेला तरकीब नइखे बनावत और सब परचार हटा देल गइल बा” लिवैलथ बायो फार्मा के निदेशक संजय पाटिल जी बूम लाइव के बतइलन।

लिवैलथ बायो फार्मा ओकरे आधार पे एगो अधिकारित ट्विटर पे बयान देलस ह।

का अभी कही लीवफाविर मिलता?

कंपनी अपन उत्पाद के बाजार से पूरा तरह से वापस लेवे का दावा करले बा। हमनी के गुड़गांव, बैंगलोर और कोलकाता में कुछो फार्मासिस्टों से पूछताछ करनी, जेमे सभनि लोग पक्का करलन कि लिवफवीर उनकरा पास हइये नइखे। हमनी के 1MG, Medlife, Pharmeasy सगरो प्रमुख भारत के ऑनलाइन फ़ार्मेसी के जांच करनी । लिवफेयर उंहा भी नइखे।

इंडिया मार्ट जहां पे दवाई के सूची सबसे पहिले डालल गइल रहे, ऊ भी सूची के हटा देलन।

यूनिस्टो: अइसन कोनो सिरप नइखे जो चार घंटे में पथरी के ठीक करदी

सारांश

एगो दावा जउन के सोशल मीडिया में करल जात रहे की यूनिहर्ब्स हेल्थकेयर जो यूनी-स्टो नाम से सिरप बनैले रहे ऊ ४ घण्टे में आदमी के शरीर से पथरी रोग के ठीक करदी। हमनी के जब जांच करनी तो पता चलल की अइसन कोनो सिरप हइये नइखे। दावा झूट निकलल।

दावा

एगो फेसबुक उपयोग करेवाला एगो पैकेट के फोटो डालके हर्बल सिरप के दवा करत रहलन। पैकेट पे लिखल जानकारी से पता चलल की बनाये वाले कंपनी के नाम यूनिहर्ब्स हेल्थकेयर बा और सिरप के नाम यूनी-स्टो बा। पैकेट में पढ़े से पता चलल की ओमे गुर्दा के दिक्कत के लेके रस्याण सूत्रीकरण लिखल बाटे। फोटो के साथ इहो लेखल रहे की ई सिरप ४ घण्टे में आदमी के शरीर से पथरी रोग के ठीक करेला।
पोस्ट का संग्रहीत संस्करण यहां देखल जा सकेला।
पोस्ट के आशुचित्र निचे देल गइल बा।

दावा: यूनिहर्ब्स हेल्थकेयर के जो यूनी-स्टो सिरप बा ऊ ४ घंटा में गुर्दा के पथरी ठीक कर दे बा।

साँच के पड़ताल

कोनो यूनिहर्ब्स हेल्थकेयर नाम के कंपनी बाटे?

हमनी के पड़ताल करनी कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय, भारत सरकार से। पता चलल युनीहर्ब्स हेल्थ केयर नाम से कोनो कंपनी दर्ज नइखे। दुगो कंपनी मिलल अइसन मिलता जुलता नाम से:

  1. युनिहरबल लाइफ साइंस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी जो आयुर्वेदिक दवा बनावेला
  2. युनिहर्ब्स ४ लाइफ प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड जो आयुर्वेदिक दवाई बनावेला मगर ज्यादातर थर्ड पार्टी उत्पादक बाटे

हमनी के पड़ताल कइनी युनिहर्बल लाइफ साइंस प्राइवेट लिमिटेड से। कंपनी हमनी के पक्का कईलस की युनि-स्टो उनकर उत्पाद हईये नइखे।
हमनी के युनिहर्ब्स ४ लाइफ प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड में भी गइनी ई पता करें की खातिर की कही ई कंपनी कउनो दूसर कंपनी ला उत्पाद तां ना करेला। पर अभी तक हमनी के कुच्छो जवाब उँहा से ना मिलल। हमनी के जैसे कउनो जानकारी मिली रउवा लोग के बता देईल जाई।

हालाँकि युनिहर्ब्स हेल्थ केयर के लोगो एकदम मेल ना खाइल जौनो कंपनी के नाम ऊपर लिखल बाटे। और जो नाम कंपनी के पैकेट पे लिखल बाटे ऊ नाम ऊपर देल गइल कंपनी से नइखे मिलत नाही भारत में ऐइसन कोनो कंपनी बा।
ता अइसन शायदे हो सकेला की अइसन टाइप के दवाई या कोनो पोषण वाला दवा मिल सकी।

का ई हो सकेला की यूनिस्टो नाम से सिरप कोनो और कंपनी बनावत होई?

यूनिस्टो कंपनी व्यापार चिन्ह के साथ एक पंजीकृत स्वीटसेरलैंड कंपनी बाटे जे सुरक्षा उत्पाद में कार्य करेला। तो अइसन ना हो सकेला की यूनिस्टो नाम से वैध उतपाद कउनो समान्नित कंपनी के होई।

हालाँकि भारत में बहुते आयुर्वेदा सूत्रीकरण से सामान बनावल और बेचल जाइला, कोई कुछ सिमित समय ला बनाके पहर रोकदेला, ता इ कहल बारे मुश्किल बा की कभी इ सिरप के प्रचारकरण भारत के कोनो हिस्सा में भइल रहे या ना।

हमनी के एगो आयुर्वेदिक डॉक्टर से दिल्ली में भेट भएल जिनकर नाम रहे डॉक्टर राजीब भटिआ, बीए एम्स, जे पुष्टि कइलन की “आयुर्वेदा सूत्रीकरण पथरी रोग पर कुछ हद तक कारगर सिद्ध भइल बा। हम युनि-स्टो नाम से कोनो सिरप के नाम नइखे सुनली।”